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नीचे शनि ग्रह का स्थान होता है। ज्यादातर हाथों में शनि दबा हुआ होता है। शनि का स्थान हृदय रेखा तक होता है।
0 चतुष्कोण
त्रिकोण
डमरू * सितारा X गुणक - जाली
'माणेबन्य
चित्र-1
अनामिका (तीसरी उंगली)- तीसरी उंगली सूर्य की उंगली कहलाती है। इसके नीचे और हृदय रेखा से ऊपर सूर्य ग्रह का स्थान होता है।
कनिष्ठा (चौथी उंगली)- चौथी उंगली बुध की उंगली कहलाती है। इसके नीचे उभरा हुआ स्थान बुध ग्रह का स्थान होता है। यह हृदय रेखा से ऊपर होता है। हृदय रेखा से ठीक नीचे बुध पर्वत के साथ विपरीत मंगल अर्थात बुध वाला मंगल स्थित होता है।
इस मंगल के नीचे कलाई की ओर लम्बा व उभरा स्थान चन्द्रमा का होता है। यह स्थान शुक्र से कलाई के पास मिलता है तथा एक गहराई इन दोनों को अलग करती है। इन ग्रहों के घेरे के बीच हथेली के मध्य स्थान में गहराई होती है। इसमें उंगलियों तथा कलाई की ओर दो स्थान राहु तथा केतु के होते हैं।
ध्यान रहे, कि कुछ ग्रह ऊपर से कम उठे होते हैं, परन्तु ग्रह की गांठ तीखी या नुकीली होती हैं। नुकीली गांठ उत्तम और बड़ी गांठ मध्यम मानी जाती हैं। अतः गाठों की भी परीक्षा अवश्य करनी चाहिए।
शनि की उंगली से लेकर नीचे कलाई तक शनि क्षेत्र कहलाता है। इसी में राहु, केतु का स्थान होता है। इनका कोई स्वतन्त्र स्थान नहीं होता। शनि क्षेत्र ही राहु व केतु का स्थान है। इनका फलादेश भी शनि के समान ही होता है। ग्रहों का स्थान उभरा और नुकीला भी हो तो उस ग्रह का उत्तम लक्षण है।
अंगूठा-अंगूठे का हाथ में बड़ा महत्व होता है। अंगूठा पतला, लम्बा, सुडौल व सुन्दर होना उत्तम माना जाता है। इसके विपरीत मोटा, छोटा, टोपाकार आदि अंगूठां
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