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________________ तथा मानसिक विकृतियां सामने आती रहती हैं। ऐसी अवस्था में परिजनों का स्वास्थ्य खराब रहना, जैसे हृदय, लकवा आदि समस्याएं आती रहती हैं। इनके अध्ययन में विघ्न होता है। ऐसे व्यक्ति वहमी होते हैं तथा ज्योतिषियों, जादू टोना करने वालों के चक्कर में पड़े रहते हैं। ये कन्जूस भी होते हैं और खर्च भी करते रहते हैं। यह भी कहते हैं कि हम विश्वास नहीं करते और विश्वास भी करते हैं। कुछ समय के लिए सन्तुष्ट हो जाते हैं परन्तु फिर वैसा ही करते हैं। देवी-देवताओं की शरण में भी जाते हैं। तात्पर्य यह है कि न ही किसी को बाकी छोड़ते हैं और न ही किसी का विश्वास करते हैं। थोड़ी देर में रूठना और थोड़ी देर में मान जाना इनकी आदत होती है। चारों मुख्य रेखाओं में दोष होने की दशा में सन्तान का जीवन भी कठिनाईयों और उलझनों से भरा होता है। यदि सभी रेखाएं निर्दोष तथा पूर्ण हों तो सन्तान बुद्धिमान, भाग्यशाली व महानता प्राप्त करती है। जितनी ही रेखाएं विशिष्ट होती हैं, सन्तान उतनी ही महान् होती चली जाती है। __ चारों रेखाओं में एक ही आयु में दोष हो और उंगलियों में उस वर्ष वाले पोरों में आड़ी रेखाएं हों तो निश्चय ही कार्य में हानि, मृत्यु या दुर्घटना होती है (देखें चित्र-33)। व्यक्ति की उस उंगली का टेढ़ा होना भी घटना की निश्चितता को प्रकट करता है। ___ हाथ में जो भी रेखा अधूरी होती है, मनुष्य के जीवन में उसी रेखा से सम्बन्धित आकांक्षाओं की तीव्रता पायी जाती है, जैसे भाग्य रेखा से भाग्योदय, मस्तिष्क रेखा से शिक्षा, हृदय रेखा से प्रेम और जीवन रेखा से स्वास्थ्य। व्यक्ति उसी आकांक्षा को पूर्ण करने में सबसे अधिक ध्यान देता है। यह अन्य लक्षणों पर निर्भर करता है कि यह आकांक्षा व्यक्ति पूरी कर पाता है या नहीं। चारों रेखाओं में से एक भी टूटी होने पर ऑपरेशन होता है। अंग विशेष का पता दूसरे लक्षणों को देखकर लगाया जा सकता है। चारों रेखाएं एक साथ टूटी होने पर दुर्घटना में मृत्यु होती है तथा इनके सम्बंधी इनके पास देर से पहुंच पाते हैं या कभी-कभी मृत्यु का पता भी नहीं चल पाता। हाथ पतला या कठोर, उंगलियां मोटी आदि खराब लक्षण हाथ में हों तो दोषपूर्ण रेखा का प्रभाव व्यक्ति के पूर्व जीवन में ही हो जाता है। भारी तथा सुन्दर हाथ में यदि दोषपूर्ण रेखाएं हों तो उनका प्रभाव व्यक्ति की उत्तर आयु में होता है। चारों रेखाएं लम्बी होने की दशा में यदि एक भी रेखा छोटी हो तो बड़ी आयु में कम्पन हो जाता है। चारों रेखाएं यदि अन्त में द्विभाजित अथवा त्रिभाजित हों तो सुख का कारण बनती हैं, परन्तु अन्त में कुछ न कुछ कमी अवश्य ही रहती है। जीवन साथी बहुत अच्छा मिलता है, मगर उसका स्वास्थ्य भी नरम रहता है। पत्नी का स्वभाव कुछ लालची होता है। सन्तान भी इन्हीं के अनुरूप होती है। रहन-सहन, खान-पान तथा यात्राओं पर अधिक व्यय होता है। फलस्वरूप अनुकुल आय होने पर भी खर्च 103 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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