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________________ दण्डाकार या गोल अंगूठा दण्डाकार या गोल अंगूठा जोकि आगे से नुकीला न हो तो नीतिज्ञ होने का लक्षण है, परन्तु यह सन्तान सम्बन्धी परेशानी करता है। इनकी सन्तान लड़ती-झगड़ती रहती है । यदि भाग्य रेखा का झुकाव सूर्य की ओर हो तो निश्चय ही ऐसा होता है। ये परिश्रमी, अपने दिमाग से चलने वाले व सफल व्यक्ति होते हैं। आर्थिक दृष्टि से भी पतले अंगूठे वालों से किसी प्रकार पीछे नहीं रहते, लेकिन प्रत्येक कार्य में शीघ्रता का व्यवहार करते हैं। देर होने पर अशान्ति व नींद में बेचैनी अनुभव करते हैं। दो अंगूठे अंगूठे एक से अधिक संख्या में होना अच्छा नहीं है। ऐसे व्यक्ति क्रोधी तो नहीं होते, परन्तु शेष सभी लक्षण टोपाकार अंगूठे से मिलते-जुलते होते हैं। ऐसे व्यक्ति अनेक झंझट अपने सिर पर रखते हैं। जल्दबाज व बुद्धिमान होते हैं। ऐसे व्यक्ति का गृहस्थ जीवन सुखी नहीं रहता। नौकरी में होने पर ऐसे व्यक्तियों पर विभागीय कार्यवाही भी होती है या इन्हें बीच में नौकरी बदलनी पड़ती है। व्यापार में होने पर विश्वास के कारण धोखा खाना पड़ता है। घर में भी ऐसे व्यक्ति का व्यवहार कि नहीं होता । आलोचना करना, बात-बात में टोकना, छोटी-छोटी बात में क्रोध करना आदि स्वभाव के होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की सन्तान विद्वान होती है । सन्तान सम्बन्ध में भी ऐसे व्यक्ति कुछ न कुछ कमी अवश्य महसूस करते हैं। यदि मुख्य अंगूठा लम्बा हो तो दुर्गुणों में कमी होकर ये विद्वान व सफल होते हैं। लम्बा व चौड़ा अंगूठा क्रोधी व बुद्धिमान व्यक्तियों का होता है, परन्तु ये व्यक्ति स्पष्टवक्ता, सिद्धान्तवादी व स्वतन्त्र विचारक होते हैं। अतः विचारों के विषय में इनकी खिचड़ी अलग पकती है । स्वतन्त्र मस्तिष्क होने के कारण अधिक समय तक सम्मिलित नहीं रह पाते, चाहे व्यापार हो या परिवार । उंगलियां हाथ देखते समय उंगलियों का अध्ययन बहुत महत्व रखता है । उंगलियों का भली-भांति निरीक्षण करना चाहिए, तत्पश्चात् फलादेश देना चाहिए। सीधी उंगलियां किसी भी व्यक्ति के हाथ में सीधी उंगलियां होना एक अच्छे गुण की निशानी है । यदि व्यक्ति की सारी उंगली सीधी हों तो व्यक्ति धनी, सफल, सरल हृदय व 51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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