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________________ रेखाएं मानी जाती हैं। यह दोष पूर्ण लक्षण है परन्तु हृदय रेखा के साथ सटकर चलने वाली दूसरी हृदय रेखा दोषपूर्ण न होकर उत्तम मानी जाती हैं। इसे दोहरी हृदय रेखा कहते हैं (चित्र 131 ) । पूरी दोहरी हृदय रेखा बहुत कम देखने को मिलती है, हृदय रेखा के साथ छोटे या बड़े टुकड़े तो अधिकतर देखे जाते हैं। इस प्रकार के टुकड़े भी उत्तम फल देते हैं, परन्तु पूरी हृदय रेखा श्रेष्ठता अधिक प्रदान करती है। चित्र - 131 दोहरी हृदय रेखा वाले व्यक्ति अपने जीवन साथी या प्रेमी को ईश्वर के समान मान देते हैं। प्रेम, सम्मान आदि में इनकी कोई बराबरी नहीं कर सकता । ईश्वर में भी इनकी अपूर्व श्रद्धा होती है। ऐसे व्यक्ति आदर्शवादी होते हैं और पत्नी, गुरू, हितैषी व पूज्य व्यक्तियों की थोड़ी सी भी निन्दा या अपमान सहन नहीं कर सकते। जिस संस्था में ऐसे व्यक्ति काम करते हैं उस संस्था के मुख्य संस्थापक की आलोचना भी इन्हें पसन्द नहीं होती । ऐसी स्त्रियां पति की सेवा में दत्तचित्त होती हैं। ऐसे व्यक्ति प्रेम साधना में बहुत ही शीघ्र उन्नति कर जाते हैं। भावुक होने के कारण ऐसे व्यक्ति थोड़े कष्ट को अधिक मानते हैं और दूसरों का दुःख भी नहीं देख सकते। इनके जीवन साथी सुन्दर, सच्चरित्र, महत्वाकांक्षी और घर बनाने वाले होते हैं। विवाह के बाद इनके जीवन में अधिक उन्नति होती है। ऐसे व्यक्ति उत्तरोत्तर प्रगति करते हैं। हृदय रेखा का निकास हृदय रेखा, मंगल, बुध या दोनों के बीच से ही निकलती है। पूर्णतया मंगल या बुध से निकली हुई हृदय रेखा अच्छी नहीं होती, किन्तु मंगल और बुध के मध्य से निकली हुई हृदय रेखा उत्तम मानी जाती है ऐसी हृदय रेखा यदि दोष रहित हो तो ज्यादा अच्छा रहता है। हृदय रेखा का मंगल से निकलना मंगल से निकली हुई हृदय रेखा व्यक्ति में क्रोध, जल्दीबाजी, बुखार व खून Jain Education International 201 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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