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________________ पर ऐसे व्यक्ति ससुराल से लाभ प्राप्त करते हैं। बृहस्पति ग्रह पर त्रिभुज, लोकहित के लिए कार्य करने वाले, जैसे रियासतों या राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों के हाथों में पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति राजदूत, गवर्नर आदि होते हैं। बृहस्पति पर तारा होने पर अन्तिम समय में दाम्पत्य सुख की हानि होती है। अतः जीवन साथी का विछोह व पक्षाघात होने की सम्भावना हो जाती है। यह मस्तिष्क में रसोली होने का भी लक्षण है। बृहस्पति के नीचे मंगल क्षेत्र की ओर, हृदय व मस्तिष्क रेखा के बीच की गहरी रेखा विशेष धनी होने के लक्षण हैं। हाथ उत्तम होने पर, दोनों हाथों में यह रेखा करोड़पति होने का लक्षण है। बृहस्पति ग्रह का अन्य ग्रहों के साथ मिलने पर निम्न फलादेश कहना चाहिए1. बृहस्पति तथा शनि- उद्योग आदि में विशेष योग्यता, ईश्वर चिन्ता, ज्योतिष | 2. बृहस्पति तथा शुक्र- सौन्दर्य में रूचि आदि । गतिरोध । 3. बृहस्पति तथा चन्द्र- कलाकारिता, मानसिकता, 4. बृहस्पति तथा बुध- रासायनिक पदार्थ, लेखन, गले के रोग, प्रबन्धक आदि । 5. बृहस्पति तथा सूर्य- किसी कार्य में विशेष दक्षता । ऐसे व्यक्ति अपने मुंह से किसी की तारीफ नहीं करते, अतः इस प्रकार के व्यक्ति की पत्नी हमेशा ही इनके व्यवहार से असन्तुष्ट रहती है। प्रेम होते हुए भी ये अपने जीवन-साथी की प्रशंसा नहीं करते। अपने मतलब के बाद मुंह फेर लेते हैं। हां, दूसरों के सामने अवश्य प्रशंसा करते हैं। उनकी आवश्यकता आदि का भी ध्यान रखते हैं। शुक्र विशेष उठा होने पर ऐसे व्यक्ति अपने गृहस्थ के विषय में उदासीन होते हैं और घर को होटल समझना, देर से आना या शीघ्र घर से निकल जाना तथा पत्नी की आवश्यकताओं का ध्यान न रखना आदि मनोवृत्ति भी ऐसे व्यक्तियों में पायी जाती है । ऐसे व्यक्तियों की भाग्य रेखा मोटी व उंगलियां छोटी होती हैं। ये अनेक प्रकार के लफडे करने वाले होते हैं। पत्नी के विरोध करने पर उसका अपमान कर देते हैं या पत्नी को दबा कर रखते हैं। शनि ग्रह शनि ग्रह दूसरी उंगली के मूल स्थान में स्थित होता है (देखें चित्र - 18)। इस ग्रह के मुख्य गुण हैं- एकान्तप्रियता, बुद्धिमानी, चुपचाप दृढ़ निश्चय करना, गम्भीर विषयों का अध्ययन करना और भाग्य पर अंधविश्वास । यदि यह ग्रह बिल्कुल विकसित न हो तो व्यक्ति में छिछोरापन आ जाता है। यदि यह क्षेत्र सीमा से अधिक विकसित हो तो उसके गुणों में इतनी वृद्धि आ जाती है कि वे अवगुण बन जाते हैं। 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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