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________________ है, ऐसी दशा में यदि सन्तान सम्बन्धी परेशानी हो तो गया श्राद्ध या पितृ कर्म से शान्ति सम्भव है। जीवन रेखा पहले गोलाकार, फिर सीधी तथा फिर गोलाकार हो तो जिस समय में यह सीधी होती है, उस समय में भारी परेशानियां आती हैं। सन्तान उस समय में नहीं होती, दो बच्चों के बीच अन्तर रहता है। जीवन रेखा सीधी होने पर यदि शुक्र प्रधान, भाग्य रेखा हृदय पर रुकी, मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष, हृदय रेखा में शनि के नीचे दोष, हृदय रेखा सीधी शनि पर गई हो तो व्यक्ति में चरित्र सम्बन्धी कमियां होती हैं। जीवन रेखा का दोष निकलने पर चरित्र में अपने आप सुधार होता है। ऐसे व्यक्ति को हृदय रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो रोग होने के कारण चरित्र दोष नहीं रहते या कहते देखे जाते हैं कि इनके पापों के फलस्वरूप ही ऐसी वजह है। इन्हें सुजाक, आतशक, पेशाब का रोग आदि पाये जाते हैं। यदि हृदय रेखा में सूर्य के नीचे व मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो गुदा मैथुन करने वाले होते हैं। स्त्री होने की दशा में अधिक सन्तान होना, मासिक धर्म का रोग, प्रदर होने से आंखों में कमजोरी व सिर में भारीपन होता है। जीवन रेखा का दोष समाप्त होने पर स्वास्थ्य ठीक हो जाता है। शुक्र रेखाएं यदि अच्छी हों तो परिवार में गोद का हक स्वयं किसी को आता है। इनके वंश में कोई न कोई सन्तानहीन अवश्य होता है। जीवन रेखा सीधी होने पर यदि उसकी शाखा चन्द्रमा पर गई हो तो उनका कोई बच्चा घर से भाग जाता है। ऐसा बच्चा स्वयं भाग जाता है, उसको कोई लेकर नहीं भागता। = अधूरी जीवन रेखा। जीवन रेखा जब आरम्भ होकर बीच में ही पूरी हो जाती है तो अधूरी जीवन रेखा कहलाती है (देखें चित्र-39)। अधूरी जीवन रेखा कई बार आधी, अधिक या उससे कम भी देखी जाती है। अधूरी जीवन रेखा के बहुत से फल सीधी रेखा से मिलते हैं तो भी इसमें कुछ अन्तर पाया जाता है। यह लक्षण हाथ में उत्तम नहीं माना जाता है। इसमें व्यक्ति को परेशानियां, दिमागी अशान्ति तथा असफलताओं का मुंह देखना पड़ता है। जिस समय तक जीवन रेखा अधूरी हो उस आयु तक कोई न कोई परेशानी चलती रहती है। धन प्राप्त करने में कठिनाइयां सन्तान का स्वास्थ्य कमजोर, मृत्यु का डर, नरम हाथ होने पर टी. बी. का डर, सख्त कठोर हाथ होने पर गुर्दे के रोग आदि लक्षण पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति चतुर तो होते हैं, लेकिन इन्हें चालाकी में सफलता नहीं मिलती। 116 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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