SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विशेषतया यदि अंगूठा मोटा व कम खुलने वाला हो तो और भी बुरा होता है। ऐसे व्यक्तियों को सिर फुट्टा कहा जाता है। ये छोटी-सी बात पर क्रोधित होकर नीच कर्म करने वाले होते हैं, कत्ल करने से भी नहीं हिचकते, ऐसे लोगों से हमेशा दूर रहना चाहिए। जीवन रेखा मोटी होने पर यदि अंगूठा अधिक खुले तो शरीर बहुत भारी हो जाता है। जीवन रेखा भारी होने के साथ-साथ हृदय रेखा भी मोटी हो और मस्तिष्क रेखा अच्छी हो तो धन तो रहता है परन्तु परिवार बड़ा होने के कारण खर्चा अधिक होता है। परिवार उन्नति करता है तथा बच्चे बुद्धिमान होते हैं। इनको कमर तथा हृदय का रोग होता है। जीवन रेखा मोटी, पतली, मोटी व फिर पतली इस प्रकार की हो तो जीवन में परिवर्तन होता रहता है। इसी के साथ यदि उस आयु में मस्तिष्क रेखा भी मोटी, पतली हो तो जब दोनों रेखाओं में एक साथ मोटापन या पतलापन होगा तो जीवन में उन्नति होगी तथा एक रेखा में मोटापन व दूसरी में पतलापन होने पर परेशानी रहती है। जिन हाथों में रेखाएं कम होती हैं, उनमें केवल जीवन रेखा तथा मस्तिष्क रेखा के मोटे-पतलेपन या झुकाव आदि का ही अध्ययन किया जाता है, क्योंकि उन हाथों में किसी प्रकार का थोड़ा-सा भी दोष बड़ा महत्व रखता है जो किसी महत्वपूर्ण घटना का सूचक होता है। पतली जीवन रेखा ऐसी जीवन रेखा भाग्य, मस्तिष्क व हृदय रेखा की तुलना में पतली होती है। अधिक पतली जीवन रेखा से भी स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता । कठोर हाथ हो तो पेट खराब होता है और नरम हाथ में फेफड़ों में विकार पाया जाता है, ये रोग वंशानुगत होते हैं। आरम्भ में पतली जीवन रेखा अस्वस्थता की चेतावनी देती है, साथ ही यह पारिवारिक कलह, विवाह में देरी, पत्नी की ओर से असन्तुष्टी, या उसके कारण घर में कलह आदि का लक्षण है। स्वयं मां-बाप में से एक से चुप रहता है या उनसे अलग रहता है। ऐसे व्यक्ति स्वनिर्मित होते हैं। यदि विशेष दोष हो या हाथ अधिक कठोर व खुरदरा हो तो कितना भी विद्वान होने पर जीवन में कदाचित् ही उन्नति कर पाता है। जीवन भर कुछ न कुछ असन्तोष अपने जीवन के विषय में बना ही रहता है। ऐसे व्यक्ति कुटेंव के कारण अपने पेट और आतें खराब कर लेते हैं। Jain Education International 122 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy