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________________ नहीं होता। किसी भी प्रकार के हाथ में निम्न विशेषताएं होने पर हाथ को व्यापारिक हाथ कहा जा सकता है। ऐसे हाथ तीन श्रेणियों में बांटे जा सकते हैं। उत्तम व्यापारिक हाथ ऐसे हाथ बड़े, चौड़े, गुलाबी, न विशेष मोटे, न विशेष पतले, ग्रह सभी समान या उन्नत, उंगलियों के आधार हथेली के पास समान, कम से कम तीन उंगलियों के आधार, समान होते हैं। नाखून न विशेष लम्बे न छोटे, व्यापारिक हाथ की मुख्य विशेषताऐं हैं। ऐसे हाथ चाहे कोमल हों या कुछ कठोर, छोटे हों या बड़े, महानता का सूचक होते हैं। प्रायः ऐसे हाथ कठोर नहीं होते। इनमें भाग्य रेखाएं एक से अधिक होती हैं और सभी स्पष्ट होती हैं, परन्तु ये रेखाएं किसी भी रेखा पर रुकती नहीं । ऐसे हाथ भारी, चौड़े, गुदगुदे या चिकने होते हैं। इस प्रकार के हाथ व्यक्ति की महानता के सूचक हैं। जिस वंश में भी ऐसे व्यक्ति पैदा होते हैं, वह वंश भी प्रख्यात होता है। आमतौर से इनकी पहली दो तीन पीढ़ियां धनी होती हैं। ऐसे व्यक्तियों को स्वास्थ्य, स्त्री, धन और परिवार का भरपूर सुख मिलता है। जीवन रेखा घुमावदार, निर्दोष, मस्तिष्क रेखा मंगल या चन्द्रमा की ओर तथा निर्दोष होने पर, हृदय रेखा भी निर्दोष और बृहस्पति की उंगली तक हो तो ऐसे व्यक्ति देश के महान् व सम्मानित व्यापारी होते हैं। ये निरन्तर सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। ऐसे व्यक्ति केवल अपने आपको ही नहीं बल्कि परिवार, समाज, देश आदि सभी का मान बढ़ाते हैं । मध्यम व्यापारिक हाथ 艷 चित्र: 5 ऐसे हाथों में शनि व सूर्य और बृहस्पति की उंगलियों के आधार सम होते हैं। कोई एक उंगली सरल होती है। दो उंगलियां सरल होने पर गुणों में वृद्धि हो जाती है । हाथ चाहे पतला हो, जीवन रेखा घुमावदार व मस्तिष्क रेखा निर्दोष होनी चाहिए। भाग्य रेखा व सूर्य रेखा की उपस्थिति इन हाथों में आवश्यक नहीं हैं। गहरी भाग्य रेखा की दशा में गहरापन समाप्त होने की आयु के पश्चात् ही उन्नति होती है। भाग्य रेखा पतली व जीवन रेखा से दूर होने पर प्रारम्भ से ही व्यापार में धीरे-धीरे उन्नति होती है। भारी होने पर उपरोक्त लक्षण हों तो शीघ्र ही अच्छी स्थिति प्राप्त करने का लक्षण है। ऐसे व्यक्तियों को मध्यम वर्ग के कार्य पसन्द आते हैं। जैसेसिलाई, छोटे कारखाने, आढ़त आदि । Jain Education International 36 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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