SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करती है। ऐसे व्यक्ति हर कार्य में अपना समर्थन चाहते हैं। शनि के नीचे द्विभाजन अण्डकोष, गुर्दे, हर्निया व गर्भाशय के रोगों का लक्षण है। इस प्रकार की शाखाओं का वर्णन यथा स्थान पर दिया गया है। इस प्रकार की दोनों शाखाएं बराबर मोटी व लम्बी होती हैं। इन शाखाओं में बृहस्पति पर द्वीप गले के रोग या गले के कैन्सर और शनि पर कटि से जंघा तक होने वाले रोगों का लक्षण = हृदय रेखा या उसकी शाखा मस्तिष्क रेखा पर यह लक्षण हाथ में तीन प्रकार से पाया जाता है1. हृदय रेखा की कोई मोटी या पतली शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती है। इनमें मोटी शाखा अधिक दोषपूर्ण फल करती है (चित्र-155) । 2. हृदय रेखा ही टूट कर मस्तिष्क रेखा पर मिलती है (चित्र-156) । 3. हृदय रेखा की कोई शाखा निकल कर मस्तिष्क रेखा की ओर तो जाती है परन्तु उस पर मिलती नहीं, यह अपेक्षाकृत कम हानिकारक होती है। इन रेखाओं का प्रभाव उसी आयु में होता है जब ये हृदय रेखा से निकलती हैं, परन्तु मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप होने पर इसका फल, जिस आयु में यह हृदय रेखा से निकलती है और जिस आयु में मस्तिष्क रेखा पर मिलती है, उसी अनुसार होता है। हृदय रेखा की शाखा का मस्तिष्क रेखा पर मिलना। चित्र-155 अत्यन्त महत्वपूर्ण लक्षण है। किसी भी समस्या पर विचार करते समय यह लक्षण देखना अनिवार्य है। जिस आयु में हृदय रेखा की कोई शाखा या हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती है, उस समय महान कष्ट, विपत्ति, मानसिक कष्ट, धन हानि, रोग, विछोह, मुकद्दमे, मृत्यु या इस प्रकार की घटनाएं घटित होती हैं। घटनाओं का ज्ञान हाथ में उपस्थित अन्य लक्षणों से भी करना चाहिए। हृदय रेखा से 2-3 या 4 शाखाएं मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो तो व्यक्ति को जीवन भर परेशानियों का सामना करना पड़ता है, पूरे जीवन चैन की सांस नहीं मिलती। एक के बाद दूसरी समस्या चलती रहती है। यह पूर्व जन्म कृत किसी जघन्य पाप का लक्षण है। एक से अधिक भाग्य रेखाएं, पतला अंगूठा या गोलाकार जीवन रेखा होने 217 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy