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________________ आयु से भाग्योदय होकर व्यक्तिगत उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। उस आयु में ये कोई ऐसा कार्य करते हैं, जो इन्हें बहुत सफल बना देता है। इस समय से पहले कोई विशेष सफलता नहीं मिलती। ऐसे हाथों में दूसरी भाग्य रेखा भी हो तो पहले भी इन्हें सब प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं परन्तु नई भाग्य रेखा के उदय की आयु से विशेष प्रगति करते हैं। भाग्य रेखा का चन्द्रमा से निकलना यह एक महत्वपूर्ण लक्षण है। इसमें भाग्य रेखा जीवन रेखा से अधिक दूर होती है। सिद्धान्ततः यदि इसमें कोई दोष न हो तो जीवन रेखा से दूर होने के कारण उत्तम भाग्य रेखा मानी जाती है (चित्र-106)। यह देखना चाहिए कि यह भाग्य रेखा, हृदय या मस्तिष्क रेखा पर न रुकी हो और चलते हुए जीवन रेखा के पास न गई हो अन्यथा कष्ट कारक सिद्ध होती है। साथ ही यह पतली भी होनी चाहिए। निर्दोष अवस्था में यह बहुत उत्तम लक्षण माना जाता है। यहां भी जीवन रेखा से शनि के नीचे कोई छोटी भाग्य रेखा निकलना आवश्यक है, इस प्रकार की भाग्य रेखा का फल उसी आयु से आरम्भ होता है, जिससे कि यह शनि क्षेत्र में प्रवेश करती है। चन्द्रमा से निकलने वाली भाग्य रेखा प्रायः चित्र-106 जीवन रेखा के पास देखी जाती है। इस दशा में यह खराब फल देती है। यदि यह मस्तिष्क रेखा पर विशेषतया सूर्य के नीचे रुकती हो तो ज्यादा खराब फल देती है। ऐसे व्यक्ति 44 वर्ष की आयु तक स्थायित्व प्राप्त नहीं कर पाते। अनेक काम बदलने के बाद भी हानि उठाते हैं। हृदय रेखा पर रुकने पर भी व्यक्ति को स्थायित्व देर से मिलता है क्योंकि ये निजी हितों के प्रति लापरवाह होते हैं और दूसरों के प्रभाव में शीघ्र ही आते हैं। अतः देर से ही अपने पैरों पर खड़े हो पाते हैं। चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर निर्दोष होकर, यदि शनि पर गई हो तो ऐसे व्यक्ति मस्त स्वभाव के होते हैं व अंगूठा सख्त या कम खुलने वाला हो तो मनमानी करने वाले होते हैं। इनकी निर्णय शक्ति उत्तम होती है परन्तु यदि हाथ में अधिक रेखाएं हो तो अधिक देर तक सोचने की प्रवृत्ति होती है और निर्णय भी स्पष्ट नहीं होता। ऐसे व्यक्तियों 7 179 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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