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________________ मस्तिष्क रेखा का अन्त (चन्द्रमा पर) = चन्द्रमा कल्पना शक्ति, सौम्य विचार, कलात्मकता एवं भावनात्मक बुद्धि का प्रतीक है। ललित कला का सम्बन्ध भी उन्नत चन्द्रमा से होता है, मस्तिष्क रेखा का अन्त दो प्रकार से चन्द्रमा पर होता है। एक तो एकदम मुड़कर चन्द्रमा पर जाती है, दूसरे धीरे-धीरे चन्द्रमा के आस-पास या चन्द्रमा पर समाप्त होती है। इनमें पहली मस्तिष्क रेखा दोष-पूर्ण मानी जाती है। इसमें चन्द्रमा के पर्वत में पाये जाने वाले गुणों की अधिकता होती है जो जीवन में कई कमियों का कारण बन जाती है। दूसरे प्रकार की मस्तिष्क रेखा एक सुन्दर गुण है। साहित्यकार, कलाकार, ललित कला के पारखी आदि व्यक्तियों के हाथ मे दूसरे प्रकार की रेखा ही पाई जाती है। भावुकता तो इनमें होती है, परन्तु यह निश्चित मात्रा तक होती चित्र-69 है, अतिशय नहीं। यहां दूसरे प्रकार की रेखा के विषय में विचार किया जाएगा। जिनकी मस्तिष्क रेखा चन्द्रमा पर गई हो तो ऐसे व्यक्ति भावुक, अधिक महसूस करने वाले, कल्पनाशील, बातें अधिक व काम कम करने वाले, बहुत शीघ्र रोने वाले तथा त्यागी होते हैं। मस्तिष्क रेखा का चन्द्रमा पर जाना वैसे तो उत्तम है, परन्तु क्रियात्मक रूप से ऐसे व्यक्ति समाज के योग्य नहीं होते। ये अतिमानव एवं कल्पनाशील होते हैं। हृदय रेखा बृहस्पति पर और मस्तिष्क रेखा अलग या लम्बी हो, हृदय रेखा पर द्वीप हो, हाथ कोमल हो तो भावुकता की मात्रा किसी हद तक अधिक बढ़ जाती है। ____ यदि मस्तिष्क रेखा में मोटाई नहीं हो तो धीरे-धीरे चन्द्रमा पर जाने वाली मस्तिष्क रेखा वाला व्यक्ति, मिलनसार तथा मानव-गुण सम्पन्न ही नहीं बल्कि देवोचित गुण वाला होता है। उंगलियां और अंगूठा पतला हो तो इनके फल में बहुत वृद्धि हो जाती है। मुकद्दमा या झगड़ा करना इन्हें पसन्द नहीं होता। शान्तिप्रिय तथा चित्र-70 J 150 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001758
Book TitleVruhad Hast Rekha Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Anand
PublisherGold Books Delhi
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size16 MB
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