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________________ प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात भाग्य रेखा पर इसका जैसा भी प्रभाव पड़ता है अर्थात् भाग्य रेखा के स्वरूप में कितनी कमजोरी या पुष्टता आती है, उसके अनुसार ही प्रभावित रेखा का फल होता है। __ कई बार प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात भाग्य रेखा टूट जाती है या प्रभावित रेखा भाग्य रेखा को काट देती है (चित्र-119)। इस दशा में प्रभावित रेखा का प्रभाव भाग्य रेखा पर अच्छा नहीं होता। भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात् भाग्य रेखा के गठन में कोई अन्तर न होकर गठन वैसा ही रहता हो या इसमें पुष्टता आती हो तो उत्तम फल कारक होती है जबकि प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात् भाग्य रेखा में दोष आता हो (चित्र-119) तो भाग्य चित्र-119 रेखा पर इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता, यह समस्याकारक होती है। == समानान्तर व सटी हुई भाग्य रेखा = कभी-कभी भाग्य रेखा के साथ दूसरी सटी हुई रेखा देखने में आती है (चित्र-120)। यदि यह रेखा सटी हुई न होकर 1-2 मि.मी. से अधिक दूर हो तो दूसरी भाग्य रेखा मानी जाती है। बिल्कुल पास होने पर यह भाग्य रेखा तो होती ही है परन्तु चरित्र की दृष्टि से अच्छी मानी जाती है। हृदय रेखा से अलग रेखा का चरित्र सम्बन्धी दोषपूर्ण फल नहीं होता। भाग्य रेखा के साथ सटी हुई इस प्रकार की रेखा उस आयु में किसी सम्पर्क, सम्बन्ध या विवाह का लक्षण है, परन्तु इसका निर्णय जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा की उत्तमता पर निर्भर करता है। हृदय रेखा की कोई शाखा उस आयु में मस्तिष्क रेखा पर नहीं मिलनी चाहिए, अन्यथा लाभ के बदले कार्य में रुकावट व हानि होगी। हाथ के लक्षणों के अनुसार यदि व्यक्ति वासनाप्रिय हो तो समानान्तर सम्बन्ध होते हैं । यह चित्र-120 ध्यान रखना आवश्यक है कि मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण या हाथ आदर्शवादी होने पर 189 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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