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________________ होती है। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अधिक दूर होकर निकली हो अर्थात इसकी दूरी जीवन रेखा से 3/4 इन्च या उससे अधिक हो तो यह व्यक्ति में अति आत्मविश्वास, जिसे हम घमण्ड कहते हैं, पैदा करती है। ऐसे व्यक्ति लापरवाह होते हैं, अपने जीवन निर्माण की भी चिन्ता नहीं करते। ये स्वछन्द विचारों के होते हैं व किसी की परवाह न करना, बात काटने पर निरादर कर देना, इनके लिए कोई विशेष बात नहीं होती। शनि की उंगली लम्बी या शनि उन्नत हो तो व्यक्ति एकान्त पसन्द होता है, भाग्य रेखा भी शनि पर हो तो झगड़ा तथा विरोध पसन्द नहीं होता। ऐसे व्यक्ति विरोधियों से दूर जाकर खुले में मकान बनाकर रहते हैं। परवाह कम करने से ऐसे पति-पत्नी में मनोमालिन्य बना रहता है, वे न तो एक-दूसरे का पक्ष ले सकते हैं और न तारीफ ही कर सकते हैं, फलस्वरूप अनायास ही विरोध रहता है। इनकी स्पष्टवादिता या कटुवाशक्ति नौकरी में भी झगड़े का कारण बनती है। इनका गला सूखता है व नींद कम आती है। स्त्री के हाथ में यह लक्षण होने पर इन्हें शादी के बाद परेशानी होती है। ऐसे व्यक्तियों में आत्मविश्वास देर से पैदा होता है। यदि शुक्र भी उन्नत हो तो जीवन में सफलता भी देर से मिलती है। = मस्तिष्क रेखा का निकास (बृहस्पति से) । बृहस्पति ग्रह आत्मसम्मान, महत्वकांक्षा, प्रौढ़ता व शासन का प्रतीक है। हाथ में बृहस्पति उन्नत होने पर व्यक्ति सचरित्र, महत्वाकांक्षी तथा शासकीय प्रवृत्ति के होते हैं। इसी प्रकार जिन लोगों की मस्तिष्क रेखा बृहस्पति से निकलती है, उन व्यक्तियों में स्वभावतः ही उपरोक्त सभी गुण आ जाते हैं। ऐसे व्यक्ति पुरुषार्थ से जीवन बनाते हैं (चित्र-67) तथा स्वयं के गुणों में निरन्तर वृद्धि करने वाले होते हैं। इनका मस्तिष्क शब्द कोष होता है व ग्रहण-शक्ति अच्छी होती है। ये बैद्धिक त्रुटियां नहीं करते। संयोगवश यदि कोई गलती कभी कर जाएं तो पुनरावृत्ति का तो प्रश्न ही नहीं उठता। महत्वाकांक्षा की विशेष भावना इनमें पाई जाने के कारण अध्ययन के समय ये गुट बना कर रहते हैं। रुढ़िवादिता इन्हें बिल्कुल पसन्द नहीं होती, अतः अपने परिवार वालों से इनका विरोध बना रहता है। अध्ययन में तो ये निपुण होते हैं, परन्तु मेहनती नहीं होते। ऐसे व्यक्तियों की उंगलियां मोटी हों तो आत्म-सम्मान के कारण झगड़े आदि रहते हैं तथा मस्तिष्क रेखा की कोई शाखा मंगल पर जाती हो तो कत्ल जैसे लांछन भी जीवन में लगते हैं। यह सब, सम्मान अथवा महत्वाकांक्षा के कारण ही होता है। 146 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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