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________________ है। ऐसे व्यक्ति किसी भी बात को गुप्त नहीं रख सकते। निर्दोष हृदय रेखा वाला व्यक्ति मन से भी निर्दोष होता है, उसे यह पता नहीं होता कि क्या कहना है, क्या नहीं ? निर्दोष हृदय व मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा पर त्रिकोण का आकार बनाती हो व हाथ उत्तम होने पर व्यक्ति सम्पत्ति निर्माण करते हैं। ये अपने वंश का उद्धार करते हैं। स्वयं न तो अच्छा खाते हैं, न पहनते हैं, परन्तु सन्तान व परिवार के लिए उदारता से धन खर्च करते हैं। उपरोक्त दशा में भाग्य रेखाएं एक से अधिक होने पर मरने के पश्चात् विपुल धन सम्पत्ति छोड़ कर जाते हैं। इनका जीवन संघर्षमय रहता है परन्तु इनकी सन्तान व परिवार इनके संघर्ष का आनन्द लेते हैं। ऐसी स्त्रियों के चरित्र में थोड़ा सा दोष रहता है, परन्तु अन्य लक्षणों से समन्वय करने के बाद ही इस प्रकार का फल कहना चाहिए। दोषपूर्ण हृदय रेखा हृदय रेखा में द्वीप, टूटी-फूटी, मोटी, पतली, काली, लाल, उंगलियों के पास होना आदि इसके दोष कहलाते हैं। हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर व्यक्ति में चरित्र या कार्य सम्बन्धी अनेक प्रकार की कमियां रहती हैं। दोषपूर्ण हृदय रेखा वाले व्यक्ति जो भी कार्य करते हैं, यह विश्वास नहीं होता कि ये उसे कर लेंगे, न ही ये अकेले किसी कार्य को करने का साहस ही करते हैं, अतः जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जब तक हृदय रेखा दोषपूर्ण रहती है, किसी न किसी को साथ लेकर चलना पड़ता है। यदि साथ का व्यक्ति चालाक हो तो इनके सीधेपन तथा विश्वास का अनुचित लाभ उठाकर इन्हें हानि पहुंचाता है। दोषपूर्ण हृदय रेखा से व्यक्ति में रोग, क्रोध, स्वभाव में चंचलता, अधिक सोचने की आदत, क्षण में प्रसन्न व क्षण में क्रोध, किसी से घुल जाना या किसी का पूर्णतया बहिष्कार करना आदि लक्षण पाये जाते हैं। इनमें किसी न किसी प्रकार का व्यावहारिक असन्तुलन रहता ही है । फलस्वरूप किसी का विरोध व किसी से प्रेम रहता है। इनके सम्बन्ध भी स्थायी नहीं रहते। ज़रा सी बात पर रो पड़ना, अधिक भावुकता की बात करना, गुड़ से मीठा या नीम से कड़वा रहना, ऐसे व्यक्तियों की विशेषताएं हैं। हृदय रेखा बुध से निकल कर बृहस्पति पर गई हो व दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति का स्वभाव अस्थिर होता है। ये कभी शान्त तो कभी उग्र होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान में रेखा का प्रभाव होता है। यदि सन्तान को ढंग से प्रशिक्षण नहीं दिया गया तो उनमें संगति के प्रभाव से अनेक प्रकार की कुटेंव आ जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों की Jain Education International 199 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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