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________________ होने पर व्यक्ति किसी ऐसे रसायनज्ञ के सम्पर्क में आता है जो सोना या कीमती धातुएं बनाना जानता हो। इस प्रकार के ज्ञान रखने वालों के हाथों में भी यह मुद्रिका उंगली के पास ही होती है। बृहस्पति मुद्रिका जीवन रेखा की ओर जाने वाली हो तो व्यक्ति पर पूर्ण गुरू कृपा होती है। हाथ सुन्दर होने पर अपनी साधना में सफलता प्राप्त करते हैं। ऐसे व्यक्तियों के वंश में कोई न कोई पूर्वज धर्मशाला, स्कूल या ऐसा निर्माण किसी तीर्थ स्थान पर कराते हैं। बृहस्पति मुद्रिका को जब कोई रेखा जीवन या मस्तिष्क रेखा की ओर से काटती हो तो व्यक्ति को किसी के काटने या ज़हरीले इन्जैक्शन से हानि होने की सम्भावना रहती है। बृहस्पति पर चतुष्कोण होने पर इस प्रकार के भय से रक्षा हो जाती है अन्यथा मृत्यु हो जाती है। हृदय रेखा बृहस्पति मुद्रिका पर जाकर मिलती हो तो ऐसे व्यक्ति अपने किसी सम्बन्धी, जैसे साली, भाभी, चाची, मामी आदि सम्बन्धों में अनैतिक सम्पर्क स्थापित कर लेते हैं। ऐसे सम्बन्ध क्रियात्मक होते हैं। बृहस्पति मुद्रिका के साथ हाथ में अन्तर्ज्ञान के लक्षण जैसे अन्तर्ज्ञान रेखा, चन्द्र रेखा या डमरू आदि होने पर व्यक्ति ज्योतिषी, भविष्यवक्ता, तन्त्र-मन्त्र, सम्मोहन आदि का ज्ञाता होता है। ऐसे व्यक्ति वंश प्रभाव से ही धार्मिक होते हैं। पीढ़ियों से ही इनके घर में पूजा, उपासना होती है। बृहस्पति मुद्रिका टूटी-फूटी या पूरी न होने पर इनका कोई रिश्तेदार जीवन भर धन सम्बन्धी परेशानी में रहता है। अनेक बार सहायता करने पर भी उसकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता। = शनि मुद्रिका = शनि मुद्रिका शनि की उंगली के नीचे पाई जाती है। सुन्दर व दोष रहित होने पर यह मुद्रिका आध्यात्मिक प्रगति का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति शिव उपासना में रूचि लेते हैं। इनकी रूचि आयु के साथ बढ़ती रहती है और अन्तिम आयु में गहनता को प्राप्त होती है। शनि मुद्रिका टूटी हुई होने पर आग व बिजली से भय रहता है। यह मुद्रिका शनि की उंगली के पास व अधूरी हो तो व्यक्ति का वंश विधवा से विवाह के पश्चात् चलता है। इस प्रकार की अधूरी शनि मुद्रिका भील आदि जातियों के हाथों में अधिक देखी जाती है। देखें चित्र-251 चित्र: 25 85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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