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________________ तो भी काम करने का इनका अपना ही ढंग होता है। ये नहीं चाहते कि सम्मिलित परिवार टूट जाए परन्तु भाग्य रेखा टूटने पर परिवार से अलग होना पड़ता है। बृहस्पति की उंगली छोटी हो तो इन्हें अपने त्याग व सेवा का भी श्रेय नहीं मिलता। ऐसे व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से जीवन बनाते हैं और इस कार्य के लिए इन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ता है। भाग्य रेखा जैसे-जैसे पतली होकर जीवन रेखा से दूर होती जाती है, इनकी आर्थिक स्थिति सुधरती जाती है। देखा गया है कि ऐसे व्यक्तियों का जीवन 35 वर्ष की आयु के पश्चात् ही सन्तोषजनक हो पाता है। मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने पर यदि भाग्य रेखा उत्तम हो तो धन तो कमाते हैं, परन्तु हानि या व्यय के कारण बचा नहीं पाते। यदि भाग्य रेखा ऊपर से शाखायुक्त हो तो किसी मकान से गिरते हैं। ऐसे व्यक्तियों की गर्दन पर बाईं ओर तिल होता है। कभी-कभी तिल के स्थान पर मस्सा आदि का चिन्ह भी देखा जाता है जोकि इस लक्षण की मुख्य पहचान व पुष्टि है। ऐसे व्यक्तियों की अन्य रेखा में विशेष दोष न हो तो धनी होते हैं। साथ ही यह भी कहना होगा कि इनकी स्थिति धीरे-धीरे अपने पुरुषार्थ से ही सुधरती है। एकदम कोई बहुत बड़ा परिर्वतन किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही आता देखा जाता है जैसे तीन रेखाओं में एक ही आयु में त्रिकोण या भाग्य रेखा से दो सूर्य रेखाएं निकलने आदि पर। इन व्यक्तियों के मंगल क्षेत्र में चतुष्कोण होने पर साइकिल, मोटर साइकिल या मकान की सीढ़ियों से गिरते हैं। ये सट्टा, जुआ या लाटरी में रूचि लेते हैं। दोनों हाथों में भाग्य रेखा, जीवन रेखा से निकले तो इनके पिता भी स्वनिर्मित होते हैं और इन्हें भी जीवन में संघर्ष करना पड़ता है। जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा, जीवन रेखा के समीप चलकर कुछ दूर तक जाती हो तो इस आयु के पश्चात् ही जीवन में सफलता मिल पाती है। ऐसे व्यक्तियों के परिवार वाले माता-पिता आदि लालची होते हैं और परिस्थिति वश उनकी सहायता करनी पड़ती है। == भाग्य रेखा का जीवन रेखा के पास से निकलना इस प्रकार की भाग्य रेखा, जीवन रेखा के पास से निकल कर शनि पर जाती है, परन्तु इसका उदय जीवन रेखा से अलग होता है और किसी रेखा के द्वारा जीवन रेखा से इसका सम्बन्ध नहीं बनता (चित्र-101)। यह बात बहुत ही ध्यान से देख लेनी चाहिए कि यह भाग्य रेखा, किसी मोटी 175 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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