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________________ काधार हाथ के जोड़ पर पाई जाती है और तीन संख्या तक होती हैं। हाथ देखते समय जितना हम रेखाओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन करते हैं उतना ही फल कहने में आसानी रहती है। - हाथ देखते समय निम्न बातों का मुख्य रूप से ध्यान रखना चाहिए 1. कौन सी रेखा कहां से निकलकर कहां गई है। 2. किस स्थान पर रेखा टूटी हुई, झुकी हुई, टेड़ी, मोटी या पतली है। 3. कौन सी रेखा किस स्थान पर किसी दूसरी रेखा से कटती है अथवा कोई रेखा उस पर आकर मिलती या उसे छूती है। ___4. कौन सी रेखा किस स्थान पर त्रिकोण, . चतुष्कोण या किसी रेखा के बिल्कुल नजदीक कोई दूसरी पतली रेखा तो नहीं जा रही है। इस पतली रेखा का हाथ के फलादेश पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इन रेखा विशेष को हम कुठार रेखा के नाम से जानते हैं। 5. यह भी देखना होगा कि कुल मिलाकर चित्र-32 रेखाएं लम्बी, छोटी, मोटी, पतली या किसी विशेष प्रकार की हैं। 6. कुछ रेखाएं निरर्थक रूप से हाथ में देखी जाती हैं। इन रेखाओं का हाथ में कोई महत्व नहीं होता है। ये केवल कल्पनाशील होने का लक्षण है। = रेखाओं के विषय में साधारण जानने योग्य बातें - हाथ में उपस्थित चारों मुख्य रेखाओं की लम्बाई पूर्ण होने पर व्यक्ति की आयु लम्बी होती है। यदि इनमें से किन्हीं दो या तीन रेखाओं में एक ही आयु में गम्भीर दोष हो तो मृत्यु हो जाती है। केवल जीवन रेखा को ही जीवन की लम्बाई के विषय में उत्तरदायी नहीं कहा जा सकता। जीवन रेखा का दोष केवल व्यक्ति की उस आयु में अन्य समस्याएं देने वाला होता है, जिसका वर्णन जीवन रेखा के विषय में बताते समय कर दिया गया है। जीवन रेखा अपूर्ण होने की दशा में, यह रेखा जिस आयु में समाप्त होती है, उसके पश्चात् कफ व उदर विकार रहते हैं, परन्तु धन, सुख व सम्पत्ति की दृष्टि से समृद्धि प्राप्त होती है। अपूर्ण जीवन रेखा की आयु तक प्रत्येक कार्य में विघ्न रहता है। इसी प्रकार मस्तिष्क रेखा यदि जीवन रेखा से पूर्व समाप्त होती है तो स्मृति कमजोर हो जाती है, किन्तु हाथ सुन्दर, सुडौल, भारी व कोमल होने पर व्यक्ति को अपनी स्मृति से विशेष प्रयोजन नहीं रह जाता या उसकी आवश्यकता कम होती है 101 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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