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________________ अपने सम्मान पर ठेस लगने के डर से अनैतिक सम्बन्ध स्थापित नहीं करते तो भी इस आयु में काम - रुचि बढ़ जाती है। हृदय रेखा में द्वीप या हृदय रेखा का अन्त शनि या शनि और बृहस्पति की उंगली के बीच होने पर उपरोक्त प्रकार की दोहरी भाग्य रेखा उस आयु में समानान्तर यौन सम्बन्ध व जोरदार बदनामी का निर्देश करती है। इस दशा में यदि हृदय रेखा से छोटी-छोटी शाखाएं मस्तिष्क रेखा की ओर गईं हों या भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखाएं मिली हों तो, ऐसी स्त्रियां पति को छोड़कर प्रेमी के साथ चली जाती हैं चाहे पहले पति से सन्तान ही क्यों न हो। इसका उद्देश्य केवल वासना पूर्ति होता है। हृदय रेखा उंगलियों के पास व हृदय रेखा में रोमांच भी हो तो ये कामांध होती हैं। भाग्य रेखा में द्वीप वैसे तो किसी भी रेखा में द्वीप एक दोषपूर्ण लक्षण है, परन्तु भाग्य रेखा में द्वीप विशेष महत्व रखता है। इसमें यह अधिक दोषपूर्ण फल करता है । ऐसे व्यक्ति को शरीर, धन, जीवन साथी व परिवार सम्बन्धी परेशानी जीवन भर थोड़ी-बहुत रहती हैं। द्वीप के समय में तो अत्याधिक अशान्ति रहती है। कभी-कभी इस समय आत्महत्या या घर छोड़ कर चले जाने का विचार भी मस्तिष्क में आता है (चित्र 121 ) । भाग्य रेखा में दो प्रकार के द्वीप पाए जाते हैं। एक तो सामान्य द्वीप जो भाग्य रेखा को चीर कर बनते हैं। दूसरे ऐसे द्वीप होते हैं जो अन्य रेखाओं, प्रभावित रेखा या जीवन रेखा की शाखा आदि से मिल कर बनते हैं । इसका आकार चतुष्कोण जैसा होता है परन्तु यह द्वीप का ही फल करता है। हाथों में यह अधिकतर 18 से 23 वर्ष तक देखा जाता है । परन्तु किसी-किसी हाथ में 28/29 वर्ष की आयु तक भी होता है। यह द्वीप किन्ही अन्य रेखाओं द्वारा कटा हो तो अधिक दोषपूर्ण होता है । यही उत्तम हाथों में सुन्दर व कटा हो तो श्रेष्ठ फल कारक होता है। इसे इस दशा में यौनि मुद्रा कहते हैं । इस द्वीप की आकृति देखने में सुन्दर हो तो यह अपेक्षाकृत कम दोषपूर्ण होता है। साधारणतया दोनों प्रकार के द्वीपों के फल में कोई विशेष अन्तर नहीं है। चित्र - 121 भाग्य रेखा में द्वीप होने पर जीवन साथी के चरित्र पर शंका रहती है। कभी-कभी इस बात का एक-दूसरे को पता भी होता है। शादी से पहले ऐसे व्यक्तियों का किसी 190 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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