SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2. शुक्र- 15, 25, 26, 27, 43, 52, 53, 54, 55, 57, 581 3. सूर्य- 5, 6, 14, 22, 44, 50 । 4. चन्द्रमा- 2, 4, 24, 54 । 5. बुध- 3, 6, 17, 20, 21, 23, 29, 30, 31, 32, 33, 59, 62, 69 । 6. मंगल- 1, 14, 18, 48, 56 । 7. गुरू- 15, 16,80 । 8. राहू- 40, 41, 42, 44 । 9. केतू- 7,21, 42, 48 । ग्रहों के साथ हाथ में मंगल व शनि के क्षेत्र भी होते हैं। शनि का क्षेत्र शनि की उंगली से नीचे मणिबन्ध से लेकर शनि की उंगली तक माना जाता है। यह क्षेत्र जितना ही कम कटा-फटा, कम रेखाओं वाला, उर्ध्व रेखाओं से युक्त, गड्ढे, धब्बे, दाग आदि लक्षणों से रहित होता है, उतना ही व्यक्ति भाग्यशाली होता है। दूसरा क्षेत्र हृदय व मस्तिष्क रेखा के बीच में मंगल क्षेत्र कहा जाता है। मंगल क्षेत्र जितना ही कम कटा-फटा व स्पष्ट होता है व्यक्ति का जीवन भी उतना ही शान्त व निर्विघ्न रहता है। हृदय व मस्तिष्क रेखा एक होने पर इनके ऊपर का भाग ही मंगल क्षेत्र कहलाएगा। इस प्रकार ग्रहों के फल आदि देखकर अन्य लक्षणों से समन्वय करके इसके प्रभाव व फल का निश्चय कर लेना चाहिए। - बृहस्पति ग्रह बृहस्पति ग्रह पहली उंगली या तर्जनी उंगली के मूल स्थान में स्थित है (देखें चित्र-17) । यदि वह सुविकसित हो तो व्यक्ति में दूसरों पर प्रभुत्व जमाने की, शासन करने की, नेतृत्व और संगठन करने की तथा किसी उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने की आकांक्षा होती है। ये सदगुण तभी होंगे जब मस्तिष्क रेखा सुस्पष्ट और लम्बी हो। यदि मस्तिष्क रेखा निर्बल हो या किसी प्रकार दूषित हो तो सुविकसित बृहस्पति क्षेत्र व्यक्ति में आवश्यकता से अधिक घमण्ड भर देता है और वह स्वयं ही अपने गुण-गान करने वाला बन जाता है। परन्तु यदि बृहस्पति ग्रह अच्छा हो और हाथ में कोई दोष न हो तो जातक को सदाचरण और आत्मविश्वास से आशातीत सफलता प्राप्त होती है। व्यक्ति को जीवन में सफलता की ऊंचाइयों पर ले जाने वाले गुण जितने बृहस्पति ग्रह में होते हैं, उतने किसी चित्र : 17 बृहस्पति ग्रह 71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy