Book Title: Vidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री ॥ विधिपक्ष गच्चीय श्रावकनां दैव सिका दिक पंच प्रतिक्रमणसूत्र. ते बीजी केटली एक बाबतो सहित. ॥ तेने ॥ श्रावकशा. जीमसिंह माणकें देवलोक थयेला पोताना पुत्र खीमजी म सिंह माकना कल्याणार्थ चतु विध श्रीसंघ अर्पण करवा माटें श्री मुंबापुरीमध्ये. निर्णयसागरछापखानामां छपावी प्रसिद्ध करचुं छे. Jain Educationa International संवत् १९५१. इसवी सन १८९५. NON CORDIN For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अस्य ग्रंथस्थानुक्रमणिका ॥ GP-RDमांक. ग्रंथोनांनाम, १ नवकार पंचमंगलरूप.. .... २ अथ खमासमण. ३ सुगुरुने शाता सुखपृडा. ४ शरियावहिया. .... ५ तस्स उत्तरी. .... ६ अन्नब उससिएणं. लोगस्स. जगमणागमण. ए जीवराशि. १० अढार पाप स्थानक. ११ पंचिंदिय, १२ अव्य देत्र काल नाव. .... १३ सामायिकनुं पच्चरकाण. १४ श्रावश्यक वांदणां. १५ लघु अतिचार. ..... १६ जय जय महाप्रलु चैत्यवंदन. १७ उपसर्गहर स्तवन. m mrar or orm » 03 3 » 2/y 2 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) क्रमांक. ग्रंथोना नाम. १७ नमोलणं वा शक्रस्तव. .... रए गुरुवंदना. ..... २० अरिहंता मंगलं मुङ. सद्याय. १ सामायिक पारवानी गाथा. २२ श्रावकस्य रापडिकमण विधि २३ श्रावकस्य पादिकप्रतिक्रमणविधि. २४ बृहद तिचार. .... .... २५ अष्टोत्तरी तीर्थमाला. .... .... २६ जय जग जीवजोणी. सशाय. २७ सुहम्मं अग्गिवेसाणं. सद्याय. २ बृहन्नमस्कार नामा प्रथम स्मरण. .... ६ए शए अजितशांतिस्तव नामा द्वितीय स्मरण. ७० ३० वीरस्तवनामा तृतीय स्मरण. .... ३१ उपसर्गहरस्तोत्रनामा चतुर्थ स्मरण, ए ३२ नयहरस्तोत्र नामा पंचम स्मरण..... .... G ३३ जीरापही पार्श्वस्तवनामा षष्ठ स्मरण. ३ ३४ शकस्तवनामा सप्तम स्मरण. .... ज्य ३५ लघुअजितशांति स्तवनामा अष्ट मस्मरण, ज्य ३६ बृहद जितशांतिस्तवनामा नवमस्मरण. ७६ BM ~ RRRRRB Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक. ग्रंथोनां नाम. ३७ चातुर्मासिक प्रतिक्रमण विधि. ३७ सांवत्सरिक प्रतिक्रमण विधि. ३ए पच्चरकाण विधि..... ४० नवकारसीनु पञ्चकाण, .... ४१ पोरिसीसाड्रपोरिसीनु पञ्चरकाण. ४२ पुरिमडनुं पञ्चरकाण. ४३ एकासणानुं पच्चरकाण. .... ४४ एकलगणानुं पच्चरकाण. .... ४५ आयंबीलनु पच्चरकाण. .... ४६ तिविहारर्नु पञ्चकाण. ..... ४७ चनविहार उपवास, पञ्चरकाण. HG निविगनु पच्चरकाण. .... ४ए गंठसहिय मुसहियर्नु पञ्चरकाण. ५० सायंकालें चविहार- पञ्चरकाण. ५१ पोसह उच्चार करवानो विधि. ५५ पोसह उच्चार करवानो. .... ५३ सामायिक उच्चार करवानो. ५४ पडिलेहण विधि..... एए ५५ पोरिसी जणाववानो विधि. .... १०० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ___ .... १०० .... १०४ (४) क्रमांक. ग्रंथोनां नाम. ५६ रा संथारानो पाठ. .. ५७ पोसह पारवानी गाथा. .... ५७ परकीखामणां. ... .... एए धणमिहुण सुर महब्बल ए स्वाध्याय..... १०५ ६० जरहेसरनी सद्याय. .... .... १०७ ६१ श्रीदेवचंदजीकृत अष्टप्रवचन मातानी स० १०७ ६५ गौतमस्वामीनो रास. .... .... १२६ ६३ प्रजात समयें मंगलाचार.मंगलं जगवान्. १३६ ६४ गौतमाष्टकछंद. वीरजिनेश्वर केरोण .... १३७ ६५ गणधर स्तवन, एकादश गणधरनां. १३० ६६ गौतमाष्टक प्रजाती. मात पृथ्वीसुत. १३॥ ६७ गौतम गुरुनी चोपाई. जयो जयो गौ..... १४० ६७ वृद्धचैत्यवंदन. केवलनाणी. .... १४१ ६ए सन्नत्त्या देवलोके. चैत्यवंदन. १४७ ७० अर्हतां स्तुति. श्रीअरिहंत नमीजें. .... १५० ७१ अतींघिय स्वरूप सिझस्तुति. .... १५० ७२ आचार्योपाध्यायानगाराणां युगपत्स्तुति. १५१ ७३ श्रात्मगुण स्तवन.आतम गुण अनिलाख्यो १५१ उन सिकाचलजीनुं चैत्यवंदन. विमलकेवल १५५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) क्रमांक. ग्रंथोनां नाम. पृष्ठ. ७५ आदिदेव अरिहंत नमुं. चैत्यवंदन. .... १५३ ७६ सुरकिन्नरनागनरिंदनतं. चैत्यवंदन. १५३ ७७ शांतिजिनस्त शांति जिणेसर समरियें. १५४ ७७ श्री सिझस्तुति. जगतनूषण. .... १५५ पए वांडित पूरे विविध परें. नवकारनो. बंद १५६ GO चार मंगल. .... .... .... १६० ७१ सीमंधरजिनस्तवन.धन धन देत्रमहा १६५ २ चउदसुपर्नु स्तवन. राय रे सिझारथ घर० १६३ ७३ श्रीसिकाचल स्तवन.श्रीसिकाचल नेटवा १६४ न्ध पांच परमेश्वरस्तवन. पंच परमेश्वराण.... १६५ ७५ तेरो दरस जलें पायो ऋषजजी ए स्तवन. १६६ ६ प्रजाती स्तवन. पास शंखेश्वरासार कर० १६७ प्रजाती स्तवन, बीजुं प्रात जयोप्रात जयो १६७ G७ शोल सतीनी स० सरसती माता प्रणमुं. १६७ नए जीवदयानी सण्यादिजिणेसर पायपणमेव १६ए ए० श्रावकना एकवीशगुणनी सद्याय. सशुरु ___ कहे निसुणो जवि लोक ....... १७२ ए१ श्रावकने शीखाण्शुद्धदेवगुरु धर्मपरीक्षा. १७३ ए५ पार्श्वनाथस्त प्रजुजीपासजिनेश्वरखामी, १७६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) ग्रंथोनां नाम. क्रमांक. पृष्ठ. ३ कुंथुनाथ तणी जाउं बलहारी जी कुंथु जि० १99 ४ पार्श्वजिन स्त० जिनजी गोडी मंगण पास. १७० ruu स्वरूपचंदजीकृतचोवीशी मांहेलांचारस्त० १७ ६ श्रीनेमनाथ स्त० बोल बोल रे प्रीतम० १८४ [us सुपो सुपो साहेब शामला० रेलो पार्श्व० १८४ एवं श्री अनंत जिनस्तवन सुजसानंदन. १८५ uru श्रीनेमिनाथ जिन स्त० राजुल कहे प्रिया नेमजी, गुण जाणो बो के ना. १८७ १०० अरिहंतस्तुति. अरिहंत तुंही, जगवंत० १०० १०१ तुंही नव निधि तुंही अष्टसिद्धि० बंद. १०० १०२ चोवीश तीर्थंकरोनां माता पितानां नाम. सयल जिणेसर प्रणमी पाय० १०३ डुमपुष्पिकाध्ययन सद्याय. धम्मो मंगल० १७३ १०४ उत्तराध्ययनसद्याय. असंखयंजी वियमा० १०३ १०५ श्री श्रादीश्वर विनति. सुए जिनवर० १०५ १०६ श्री श्रादीश्वरजीनी विनति. बे कर जो० १९८ १०७ श्री शांति जिनस्तवन. जिनेंद्र शांती० २०१ १०० खमतखामणांनुं स्तवन. अरिहंतपद० २०४ १०० क्षमासद्याय, जयनंजणरंजण० २०६ Jain Educationa International Only .... .... ...s १८५ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्र. - अ FEEEEEEEEEEEEEEEE अशुध. शुक. पृष्ठ. पं० श्रशुद्ध शु. पृष्ठ. पं0 कीडा. क्रीडा, ११ ६ज जयश् ६३ ७ मुणे मुणी. १७ ६ सुरनि, सुर, नि ६४ १५ जावंति जावंत १ए १० सिरि सिर ७३ १॥ सुफ शुरू २३ ६वत्ता पत्ता ७ ए शोवि चोवि २४ ६खाहा स्वाहा ३ ७ कण कमण २५ १ लाऽलां लाऽनलां ७३ १७ अवि अति ३५ १५ समा सामा गए रए चीत चिंत ३७ २त तं १०३ १६ कही करी ४५ ४ समूह समुन ११२ १० नरय निरय ५१ सी व सीव ११४ २ गह तह ५५ १मंके खं. १३० ३ गि नि ५५. ७ वरवाणी वखाणी १४५ ७ दवग्गं पवग्गं ५५ १३ मली ० १४५ न गब सब ५५ १४ रप पर १४५ १६ गमि गणं मि ५६ १२ वे १४५ १० गर नग, गर, नग ६१ २० सजी शजी १४६ ४ लढुवा लहुया ६५ ३ सवे सर्वे १४६ ७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुकशुरू. पृष्ठ. पं अशुफ. शुक. पृष्ठ. पं० सेतुंज सेत्तुंज १४६ १७ धोड घोड, १६३ ४ उत्तंग उत्तुंग १४६ १७ हजुर हजूर १६३ १० सा॥ ० १४७ ७ सीधा सिझा १६३ १५ डडेंडझें ॥सा० १४७ लह्या लह्यां १६३ १७ संखे शंखे १४७ ए बीजे, बीजे १६३ १७ श्रा ० १५० १७ पाच पांच १६३ १॥ शेषग षन १५३ ए बठे बहे १६३ २० जिनै जिने १५३ १३ रतननी रत्ननो १६४ ४ नाविक नविक.१५५ जण तुम न तुम १६४ १० रूपक रूपकम् १५५ १३ दिवो दीवो १६४ १० म्य,रूपं म्यरूपं १५६ ७ कनकमेंकनकमय.१६४१७ पालरे पालनरे १५७ ए वदिति वदति १६५ १७ लास्व लाख १५७ १७ पार्भ पाश्च १६७४ खरो खरो १५ए जागतोजागतो,१६७ ७ वह्नि वन्हि १६० ए जंधे जंघे १६७ ए बहुं बह १६१ ६ दिये दीये १६७ १० हे हेम १६१ १६ मूधे मूघे १६७ १० सुनर सुरनर १६५ ३ बो, बो १६७ १५ मरिक मरी. १६२ १० कोश कोश १६० ७ -MEEEEEEEEEEEEEEEEE EEEEEEEEEEEEEEEE Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुभ. शुक. पृष्ठ. पं० अशुझ. शुक. पृष्ठ. पं० दि दी १६० १ए जाउ जाउं १७७ १२ बृद्धि वृद्धि २६ए नहे।जी हेजी १७७ १ए धरे घरे १६ए १७ श्रमेती अमें तो १७७ १० दाब्ध दाघ १७० जहिंदुया हिंवा १७७ १० गया तेजाय १७० १० प्राज्य प्रारज्य १७ए १७ मप्रीछा मला १७५ ५ पणाणो घणो १७ए १५ आक अंक १७२ १२ सुन शुज १० १७ शमे, शमे १७३ १ कणी कणी॥१० २० दीक दिक १७३ ६ लव लय ११ G मननीसुह गीतार्थ १७३ ए सुख सुख १७१ १७ अब,॥ अड, १७३ ए तरगती तर्गति १७२ ५ खरखा सरखा १७४ १ घारीने धारीने १२ ११ चाल्यो वाल्यो १७४ ४ नवांत नवांत, १२ १५ मुख मुख १७५ ३ लह लब्ध १२ १६ नाख्यो नांख्यो १७५ ६ सुशीष्य सुशिष्य १२ १॥ सगुरु सरु १७५ १५ वंदो वंदो ॥ १७३ ५ अथबा अथवा १७५ १६ तटनी तटिनी १७३ ३ स्तवए स्तवन १७६ १३ न,पेखन पेखी, १३ ७ हलस्या दूलस्या १७७ १ था आं १४ २ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुभ. शुक. पृष्ठ. पं० अशुभ. शुऊ. पृष्ठ. पं० आपने आपनो १७४ ७ नगर नगरी रए १० ने म नेम १४ एवणा वाणा १एन १४ निका निका १५ ६ नणा नना १० १६ अगें आगे १०५ १४सांबर साबर १७५ २० पुफ्प पुप्फ १० र गाय गाये २६ जदल नदिल १एन २० नावरे नावजो १६ षडगी खड्गी. १९१ २ ना र नार र १६ माय,॥ माय ॥ १५१ ५ वसर वरस र १ सैन सेन ११ १० दाम दाम ॥ १ ७ जीन जिन १९१ १० घाम धाम १७७ १२ सुवृत्ता सुव्रता १९१ ११ चिदरुप चिप १७७ १६ तस्स तस १७५ ५ जुप नूप नए ६लोत्तपल लोत्पल १७ मंत्र॥ मंत्र, १ए . करोना करोनां रजए ११ आनंद,॥आनंद १एर १० म म॥ १ । ण्यारसी पारसी १५२ ११ पिना पिता १५० सिधारथ सिझार्थरएर १३ क्रोशलाकोशलारएन ए खोड कोडि २००४ मंगल मंगला १ए १० निर्लोज निर्लोज २२ १६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्रीपंचपरमेष्ठिन्योनमः॥ ॥ अथ श्रीविधिपदगहना श्रावक पंच प्रतिक्रमण विधि प्रारंजः॥ ॥ तत्र प्रथम दैवसिकप्रतिक्रमण ॥ ॥विधिमाद ॥ ॥प्रथम नवकार पंचमंगलरूप ॥ ॥ णमो अरिहंताणं, णमो सिकाणं, णमो श्रा यरियाणं, णमो उवजायाणं, णमो लोए सबसाहू णं, एसो पंच णमुक्कारो, सवपावप्पणासणो, मंगला णं च सवेसिं, पढमं होश् मंगलं ॥१॥ ॥अथ खमासमण ॥ ॥श्वामि खमासमणो, वंदिलं जावणिजाए नि सीहिआए, मबएण वंदामि ॥ इति ॥ ॥अथ सुगुरुने शातासुखपृला ॥ ॥श्चकार सुहराई, सुहदेवसि, सुखतप, शरीर निराबाध, सुखसंयम यात्रा, निर्वहो जो जी ? २ जी शाता ? गुरु कहे, देवगुरुपसायें जी. मबएण वंदामि ॥इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) ॥ श्छाकारेण संदिसह, जगवन् ! इरियावहियं पडिकमुं जी. श्ठं ॥ श्छामि पडिकमिजं ॥ ॥अथ शरिया वहिया ॥ ॥ इरियावहियाए, विराहणाए, गमणागमणे, पाणकमणे, बीअकमणे, हरिभक्कमणे, उसा, उत्तिंग, पणगदग, मट्टी, मक्कडा, संताणा संकमणे, जे मेजीवा विराहिया, एगिदिया, बेदिया, तेइंदिया, चरिं दिया, पंचिंदिया, अनिहया, वत्तिया, लेसिया, सं घाश्या, संघट्टिया, परिश्राविया, किलामिया, उद्द विया, गणा गणं संकामिया, जीविश्रा ववरो विया, तस्स मिठा मि मुक्कडं ॥ इति ॥ ॥अथ तस्स उत्तरी॥ ॥ तस्स उत्तरीकरणेणं, पायबित्तकरणेणं, विसोही करणेणं, विसजीकरणेणं, पावाणं कम्माणं, निग्घायण हाए, गमि काउस्सग्गं. ॥अथ अन्नब उससिएणं ॥ ॥अन्नब उससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, बी एणं, जंजाइएणं, उम्एणं, वायनिसग्गेणं, नमलिए, पित्तमुखाए, सुहुमहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) चालेहि, सुहुमहिं दिहिसंचालेहिं, एवमाश्एहिं, था गारेहिं, अजग्गो अविराहि हुआ मे काउस्सग्गो. जाव अरिहंताणं, नगवंताणं, नमुकारेणं, न पारेमि, ताव कायं, गणेणं, मोणेणं, जाणेणं, अप्पाणं वोसि रामि॥शत ॥हाँ एक लोगस्सनो मनमा काज स्सग्ग करवोः पड़ी लोगस्स प्रगट कहेवो. ॥अथ लोगस्स ॥ ॥ लोगस्स उजोअगरे, धम्मतिबयरे जिणे ॥ रिहंते कित्तश्स्सं, चवीसं पि केवली ॥१॥ उसन मजियं च वंदे, संनव मनिणंदणं च सुमरं च ॥ प उमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥ सुवि हिं च पुप्फदंतं, सीथल सिमंस वासुपुजं च ॥ वि मल मणंतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि ॥३॥ कुंथु अरं च मल्चिं, वंदे मुणिसुवयं नमिजिणं च ॥ वंदामि रिहनेमिं, पासं तह वझमाणं च ॥४॥ एवं मए अनिथुया, विहुब रयमला पहीण जर मरणा॥ चवीसंपि जिणवरा, तिबयरा मे पसीयंतु ॥५॥ कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिझा॥ थारुग्ग बोहिलानं, समाहिवरमुत्तमं दितु ॥६॥ चं देसु निम्मलयरा,श्राश्च्चेसु अहियं पयासगरा ॥ सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) गर वरगंजीरा,सिझा सिमिम दिसंतु॥आपली श्वा कारेण संदिसह नगवन् ! गमणागमण श्रालोलं जी. ॥ अथ गमणागमण ॥ ॥ मार्गने विषे जातां श्रावतां, पृथिवीकाय, अप्काय, तेउकाय, वाउकाय, वनस्पतिकाय, त्रस काय, नीलफूल, माटी, पाणी, कण, कपाशीया, स्त्री श्रादिक तणो संघट्ट हु होय, ते सवि हुँ, मनें, व चनें, कायायें करी मिना मि मुक्कडं ॥ इति ॥ . ॥ श्छाकारेण संदिसह नगवन् ! सामायिक ठगवा त्रण नवकार गणुं जी. एम कह। हेग बेसीनेत्रण नवकार गणवा. ते गणीने पनी उना थश्ने श्वाका रेण संदिसह जगवन् ! जीवराशि खमावू जी. ॥अथ जीवराशि ॥ ॥ सात लाख पृथिवीकाय, सात लाख अप्काय, सात लाख तेउकाय, सात लाख वाउकाय, दश लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय, चउद लाख साधारण वनस्पतिकाय, बे लाख बेशी, बे लाख तेशी, बे लाख चरिंडी, चार लाख देवता, चार लाख ना रकी, चार लाख तिर्यंच पंचेंडी, चउद लाख मनु ष्यना नेद, एवंकारें चउद राज चोराशी लदा, जी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायोनिमांहे, महारे जीवें जिको कोश् जीव उहव्यो होय, विराध्यो होय, ते सवि हुँ, मनें, वचनें, कायायें करी मिठा मि उकडं ॥ इति ॥श्छाकारेण संदिसह जगवन् ! अढार पाप स्थानक आलोचं जी. ॥अथ अढार पाप स्थानक ॥ ॥ पहेले प्राणातिपात, बीजे मृषावाद, त्रीजे अ दत्तादान, चोथे मैथुन, पांचमे परिग्रह, बठे क्रोध, सातमे मान, आठमे माया,नवमे लोन, दशमे राग, ग्यारमे वेष, बारमे कलह, तेरमे अन्याख्यान, चौ दमे चाडी, पन्नरमे रति अरति, शोलमे परपरिवाद, सत्तरमे माया मृषा, अढारमे मिथ्यात्व शल्य, ए अढारे पापस्थानकमांहे जिको को पापस्थानक म हारे जीवें सेव्यु होय, सेवराव्युं होय, सेवताप्रत्ये अ नुमोद्यं होय, ते सवि हुँ, मनें, वचनें, कायायें करी मिठा मि उकडं ॥ इति ॥ श्लाकारेण संदिसह नग वन् ! गुरुस्थापना करूं जी॥ ॥अथ पंचिंदिय॥ ॥ पंचिंदिय संवरणो, तह नवविह बंजचेर गुत्ति धरो ॥ चविह कसाय मुक्को, श्य अहारस गुणे हिं संजुत्तो॥ १॥ पंच महत्वयजुत्तो, पंच विहायार पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) ल समो ॥ पंचसमि तिगुत्तो, बत्तीस गुणेदिं गुरु मऊ ॥ २ ॥ इति ॥ ए प्रथम खमासमण. पढी खमासमण पूर्वक नीचें बेसीने इछाकारेण संदिसह जगवन् ! द्रव्य, क्षेत्र, काल, जाव, धारुं जी. ॥ अथ द्रव्य क्षेत्र काल नाव ॥ ॥ द्रव्य थकी लूगडां, लत्तां, घरेणां, गावां, पाथर एं, नोकरवाली, धारया प्रमाणें मोकलां बे. क्षेत्र थकी उपाशराना बारणानी मांदेली कोरें. काल थकी सामायिक निपजे तिहां सुधी. जावथकी यथा शक्तियें राग द्वेषें रहित व्रती संघातें बोलवु गुर्वा दिक संघातें बोलवानो आगार बे. अव्रती संघातें बोलवानुं पच्चरकाण बे. ए रीतें व कोटीयें करी सामायिक करूं. सामायिक व्रत उच्चार करवा एक न वकारनो काउस्सग्ग करूं जी. एम कही उना थ‍ एक नवकार गणीयें. ॥ पढी इछाकारेण सं दिसह जगवन्! सामायिक व्रत उच्चार करावो जी. ॥ श्रथ सामायिकनुं पञ्चरका ॥ ॥ करेमि नं ते सामाश्यं, सावऊजोगं, पच्चरका मि, जाव नियमं पकुवासामि, डुविहं, तिविद्देणं, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणेणं, वायाए, कारणं न करेमि, नकारवेमि तस्स नंते पडिकमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वो सिरामि. ए बीजुं खमासमण. ए सामायिक करतां चारित्राचार शुरु थाय, एटले पहेलु सामायिका वश्यक पूरुं थयु. ॥ पड़ी श्वामि खमासमण पूर्वक श्वाकारेण संदि सह नगवन् ! बीजा आवश्यक जणी रियाव हियं पडिकमुं जी. एम कही इरियावहि पडिकमी, पड़ी तस्स उत्तरी कहेवी. पठी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी, लोगस्स प्रगट कहेवो, लोगस्स कहेतां दर्श नाचार निर्मल थाय. ए बीजु आवश्यक अनेत्रीजुं खमासमण थयु. पड़ी श्वामि खमासमण पूर्वक हे ग बेसीने श्वाकारेण संदिसह जगवन् ! बेडानुं पडिलेहण करुं जी. एम कही उत्तरासंगना बेडानुंप डिहण करवू. पड़ी श्छामि खमासमणपूर्वक श्छा कारेण संदिसह जगवन्! त्रीजा आवश्यक जणी श्रावश्यक वांदणां करुं जी. ॥अथ श्रावश्यक वांदणां ॥ ॥ श्वामि खमासमणो वंदिलं, जावणिजाए, निसी हिथाए, अणुजाणह, मे मिउग्गरं, निसी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) हि, अहो, कायं, काय संफासं, खमणिजो, ने किलामो, अप्पकिलंताणं, बहुसुन्नेण ने, दिवसो वश कंतो, जत्ता ने, जवणिजं च ने, खामेमि, खमास मणो, देवसियं वश्कम आवस्सियाए, पडिकमामि, खमासमणाणं, देवसिथाए, श्रासायणाए, तित्तीस नयराए, जं किंचि मिछाए, मणमुक्कडाए, वयमुक्क डाए, कायक्कडाए, कोहाए, माणाए, मायाए, लोनाए, सबकालिआए, सबमिछोवयाराए, सबध म्माश्कमणाए, आसायणाए, जो मे देवसि अश् आरो कर्ज, तस्स खमासमणो, पडिकमामि, निंदा मि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥इति ॥ श्म गुरु समी वांदणां बे वार दीजें. त्यां बीजी वारने वां दणे आवस्सिाए, ए पद न कहे, अने रापडि कमणे, राळ वश्कतो कहे, परकीयें परिकर्ड व कंतो कहे, चउमासियें चउम्मासि वश्कतो क हे. संवत्सरिये संवरो वश्कतो कहे. ए वांद णां देतां ज्ञानादि त्रण निर्मल थाय. ए त्रीजु श्रा वश्यक अने चोथु खमासमण थयुं. इहां पोताने मुखें, संध्या होय तो चनविहार अने सवार होय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) तो नवकारसी प्रमुखनु पच्चरकाण मनने जावें धारे, तेथी तपाचार निर्मल थाय ॥ इति ॥ ॥पड़ी एक जण उन्नो थश्ने श्वामि खमासमण पूर्वक श्छाकारेण संदिसह नगवन् ! चोथा श्राव श्यक जणी लघु अतिचार आलोखं जी. ॥अथ लघु अतिचार ॥ ॥प्रथम नवकार कहीने, श्वं अरिहंतदेव, सु साधु गुरु, जिनप्रणीतधर्म, जावतो समकित प्रतिपा बुं; अव्यतो लौकिक लोकोत्तर देवगत, गुरुगत, पर्व गत मिथ्यात्व विषे जयणा करूं. ए श्रीसमकित तणा पांच अतिचार शोधुं. शंका, कंखा, वितिगिछा, पर पासंमीपरसंसा, परपासंगी संथुर्ज. ए पांच अतिचार मांहेजिको कोश् अतिचार हु होय, ते सवि हुँ, मने, वचनें, कायायें करी मिला मि फुक्कडं. १ ए बार व्रतमांहे पहेबुं प्राणातिपातविरमण व्रत. स्थूल बेंजियादिक त्रस जीव निरपराध उपेतकरण संकल्पी करी हणवा नियम, आरंने जयणा, ए प हेला प्राणातिपातविरमणव्रत तणा पांच अतिचार शोधुं, बंधे, वहे, विछेए, अश्नारे, जत्तपाणबुड़े ए ॥ ए पांच अतिचारमाहे जिको को अति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) चार हुवो होय, ते सवि हुं मने, वचने, कायायें करी मिठा मि फुक्कडं. ____बीजं स्थूलमृषावादविरमणव्रत पंचविध. क नालीए, गोवालीए, नूमालीए, नासावहारे, कूडस स्किो . ए पांच मोटकां कूडां आपणने काजें, व जनने काजे धर्मने काजें मूकी, परकाजें कूडं बोल वा नियम. सूक्ष्म अखिक तणी जयणा करूं ॥ ए बी जा स्थूलमृषावादविरमणवततणा पांच अतिचार शोधू. सहस्साजरकाणे, रहस्साजरकाणे, सदारामं तन्नेए, मोसोवएसे, कूडलेहकरणे॥ए पांच अतिचा रमांहे जिको को अतिचार हुई होय, ते सवि हुँ मने, वचने, कायायें करी मिला मि उक्कडं. ____३ त्रीजु स्थूल अदत्तादानविरमणव्रत. सचित्त, थचित्त, राजनिग्रह कारीलं. पियारं अणदी, खे वा नियम. सूक्ष्म तृण, इंधण, पथिपतित ववहार नियोगे, दाणचोरी जयणा ॥ ए त्रीजा स्थूलश्रद त्तादान तणा पांच अतिचार शोधुं. तेनाहडे, तक रप्पळगे, विरुधरजाश्क्कमे, कूड तुम्बकूडमाणे, तप्प डिरूअगववहारे ॥ ए पांच अतिचारमाहे जिको Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) को अतिचार हु होय, ते सवि हुँ मने, वचने, कायायें करी मिना मि मुक्कडं ॥ ____४ चोथु शीलवत. यथाशक्ते खदारासंतोष, प रदाराविवर्जनारूप. ए चोथा शीलव्रत तणा पांच अतिचार शोधुं ॥ इत्तरपरिग्गहियागमणे, अपरपरि ग्गहियागमणे, अनंगक्रीडा, परविवादकरणे, काम जोगतिवानिलासे ॥ ए पांच अतिचारमाहे जिको को अतिचार हु होय, ते सवि हुँ, मने, वचने, कायायें करी मिला मि उक्कडं. __५ पांचमुं परिग्रहपरिमाणवत नवविध. खित्त, घर, हट्ट, वाडिय, कुविय, धण, धन्न, हिरण, सुव एम, अश्परिमाण दुप्पय, चउप्पय मिय, नवविह परिग्गह वयंतो ॥ ए पांचमा परिग्रहपरिमाणवत तणा पांच अतिचार शोधुं. खित्त वलुप्पमाणाश्कमे, हिरमसुवमपमाणाश्कमे, धणधन्नप्पमाणाश्कमे, छ प्पय चनप्पयप्पमाणाश्कमे,कुवियप्पमाणाश्कमे ॥ए पांच अतिचार मांहेजिको कोश् अतिचार हु होय, ते सवि हुँ मने, वचने, कायायें करी मिठा मि उकडं॥ ६ बहुं दिशिव्रत त्रिविधं जाणवू. उदिसिवए, अहोदिसिवए, तिरियदिसिवए ॥ ए बहादिशि व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) त तणा पांच अतिचार शोधुं ॥ उडु दिसिप्पमाणा कमे, अहो दिसिप्पमाणाश्कमे, तिरियदिसिप्पमा णाश्कमे, खित्तबुडि,सयंतरका ॥ ए पांच अतिचार माहे जिको कोश् अतिचार हुवो होय,ते सविडं मने, वचने, कायायें करी मिठा मि पुक्कडं ॥ ___ सातमुं लोगोपजोगव्रत विविध, जोजनतः क मतश्च. तत्र जोजनतः “सञ्चित्तदव विग, उवाण तं बोल चीर कुसुमेसु॥वाहण सयण विलेवण, बंन दि सि न्हाण नत्तेसु ॥१॥ ए सातमा नोगोपनोग व्रत तणा पांच अतिचार शोधुं ॥ सचित्त श्राहारे, सचि त्त पडिबछाहारे, अप्पोसहिनकणया, कुप्पोसहि जकणया, तुबोसहि जरकणया॥ ए पांच अतिचार मांहेजिको कोश् अतिचार हु होय, ते सवि हुँ मने, वचने, कायायें करी मिला मि उकडं. ॥ कर्मतो पन्नरे कर्मादान. इंगालकम्मे, वण कम्मे, साडी कम्मे, नाडी कम्मे, फोडी कम्मे, दंत वाणिजे, लक वाणिजे, रस वाणिजे, विस वा णिजे, केस वाणिजे, जंतपीलण कम्मे, निलंबण कम्मे, दवग्गिदावणया, सर दह तलाय सोसणया, असई पोसणया. ए पन्नर कर्मादान स्थूल नियम, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) सूक्ष्म तणी जयणा ॥ ए पन्नर कर्मादानमांहे जिको कोइ अतिचार दुवो होय, ते सवि हुं मने, वचने, कायायें करी मिठा मि डुक्कडं. वसुं अनर्थदं विरमणव्रत, चतुर्विध अव झाणायरिए, प्पमायायरिए, हिंसप्पयाणे, पावक मोवरसे ॥ ए आवमा अनर्थ दंमविरमणव्रत तणा पांच अतिचार शोधुं ॥ कंदप्पे, कुक्कुईए, मुरिए, संजुत्ता हिगरणे, उवनोगपरिजोग रेगे ॥ ए पांच अतिचारमां जिको कोइ अतिचार दुवो होय, ते सवि हुं मने, वचने, कायायें करी मिठा मि टुक्कडं. नवमं सामायिकत्रत सामश्य नाम सावद्य जोगपरिवजणं, निरवजजोग श्रासेवणं च ॥ ए न वमा सामायिक व्रत तथा पांच प्रतिचार शोधुं ॥ मण डुप्पणिहाणे, वय डुप्पणिहाणे, काय दुप्प पिहाणे, सामाइयस्स करणया, सामाश्यस्स अ डिस्स करण्या ॥ ए पांच प्रतिचारमांदे जिको को अतिचार हुवो होय, ते सवि हुं मने, वचने, कायायें करी मिठा मि डुक्कडं. १० दशमुं देशावगा शिकवत. दिसिवयगहिय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) स्स, दिसापरिमाणस्स, पइदिणं परिमाणकरणं ॥ ए दशमा देशावका शिकव्रत तथा पांच प्रतिचार शोधुं ॥ श्राणवणप्पउंगे, पेसवणप्पलंगे, सद्दाणुवाइ, रुवाणुवाइ, बहियापुग्गल परकेवे ॥ ए पांच प्रतिचार मांडे जिको कोइ श्रतिचार हुवो होय, ते सवि हुं मने, वचने, कायायें करी मिठा मि डुक्कडं. ११ इग्यारमुं पौषधव्रत, चिहुं नेदें जाणवुं श्रा हारपोसहे, सरीर सक्कारपोसहे, बंजचेरपोसहे, अ वावार पोसड़े ॥ ए इग्यारमा पोषध व्रत तथा पांच श्रतिचार शोधुं ॥ अप्प डिले हिय पुष्प डिले हिय सि जासंघारे, अप्पमयि पुष्पमजिय सिद्धासंथारे, पडिले हिय पुष्प डिलेहिय उच्चारपासवण भूमि, अप्पमा डुप्पम मिश्र उच्चारपासवण भूमि, पोसहोववासस्स सम्मं अणुपालया ॥ ए पांच प्रतिचारमांडे जिको कोइ अतिचार दुवो होय, ते सवि हुं, मने, वचने, कायायें करी मिठा मि डुक्कडं || १२ बारमुं श्रतिथिसंविभागव्रत, अतिथिसं विजा गोनाम. नाया गयाणं, कप्पणिकाएं, अन्न पाणाइ णं, दव्वाणं, देस, काल, सासक्कार, कम्मजोए, पराइ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) जत्तीए, थायाणुग्गह बुछिए संजयाणं दाणं ॥ए बार मा अतिथिसंविनाग व्रत तणा पांच अतिचार शोधुं. सचित्त निकेवणया, सचित्त पिहणया, कालाश्कम दाणे, परोवएसे, मबरया ॥ ए पांच अतिचारमांहे जिको कोश् अतिचार हुवो होय, ते सवि हुँ मने, वचने कायायें करी मिना मि उक्कडं ॥ ॥ संलेषणा तणा पांच अतिचार शोधुं. श्ह लोगा संसप्पउँगे, परलोगासंसप्पळगे, जीविधासंसप्पळगे, मरणासंसप्पळगे, कामनोगासंसप्पउँगे ॥ ए पांच अतिचारमाहे जिको कोश् अतिचार हुवो होय, ते सवि हुँ मने, वचने, कायायें करीमिछा मि फुकडं. ___॥ एवंकारें श्री समकित मूल बार व्रतविषे पंच्या शी अतिचारमाहे जिको कोश् अतिचार, अनाचार, अतिक्रम, व्यतिक्रम हु होय, तथा जाणते, अजा णते, सूक्ष्म, बादर, कानो, मात्र, मिंमी, पद, अद र, उडो, अधिको, हलवो, जारी, पागल, पागल,क ह्यो, कहेवाणो होय, ते सवि हुँ, मन, वचन, काया यें करी मिठा मि मुक्कडं ॥ ___॥ देसावगासिझं उवनोग परिनोगं, पञ्चकामि अन्नबणाजोगेणं, सहस्सागारेणं, महत्तरागारेणं, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) सब समाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि ॥ इति लघु अतिचाराः सपूर्णाः ॥ __॥ ए पडिक्कमणनामें चोथु आवश्यक, ए पांचमुं खमासमण. पडी श्छामि खमासमण पूर्वक हेग बे सीने श्वाकारेण संदिसह नगवन् ! चैत्यवंदन करुंजी॥ ॥ अथ चैत्यवंदन ॥ ॥ ॥ जय जय महाप्रजु, देवाधिदेव, सर्वज्ञ, श्रीवीतराग देव ॥ मुह दीहुं परमेसर, सुंदर सोम सहाव॥नूरि नवंतर संचिउँ, नहो सो सवि पाव॥ जे में पाप किया बालपणे, अहवा अन्नाणे॥ अल नवंतर सो सो खंग, जयो परमेसर ॥ तुह मुह दिलं, सिरि पास जिणेसर ॥ पास पसी पसा करी, वि नतडी अवधार ॥ संसारडो बीहामणो, सामी श्रावा गमण निवार ॥ हबडा ते सुलकणा, जे जिनवर पू जंत ॥ एके पुले बाहिरा, सो परघर काम करत ॥ कवणे वाडी वावीया, कवणे गूंथ्यां फूल ॥ कवणे जि नवर चढावियां, नाव सरीसां मूल ॥ वाडी वेलो म होरीयो, सोवन कुंपलीएण ॥ पास जिणेसर पूजिये, पंचे अंगुलीएण ॥ दो धोला दो सामला, दो रत्तोप ल वन्न ॥ मरगय वन्ना उन्नि जिण, सोलस कंचन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) वन्न ॥ नियनिय मान करावियां, जरदेस नयणानं द ॥ ते में जावें वंदिया, ए चोवीसे जिणंद ॥ ॥ वहु ॥ कम्मनूमीहिं, कम्म नूमीहिं, पढमसं घयणि, उकोसयसत्तरिसय; जिणवराण विदरंत ल अहिं, नवकोडी केवलीण ॥ कोडीसहस्स नव साहु ग म्मइ, संपर जिणवर वीस मुणै; बिहुँ कोडीहिं वरना ण, समणह कोडी सहस्स मुश्र, थुणिसुं निच्च विहा ण ॥ जयो सामी जयोसामी, रिसह सिरि सित्तुंज, उडांतपहु नेमिजिण; जयो वीर सच्चरिमंगण ॥ नरुथडेहिं मुणि सुव्वय, महुरि पास उह ऽरिय खंगण, अवर विदेहिं तिबयरा, चिहुँ दिसि विदिसि जं केवि, तीश्रणागयसंपय, वंदूं जिण सवेवि ॥ सत्ता णवश सहस्सा, लका उप्पन्न श्रह कोडी ॥ पंचसयं चउत्तीसा, नियलोए चेश्ए वंदे ॥ इति ॥ हां चार स्तवन अथवा बहोत्तरी कहेवी. पड़ी उना थश्ने उवसग्गरं कहेवू, ते लखीयें .यें. ॥अथ उपसर्गहरस्तवन ॥ ॥उवसग्ग हरं पासं, पासं वंदामि कम्म घण मुकं॥ विसहर विस निन्नासं, मंगल कराण श्रावासं ॥१॥ विसहर फुलिंगमंतं, कंठे धारेश जो सया मणुऊ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) तस्स ग्गह रोग मारी, उठ जरा जति उवसामं ॥२॥ चिघ्न दूरे मंतो, तुज प्पणामोवि बहुफलो हो॥ नरतिरिएसुवि जीवा, पावंति न उस्कदोहग्गं ॥३॥ तुद सम्मत्ते लके, चिंतामणिकप्पपायवाहिए ॥पा वंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं गणं ॥४॥ श्य संथु महाजस, नत्ति पर निनरेण हिआएण ॥ ता देव दिजा बोहिं, नवे नवेपास जिणचंद ॥५॥ इति ॥ ए उवस्सग्गहर कहिने बेस. ते पठी, जंकिंचि नाम तिचं सग्गे पायालि माणुसे लोए ॥जाइंजिणबिंबाई, ताशं सवारंवंदामि॥पठी नीचें बेसी नमोनुणं कदेवू. ॥ अथ नमोलुणं वा शक्रस्तव ॥ नमोबुणं, अरिहंताणं, जगवंताणं १, श्राश्गराणं, ति बयराणं,सयं संबुझाएं,पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुंमरीयाणं, पुरिसवरगंधहबीणं ३, लोगुत्त माणं,लोगनाहाणं, लोगहिवाणं, लोगपश्वाणं,लोग पजोअगराणं ४, अनयदयाणं चकुदयाणं, मग्गद याणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं, ५ धम्मदयाणं, धम्मदेसियाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्म वर चाउरंत चकवट्टीणं, ६ अप्पडिहयवरनाणदंसणध राणं, विश्रट्ट बउमाणं , जिणाणं जावयाणं, तिन्ना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) णं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोचगाणं छ, सवन्नूणं सवदरिसिणं, सिव मयल मरुा मांस मरकय महाबाद मपुणरा वित्ती सिद्धिगई नामधेयं, वाणं संपत्ताणं नमो जिलाएं ॥ इति ॥ ए बहुं खमासमण. पढी इछामि खमासमणपूर्व कलाकारेण सं दिसह जगवन्! गुरुवंदना करुं जी. एम कही गुरुवंदना कहीयें. ॥ गुरुवंदना ॥ ॥ श्रासु दीव समुद्देसु, पनरससु कम्मभूमी सु ॥ जाति के वि साहू, रयहरण गुछ पडिग्गह धा रा ॥ १ ॥ पंचमहद्वय धारा, अढार सहस्स सीलंग धारा, अरकोहायारच रित्ता, ते सवे सिरसा मसा मण वंदामि ॥२॥ पुक सिरिअर किय, गुरुपो तप्प ट्टिय पुजा जयसिंहा ॥ सूरिसिरि धम्मघोसा, म हिंद सिंहा त गुरुणो ॥ ३ ॥ तप्पय सिरिसिंह पहा, तेसिं पा जयसिंह वरगुरुणो ॥ देविंद सिंहगुरुणो, तप्पय सिरिधम्मपद सूरि ॥४॥ सिरिसिंह तिलयसूरी, तप्पइ सिरिमं महिंद पद गुरुणो ॥ सिरिमेरुतुंग गुरुणो, तप्पय जय कित्ति गुरुराई ॥ २५ ॥ सिरिजयकेस रिसूरी, तप्पइ सि ऊंत सायरो सुगुरु ॥ सिरिजावसायर गुरु, तप्पय सूरि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) गुण निहाणो ॥ ६ ॥ सिरिधम्ममुत्तिसूरी, तप्पर कल्लाण सायर मुणिंदो ॥ सिरि अमर सार गुरु, कल्लाप कुण उ संघस्स ॥ ७ ॥ तप्पट्टि पुत्र पुवय, जाणु विज्ञाय सायरं सूरि ॥ सिरिउदय सायर सूरि, तप्पय गुणमणि रुहाणं ॥ ८ ॥ श्री कीर्त्तिसागर सूरि, श्री पुण्यसा गर सूरि, श्री राजेंद्रसागर सूरि, श्री मुक्तिसागर सूरियं वंदे, विहरमान श्री विवेकसागर सूरियं वंदे. चल गवनायकं वंदे, विधिपगठनायकं वंदे. पढे ले पाटें सुधर्मा स्वामी, बीजे पाटें जंबूखामी, त्रीजे पाटें प्रजवो खामी, चोथे पाटें सिनवसूरि, पांच मे पायें यशोभद्रसूरि, बडे पाटें संभूतिविजय सूरि, सातमे पाटें जडबाहु स्वामी, आठमे पायें थूलिन प्रखामी, एवा पाटान् पाट बेला श्री प्रसहनामा याचार्य याशे, तेने महारी एकशो ने आठ वार त्रि काल वंदना होजो ॥ इति ॥ ए सातमुं खमासमण. पढी छामि खमासमण पूर्वक इछाकारेण संदि सह जगवन्! सझाय कहुं, सझाय सांजलुं जी. श्र ह्रीं नवकार कहीने सझाय कहेवी, ॥ अथ सझाय ॥ ॥ अरिहंता मंगलं मुक्त, अरिहंता मुझ देवया ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) अरिहंता कित्तियं ताणं, वोसिरामित्ति पावगं ॥१॥ सिझाय मंगलं मुश, सिकाय मुल देवया॥सिका य कित्तियं ताणं, वोसिरा मित्ति पावगं ॥२॥ श्रायरि या मंगलं मुश, आयरिया मुल देवया ॥आयरिया कित्तियं ताणं, वो सिरामित्ति पावगं ॥३॥ उवला या मंगलं मुङ, उवजाया मुज देवया ॥ उवजा या कित्तियं ताणं, वोसिरामित्ति पावगं ॥४॥सा हु मंगलं मुस, साहु मुश देवया ॥ साहु कित्तियं ताणं, वोसिरामित्ति पावगं ॥५॥ ए पंचे मंगलं मुस, एपंचे मुल देवया॥एपंचे कित्तियं ताणं,वोसिरामि त्ति पावगं ॥ ६॥ एसो पंच णमुक्कारो, सब पावप्प पासणो ॥ मंगलाणं च सवे सिं, पढमं होश मंगलं ॥ ७ ॥ इति ससाय ॥ ए बाउमुं खमासमण ॥ ॥पनी श्वामि खमासमण पूर्वक श्वाकारेण संदि सह नगवन्! पांचमा आवश्यक जणी दैवसिक प्रा यश्चित्त विशोधनार्थं करेमि काउस्सग्गं. अन्नब॥ इत्यादिक कहीने चंदेसुनिम्मलयरा सुधी चार लो गस्सनो काउस्सग्ग मनमां करवो. पठी नमो अरि हंताएं, ए एक पद कहीने काउस्सग्ग पारीयें. पली प्रगट लोगस्स कहीये. ए नवमुं खमासमण. फरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) श्वामि खमासमण पूर्वक श्लाकारेण संदिसह नग वन्! अनिनव काउस्सग्ग गजं. इथं अनिलव अ शेष पुककय कम्मकय निमित्तं करेमि काउस्सग्गं अन्नब॥ इत्यादिक कहिने “सिझा सिमिम दिसं तु"पर्यंत पूरे पूरा एवा पांच लोगस्सनो काउस्सग्ग मनमां करवो. पली नमो अरिहंताणं ए एक पदक हीने काउस्सग्ग पारवो,पली प्रगट लोगस्स कहेवो.ए दशमुं खमासमण अने पांचमुं आवश्यक पूर्वं थयु. एणे करी पडिक्कमणामां जे अशुभ प्राचार रह्या ते आचार ए पांचे लोगस्सना काउस्सग्गथी शुकथायडे. ___॥पळी श्छामि खमासमणपूर्वक श्छाकारेण संदि सह नगवन्! हा आवश्यक जणी पञ्चरकाण वांदणां कलं जी. एम कही बे वार वांदणां दीजें. पली गुरु मुखें पच्चरकाण करवू. ए अगीयारमुखमासमण श्र ने बहुं आवश्यक पूर्वं थयुं. ॥ पड़ी श्वामि खमासमण पूर्वक हेग बेशीने श्छाकारेण संदिसह नगवन् ! सामायिक पारवा त्र ण नवकार मनमां गणवा. पडी नमो अरिहंताणं ए एक पद प्रगट कहीने श्छाकारेण संदिसह जगवन्! सामायिक पारवा गाथा नणुं जी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) ॥ अथ सामायिक पारवानी गाथा॥ ॥ जं जं मणेण बकं,जं जं वायाय नासियंपावं॥ काएण वि उच्कयं, मिठा मि उक्कडं तस्स ॥१॥स वे जीवा कम्मवस,चउदह रऊ जमंत ॥ते में सब ख माविया, मुसवि तेह खमंत ॥२॥ खमी खमावी में खमी, बविह जीव निकाय॥सुङ मने बालोवतां, मुफ मन वेर न थाय ॥३॥ दिवसें दिवसें लकं, देश सुबन्नस्स खं मियं एगो॥ एगो पुण सामाश्य, क रेश न पहुप्पए तस्स ॥४॥कुणे पमाए बोली, हु विरु बुकि॥ जिण सासण में बोलीचं, मिला 3 कड सुकि॥५॥ ॥सामायिक व्रत फासिश्र, पालिश्र, पूरिश्र, ती रिश्र, कित्तिरं, श्राराहिशं, विधे, लीg, विधे, की धुं, विधे पाट्युं, विधे करतां, कीसी अविधि,श्राशा तना हुश् होय, ते सवि हुँ, मनें, वचनें, कायायें क रीमिछा मि मुक्कडं ॥१॥ पाटी, पोथी, कवली,ठ वणी, नोकरवाली कागलें पग लगाड्यो होय, गुरुने श्रासने, बेसणे, उपकरणे पग लगाड्यो होय, झान अव्यतणी आशातना थक्ष होय. ते सवि हुँ, मनें, व चनें, कायायें करी मिठामि उकडं. अढी छीपने वि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) थे साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, जे कोश्प्रनु श्री वीतसग देवनी आज्ञा पाले, पलावे, जणे, नणावे, अनुमोदे, तेहने महारी त्रिकाल वंदना होजो. सी मंधर प्रमुख वीश विहरमान जिनने महारी त्रिका ल वंदना होजो, अतीत चोवीशी, अनागत चोवीशी, वर्तमान शोवीशीने महारी त्रिकाल वंदना होजो. रुषजानन, चंडानन, मान, वारीषेण, ए चार शा श्वता जिनने महार। त्रिकाल वंदना होजो. दश म नना, दश वचनना, बार कायाना, ए बत्रीश दोषमा हेलो सामायिकवतमाहे जेको कोश् दोष लागो होय, ते सविडं, मनें, वचनें, कायायें करी मिछामि पुक्कडं, साचानी सदहणा,जूगना मिछामि उक्कडं. पडी त्रण नवकार मनमा गण। त्रण दमासमण दे जयणापू वंक उठQ. ए बारमुं खमासमण ॥ GOOGOOGOODOOGOOGGOOGol बाई ॥ इति श्री विधिपदगबना श्रावकोने देवसिकप्रतिक्रमणविधि समाप्त थयो॥ Homenonyonyoooo Reponemonepourceeponememomencemenomenaver Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) ॥ अथ श्रावकस्य राश्पडिक्कण विधिः ॥ ॥ प्रथम त्रण खमासमण यापी श्छाकारक हीने रियावही॥पडिकमी पड़ी तस्स उत्तरी॥क ही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी प्रगट लोगस्स कही गमणागमण बालोवq एटले मार्गने विषेजा तां श्रावतां॥ ए कही पनी सामायिक गवा त्रण्य नवकार गुणीये. पनी जीवराशि खमावी अढार पा पस्थानक अालोची पठी गुरुस्थापना निमित्त पंचें दिय कही अव्य, क्षेत्र, काल, नाव धारवा. पड़ीसा मायिक उच्चार करवा, एक नवकार गुणी सामायि क व्रत उच्चार करीये. पड़ी फरी बीजा आवश्यक जणी शरियावही ॥ तस्स उत्तरी० ॥ कही पनी ए कलोगस्सनो काउस्सग्ग करी लोगस्स प्रगट कही पड़ी त्रीजा आवश्यक जणी श्छ अनिन्नव अशेष 3 करकय कम्मरकय निमित्त लोगस्स पांचनो काउस्स ग्ग करवो. पड़ी लोगस्स एक प्रगट कही,पळी कुसु मिण उसुमिण उद्दामि निमित्तं करेमि काउस्सग्गं. एम कही लोगस्स चारनो कास्सग्ग करवो. पड़ी एक लोगस्स प्रगट कही पनी उत्तरासंगनो बेहडो पडिलेही पड़ी चोथा श्रावश्यक नणी बे वार श्राव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) श्यक वांदणां देश्ने पड़ी एक जण उनो रही पांच मा आवश्यक नणी लघु अतिचार कहे. पली चैत्य वंदन कही चार स्तवन कहेवां. पठी उवसग्गहरं, न मोढणं कही गुरु वंदन करी सजाय कहीयें, पड़ी हा श्रावश्यक नणी पच्चरकाण वांदणां बेवार देश्ने गुरुमुखें पच्चरकाण करीये. पठी सामायिक पालवा त्रण नवकार गणीये. पनी 'जंजमणेण बळं' इत्यादिक गाथा कही प्रतिक्रमण समाप्त करीयें ॥ इति श्राव कने राश् पडिक्कमणविधिः समाप्तः॥ ॥ अथ श्रावकस्य पादिक प्रतिक्रमण विधिमाह ॥ ॥प्रथम त्रण खमासमण देश् श्छाकारण॥ कही गमनागमन निमित्तें शरियावही तस्स उत्तरी कही ए क लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पनी प्रगट लोगस्स कही, गमनागमन आलोची पठी सामायिक गवा त्रण नवकार गणी जीवराशि खमावी अढार पाप स्थानक आलोववां. पडी गुरुस्थापना निमित्त पंचिं दिय कही अव्य, देोत्र, काल, नाव धारवा. पनी सा मायिक व्रत उच्चार करवा, एक नवकार गुणी सामा यिक व्रत उच्चार करी पनी फरी बीजा आवश्यक न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) णीरियावही तस्स उत्तरी कही एक लोगस्सनो का उस्सग्ग करी पड़ी प्रगट लोगस्स कही बेहडो पडिलेही पड़ी त्रीजा आवश्यक जणी आवश्यक वांदणां बे वार देवां. पली एक जण उन्नो रही चोथा श्रावश्यक नणी महोटा अतिचार कहे, ते थावी रीतें: ॥ श्वामि खमासमणो वंदिलं जावणिजाए नि सीहियाए मबएण वंदामि. श्वाकारेण संदिसह जगवन् ! गुरु पर्वजणी पाखी सविशेष अतिचार थालोडं जी. गुरु कहे बालोएह. पड़ी श्छं नमो अ रिहंताणं ॥ ए नवे पद पूर्ण कहीने अतिचार क हेवा. ते कहे . ___॥अथ बृहदतिचारप्रारंनः ॥ - ॥ श्रावकतणे धर्मे श्री सम्यक्त्वमूल बार व्रस नणीयें ॥ ॥ श्वं अरिहंत देव, सुसाहु गुरु, जिनप्रणीतधर्म. जावतः समकित प्रतिपावू, अव्यतो लौकिक लोको त्तर देवगत, गुरुगत, पर्वगत, मिथ्यात्व, चतुर्विध न पीयें. हरि, हर,ब्रह्मा,सूर्य, इंड, चंड, ग्रह, गोत्रज, गणेश, दिपाल, क्षेत्रपाल, स्कंद, कपिल,बुझ, हनु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) मंत, यक्ष, राक्षस, जक्तिमुक्तिदायक जणी श्राराधी यें, ते लौकिक देवगत मिथ्यात्व. चरक पारिव्राज क, कौल, कापालिक, द्विज, तापस, संसारतारक ज णी मानियें, ते लौकिक गुरुगतमिथ्यात्व छापरप रिग्रहीत जिनबिंब वैरोट्या ब्रह्मशांति प्रमुख जैनदे व देवी तणुं जे देवबुद्धे पूजन, ते लोकोत्तर देवगत मिथ्यात्व. पासना, उसन्ना, कुशील, संसक्त, अहाबं द, निन्हव, बोटिक, द्रव्य लिंगीत विषे जे गुरु बु पूजन, ते लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व. ए चतुर्वि ध मिथ्यात्व यथाशक्तें परिहरु ए श्रीसम किततणा पांच प्रतिचार शोधुं. शंका, कंखा, वितिगिठा, परपासंमिपरसंसा, पर पासंगी संथ शंका :- जीवाजीवादिक नवतत्त्वमांदे एके तत्त्वतो मन संदेह धरयो होय, अथवा देव गुरुधर्म सिद्धांत तणो मन संदेह धरयो होय. कांदा :- अपर धर्म तो अभिलाष धरयो होय, अ थवा सर्वधर्म सरखा लेखव्या होय, वितिगिष्ठाः - ध र्मता फलप्रत्यें मन संदेह धरयो होय. अथवा मलमलीनगात्र तपोधन, तपोधना देखी डुगंबा की धी होय. परपासंगी पर संसाः - परदर्शनी तणी अतिश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (QU) य विद्याख्याति देखी प्रशंसा कीधी होय. परपासं सिंधु: - परदर्शनी शुं संस्तव परिचय इष्टगोष्ट अंतरं ग प्रीति जक्ति दान आलापादिक कीधां कराव्यां होय. परतीर्थे स्ववशपणे गया होइयें, स्नान, दान, होम, महोत्सव कीधा कराव्या होय, तथा संक्रांति, ग्रह स्नान दानादिक कर्म समाचस्यां होय, तथा हो ली, पमली पूजी होय, पींपल, तुलसी पाणी घाल्यां होय. नदी, कुंम, प्रमुख लौकिक तीर्थे धर्म बुझें स्ना न कीधुं होय, आदित्यवारें, एकादशी जणी तप की धुं होय, लोकप्रवादें देवदेवी जणी यात्रा, ऊजाणी मानी होय, कन्याहल लीधुं होय, नील, तुलसी, प रणाव्यां होय, श्राद्ध, संवत्सरी जम्या होय, आजा पडवे, बलेव, जावबीज, खात्रीज, विणायगचोथ, नागपांचम, जीलणाबड, शील सातम, ध्रु आवम, मा हीनोम, हवदशमी, विजयादशमी, जीमएकादशी, वत्सबारसी, धनतेरसी, शिवचतुर्दशी, पैतृकी मा वास्या, माही पूनम, तथा संक्रांति, ग्रहण, व्यतिपा त, वैधृत प्रमुख लौकिकपर्व अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावास्या तथा पर्युषणापर्व तणी त्रीज, चौथ, पांचम टाली अनेरे दिवसें पर्वबुद्धे तप कीधुं For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) होय अनेरुं जे कां जिनवचन विराध्युं होय, अ नेरो सम्यक्त्व विषे पक्ष दिवसमांडे जिको कोइ सूक्ष्म, बादर, अतिचार हुई होय, ते सविहुं, मनें, वचनें, कायायें करी मिठामि डुक्कडं ॥ १ बार व्रतमांहे पहेतुं प्राणातिपात विरमण व्रत, स्थूल वेंद्रियादिक त्रसजीव निरपराध उपेतकरण संकल्पी करी इणवा नियम, श्रारंजें जयणा ॥ ए पढ़े ला प्राणातिपात विरमणव्रततणा पांच प्रतिचार शोधुं. बंधे, वहे, बविए, इजारे, जत्तपाणवठेए, द्वि पद, चतुष्पदप्रत्यें निबिडबंध बांध्या होय, रीषवशें ढोर, श्वान, मांजार, दास, कुमार, बोरू, वाबरू प्र त्यें गाढो प्रहार दीघो होय. बविच्छेदः - कर्ण कंबला दिक तपो छेद कीधो होय. चउकडी कुंकली पडा वी होय, बलीवर्द नथाव्या होय. अतिचार आरो पणः - पोठीया, वहीत्रा, उंट, बलद, खर, वेसरने तिजार आरोप्यो होय. जक्तपानव्यवच्छेदः - कुटुंबना यक हुंते मूख्यां, तरश्यां, ग्लान, वृद्ध, बोरू, वाबरू तणी सार संजाल कीधी न होय, लहेणे देवे अजि मवो सोंह दीधो होय. लांघण पाडी होय, खाल वाह्या होय, शल्यां धान दलाव्यां जरडाव्यां होय, For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) गलणुं वहेढुं प्राप्युं न होय, नीलफूलनी जयणाकी धी न होय, धाबा ममिया होय, कोउ घाती होय, पूंजे आग दीधी होय, वरासें दीवो उघाडो मूक्यो होय, वाशीगारें लीपणुं की, कराव्यु होय, वरसा लें खात्र चलाव्यां होय, तडके मांकड पखोड्या हो य, रात्रे स्नान, अंघोल की, होय. आखुं फोफल दां ते नांग्यु होय, घरना माणासने जयणाविषे शीखा मण दीधी न होय, अनेरुं ए पहेला प्राणातिपात विरमणव्रतविषे पदा, दिवसमांहे जिको कोई सूक्ष्म, बादर, अतिचार हुई होय, ते सवि हुं, मनें, वचनें, कायायें करी मिला मि मुक्कडं॥ - २ बीजं स्थूल मृषावादविरमणव्रत पंचविध. क न्नालीए, गोवालीए, नूमालीए, नासावहारे, कूडस खिो . ए पांच मोटकां कूडांआपणने काजें, वजन ने काजें धर्मने काजें मूकी परकानें कूडं बोलवा नि यम, सूक्ष्म अलिक तणी जयणा ॥ ए बीजा स्थूल मृषावादविरमणव्रत तणा पांच अतिचार शोधुं.' ___ सहस्साजरकाणे, रहस्सालकाणे, सदारामंतने ए, मोसोवएसे, कूडलेहकरणे. सहसात्कारेंः-हारते, फीटते, कुणहप्रत्ये कूडं बाल दी, होय, ए अमुका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) तणुं काम मुर्केज कीधुं, इस्युं जयं होय. रहस्सा जरकाणे :- बे जा एकांत मंत्र मंत्रता देखी, में जा एयुं तुमें मुकुं मुकुं राज विरुद्ध आलोचो बो, इस्युं बोल्युं होय. स्वकीय कलत्र मित्र तणो मंत्र अनेरा अगले प्रकाश्यो होय. मृषाः - कूडो सिद्धांत तणोउ पदेश, परप्रत्यें दीधो होय अथवा अनेरा पासें कूडुं बोलाव्युं होय, कूडा लेख लखाव्या होय, मशीनेद कीधो होय, कूडी हुंगी, कूडी मुद्रा, संचारी होय, तथा कुणहशुं कूडो ऊगडो मांग्यो होय, हुं जाएं बुं तुजने निधान लाधुं बे, तुज कने श्रमुका मुका तणुं द्रव्य रह्युं छे. इस्युं बोल्युं होय. अनेरुं ए बीजा स्थूलमृषावाद विरमणव्रतविषे पक्ष दिवसमां हे जिको कोइ सूक्ष्म, बादर, अतिचार दुर्ज होय ते सवि हुं, मने, वचने, कायायें करी मिठा मि डुक्कडं ॥ ३ त्रीजुं स्थूल श्रदत्तादानविरमणव्रत सचित्त, चित्त राजनिग्रह कारीजं, पियारुं, अणदीधुं लेवा नियम सूक्ष्म तृण, इंधण, पथिपतित ववहार निलंगे, दाण चोरीजयणा ॥ ए त्रीजा स्थूल अदत्तादान विरमण व्रततणा पांच प्रतिचार शोधुं. तेनादडे, तक्करप्पनुंगे, विरुद्धरताश्कम्मे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only कूडतु Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) वकूडमाणे, तप्पडिरूवगववहारे, स्तेनाहृतः-जाणी करी चोराक्ष वस्तु लीधी होय.तस्कर प्रयोगः-चोर ने संबल आप्युं होय, पग रहण दीधुं होय, आग ल यश् चोराश् वस्तु वेची वेचावी होय. विरुधरजा श्कम्मेः-विरुफ राज्य जर व्यवसाय कीधो होय. कूड तुबकूडमाणे:-कूड तोलां, कूडा मापां कीधां होय, अनेरे दी, अनेरे लीधुं होय,लहक त्रहक की, होय, काटलां कूडा कीधां होय, उसिसी दीधी होय, त प्रतिरूपक व्यवहार. सफरी वस्तुमाहे निफरी व स्तु घाती सफरीने मूल्ये वेची होय. घी, तेल, सा हिली, कउची, नेल संनेल कीधां होय. नवी वान की देखाडी जूनी वस्तु आपी होय, तथा कूडो कर हो काढ्यो होय, वंचसोह, विश्वासघात कीधो होय, लेखें कोश् वराश्यु होय, कूडी मुजा संचारी होय, सिसीसीज्वार, फट्या चण्या उपाड्या होय, कुणहy अव्य, व्यवसाय करतां आपणपां कने रह्यु होय,ना णां पालटो कीधो होय ॥ अनेरं ए त्रीजा स्थूल अ दत्तादानविरमणव्रतने विषे पद दिवसमाहे जिको को सूक्ष्म, बादर, अतिचार हु होय, ते सवि हूं, मनें, वचनें, कायायें करी मिला मि उकडं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) ४ चोथु शीलवत यथाशक्ते खदारासंतोष परदा राविवर्जनारूप ॥ ए चोथा शील व्रत तणा पांच अ तिचार शोधुं. इत्तरपरिग्गहियागमणे, अपरपरिग्गहियागमणे, अनंगकीडा, पर विवाहकरणे, कामलोग तिवाजिला से. इत्वरः-थोडे कालें व्यादिक परिगृहीत परस्त्री तणुं गमन कीधुं होय. अपरपरिगृहीतः-विधवा कु मारिकातणुं गमन कीर्छ होय.अनंग क्रीडाः-अत्या सक्ते खदेह परदेह काम कुचेष्टा कीधी होय, पीया रा विवाहना जोडावाडा कीधा होय, काम नोगत णेविषे रात्रि, दिवस, तच्चित्त थश्तीवानिलाष धस्यो होय, पर्वतिथियें विस्मृत लगें शीलभंग हुन होय, परस्त्रीशुं अश्लीलवचन हास्य कीधां होय, स्त्रीतणा अवयव जणी सरागदृष्टि घाती होय. वेश्या, वाहि ग दर्शनीनणी उष्टमनसा कीधी होय, स्वप्नांतरें शी खनंग हुई होय, अनेरुंए चोथा शीलव्रतविषे पददि वसमाहे जिको कोश्सूक्ष्म,बादर,अतिचार हुवो होय ते सवि हुँ, मनें, वचनें, कायायें करीमिठा मि उकडं. ____५पांचमुं परिग्रहपरिमाणवत नव विध.खित्त,घर, हट्ट, वाडिय, कुविय, धण,धन्न,हिरण, सुवाल, एय प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५ ) रिमाणं ॥ डुप्पय चप्पय मियं, नवविह परिग्गह वयं तु ॥ ए पांचमा परिग्रह परिमाणत्रत तथा पांच अ तिचार शोधुं. खित्तवन्नुप्पमाणाइक्कमे, हिरससुवलप्पमाणाइकमे, धणधन्नप्पमाणाश्कमे, डुप्पयचजप्पयप्पमाणाइकमे, कुवियप्पमाणाश्कमे, क्षेत्रः - वास्तु, हिरण, सुवस, धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद, राब, पीठ तणो प्रमाणा तिक्रम कीधो दोय, अथवा परिग्रहत कारणे मोटा रंज कठमर्द मांगया होय, आहट्ट, दोहट्ट, धरयो होय, आपणो परिग्रह पुत्र पौत्रादिकतणो करी श्र पणे काजें अणाव्य होय, परिग्रह प्रमाण लीधुं न होय, लेइने पढिलं न होय, पढीने विसाखुं होय, सारीने संजान होय ॥ अरुं ए पांचमा परिग्र ह परिमाणव्रत विषे पक्ष दिवस मांहे जिको कोइ सूक्ष्म, बादर, विचार हुई होय, ते सवि हुं मनें, वचनें, काया यें करी मिष्ठामि डुक्कर्ड । एटले ए पांच अणुव्रत हुआ. ॥ हवे त्रण गुणव्रत कहे बे ॥ ६ बहुं दिशिवत, त्रिविधें जाएं. उमृदिसिवए, अहो दिसिवए, तिरियदिसिवए ॥ ए बहा दिशिव्रत तणा पांच प्रतिचार शोधुं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) उम्र दि सिप्पमाणाइकमे, अहो दि सिप्पमाणाइकमे, तिरियदि सिप्पमाणा इक्कमे खित्तवुड़ी, सयंतरद्धा, क र्ध्वदिशि, अधोदिशि, तिर्यग् दिशि :- विस्मृत करी स इसात्कारें गमनप्रमाण तो अतिक्रम कीधो होय, क्षेत्र वृद्धि: - एक पखा भूमिका उठी करी बीजी पखा वधारी होय, स्मृति अंतर्द्धानः- दिशिवततणुं प्रमाण करी विसाखुं होय, वड सफर कीधो होय, लोज लगें अतिविषम पंथ वाह्या होय ॥ छानेरुं ए बहा दिशित्रत विषे पक्ष दिवसमादे जिको कोइ सूक्ष्म, बादर, अतिचार दुवो होय, ते सवि हुं मनें, वचनें, कायायें करी मिष्ठा मि डुक्कर्ड ७ सातमुं जोगोपनोगत द्विविध. जोजनतः क मतश्च तत्र जोजनतः - इणे व्रतें “ पंचुंबरि महविग इ, हिम विस कर गेय सव्वमट्टी य ॥ राईजोय गं चिय, बहुबीयत संधाणं ॥ १ ॥ घोलवड वायंगण, अ मुयिनामा णि फुल्ल फलयाणि ॥ तुछफलं चलियरसं, वजय मुकाबावीसं ॥ २ ॥ ए बावीश अजक्ष्य ॥ "स वार्ड कंदजाई, सूरण कंदो य वक्कंदो य ॥ अद्द हबि द्दा यता, अहं तह अल कचूरो ॥ १ ॥ सतावरी वि राली, कुमारि तह थोहरी गलोई य ॥ ब्दसण वंस For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) करिसा, गजर तह खूण लोढो ॥२॥ गिरिक मि किसलपत्ता, खीरसुया घेग श्रब्ब मुबाय ॥ तह लोण रुकाबी, खिबहडा अमयवसीय ॥३॥ मूला तह नूमिरहा, विरुहाई ढक्क वबुलो पढमो॥सूअर व होय तहा, पद्धंको कोमलं बिलिया ॥४॥आलू त इ पिंमालू, बत्तीसं जाणिऊण ताई। एया बुद्धि मया, परिहरियवा पयत्तेणं ॥५॥” ए बत्रीश श्र नंतकाय यथाशक्ते रोग निदादिक मूकी परिहर ॥ ए सातमा जोजनव्रत तणा पांच अतिचार शोधुं. ___ सचित्तश्राहारे, सचित्तपडिबझाहारे, अप्पोस हिलकणया, पुप्पोसहिजरकणया, तुबोस हिनक णया, सचित्त तणो नियम लीधे अजाणतां अधिकुं सचित्त लीधुं होय. सच्चित्त प्रतिबद्धः-रायण मुद घाली निकोली होय, वृदतणो गूंद उखेडी तत्काल अचित्त बुझें हास्यो होय.अप्पोषधिः-पोलीमांदे लो कण जख्यो होय. उप्पोषधिः-उला, पहोंक, श्र चित्त बुझें श्राहास्या होय. तुष्ठोषधिः-कूली अांबली कुश्रलां वागरडा, मोहरी कुंपली, सूक्ष्म केरी तणुंज क्षण की, होय, अने रात्रे जोजन की होय, लग बग वेलायें जिम्या होश्य, जिमवा अंधारे बेगहोश्य, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) गुलले पाणी पीधुं होय " सञ्चित्त दव विग" ए चौ द नियम, दिवसगत, रात्रिगत चीतव्या न होय.व र्षाकालें जूनुं टोपलं, खारेक, खजूर, श्राहास्यांहोय, श्रामणबोर, जांबू, पीलू, श्राखी वाव्होली लीधी हो य, पहोंक स्वहस्ते कीधा होय. काचूं खूण, वाशी व डा, वाशी पोली, शोल पहोर उपरांत दही वावगुं होय, संसक्त फूल, फल, उपजीव्यां होय, अणगल पाणी पीधुं होय. अनेकै ए सातमा लोगोपनोगव्रत विषे पद दिवसमांदे जिको कोई सूक्ष्म,बादर, अति चार हुवो होय, ते सवि हुं मनें, वचनें, कायायें करी मिला मि उकडं ॥ ___ कर्मतो तलार, गुप्तपाल प्रमुख खर कर्म अने आजीविका अर्थे कुव्यवसाय परिहरु ॥ कर्मतो ए व्रत तणा पंदर अतिचार शोधुं. शंगालकम्मे, वणकम्मे, साडीकम्मे, जाडीकम्मे, फोडीकम्मे, दंतवाणिो, लकवाणिजे,रसवाणिजे, विसवाणिजे, केसवाणिजे, जंतपीलणकम्मे, निलं बणकम्मे, दवग्गिदावणया, सरदहतलाव सोसणया, असई पोसणया. १कंगालकम्मेः-सानार्थे रांगण, लीहाला,सोनारा, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए) कंसारा, लंगरा, जाडजुंजा, ईटवाह, नीमाद, धातुध मनादिक अग्निकर्म कीधां होय. ____ वणकम्मेः-कण,कपाशीया, फूल, फल, पानत णो विक्रय कीधो होय.दलावणुं, लोढावणुं, मंमाव्यु होय. वांस, वली, काठ वढाव्या फडाव्या होय. ___३ शकटकम्मेः-गाडावाहिनी धरी, ऊधी, पई त णो विक्रय कीधो होय. ____४ नाटककम्मे-पोतीया, वहीत्रा, उंट, बलद, ख र, वेसर शकटतणुं नाडु की, होय. ५ फोटिककम्मे श्राजीविकाथै खाण, पाखाण,मा टी, मुरड, खणाव्या होय, करसण की, होय. ___ १ दंतवाणिजेः-श्रागर जश् गजदंत, चमर, क स्तूरी, नख, रोम, चर्म लीधां होय. ___श्लकवाणिजेः-साख, गली, मणसिल, धाउडी, महुडां, साजी, तूरी, साकरोड, नांग, साबू,कंदादि क वहोख्यां होय. ३ रसवाणिजेः-रस, मद्य, मद्यांग, मधु, माखण, वेशडतणो विक्रय किधो होय. ४ विसवाणिजेः-विष, हल, हथीयार, लोहयंत्र, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४० ) दरियाल, कांकशी प्रमुख जीवघातक वस्तु वेची, वेचावी होय. ५ केसवाणिजो :- द्विपद, चतुष्पदतणो विक्रय की धो होय. १ यंत्र पीलकम्मे : - रद्दह, पावह, कोल्हुं, लोढ ण, ऊखल, मुशल, घंटी, घाणी, वाह्यां होय. -- २ निकम्मे ः- द्विपद, चतुष्पद प्रत्यें यांक, मां ज पाबणां, कर्ण, कंबल, मुष्कछेद, पृष्ठिगालन, नासा वेधादिक किधां कराव्यां होय. ३ दवग्गिदावण्याः - खड अन्नतणी घणी निष्पत्ति मणी दव दीधा, देवराव्या होय. ४ सरदहतलावसोसण्याः - सर शोषाव्यां होय, खिल खेडाव्या होय, क्यारा गहराव्या दोय, प्रह तलाव फोडाव्यां होय. ५ असती पोषण: - श्वान, बिडाल, शूडा, साल हि, मोर, कुर्कुट, डुराचार, दास, दासरु, पोष्यां होय. श्र नेi बहु पाप व्यापार, व्यवसाय कीधा होय. ए प नरे कर्म्मादानविषे स्थूल नियम सूक्ष्म तणी जयणा. ए पन्नर अतिचारमांहे पक्ष दिवस मांहे जिको कोइ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) सूक्ष्म,बादर, अतिचार हुवो होय,ते सवि हुं मनें, व चनें, कायायें करी मिना मि उक्कडं. ___ आठमुं अनर्थदंमविरमणव्रत चतुर्विध. अवता पायरिए, पमायायरिए, हिंसप्पयाणे, पावकम्मोवए से, १ श्रार्तध्यान, रौप्रध्यान, अंतर्मुहूर्त उपहरु धऱ्या होय अने वयर,कलहवाद,वेढि,अबोला, रूषणां, स राप; गाल,कर्कशवचनतणुं ध्यानतेअप ध्यानाचरित. १ तथा जीलगुं, बाटj, हींचq, द्यूत, होड, वा द, विकथादिक हास्यरस, पुण्यप्रनावनांग टाली ना टक, गीत, फाग, चाचर. खेल वाडी, वेश कराववा श्रने मन्स, महिष, श्वान, कुकुट, जूफाडवा. रोग,श्र म, मूकी सर्वरात्रं सूश्चं. थालें फूल, फल, पान त णुं तोडवू. देहरे, पोशाले, तांबूलादिक दश श्राशा तना तणुं करवं, ते प्रमादाचरित. .. ३ तथा दाक्षिणपाखें कोश, कोदालो, पावडो, धनुष, खड्ग, आग आपीयें, ते हिंसप्रदान. ____४ तथा घोडा कल्होडा समराव, खेत्र खेड, गा हुं वाह, हाट मांझ. इस्युं जे बोलीयें, ते पापोपदेश कहीये. ए अनर्थदंग चतुर्विध जे परिहरियें, ते श्रा उमा अनर्थदंग विरमणव्रततणा पांच अतिचार शोधुं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) कंदप्पे, कुक्कुइए, मोहरिए, संजुत्ताअहिगरणे. उ वजोगपरिजोगअरेगे; कदर्पलगें:-सविकार वचन बोल्या होय. कौकुच्यः-लांमचेष्टा,मुख, नयनविकार कही लोक हसाव्यां होय. मौखर्यः-वाचालपणे पी यारी तांती, राढि, मर्म,मोसो,बोल्यो होय. संयुक्ता धिकरणः-उखल, मुशल, घंटी, घाणी, निसाह, लोढुं, धनुष, बाण, जोत्र, पराणो, मेली, मेहव्यां होय. स्ना में, जोजनें, परवे, उढवे, अत्यासक्ति कीधी होय, तथा रात्रे माथु गूंथ्युं गूंथाव्युं होय, लीपणुं कलुं, कराव्यु होय. निकर्कशवचनः-असत्य वचन बोल्यां होय ॥ अनेकै ए आठमा अनर्थदमविरमणव्रत विषे पद दिवस मांहे जिको कोश् सूक्ष्म, बादर, अति चार हुवो होय, ते सवि हुँ मनें, वचनें, कायायें करी मिना मि फुकडं ॥ एटले त्रण गुणव्रत हां. हवे चार शिक्षाव्रत कहे . ___ए पहेबुं सामायिकवत. समो रागद्वेष रहित जाव कीजें, ते सामायिक कहीयें ॥ ए नवमा सामा यिकवत तणा पांच अतिचार शोधुं ॥ __ मणप्पणिहाणे, वयप्पणिहाणे, कायप्पणि हाणे, सामाश्यस्स अकरणया, सामाश्यस्स श्रण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) हियस्स करणया, सामायिक कीधे श्रार्तध्यान, रौष ध्यान,थाहट्ट,दोहह,चितवी मन छुःप्रणिधान, की, होय. वचनें करी जा, श्राव,ले, दे, आण, मूक, श्स्युं सावद्य वचन बोप्यु होय, उघाडे मुखें वात कीधी होय, कायायें करी, पडिलेह्या प्रमाा पांखे खमा समण, वांदणां दीधा होय. हाथ,पग, आसण हला व्यां होय, बती वेलायें सामायिक कीधुं न होय. अनव स्थित सामायिक करतां, वेला, अवेला जोश न होय.बे घडी पूगी पांखे पाखु होय.करीने अरहुं परहुं परिज्रमण की, होय. कण, कपाशीया, फुल, फल, माटी, पाणी, स्त्री तणो संघट्ट हू होय. निझा वि कथादिक प्रमाद कीधा होय, सचित्तने संघट्टे शरि यावहि पडिकमी न होय ॥ अनेकै ए नवमा सामा यिकव्रतविषेपद दिवसमांदे जिको कोश्सूम,बादर, अतिचार हुवो होय, ते सवि हुँ मनें,वचनें, कायायें करी मिला मि ऽकडं. १० दशमुं देशावगाशिकवत. ब दिशिवतें जं दिशि तणुं प्रमाण की, होय, ते प्रतिदिवसें संको डीयें अनेरा ए सर्वव्रत तणा नियम संक्षेपियें, ते दे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) शावगाशिकव्रत कहीयें ॥ ए दशमा देशावगाशिक बत तणा पांच अतिचार शोधुं. श्राणवणप्पउँगे, पेसवणप्पलंगे, सदाणुवाई, रूवा णुवाई,बहियापुग्गलपकेवे,देशावगाशिक कीधे निय मीनूमिका बाहेर हूंती जिणपाहें वस्तु श्रणावी होय अथवा कोपाहें वस्तु मोकली होय, साद करी खां सी हुँकारो करी गाढे गुणे रूप देखाडी कांकरीना खी आपणपुं उतुं जणाव्युं होय ॥ अनेकै ए दशमा देशावगाशिकव्रतविष पद दिवसमांहेजिको कोश सूक्ष्म, बादर, अतिचार हुवो होय, ते सवि हुं मनें, वचनें, कायायें करी मिठा मि उकडं ॥ ___११ इग्यारमुं पौषधव्रत चउन्नेदें जाणवू. चतुर्विध आहारपोसः-चतुर्विध थाहारतणो परिहार. सरी रसकारपोसहेः-सर्वथा स्नानादिकशरीर शुश्रूषा त लो परिहार.बंजचेरपोसहेः-सर्वथा औदारिक वैकि यमैथुन तणो परिहार. श्रवावारपोसहेः-सर्वथा सा वद्य व्यापार तणो परिहार ॥ ए ग्यारमा पौषधव्र ततणा पांच अतिचार शोधुं.. __अप्पडिलेहिय, पुप्प डिवेहिय, सिजासंथारे. अ प्पमजिाय, उप्पमजिय, सिजासंथारे. अप्पडिलेहि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) य, कुप्पडिलेहिय, उच्चारपासवणमि. अप्पमजि य उप्पमङिय उच्चारपासवणनूमि. पोसहोववास स्स, सम्मं अणणुपालणया, पोसह कीधे शय्या, उ पाश्रय, संथारो,संथारा तणी नूमिका अने मल मू त्र तणां मिल, थं मिल तणी नूमिका, दिवस ते पडिलेह्यां, दृष्टे जोयां न होय,अने वस्त्रांचलें दंमास णे करी पडिह्या प्रमाा न होय, अथवा विरुई परें पडिलेह्यां प्रमाा होय, पोसहतको उपवास सम्यक् साचव्यो न होय, चतुर्विध श्राहारमा एके थाहार वांब्यो होय अने स्नानादिक शरीरसत्कार, श्रब्रह्मसेवा, वाणिज्यादिक, गृहव्यापार वांब्या हो य, पाख्यां समस्यां होय, अनागत प्राा होय,श रीर बांटया होय, आलोटा दीधा होय, पोसह थ के पारणानी सूत्रणा कीधी होय,दिवसें लांबे पगेसं थाखु होय,श्लेष्मा उघाडो मूक्यो होय,उपाश्रयथी निकलतां श्रावस्सही पेसतां निस्सही कही न होय, पोरिसी जण्या पाखें रात्रं संथालु होय,उजेश संघट्ट हुर्ड होय॥अनेरु ए श्ग्यारमा पौषधव्रतविषे पद,दि वसमांहे जिको कोश् सूक्ष्म,बादर,अतिचार दुवो हो य,तेसविडं मनें,वचनें,कायायें करी मिठा मि इक्कडं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६ ) १२ बारमुं श्रतिथिसंविभागवत. जं पर्व तणे पा रणे साधुने शुद्धमान, दान, देइ श्रापणपुं उपजीवि यें, ते अतिथिसंविभागवत कहियें ॥ ए बारमा श्र तिथिसंविभागव्रत तथा पांच अतिचार शोधुं. सचित्तनिरकेवलिया, सचित्तपीहणीया, कालाइ कमदाणे, परोवएसे मछरिया. सूतूं अन्नपानादि क देवानी बुद्धे सचित्त उपरें मूक्युं होय, छाथ वा सचित्तें ढांक्युं होय, कालातिक्रमः - वेला टाली अन्न पान तणी निमंत्रणा कीधी होय. परव्यपदेशःआपणी वस्तु पीयारी कही होय, मछरलगें अनेरा तणुं दान देखी तेहनी स्पर्द्धायें दान दीधुं होय, श्र थवा दान तणी वेलायें महात्मा तुम्हे श्रमारुं कां हीं लेशो तो तुमशुं अमारे रूषणुं छे. एम कही क लह मांयो होय, तथा ग्लानादिक कारण पाखें सू तुं दीधुं होय, सूजतुं कृपणपणे दी धुं न होय ॥ अरुं ए बारमा अतिथि संविभागवत विषे पक्ष, दिवस मांदे जिको कोइ सूक्ष्म, बादर, अतिचार दुवो होय, ते सवि हुं मनें वचनें, कायायें करी मिठा मि डुक्कर्ड. पश्चिम मरणांतिक संलेषणा तथा पांच प्रति चार शोधुं. इहलोगासंसप्पउंगे, परलोगासंसप्पनुंगे, For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) जीवियासंसप्पळगे, मरणासंसप्पउँगे, कामनोगासंस प्पलंगे. श्ह लोक श्राश्री शकि, वृद्धि, तणी आशं सा,वांबा कीधी होय, परलोक श्राश्री इंज, चक्रवर्तित णी श्राशंसा,वांग कीधी होय. जीवितव्य अने मरण तणी आशंसा,वांग कीधी होय.कामनोगतणी आशं सा,वांबा कीधी होय॥अनेरु ए संलेषणा विषेपद दि वसमांहे जिको कोश् सूक्ष्म,बादर,अतिचार हुवो हो य,तेसवि हुँ मनें,वचनें,कायायें करी मिठा मिक्कडं: . एवंकारे श्रीसम्यक्त्वमूल बार व्रतविषे पंच्याशी अतिचारमाहे जिको कोश् अतिचार, अनाचार, श्र तिक्रम, व्यतिक्रम हु होय, तथा जाणते, अजाण ते, सूक्ष्म, बादर, कानो, मात्रा, मिमी, पद, अदर, उनु, अधिकुं, हलवो, नारी, आगल, पाबल, कह्यो, कहेवाणो होय, ते सवि हुं, मनें, वचनें, कायायें करीमिछा मि मुक्कडं. १ तथा ज्ञानाचारें ज्ञान रहे, श्राशातना कीधी होय, पढतां, गुणतां, अंतराय कीधो होय, मछर ध यो होय, अदरने थूक लगाइयुं होय, पाटी, पोथी, कवला, वणी, नोकरवाली, कागदें पग लगाड्यो हो य, खमासमण पाखें परवाडी लीधी होय, ज्ञान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) व्यतणी सार संजाल कीधी न होय ॥अनेरुं ए झा नाचार विषे पद दिवसमांहे जिको कोई सूक्ष्म, बा दर, अतिचार हुवो होय, ते सवि हुँ, मनें, वचनें, कायायें करी मिठा मि मुक्कडं. २ तथा दर्शनाचारें सम्यक्त्व विराधिलं होय, दे व गुरु नमस्कार कस्या पाखें जोजन की, होय, देव पूजतां धोती शुद्ध कीधी न होय, मुखकोश कीधो न होय, आधडविचें देव पूज्या होय, गुरुने श्रास णे, बेसणे, उपगरणे, पग लगाइयो होय, गुरुवचन वेषलगें वायु होय, बिंब हाथथकी विबूटयु होय, बिंबनुं वैयावच्च कीधुं न होय, देवव्य श्रापणे व्य वसायें घात्यु होय, देवप्रव्य विणसतुं उवेख्यु होय, अनेरुंए दर्शनाचारविषे पद,दिवस मांहे जिको कोश सूक्ष्म, बादर, अतिचार दुवो होय ते सवि हुँ मनें, वचनें, कायायें करी मिना मि उक्कडं. ___३ तपाचारें बती शक्ते पच्चरकाण कीधुं न होय, करीने नांग्युं होय, पञ्चरकाण पाट्युन होय, नियम अनिग्रह लेईनांग्या होय,उन्नेदअन्यंतर,उन्नेद बाह्य तप अवसरें साचव्युं न होय ॥ अनेरु ए तपाचार विषे पद दिवसमांहे जिको कोश् सूक्ष्म,बादर, श्रति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४०) हुवो होय ते सवि हुं मनें, वचनें, कायायें करी मि छामि डुक्कडं. ४ वीर्याचा बती शक्तें व आवश्यक सम्यक् सां चव्यां न होय, बती वेलायें पोसह सामायिक कीधुं न होय, बेवां, वांदणां दीधां होय, काउस्सग्ग अ धिका अधिकुं वधा न होय, बती शक्तें तप कीधुं न होय, द्वेष करतो कोइ वास्यो न होय, नवुं पढ तां, आगलुं गणतां, अर्थ विचार पूछतां, कहेतां, था लस कीधुं होय, बती सामग्री यें दान दीधुं न होय, देवयात्रा, गुरुयात्रा कीधी न होय, साहम्मी तणी ज क्ति साचवी न होय, धर्मवंतनी आपदा जांगी न होय ॥ नेरुं ए वीर्याचारविषे पक्ष, दिवसमांदे जिको कोइ सूक्ष्म, बादर, अतिचार दुवो होय, ते सवि हुं मनें, वचनें, कायायें करी मिठा मि डुक्कडं. अनेरुं जं कांइ जिनवचन विरुद्ध मन, वचन, कायायें करण, कराव अनुमति करी समाचयुं हो य, ते सवि हुं, मनें, वचनें, कायायें करी मिठा मि डुक्कडं ॥ " पडिसिद्धाणंकरणे, किच्चाणमकरणे, पडिक्क मणं ॥ असणे य तहा, विवरीय परूवणा एय" ॥१॥ देसावगा सियं जवजोगं परिजोगं पच्चरका मिश्र , ४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) नबणा जोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं, सब स माहिवत्तियागारेणं वोसिरामि. ॥ इति श्रीमद्विधिपदगल शृंगारपूज्य श्रीजयशेख रसूरिविरचिताःश्रावकस्य बृहदतिचाराः संपूर्णाः॥ पड़ी श्छामि खमासण पूर्वक हेग बेसीने श्लाका रेण संदिसह जगवन्! अष्टोत्तरी तीर्थमाला कहुं जी. एम कही नमो अरिहंताणं ॥ नो पाठ संपूर्ण कही ने पठी तीर्थमाला कहीये. ॥अथ श्री अष्टोत्तरीतीर्थमाला प्रारंजः ॥ ॥ अरिहंतं जगवंतं, सबन्दु सवदंसि तिचयरं ॥ सिहं बुद्धं निच्चं, परमपयलं जिणं थुणिमो॥१॥ज य जय तिहुअण मंगल, नद्यारय सामिसाल जय च त्त ॥देवादिदेव जगपहु, परमेसर परम कारुणिय ॥२॥ जय जय जगिकबंधव, नव जलहि दीव तिहुश्रण प श्व ॥ जय जय जग चिंतामणि, तिहुश्रण चूमामणि जिणंद ॥ ३ ॥ जय जय सिवपह संदण,असरण ज ण सरण दीण उमरण ॥ जय जय जव जय नंजण, जण रंजण बिन्नजरमरण ॥४॥ जय कम्मजलाहि तारण तरंग, गुण रयण धारण करंग॥जय विसमबा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१ ) वारण वरं, मुणि सुमणवण संग ॥५॥ धन्नोहं पुषो दं, सहलो मह एस माणुसो जम्मो ॥ जं जिण तु ह पयपंकय, पसाय पासायमनिरूढो ॥६॥ धन्नो एसो दिवसो, जाम मुहुत्तो वि एस सुपवित्तो ॥ जंमि तुमं तिजगगुरू, जव मरुपद सुरतरू पत्तो ॥ ७ ॥ श्रद्यं म द चिंतामणि, सुरतरु सुरगावि जद कुंजाई ॥ सयलं सुलहं जं पहु, अलपुवो तुमं लो ॥ ८ ॥ नरय जव तिरिय नर सुर, वर समुदय नमिय चलण कम लडुगं ॥ तिहु जण सुरतरु सम, महनिस मवि नमह तिजगपहुं ॥ ए ॥ श्र दस दोस रहिए, स हिए चउतीस सय वरेहिं ॥ हय कोहे कय सो हे, महापाडिहेरे हिं ॥ १० ॥ जियरांगे जियदो से, जियमो कम्म निम्मद ॥ सिवपुरपढ़ स बाहे, गयबाहे यो मिजिएनाहे ॥ ११ ॥ जरहं मिती जय काले, पढमं वंदामि केवल जिदं ॥ निवाणी जिण सायर, महाजसं चेव विमल जिणं ॥ १२ ॥ सव्वाणुनू 5 सिरिहर, दत्तं दामोयरं सुतेयं च ॥ सामि जिणं मुसुिवय, सुम सिवगइ तहबाहं ॥ १३ ॥ नमिमो नमीसर जिणं, निलं जसोहरं कय च ॥ धम्मी तर सुमई, सिवकर जिए संदण जिणंद ॥ १४ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५२ ) संपइनामं वंदे, चवीस इमं जिणं सिवं पत्तं ॥ श्रहु या उ वट्टमाणे, कमेण थुपिमो जिवरिंदे ॥ १५ ॥ नमिमो रिसह जिणंद, जियजिणं संजवं च तिष्ठ यरं ॥ निंदण जिणचंदं, सुमई पउमप्पह सुपासं ॥ १६ ॥ चंदप्पहं च सुविहिं, सीयलनामं जिणं च सिद्यंसं ॥ वसुपुऊं विमल तह, प्रांतधम्मं जिएं सं तिं ॥ १७ ॥ कुंथु जिणं अरनाहं, मह्निं मुणिसुवयं च नमिनाहं ॥ नेमिं पांसं वंदे, चडवीस इमं च वीरजि णं ॥ १८ ॥ सिरिप मनाह नाहं, वंदामि सूर देव तिवयरं ॥ तश्यं सुपास नामं, सयंपद जिणं तह तु रीयं ॥ १५ ॥ सव्वानू देवं देवसुयं उदयसा मि पेढालं ॥ पोलिसय कित्तिजिणं, मुणि सुव्वय श्रमम सामिं च ॥ २० ॥ पणमामि निक्कसायं, निपुलायं च निम्ममं तं च ॥ सिरिचित्तगुत्त सामी, समाहि जि ए संवर जिणंदं ॥ २१ ॥ जसहर विजयं मलि, दे वायं तविरि च ॥ चजवीस इमं जहं, श्य नावि जिणे नम॑सामि ॥ २२ ॥ वंदे वेयडेसु, सासय जिए चेश्याणि सत रिसयं ॥ तीसं वासहरेसु, वीसं गयदंत सेलेसु ॥ २३ ॥ दस कुरुतरु सिहरेसु, तेसिं परिहिवणेसु तद असिई ॥ वरकार गिरिसु ा सिईं, प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) णसीई मेरुपणगंमि ॥४॥ उसुयार गिरिसु चउरो, च त्तारि नमामि मणुअसेलं मि॥नंदीसरंमि वीसंकुंमल रुअगेसु चउचउरो ॥३॥ एवं गिरिकूडेसु, गिरि ण ३ तरुसु तरूण कूडेसु ॥ श्काराहिय पणसय, सास य जिणलवण महीवलए ॥ २६ ॥ बावत्तरि लका हिय, कोडी सत्तेव जवण नवणेसु ॥ जिणलवणेउ असंखे, वंतरनयरेसु पणमामि ॥२७॥ वणचेश्य संखगुणे, जोसिएसु त विमाणेसु ॥ तेवीसा हि य सहसा, सगनउ लक चुलसीई ॥ ॥ सुर ग णेसु सवहिं, सनपणगेसहि होश पडिमाणं ॥ चे य मनसयं, चेश्य दारेसु बारसगं ॥ शए ॥ मिलि यं सयं असीयं, चवीस सयं तु नंदीसर दीवे॥पश् चेश्य सेसेसु, वीससयं पडिमतिरियलोए ॥ ३० ॥ जवणवई नवणेसु, कप्पाशविमाण तहय महिवल ए ॥ सासय पडिमा पनरस, कोडीसय बिचत्तको डी ॥३१॥ पणपन्नलक पणवीस, सहस्स पंच सया चालीसा ॥ तह वण जोश सुरेसु, सासय प डिमा पुण असंखा ॥ ३२ ॥ उसनाचंदाणण व,5 माण तहय सिरिवारिसेणाय ॥ सवा सासय पडि मा, पुणपुणरविएथ चउ नामा ॥३३॥ जंबू धायर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) पुरकर, दीवेविजयाण सत्तरि सयंमि ॥ नविए जुवि बोहंते, विदरंते जुगवमरिहंते ॥ ३४ ॥ नमिमो उकोसपए, सतरिसयं तह जहन्न वीसं ॥ कण गकलहोय विदुम, मरगय वर रिहरयणनिने ॥ ३५ ॥ जंबूदीवे धायश, संमे तह चेव पुरस्करकेय ॥ सी मंधर जुगमंधर, बाहु सुबाह सुजाउँथ ॥३६ ॥ बहो सयंपह पहु, उसनाणण तह अणंत विरि अ॥ सूरप्पहो विसालो, वजधरो तह गारस मो ॥ ३७॥ चंदाणणो सिरिचंद बाहु, देवो नु जंग ईसर॥ नेमिपह वीरसेणो, महनदो देव जस सामी ॥ ३७॥ सिरिश्रजिय वीरियजिणो, श्यएए संपयं विहरमाणे ॥ वंदे वीस जिणंदे,ति हुयण वंदे सुकय कंदे ॥ ३॥ श्यतीय मणागय व,हमाणया सासया य विहरंता ॥ थुणिया जिणं दचंदा, पय पंकय पणय माहिदा ॥४०॥ अहा वय मुजंते, गयअग्गपएस धम्मचकेय ॥ पास र हावत्तणयं, चमरुप्पायं च वंदामि ॥४१॥ श्रहा वय गिरिराए, पणमेमि थुणेमि तहय जाएमि॥ धम्मधुर धरण वसनं,उसनं पणमंत सुरवसनं ॥४॥ अजियाश्णो विसेसे, वरअश्सेसे जिणेल तेवीसं ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) गह सासय चजनामा, सोलस पडिमाज यूनेसु ॥४३॥ उसनस्स समोसरणा, पय पंकय अंकणार्ड सिव गमणा॥ तव लकी रोहगसिकि, उय अहावयं मि थुणे ॥ उसनं ॥४४॥ सुर असुर खयर नर वर, सुरिंद वंदिङमाण जिण नवणं ॥ अहावय गिरितिब, नंदन जावीर जिणति ॥ ४५ ॥ जा यवकुल सिरितिल, नेमी वय ग्गहण नाण गि वाणे ॥ जहिं पत्तो सो नंदउ, उजांतो तिगुणमि हति ॥४६॥ तं रेवय गिरितिबं, तिलोयसारं तिलोय जण महियं ॥ गणे तिलोय तिल, ति लोय पहु नेमि जहिं पत्तो ॥ ४७ ॥ रेवयगिरि म्मि नव जलहि, पोयनूअंमि नेमिनिजामो ॥ उहियं पुत्रिय वग्गं, सग्गदवग्गं लडं ने ॥ ४ ॥ सेले दसन्नकूडे, दसन्न नदस्स गवहरणहा ॥ स को देवा हिवई, निय स़ि दंसए एवं ॥ ४५ ॥ च उसहिकरि सहस्सा, सवे चउसहि अह मुहजु त्ता ॥ पश् मुहदंता अध्य, पदंत अह वावी ॥ ५० ॥ पश्वा वि अह कमला, पश् कमलं लरक पत्त पश्पत्तं ॥ बत्तीस विहं नामय, पश्कलियर यण पासा ॥५१॥ पश् पासायं श्रज, नद्दास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) या रयण चित्ताई ॥ सिंहासण मेगेगं, सपाय पीढं रयण मयचित्तं ॥ ५५ ॥ पश् सिंहासणमिंदो, पश् लद्दासणग मग्गम हिसी ॥ श्यति पयाहिण पुवं, गय अग्गपयाणि नुवि दोवि ॥ ५३॥ पडिबि बिय तो सको, वंदर वीरं त दसणजद्दो ॥ विह्मिय मणसो हरि चो, यणेण विलय पवा ॥ ५४ ॥ तो सुरव मुणिचलणे, खामिय उवबोहि दिवं पत्तो॥ गय अग्गपर्ट एवं, जाउँ तहिं थुणहवी रजिणं ॥ ५५ ॥ तिरकसिलाए उसनो, वेाति श्रागम्मि पडिम उजाणे ॥ जा बाहुबलिप्पनाए, एश्ता विहरी नयवं ॥ ५६ ॥ तो तहियं सो कार, जिणपय गमि रयणमय पीढं ॥ तवरि जोयणमाणं, मणि रयण विणि म्मियं दंमं ॥ ५७ ॥ तस्सोवरि रयणमयं, जोयण परिमंमलं पवरचकं ॥ तं धम्मचक तिबं, जवजल निहि पवर बोहि छ ॥ ५७ ॥ सिवनयरी कुसग्गवणे, पासो पडिम हि य धरणिंदो ॥ उवरि तिरत्तं बत्तं, धरिंसुका सीथ वरमहिमं ॥५॥ तं देखें सा नयरी,अहिबत्ता नाम जणे जाया ॥ तहियं नमिमो पासं,विग्य विणासं गुणावासं॥६०॥पडिमाए ठियं पासं, कम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) " वो हरि करि पिसाय पमुहे हिं ॥ उवस ग्गियतो वरिस इ, अखं जुग मुसलधाराहिं ॥ ६१ ॥ उदगं जिए नास ग्गं, पत्तंतो लहु करेइ धरणिंदो || जिण उवरि फणा बत्तं, जोगेण देहब हि परिहिं ॥ ६२ ॥ चलणाहो गुरु नालं, कमलं तो कम खामिउं नको ॥ धरणो गर्न स वासं, जिय उवसग्गं नमह पासं ॥ ६३ ॥ सिरिव यरसामि पढमा, रुहिए सेलंमि तेसिं खुमेण ॥ पढमं कयमाराहण, लोगपाला त चउरो ॥ ६४ ॥ रहरूढा पाया हिए, काउं महिमं करिंसु खुनस्स ॥ तं देवं तं तिचं रहावत्तंति तं नमिमो ॥ ६५ ॥ सिरि वयरसामिराहण, गिरिम्मि सक्को रहे अ द करिणा ॥ पायाहिणंतो सोविय रहावत्तो कुं जरावत्तो ॥ ६६ ॥ जञ्जय वऊपलाणो, चमरो वी रपयंतरि निलुको ॥ हरिणा मुक्को तत्तो, जिणपु र दंस नहं ॥ ६७ ॥ तो तहि तिचं जायं, च मरुप्पायं च सुसुमारपुरे ॥ सोमवणे तहि वीरं, ति हुण जण वच्छलं नमिमो ॥ ६८ ॥ इय बहुवि अछेरय, निहीसु अठावया गणेसु ॥ पणमह जिणवर चंदे, सुजत्तिजर नमिरमाहिंदे ॥ ६५ ॥ मासं पावगया, वग्घारिय पाणिणो जिणा वीसं For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) ॥ सिधिगया जब तहिं, नमिमो समय गिरि सिह रं॥॥ जं संमेए संघा, अजियजिणंदा परंपि श्रा इंसु ॥ तेणय सोमह तिबं, तिलोय जण तारण समबं ॥१॥ जय पढमं सिको,पुंगरीउणेग मु णिसहस्स जुर्व ॥ तकाला जा जंबू, असंख कोडि उता सिका ॥ १२ ॥ जय सिहा पंव, पन्न संबार जायवा बहवे ॥ तं विमलं विमल गिरिं,थु णिमो अक्ष विमल पयलं ॥ ३ ॥ जय नेमि मुत्तुं, नूणं उसनाश्णो जिणा रुहिया ॥ कहमन्न ह तेवीसं, जिण पय जुयलाण पडिबिंबा ॥ ४ ॥ तहियं सिरिसित्तुंजे, सुर नर पुजे अणेग वर चु ॥ पणमह जिणवर वसनं, वसनंकं वसनसुमि णं च ॥ ३५ ॥ तच्चं नियाणवाए, सेयपडागा नि साइ जहि जाया ॥ खवगपन्नावा तं शुणि, महु राश् सुपास जिणथूनं ॥ ७६ ॥ जरुथडे कोरंट ग, सुव्वय जियसत्तु तुरग जाइसरो ॥ अणसण सु रथागंतु, जिणमहिममकासितो तहियं ॥ ७ ॥ अस्सावबोह तिबं, जायं तं नाम पुणवि बीयमिणं ॥ सिरि समलिया विहारो, सिंहल धूयकारि उ कारो ॥ ७ ॥ जियसत्तु बाससमली, पाससुपा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (UV) सा सुदंसणा देवी ॥ निय निय मुत्तिहि श्रह्णवि, सेवंते सुवयं तहियं ॥ ७ ॥ इक्कारलक चुलसी, सदस्स किंचू वरिस जस्स तहिं ॥ जीवंत सामि तिछे, जरुठे सुवयं नमिमो ॥ ८० ॥ सन्निहिय पाडिहेरं, पासं वंदामि थंजणपुरं मि ॥ पावय गि रिवर सिहरे, डुह दवनीरं थुणे वीरं ॥ ८१ ॥ क नद्य निव निवेसिय, वरजिण जवणंमि पारुला गामे ॥ चिरमुत्तिं ने मिं, थुपि तद् संखेसरे पासं ॥ ८२ ॥ पारकर देस मंगण, जुए गुरुरगि रिम्मि उसन जिणो ॥ नंदज तिलोय तिल, अ वलोयण मित्त दत्त फलो ॥ ८३ ॥ सूरा चंदे 5 न्निय, पुन्निय बेवहणंमि जिए जुवणे || चउरो बा इडमेरे, पासं च थुणामि राडददे || ४ || सिरि कन्न नरवइ, कारिय नवणंमि कीर दारुमए ॥ तेरस वर सइए, वीर जिणो जय सच्चउरे ॥ ८५ ॥ बहुविद छरिय निही, रहोय पडहोय पयडसादिवो ॥ बल निच्चगाय पुन्निवि, जालउरे वीर जिए जव ॥ ८६ ॥ नव नवइ लरक धणवश, अलवासे सुवन्नगिरि सिहरे || नाइड निव का लीणं, थुणि वीरं जरकवसहीए ॥ ८७ ॥ तद चिर For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) नवणे बीए, वंदे चंदप्पहं त तश्ए ॥ पणय जण पुरिासं, कुमर विहारम्मि सिरिपासं ॥ ७ ॥ बं नेवि पविनाणय, देवाणंदीसु वीरनाहस्स ॥ पयप उम जुश्रलअंकिय, शूनजुए चेश्ए वंदे ॥ नए ॥ मेवाड देसगामे, थुणेमि जत्ती नंदिसमनामे ॥ स कमालमंतिकारिय, जिणनवणे नायकुल तिलयं ॥ ए ॥ सुक्कोसल मुणि सुचरिय, पवित्त सिहरं मि मुग्गल गिरिंमि ॥ संपर चित्त उमके, चिरतर व हु चेश्ए थुणिमो ॥॥ १॥ श्रब्बुथ गिरिवर सि हरे, जिणनवणं विमल गवियं विमलं ॥ विमल पियरेहिं दसहि, गयंद रूढेहिं कयमहिमं ॥ए॥ अश् रम्ममइ विसालं, महिमियं सुरकयंव पडिहा ६॥ वरजिण जवणं बीअं, तब सिरी वल्लुपाल कयं ॥ ए३ ॥ धोय कलधोय निम्मिय, पयंम ध यदंग मंमियं उनयं ॥ वरसायकुंनगयदंन, कुंज सोनंतथूनग्गं ॥ ए४ ॥ पढम जिण जवण जलनि हि, गप्ने चिंतामणि थुणे उसनं ॥ अवर वर ज वण सुरगिरि, तडिअमरतरुव नेमि जिणं ॥ ए५॥ नयणगं व सुतारं, सिरिघर जुअलं व रयण पडि पुलं ॥ रेह जिण लवणपुगं, अब्बु गिरिवर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) नरिंदस्स ॥ ए६ ॥ श्रब्बुध गिरिवर मूले, मुंगथ से नंदिरुक अह जागे ॥ उमन कालि वीरो,श्र चल सरीरो चिउँ पडिमं ॥ ए७ ॥ तो पुन्नरायना मा, को महप्पा जिणस्स जत्तीए ॥ कार पडि मं वरिसे, सगतीसे वीरजम्मा ए॥ किंचूणा श्र हारस, वाससयाएय पवर तिस्स ॥ तो मिठ घ ण समीरं, थुणेमि मुंबले वीरं ॥ एए ॥ मय महालय अश्सय, निम्मल अछेरनूय वर मुत्ती॥ अजिय जिणो तारण गिरि, कुमार निव गवि जय उ ॥१०॥ वायड नयरे मुणिसु, वयस्स जीवंत सामि पडिममहं ॥ वंदे तह वीरजिणं, सत्तर संवबर स या जस्स ॥ १०१॥ तह सिरिमाला रासण, बंना पाणंद सिद्धिपुर पमुहे ॥ कासदह अजाहर, पुरे सु चिर चेश्ए श्रुणिमो ॥ १२ ॥ गुजर मालव कुंकण, मरठ सोरठ कल पंचाले ॥ मरुसंनरि महुरारि, हबिण पुर सोरिय पुराई ॥ १३ ॥ तिहुअणगिरि गोव गिरी, कासि अवंती मेवाड माईसु ॥ देसेसु जिणे थुणिमो, दिठ अदिठेसुए असुए ॥ १०४ ॥ तह जंबूदीव धायर, पुरकर दी वकृविजय सतरिसए ॥ जे केई गामागर नग, नग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) राश्य तहियंतु ॥ १५ ॥ जाणि गिह चेश्याणिय, जाणि य जिण लवण तेसु जा पडिमा ॥ गुरुया जा पण धणु सय, लढा अंगुष्ठ पव समा ॥१६॥ सुर नर कय मणिकंचण, रीरीरुप्पा जाव लिप्पम या ॥ उउमहिं अमुणिय, संखाउ नमामि ता स वा ॥१०॥ जे या तिबयरा, जेथ नविस्स अणाग ए काले ॥ जे आवि वट्टमाणा, ते सवे नाव नमि मो ॥ १० ॥ सुरकय मणुयकयं वा, जुवण तिगे सासयं च जं तिबं ॥ तं सयल मिह हि विहु,म ण वयण तणूहि पणमामि ॥ १० ॥ जब जिणा एं जम्मो, दिका नाणं निसीहिया जब ॥ जायं च समोसरणा, ता नूमीठ वंदामि ॥ ११० ॥ एवम सासय सासय,पडिमा थुणिया जिणंदचंदाणं ॥ सि रिमं महिंद नुवणिंद, चंदमुणिवंद श्रुअमहिया ॥१९॥ इति श्री अचलगन्छेश्वरश्रीमन्महींप्रनसूरि विरचिता श्री अष्टोत्तरीतीर्थमाला समाप्ता ॥ ___एम तीर्थ माला कही रह्या पली उना थकांज उवसग्गहरस्तव कहेवू. ते कही रह्या पनी हेग बेशीने नमुन्नुणं कहे. पठी बार लोगस्सनो काउ स्सग्ग करवा निमित्तें तस्सउत्तरी कहीने बार लो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) गस्सनो काउस्सग्ग पूर्ण करी बेवु नमो अरिहंता णं ए एक पद कही, काउस्सग्ग पारी एक लोग स्स प्रगट कहीने पढ़ी गुरुवंदना कहेवी. ते क ही रह्या पठी एक नवकारनो पाठ पूर्ण कहीने सद्याय बे महोटी कहीये. ते लखीयें यें. ॥अथ प्रथम सद्याय प्रारंजः॥ ॥ जय जगजीव जोणी, विश्राण जगगुरु ज गाणंदो ॥ जगनाहो जगबंधू, जयश् जगप्पिया महो जयवं ॥१॥ जयश् सुत्राणंप्पनवो, तिव्य राणं अपठिमो जय ॥ जयश् गुरुलोगाणं, जयश् महप्पा महावीरो ॥२॥ जदं सबजगुजो, यगस्स जदं जिणस्स वीरस्स ॥ जदं सुरासुरनमं, सियस्स नदं धूयरयस्स ॥३॥ गुणनवण गहण सुयरयण, जरिय दंसण विसुङ रबागा ॥ संघ नयर नइंते, अखंग चरित्तपागारा ॥४॥ संजमतव तुंबारग स्स, नमो सम्मत्त पारियबस्स ॥ अप्पडिचक्क सं जर्ज, होउ सया संघचक्कस्स ॥ ५ ॥ जदं सीलप डागुसियस्स, तव नियमतुरय जुत्तस्स ॥ संघरह स्स जगवर्ज, सिसाय सुनंदिघोसस्स ॥ ६॥ क म्मरयजलोह विणिग्गयस्स, सुयरयण दीद नाल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) स्स ॥ पंच महवय थिरक, लियस्स गुण केसराल स्स ॥ ७ ॥ सावग जण महुअरि परिवुडूस्स, जि सुर तेयबुद्धस्स ॥ संघपतमस्स जहं, समग ण सहस्स पत्तस्स ॥ ८ ॥ तव संजम मिय लंबण, किरि राहु मुह शुद्ध रिस निच्चं ॥ जय संघ चंद निम्मल, सम्मत्त विसुद्ध जुहागा ॥ ए ॥ परतिि यगह पह ना, सगस्स तव तेा दित्त लेसस्स ॥ नाणुजोयस्स जए, जहं दमसंघसूरस्स ॥ १० ॥ नहं धिश्वेला परिगयस्स, सझाय जोग मग रस्स ॥ अरकोहस्स जगवर्ज, संघसमुदस्स रुं दस्स ॥ ११ ॥ सम्म दंसण वर वयर, दढ रूढ गाढावगाढपीढस्स ॥ धम्म वर रयण मंमिश्र, चा मीयर मेहलागस्स ॥ १२ ॥ नियमूसिय कणय सि लालु ल जलंत चित्त कूडस्स ॥ नंदणवण म पहर, सुरनि, सील गंधु मायस्स ॥ १३ ॥ जीवदया सुंदर कंदर, दरिय मुणिवर मद इस्स ॥ देउ सय धाउ पगलंत, रयण दित्तोसहि गुहस्स ॥१४॥ संवर वर जल पगलिय, उनर पवराय माणदार स्स ॥ सावग जण पजर रवंत, मोर नच्चंत कुहर स्स ॥ १५ ॥ वियणय पवर मुणिवर, फुरंत वि For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) अजालंत सिहरस्स ॥ विविद गुण कप्परुकग, फ लजर कुसुमाउल वणस्स ॥ १६ ॥ नाणवर रयण दिप्पंत कंत, वेरुलिय विमल चूलस्स ॥ वंदामि विणय पण, संघ महामंदरगिरिस्स ॥ १७ ॥ गुण रयणुजाल कडयं, सील सुगंधि तव मंमिउद्देसं ॥ सुय बारसंग सिहरं, संघ महामंदरं वंदे ॥१॥ नयर रह चक्क पउमे, चंदे सूरे समुह मेरुमि ॥ जो उवमिजार सययं, तं संघगुणायरं वंदे ॥१ए ॥ वंदे उसनं अजियं, संजवमनिनंदण सुमर प उमप्पह सुपासं ॥ ससिपुप्फदंतं सीयल, सिसंसं वासुपुजं च ॥ २० ॥ विमल मणंत य धम्म, सं तिं कुंथु अरं च मद्धिं च ॥ मुणिसुव्वय नमि नेमिं, पासं तह वकमाणं च ॥१॥ पढमिब इंदनूई, बीए पुण होश अग्गिनूशत्ति ॥ तश्ए उ वाउनू, त वियत्ते सुहम्मे य ॥ २२ ॥ मंमिय मोरियपुत्ते, अपिए चेव अयल लायाय ॥ मेयय पहा से, गणहरा हुँति वीरस्स ॥ २३ ॥ निवुक्ष पद सासणयं, जयश् सया सब जाव देसणयं ॥ कुसुम य मय पासणयं, जिणिंदवर वीर सासणयं ॥२४॥ इति नियुक्तिखाध्यायः सपूर्णः ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) ॥ अथ द्वितीय ससाय प्रारंजः ॥ ॥ सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जंबूनामं च कासवं ॥ पनवं कच्चायणं वंदे, वडं सिधेनवं तहा ॥१॥ जसनदं तुंगियं वंदे, संजवं चेव माढरं ॥ नदबा हुंच पान्नं, थूलनदं च गोयमं ॥२॥ एलावञ्च सगोत्तं, वंदामि महागिरि सुहहिं च ॥ तत्तो को सिय गोतं, बहुलस्स सिरीवयं वंदे ॥३॥ हारिय गुत्तं साइ च, वंदीमो हारियं च सामऊं ॥ वं दे कोसिय गोतं, संमिखं अजाजीयधरं ॥४॥ ति समुह खाय कित्तिं, दीव समुद्देसु गहिय पे यालं ॥ वंदे असमुदं, अकुनिय समुदगंजीरं ॥५ जणगं करगं तरगं, पनावगं णाण दंसण गु णाणं ॥ वंदामि असमंगु, सुश्र सागरपारगं धी रं ॥६॥ वंदामि अधम्मं, वंदे तत्तो य लहगु त्तं च ॥ तत्तोय अशवरं, तव नियम गुणेहिं वश्र समं ॥ ॥ वंदामि अशररिकय, खमणे रस्किय चरित्त सवस्से ॥ रयण करंग चूर्ज, अणुउँगो ररिक जेहिं ॥ ७॥ नाणंमि दंसणंमि अ, तव वि णए निच्च काल मुद्युत्तं ॥ अजाणंदि लखमणं, सिरसा वंदे पसन्नमणं ॥ ए ॥ वळून वायग वंसो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) जसवंसो अधनाग हबीणं ॥ वागरण करण नं गिध, कम्मपयडीप्पहाणाणं ॥ १० ॥ जचं जण धाउ सम, पहाण मदिय कुवलय निहाणं ॥ वक्र उ वायग वंसो, रेवश्नकत्त नामाणं ॥ ११ ॥ अयलपुरा णिकंते, कालियसुय अणुगिए धीरे ॥ बंज द्दीवगसीहे, वायग पयमुत्तमं पत्ते ॥ १२ ॥ जेसिं श्मो अणुउँगो, पयरर अजावि अलरहं मि ॥ बहुनयर निग्गय जसे, तं वंदे खंदिलायरि ए॥ १३॥ तत्तो हिमवंत मह, त विकमे धी पर कम मणंते ॥ सद्यायमणंत धरे, हिमबंते वंदिमो सिरसा ॥१४॥ कालिय सुय अणुयोग,स्स धारए धारए अपुवाणं ॥ हिमवंत खमासमणे, वंदे ना गझुणायरिए ॥ १५ ॥ मिउ मदव संपन्ने, अणु पुर्वि वायगत्तणं पत्ते ॥ उह सुय समायारे, नाग अणवायए वंदे ॥ १६ ॥ गोविंदाणं पि नमो, श्र गुडगो विउल धारिणिंदाणं ॥ निच्चं खंति दयाणं, प रूवणे मुल्हनिंदाणं ॥ १७ ॥ तत्तोय नूय दिन्नं, निचं तव संजमे श्र निविमं ॥ पंमिश्रजण साम, वंदामिय संयम वीहिन्नू ॥ १७ ॥ वर कणग तवि य चंपग, विमल वर कमलगत सिरिवले ॥ जवि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) जणहियय दश्ए, दयागुण विसारए धीरे ॥ १५ ॥ अमृतरह प्पहाणे, बहुविह सिसाय सुमुणियप्प हाणे ॥ अणुगिय वर वसहे, नाश्लकुल वंस नंदि करे ॥२॥ नूय हिय अप्पगले, वंदे हं नूय दिन्नमाय रिए ॥ नवजय वुडेय करे, सीसे नागडण रिसीणं ॥१॥सुमुणिय निच्चा निच्चं, सुमुणिय सुत्तब धा रए निचं ॥ वंदे हं लोहिच्चं, सप्नावुनावणा तचं ॥ २२॥ अब महब खाणिं, सुसमण वरकाण कहण निवाणि ॥ पयश्य महुरवाणिं, पयलं पणमामि दू सगणिं ॥ २३॥ तव नियम सच्च संयम, विणय जाव खंति मद्दव रयाणं ॥ सीयल गुण गहियाणं, अणुउंगजुगप्पहाणाणं ॥२४॥ सुकुमाल कोमलतले, तेसिं पणमामि लरकण पसले ॥ पाए पावयणीणं, पडिबगसएहिं पणिवश्ए ॥२५॥ जे असे जग वते, कालियसुय आणुठगिए धीरे ॥ ते पणमिज ण सिरसा, नाणस्स परूवणं वुद्धं ॥ २६ ॥ थेराव लीया सम्मत्ता ॥ श्रानिणि बोहियनाणं, सुयना णं चेव हिनाणं च ॥ तह मणपङावनाणं, केवल नाणं च पंचमयं ॥२॥ इति वृधखाध्यायःसंपूर्णः ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) एम सजाय बे कही रह्या पड़ी पांचमा श्रा वश्यक नणी दैवसिक प्रायश्चित्त विशोधनार्थं क रेमि काउस्सग्गं. एम कही अन्नब॥ कहीने चा र लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. ते करी नमो अरि हंताणं ए एक पद कही, काउस्सग्ग पारीने एक लोगस्स प्रगट कही पड़ी श्छाकारेण संदिसह न गवन् ! अनिनव काउस्सग्ग गलं. एम कही छ श्रनिनव असेस कम्मरकय, पुरकरकय निमित्तंक रेमि काउस्सग्गं अन्न ॥ कही पांच लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. पठी नमो अरिहंताणं ए एक पद कही, काउस्सग्ग पारी प्रगट लोगस्स कही, पली श्वाकारेण संदिसह जगवन् ! अजितशांति स्तवन कहुं. एम कही पली बृहन्नमस्कारादिक जू दां जूदां नव स्मरण कहेवां, ते लखिये वैयें. ॥ तत्र प्रथम बृहन्नमस्कार प्रारंजः॥ ॥अनुष्टुब् वृत्तम् ॥ ॥ परमेष्ठिनमस्कारं,सारं नवपदात्मकम् ॥ श्रात्म रक्षाकरं वज्र, पंजरानं स्मराम्यहम् ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् ॥ ॐ नमो सिझाणं, मुखे मुखपटं वरम् ॥२॥ ॐ नमो श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) यरियाणं, अंगरदातिशायिनी ॥ ॐ नमो उवद्या याणं, आयुधं हस्तयोईढम् ॥ ३॥ ॐ नमो लोए सवसाहूणं, मोचके पादयोः शुन्ने ॥ एसो पंच न मुक्कारो, शिलावनमयीतले ॥४॥ सवपावप्पणा सणो, वप्रोवनमयोबहिः॥ मंगलाणं च सवेसिं, खादिरांगार खातिका ॥ ५॥ स्वाहांतं च पदं ज्ञेयं, पढम होइ मंगलम् ॥ वनोपरि वज्रमयं,पिधानं दे हरदणे ॥६॥ महाप्रनावा रदेयं, तुस्रोपवना शिनी ॥ परमेष्ठिपदोभूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रहां, परमष्ठिपदैः सदा ॥ त स्य न स्यानयं व्याधि, राधिश्चापि कदाचन ॥७॥ इति बृहन्नमस्कारः प्रथमस्मरणम् ॥ १॥ ॥ अथ अजित शांतिस्तव द्वितीय प्रारंजः ॥ ॥ अजिथं जिथ सबनवं, संतिं च पसंत सब गयपावं ॥ जय गुरुसंति गुणकरे, दोवि जिणवरे पणिवयामि ॥ गाहा ॥१॥ ववगय मंगुलजावे, तेहं विजल तव निम्मलसहावे ॥ निरुवम महप्प जावे, थोसामि सुदिछ सतावे ॥ गाहा ॥ ॥२॥ सबक प्पसंतीणं, सबपाव प्पसंतिणं ॥ सया अ जिय संतीणं, नमो अजिय संतिणं ॥ सिलोगो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) ॥३॥ अजियजिण सुहपवत्तणं, तव पुरिसुत्तम नाम कित्तणं ॥ तह य धिश्मश्प्पवत्तणं, तवय जि णुत्तम संति कित्तणं ॥ मागहिया ॥४॥ किरिया विहि संचित्र, कम्म किलेस विमुकयरं ॥ अजि यं निचियं च, गुणे हिं महामुणि सिफिगयं ॥ श्र जिअस्सय संति, महा मुणिणोविश्र संतिकरं ॥ सय यं मम निवुश् कारणयं च नमंसणयं ॥ आलिंग णयं ॥ ५॥ पुरिसा जश् पुरक वारणं, जश्व वि मग्गह सुककारणं ॥ अजिअं संतिं च नाव, अजयकरे सरणं पवाद ॥ मागहिया ॥६॥ अर र तिमिर विरहिय मुवरय जरमरणं, सु र असुर गरुल जयगवर, पयय पणिवश्यं ॥ अ जिअ महम विय सुनयनयनिजणमजयकरं ॥ सर ण मुवसरिश्र, जुवि दिविज महियं सयय मुव णमे ॥ संगययं ॥ ७॥ तं च जिणुत्तम मुत्तम नित्त म सत्तधरं, अजव मद्दव खंति विमुत्ति समाहि निहिं ॥ संतिकरं पणमामि दमुत्तम तिबयरं, संति मुणी मम संति समाहिवरं दिस ॥सोवाणयं॥ G॥ सावनि पुवपबिवं च, वर हदि मबय पसबवि बिन्न संथिकं ॥ थिरसरिछ वठं मयगल लीलाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) माण वर गंधहानि पहाण पनि ॥ संथवारि हबिहबबाहुं धंतकणगरुअगनिरुवहय पिंजरं, पर्व रखकणोवचियसोम चारु रूवं ॥ सुश्सुहमणानि राम परम रमणिऊ वर देवउंहि निनाय महुर यरसुहगिरं ॥ वेळ ॥ ए ॥ अजिथं जियारि गणं, जिथ सब जयं जवोहरिलं ॥ पणमामि अहं पयां, पावं पसमेत मे जयवं ॥ रासाबुझ ॥ यु ग्मं ॥ १० ॥ कुरु जणवय हबिणाजर, नरीसरो पढ म त महाचकवहि जोए ॥ महप्पनावो जो बा वत्तरि पुरवर सहस्स वरनगर निगमजणवयवश्, बत्तीसा रायवरसहसाणुायमग्गो ॥ चउदस वरर यण नव महानिहि चउसहि सहस्स पवरजुवईण सुंदरवई, चुलसी हय गय रह सय सहस्ससामी, बन्न वश् गाम कोडीसामी श्रासिज्जो नारहम्मि नय वं ॥ वेडल ॥ ११॥ तं संतिं संतिकरं, संतिमं स वजयासंतिं थुणामि जिणं, संति वेहेत्रं मे ॥ज यवं ॥ रासानंदियं ॥ युग्मं ॥ १५ ॥ श्काग वि देह नरीसर, नरवसहा मुणि वसहा ॥ नवसारय ससि सकलाणण, विगयतमा विहुयरया ॥ अजिउ त्तम तेश्र गुणेहिं महामुणि अमिश्र बला विउल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) कुला ॥ पणमामि ते जव नयमूरण, जगसरणा मम सरणं ॥ चित्तलेहा ॥ १३॥ देवदाणविंदचंद सूर वंद इह तुझ जिउ परम, लहरूव धंत रूप्प पट्ट सेय सुझनिक धवल, दंतपंति संति सत्ति कित्ति मुत्ति जुत्ति गुत्ति पवर ॥ दित्ततेथ वंद धेश्र सब लोथ जाविध प्पनावणेश पश्स मे समाहिं ॥ नाराय: ॥ १४ ॥ विमल ससिकलाक्षेत्र सोमं, वितिमिर सूर करारेथ तेयं ॥ तिअसवर गणार रेथ रूवं, धरणिधर प्पवरारेथ सारं ॥ कुसुमलया ॥१५॥ सत्ते असया अजिअंसारीरे श्र बले अजि अंतवसंजमे अ अजिरं, एस अहं थुणामि जिणं अजिअं ॥ जुरंगपरिरिंगिरं ॥१६॥ सोम्मगुणेहिं पावश् न तं नव सरय ससी ॥ तेयगुणेहिं पावर न तं नवसरयरवी ॥ रूवगुणेहिं पावर न तं तिथस गणव ॥ सारगुणेहिं पावन तं धरणीधर वई ॥ खिजिअयं ॥ १७ ॥ तिबवरपवत्तयं तम रय रहि यं धीर जण थुअच्चियं चुकलिकबुसं ॥ संति सु ह पवत्तयं तिगरणपयां, संतिमहं महामुणिं सर णमुवणमे ॥ लविश्रयं ॥ १७ ॥ विण णयसिरिरश अंजलि रिसिगण संथुधे थिमिश्र ॥ विबुहाहिव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) धणवर नरवर थुय महिअच्चिअं बहुसो ॥ अरु ग्गय सरय दिवायर समहिथ सप्पन्नं तवसा ॥ गयणं गण वियरण समुश्य चारण वंदिरं सिर सा ॥ किसलयमाला ॥ १७ ॥ असुर गरुल परिवंदि अं, किन्नरोरग णमंसियं ॥ देवकोडी सय संथुरं, समणसंघ परिवंदिरं ॥ सुमुहं ॥२॥ अनयं अणहं अरयं अरुधे,अजिअं अजिअं पय पणमे ॥ विजा विल सि ॥१॥ आगया वर विमाण, दिव कण ग रह तुरय पहकर सएहिं हुलियं ॥ ससंनमो अरण, स्कुनिय बुलिय चलकुंमलं गयतिरीडसो हंत मनलिमाला ॥ वे ॥॥ जं सुरसंघा सा सुरसंघा, वेर विउत्ता नत्ति सुजुत्ता ॥ आयर नूसिथ संजम पिंमिश्र, सुछ सुविम्हि सब बलो घा ॥ उत्तम कंचण रयण परूविश्र, नासुर नूसण जासुरिभंगा ॥ गायसमोणय नत्ति वसागय, पं जलि पेसिथ सीस पणामा ॥ रयणमाला ॥२३॥ वंदिऊण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेवय पुणो पया हिणं ॥ पण मिऊण य जिणं सुरासुरा, पमु श्या सजवणारं तो गया ॥ खित्तयं ॥ २४ ॥ तं महामुणि महंपि पंजली, राग दोस जय मोह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) वजिथं ॥ देव दाणव नरिंद वंदियं, संतिमुत्तम महातवं नमे ॥ खित्तयं ॥ २५॥ अंबरंतर विश्रा रणियाहिं, ललिथ हंस वहु गामिणियाहिं ॥ पी ण सोणिथण सालिणिया हिं, सकल कमलदल लो अणियाहिं ॥ दीवयं ॥ चतुर्तिः कलापकं ॥ २६ ॥ पीण निरंतर थणजर विणमिश्र गायलयाहिं ॥ म णि कंचण पसिढिलमेहल सोहिअ सोणितडाहिं ॥ वर खिंखिणी नेउर सतिलय वलय विजूस पिया हिं ॥ रश्कर चउर मनोहर सुंदर दंसणियाहिं ॥ चित्तकरा ॥ २७ ॥ देवसुंदरीहिं पायवंदियाहिं वंदिया य जस्स ते सुविकमा कमा अप्पणो नि मालएहिं मंमणोण पगारएहिं केहिं केहिं वि अ वंग तिलयपत्तलेहनामएहिं चिल्सएहिं संगयं ग याहिं जत्तिसंनिविठ वंदणा गयाहिं, हुंति ते वं दिया पुणोपुणो ॥ नाराय ॥ २७ ॥ तमहं जिण चंदं अजिथं जिअमोहं॥धुय सब किलेसं, पय पण मामि ॥ नंदिअयं ॥ए॥ थुयवंदिअस्सा रिसिगण देवगणेहिं, तो देववहूहिं पयर्ड पण मिअस्सा ॥ जस्स जगुत्तम सासणयस्सा, नत्तिवसागय पिमित्र याहिं देववरवरसा बहुश्राहिं सुरवर रश्गुण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) पंमियाहिं ॥ जासुरयं ॥ ३० ॥ वंससद्द तंति ताल मेलिए, तिजकरा जिराम सद मीसए कए ा सुइसमाणणे अ सुद्ध सतगीय पाय जाल घंटियाहिं वलय मेहलाकलाव नेउराजिराम सद्द मीसए का देवनहियाहिं हाव नाव विनम प्पगारएहिं ॥ नचिऊण अंगहारएहिं वंदियाय ज स्स ते सुविकमा कमा ॥ तयं तिलोय सब सत्त संतिकारयं ॥ पसंत सब पावदोसमेसहं नमामि संति मुत्तमं जिणं ॥ नाराय ॥ ३१ ॥ बत्त चामर पड़ा ग जूव जव मंमिया ऊयवर मगर तुरय, सिरि व सुलंबणा || दीव समुद्द मंदर दिसागय सो हिया ॥ सविसह सीह रह चक्कवरं किश्रा ॥ पाठांतर ॥ सिरिव सुलंबणा ॥ लवि यं ॥ ३२ ॥ सहा वला समप्पा, दो सहा गुणेहिं जिठा ॥ पसा यसिद्धा तवेण पुछा, सिरीहिं इठा रिसीहिं जुठा ॥ वा वासिया ॥ ३३ ॥ ते तवेण धुआ सब पावया, सबलो हिश्रमूल पावया ॥ संथुआ जिसंति पायया, हुंतु मे सिवसुहाण दायया ॥ अपरांतिका ॥ ३४ ॥ एवं तव बल विजलं, थुखं मए जिसंति जिल जुलं ॥ ववगय कम्मरय मलं, गई गयं सासयां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) विजलं ॥ गाहा ॥ ३५ ॥ तं बहुगुणप्पसायं, मुक सुदेण परमेण अविसायं ॥ नासेउ मे विसायं, कु ण अपरिसावि श्र पसायं ॥ गाहा ॥३६ ॥ तं मोएउ अ नंदि, पावेज अ नंदिसेणमनिनंदि ॥ परिसा वि सुहनंदि, मम य दिसन संजमे नंदि॥ गाहा ॥३७॥ परिका चाउम्मासे, संवछरीए श्र वस्स नणिअहो ॥ सोयबो सोहिं, उवसग्ग निवा रणो एसो ॥ गाहा ॥ ३० ॥ जो पढ जो अनि सुण, उन कालंपि अजिअसंति थयं ॥ न हु हुँति तस्स रोगा, पुबुप्पन्ना विनासंति ॥ गाहा ॥ ३ए ॥ ववगय कलि कबुसाणं, ववगय निकंतराग दोसाणं ॥ ववगय पुणनवाणं, नमोनु देवादिदेवा एं ॥ ४० ॥ सवं पसमझ पावं, पुन्नं वर नमसमा एस्स ॥ संपुन्न चंद वयण, स्स कित्तणं अजिअसं तिस्स ॥४१॥ जश् वह परमपयं, अहवा कित्ति सुविबडं जुवणे ॥ ता तिअलोगुकरणे, जिणवयणे थायरं कुणह ॥४२॥ ॥श्लोक ॥ ॥ सर्व मंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणम् ॥प्र धानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ५३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) उपसर्गाः दयं यांति, विद्यते विघ्नवलयः॥ मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ ४४ ॥ श्रार्या वृत्तं ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता नवंतु जूतगणाः ॥ दोषाःप्रयांतु नाशं, सर्वत्र सुखी नवतु लोकः ॥ ४५ ॥ स्मरणं यस्य सत्त्वानां, तीव्रतापोपशां तये ॥ उत्कृष्टगुणरूपाय, तस्मै श्रीशांतये नमः ॥४६॥ इतिश्रीनंदिषेणसूरि विरचित अजितशांति स्तवनं द्वितीयस्मरणं संपूर्णम् ॥२॥ ॥ अथ वीरस्तवतृतीयस्मरणप्रारंजः ॥ ॥जयश् नव नलिण कुवलय, विअसिथ सय वत्त पत्तल दलबो ॥ वीरो गयंद मयगल, सुललि अ गइ विकमो नयवं ॥१॥ अज्जवि वहश् सु तिबं, अखंमिश्र जस्स नरहवासंमि ॥ सो वक माण सामी, तिअलुक दिवायरो जय ॥२॥ गा हाजुअलेण जिणं, मय मोह विवजिथं जिथ क सायं ॥ थोसामि ति संजागं तं निस्संगं महावी रं ॥३॥ सुकुमाल धीर सोमा, रत्त किसण पंकु रा सिरि निकेया ॥ सीधे कुस गहनीरू, जल थल नह मंगणा तिन्नी ॥४॥ न चयंति वीरलीलां, हाचं जे सुरहिमत्त पडिपुन्ना ॥ पंकय गयंद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (JU) चंदा, लोण चक्क म्मिय मुहाणं ॥ ५ ॥ एवं वी रजि शिंदो, र गण संघ संधु जयवं ॥ पालि तय मय महिd, दिसउ खयं सब दुरियां ॥६॥ श्रीपादलिप्तसूरिविरचितवीरस्तवनं तृतीय इति स्मरणं संपूर्णम् ॥ ३ ॥ ॥ अथ उपसर्ग हरस्तोत्र चतुर्थस्मरण प्रारंभः ॥ ॥ उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म घण मुक्कं ॥ विसदर विस निन्नासं, मंगल कल्ला आ वासं ॥ १ ॥ विसहर फुलिंगमंतं, कंठे धारे‍ जो सया मणु ॥ तस्स ग्गढ़ रोग मारी, कुछ ज राजंति उवसामं ॥ २ ॥ चिह्न दूरे मंतो, तु ऊ पणामोवि बहुफलो होइ ॥ नर तिरिएसु वि जीवा, पावंति न डुकदोहग्गं ॥ ३ ॥ तुह स म्मते ल, चिंतामणि कप्पपाय वनहिए ॥ पावंति विग्घेणं, जीवा यरामरं ठाणं ॥ ४ ॥ इा सं थु महायस, जत्तिनर निप्ररेण हिश्रएण ॥ ता दे वदिऊ बोहिं, नवे नवे पास जिचंद ॥ ५ ॥ इतिश्री मद्रबाहुखा मिविरचित उपसर्गहरस्तोत्र च तुर्थस्मरणं संपूर्णम् ॥ ४ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) ॥अथ ॥ ॥ जयहरस्तोत्र पंचम स्मरण प्रारंजः॥ ॥ नमिऊण पणय सुरगण, चूडामणि किरण। रंजिअं मुणिणो ॥ चरणजुश्रलं महालय, पणा सणं संथुवं वुद्धं ॥ १॥ सडिथ कर चरण नह मुह, निबुझ नासा विवन्न लावन्ना ॥ कुछ महारो गानल, फुलिंग निद सवंगा ॥२॥ते तुहचल णाराहण, सलिलंजलिसे वुक्ति उछाहा ॥ वण दव दहा गिरिपा,यव व वत्ता पुणो वि लडिं ॥३॥ ज्वाय कुनिथ जल निहि, उपड कबोल जीसा णारावे ॥ संनंत नय विसंतुल, निजामश्र मुक्का वावारे ॥४॥ अविदलिय जाणवत्ता, खणेण पा वंति इछियं कूलं ॥ पासजिण चलणजुअलं, निच चित्र जे नमंति नरा ॥ ५ ॥ खर पवणुकुश वर्ष दव, जालावलि मिलिय सयल पुम गहणे ॥ महंत मुह मश्र वद, जीसण रव जीसणं मि वणे ॥६॥ जगगुरुणो कमजुअलं, निवाविश्र सयल तिढयणा नोयं ॥ जे संजरंति मणुश्रा, न कुण: जलपोज यं तेसिं ॥ ७॥ विलसंत जोगनीसण, फुरिथारुण नयण तरल जीहालं ॥ उग्ग जुअंगं नव जलय, स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ) छदं जी सणायारं ॥ ८ ॥ मन्नंति कीडसरिसं दूर परिनूढ विसम विसवेगा ॥ तुह नामरकर फुड सि, द्ध मंत गुरुया नरा लोए ॥ ए ॥ अडवीसु जिल तक्कर, पुलिंद सद्दल सद्द जी मासु ॥ जय विदु र वुन्न कायर, उल्लूरिय पहिचासु ॥ १० ॥ अवि बुत्त विवसारा, तुह नाह पणाम मत्तवावरा ॥ ववगय विग्घा सिग्घं, पत्ता हिय इति गणं ॥ ११ ॥ पलिया नल नयणं, दूर विद्यारिय मुद्द महाकायं ॥ नह कुलिस घाय वियलिय गइंद कुं लाजो ॥ १२ ॥ पणय ससंजम पचिव, न द मणि माणिक पडि पडिमस्स ॥ तुह वयण पहरणधरा, सीहं कुद्धंपि न गणंति ॥ १३ ॥ स सिधवल दंत मुसलं, दीहकरुल्लालबुढि उछाहं ॥ महु पिंग नयण जुलं, ससलील नव जलहरा रावं ॥ १४ ॥ जीमं महागइंदं यच्चासन्नंपि ते न वि गति ॥ जे तुम्ह चलण जुलं, मुणिवश तुं गं समझीणा ॥ १५ ॥ समरंमि तिकखग्गा, नि घायपवित्र कबंधे ॥ कुंत विणिजिन्न करि कल, ह मुक्क सिक्कार पउरंमि ॥ १६ ॥ निक्रिय द प्पुद्धररिज, नरिंदनिवहा जडा जसं धवलं ॥ पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८२ ) वंति पावपस मिण, पास जि ॥ रोग जल जल तुह पजावेण ॥ १७ विसहर, चोरारि मयंद गय रण नयाई || पास जिए नाम संकि, त्तणेण पस मंति सवाई ॥ १८ ॥ एवं महाजयहरं, पास जि णिंदस्स संवारं ॥ जविय जणाणंदयरं, कल्लाण परंपर निहाणं ॥ १५ ॥ राय जय जरक रस्कस, कुसुमि डुस्सा रिरक पीडासु ॥ संासु दोसु पंथे, जब सग्गे तहय रयणी ॥२०॥ जो पढइ जो ा निसुण, ताणं कश्णो य माणतुंगस्स ॥ पासो पावं पसमेट, सयल वा चि चलणो ॥ २१ ॥ उवसग्गते क मठा, सुरम्मि काणा जो न संचलिd | सुर नर किन्नर जुवई, हिं संधु जयन पासजिणो ॥ २२ ॥ एयस्स मनयारे, अठारस अस्करेहिं जो मंतो ॥ जो जाए सो जाय, पासं परमेसरं पयडं ॥ २३ ॥ तं नमह पासनाहं, धरणिंद नमंसि जय विणा सं ॥ जस्स पजावेण सया, नासंति वदवा सबे ॥ २४ ॥ जं समरंताण मणे, न होइ वाही न तं म दाडुकं ॥ नामपि य मंतसमं श्य नाह थुणामि जत्तीए ॥ २५ ॥ इतिश्री मानतुंगसूरिविरचित जय स्तोत्र नामक पंचमस्मरणं संपूर्णम् ॥ ५ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) ॥ श्रथ जीरापल्लीपार्श्वस्तव नामा षष्ठस्मरण प्रारंजः॥ ॥ ॐ नमो देवदेवाय, नित्यं जगवतेऽर्हते ॥श्री मते पार्श्वनाथाय, सर्वकल्याणकारिणे ॥१॥ही रूपाय धरणींस, पद्मावत्यर्चितांघ्रये ॥ शुशातिश यकोटीनिः, सहिताय महात्मने ॥२॥ अट्टे मद्दे पुरोऽष्ट, विघट्टे वर्णपंक्तिवत् ॥ दृष्टान् प्रेतपिशाचा दीन्, प्रणाशयति तेऽनिधा ॥३॥ स्तंजय स्तंजय खाहा, शतकोटीनमस्कृत ॥अधिमत्कर्मणां दूरा, दा पतंतीविडबनाः ॥ ४ ॥ नानिदेशोनवन्नाले, ब्रह्मरं ध्रप्रतिष्ठिते ॥ ध्यातमष्टदले पझे, तत्त्वमेतत्फलप्रदम् ॥५॥ तत्त्वमत्र चतुर्वणी, चतुर्वर्ण विमिश्रिता ॥ पंचवर्णक्रमध्याता, सर्वकार्यकरी नवेत् ॥ ६॥दि प वाहेति वणः, कृतपंचांगरक्षणः ॥ योनिध्या येदिदं तत्त्वं, वश्यास्तस्याखिल श्रियः ॥ ७॥ पुरुषं बाधते बाढं, तावत्क्वेशपरंपराः॥ यावन्न मंत्रराजोड यं, हृदि जागर्ति मूर्तिमान् ॥ ॥ व्याधि बंधवध व्याला, लांऽनः संजवं जयम्॥ दयं प्रयांति श्रीपार्श्व, नामस्मरणमात्रतः ॥॥ यथा नादमयो योगी, तथा चेत्तन्मयो भवेत् ॥ तदा न पुष्करं किंचि, कथ्यतेऽ नुजवादिदम् ॥ १० ॥ इति श्रीजीरिकापसी, खामी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) पार्श्वजिनः स्तुतः ॥ श्री मेरुतुंगसूरेःस्ता, सर्व सिकिप्रदायकः ॥ ११ ॥ जीरापसीप्रनुः पार्श्व, पा वयोण सेवितः ॥ अर्चितं धरणेंजेण, पद्मावत्या प्रपूजितः ॥ १२ ॥ सर्वमंत्रमयं सर्व, कार्यसिद्धिकरं परम् ॥ ध्यायामि हृदयांऽनोजे, जूतप्रेतप्रणाशकम् ॥१३॥ श्रीमेरुतुंग सूरीजः, श्रीमत्पार्श्वप्रनोः पुरः॥ ध्यानस्थितिं हृदि ध्यायन्, सर्वसि िलन्नेध्रुवम् ॥ १४ ॥ इतिश्रीमेरुतुंगसूरि विरचित जीरापसीपाव स्तवनामक षष्ठस्मरणम् ॥६॥ ___ जं किंचि नाम तिबं, सग्गे पायाल तिरियलो गम्मि ॥जाइं जिणबिंबाइं, ताशं सबा वंदामि ॥१॥ ॥ अथ शक्रस्तव नामा सप्तम स्मरण प्रारंजः॥ ॥ नमुद्रणं अरिहंताणं जगवंताणं ॥१॥ आश गराणं तियराणं सयंसंबुझाणं ॥॥ पुरिसुत्तमा णं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुमरीयाणं, पुरिसवरगं ध हबीणं ॥३॥ लोगुत्तमाएं लोगनाहाणं लोग हियाणं लोगपश्वाणं लोगपङोयगराणं ॥४॥ अजयदयाणं चस्कुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं बोहिदयाणं ॥५॥ धम्मदयाणं धम्मदेसियाणं धम्मनायगाणं ॥ धम्म धम्मवरचाजरंत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) चक्कवट्टीणं ॥ ६॥ अप्पडिहय वरनाण दंसणधराणं विअबउमाणं ॥ ॥ जिणाणं जावयाणं तिन्नाणं तारयाण बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं ॥७॥ सवन्नृणं सव्वदरिसिणं सिवमयल मरुथ म पंत मलय मवाबाह मपुणरावित्ति, सिडिगश्नाम घेयं गणं संपत्ताणं ॥ ए॥ णमो जिणाणं ॥ इति शक्रस्तवन नामा सप्तमस्मरणम् ॥७॥ ॥ अथ लघुअजितशांतिस्तवन प्रारंजः॥ ॥ गपशवयार सोहम्म सुर सामी, जणणि जे य संथुण नत्तिनर नावि ॥ ति जिण इकागकु रु वंस नूसण धरा, अजिअ संती नंदंतु मंगल करा ॥१॥ जम्मकालंमि जे असुर सुरजासुरे, न्ह विय बत्तीस इंदेहिं सुर गिरिसिरे ॥ खयर नर अमर आणंद वझारया, जयउ जगि अजिथ संतीय नहारया ॥२॥ खविय रिउवग्गवर रज सुह माणिजं, पवरदाणेण जगसयल सम्माणिजं ॥ जेहिं मुकंकरी दिक कंखी रया, ताहि थुणि अ जिअ संतीय पय पंकया ॥३॥ घोर तवचरण वसग्ग अहियासिजं, उजाय घार कम्माई निन्ना सिजं ॥ जेहिं नाणं समुप्पा डिझं विमलयं, उश्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) सोलसम जिण तिजणमह सुविणयं ॥४॥ पवर देसणय तिहुअण वि पडिबोहियं, नवोवग्गाहि क म्माश् मसमूरिझं ॥ पवर सुद परम निवाण पु रिजे गया, हठ ते नमह जिण अजिथ संती सया ॥५॥ कुवित्र रिउवग्ग हरि सरह गय जोश्णी, नूय वेयाल अहि रकसी मायणी ॥ तासु उवस ग्ग कीरे नासेसयं, हियश् जो एहु समरेश जिण जुअलयं ॥६॥ ज न अहिलसह दालिद्द दोह ग्गयं, तुम्ह अहिलसह जश् लछि सोहग्गयं ॥ न वह जश् नीष जश् सिवसुहा सत्तया, हवह एय स्स जिणगश् तो नत्तया ॥ ७॥ एय संवरिय पकिय चउम्मासिए, अजिथ संतिबयं जण जो निसुण ॥ कहर कविवीर गणि नविथ जण श्र ग्गए, असुह तसु जाश् सुइ सयल संपजाए॥॥इति श्रीवीरगणिकृत लघु अजितशांतिस्तवनं सं० ॥७॥ ॥अथ बृहद जितशांतिस्तवन प्रारंजः॥ ॥ सकल सुखनिवहदानाय सुरपादपं, पादपंकज नतानेकनाकाधिपम् ॥ श्रचल शिवनिलयमप्रलयगुण शोनितं, नौमि जिनमजितमहमजितमुदितोदितम् ॥१॥ शांतिमुपशांतनवजूरिजयपरिजवं, जुवनव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) नसुघनघनवारिवरवैनवम् ॥ परमशममिउसममसम महिमोदधे, नंतुमीहामनंतामहं संदधे ॥२॥ पु एयरथसुपथनयनाय वृषनदमौ, विपुलसंसारसरि दोघपुलिनोपमौ ॥ सिफिसिमंतिनीश्रतिवतंसायितौ. संपदे जिनपती अजितशांतीयुतौ ॥३॥ यःसमू हो मुदामजनि जनकांबयो, स्तारमवतारमवगम्य सम्यग्ययोः ॥ गजवृषप्रमुखसुखप्नसंदर्शनात्, तम समवगंतुमन्ये न मन्ये जनाः ॥४॥ जननसमये ययोरसुरसुर नायका, नवनवानेकनेपथ्यपरिधाय काः ॥ विदधुरुत्सवमतुलं गिरौ मंदरे, वासये तो जिनौ निजमनोमंदिरे ॥ ५॥ कोशलापुरवरे पूत विजयोदरं, नूप जितशत्रुकुलकमलवन दिनकरम्॥कि गुणनवशतकर प्रमितवरलूघनं, नौमि कनकानमि नचिन्हम जितं जिनम् ॥ ६॥ गजपुरे विश्वसेनेश कुलभूषणं, रुचिरमचिरांगरुहमनघमृगलक्षणम् ॥ षष्ठयधिकहस्तशतवपुषमुत्तमसुखं, शांतिनाथं च गां गेयगेयत्विषम् ॥ ७॥ जलधिरशनावनीविततवरशा सनं, चिंतितोपस्थितद्विरदतुरगासनम् ॥ ललितलख नाजनाबद्धबहुबर्करं, यो चिरं राज्यमवतःस्म विस्म यकरम् ॥७॥ तदनुदनुजाहितप्रथितमहिमोदयं, व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) र्षदानेन परितुष्टजनसमुदयम् ॥ जगृहतुः स्वहितका मावकामव्रतं, तौ नमस्कृत्य तोषं नजेऽनवरतम् ॥ए॥ तमसि जीने ययोरखिलदोषोदिते, निपुणनीरजव ने निविडमामोदिते ॥ उदितवति केवलज्ञानना नौ पुतं, दिवसपतिनापि खद्योतपोता यितम् ॥१०॥ यत्पदांनोजनजनाय जातत्वरैः, संघसंघघनघृष्टनू षणनरैः॥ व्यूढमपि रुचिरचिररूढरसनिर्नरैः, पा णितलमानमनवन्नजोनिहरैः ॥ ११॥ नरितनव कुरितदवदहनपरितापिताः, सदसि यहाचमति पुण्यबुझ्यापिताः ॥ सत्यसंधाः सुधासारसेकं नरे, शा मरेशा मुदा सर्वदा मेनिरे ॥ १२॥ श्रातपत्रत्रयं चारवश्वामराः, कोटिसंख्या नजंतेऽजितश्चामराः॥श्र नुपहतउंछनिध्वनितमच्युतपदे, यदतिशयरा जिरे षा न केषां मुदे ॥ १३ ॥ बोधयित्वाथ तत्त्वानि धीरंजनं, योगतो यौ गतौ धाम नीरंजनम् ॥ तमह मजितं च शांतिं च चंचद्युति, सुचिरमर्चामि पं घेषुविजयोद्यतम् ॥ १४ ॥ हिपरिपुव्यालवेतालनरो गानला, नीरचौरादयोऽन्येपि सकलाः खलाः॥ तं न झुंपंति कंचुकिनश्व वंजुलं, नमति योविमदमिदमे व जिनयामलम् ॥ १५ ॥ पादिके किल चतुर्मासि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (नए) के वार्षिके, पर्वणि प्रकृतवरपुण्यनरनायके ॥ योऽमु मतिसोममतिरजितशांतिस्तवं, पति निशृणोति बजते सुखं स ध्रुवम् ॥ १६ ॥ गुणराजिविराजित म रिपुपराजितमजितशांतिजिनयुगलमिदम् ॥ मति शुज्रसन्नाजन मतिशयजाजन, मुपजनयतु संघस्य मुदम् ॥ १७ ॥ इतिश्रीजयशेखरसूरिकृतबृहद जि तशांतिस्तवः संपूर्णः॥ ए॥ ॥ पठी श्लाकारेण संदिसह जगवन् ! बहा श्रा वश्यक जणी पच्चरकाण, वांदणां करुं जी. एम क ही, बे वार वांदणां श्रापी पञ्चकाण लेवु. पनी श्छामि खमासमण पूर्वक श्वाकारेण संदिसह न गवन्! पाखी खामणां, निमित्तें वांदणां करूं जी. एम कही बे वार वांदणां देवां. तिहां एटलुं वि शेष जे, देवसि वश्कतोने स्थानकें परिकर्ड वश्कतो कहे. एम बीजे पण जे स्थानकें देवसि आवे, ते स्थानकें परिकर्ड वश्कतो कहे. एम बे वार वांदणां देश्ने पली गुरुने खमावीयें, मिठामि उक्कडं दीजें. पड़ी सामायिक पारवा त्रण नवकार गणीये. पडी समायिक पारवा ॥जं जं मणेण बरूं॥ इत्यादि गाथा कही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) फरी त्रण नवकार गणी पूर्वोक्त रीतें पाक्षिक प्रति क्रमण समाप्त करीयें. ॥अथ चातुर्मासिक प्रतिक्रमणविधिमाह ॥ ॥ पाक्षिक प्रतिक्रमणनी पेरें चातुर्मासिकप्रतिक्रम णनो विधि पण जाणवो, परंतु एटबुं विशेष जे पादिकने ठेकाणे चाउम्मासियं कहेवं अने बार लोगस्सने स्थानकें, वीश लोगस्सनो काउस्सग करवो. बीजो सर्व पाक्षिकनी पेरें विधि जाणी लेवो! ॥अथ सांवत्सरि प्रतिक्रमण विधिमाह ॥ ॥ सांवत्सरिकनो पण पाक्षिकनी पेरें विधि जा णवो. परंतु एटलुं विशेष जे पाखीने स्थानके संवरियं कहे, अने बार लोगस्सने स्थानके चालीश लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. बीजुं सर्व पाखीनी पेरें जाणवू ॥ इतिश्री अचलगढीया वकनां पांच पडिक्कमणानो विधि समाप्त थयो । ॥अथ पच्चरकाण विधि प्रारंजः ॥ ॐ नमोबुद्धीपे छीपे, ये तीर्थंकराश्च धातकीख मे ॥ ये चापि पुष्कराः, तान् सर्वान् प्रांजलिर्वदे| ॥१॥ ख्यातोष्टापदपर्वतो गजपदः, सम्मेतशैला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए१) निधः, श्रीमान् रैवतकः प्रसिझमहिमा, शत्रुज यः पावकः ॥ वैनारोविपुलोऽर्बुदोगिरिवरः, श्री चित्रकूटा निध, स्तत्र श्रीशषनादयो जिनवराः कुंवं तु वोमंगलम् ॥२॥ श्राबूशष्टापदसम्मेतशिखर गिरनार सेत्तुंजो ता रंगो श्रमीजरो नवपद्ध्वो संखेसरो गोडीपार्श्वना थाय नमोनमः श्रमीजरा पार्श्वनाथाय नमोनमः न वखंगपार्श्वनाथाय नमोनमः नवसारीपार्श्वनाथाय नमोनमः जाजापार्श्वनाथाय नमोनमः पदवीपार्श्व नाथाय नमोनमः आंतरिकपार्श्वनाथाय नमोनमः कलिकुंमपार्श्वनाथाय नमोनमः मनमोहनपार्श्वना थाय नमोनमः जगवलनपाश्वेनाथाय नमोनमः गामरी पार्श्वनाथाय नमोनमः जीडनंजनपार्श्वना थाय नमोनमः सहस्सफणापार्श्वनाथाय नमोनमः अलोपीपार्श्वनाथाय नमोनमः कोकापार्श्वनाथाय नमोनमः थंजणापार्श्वनाथाय नमोनमः चिंतामणि पार्श्वनाथाय नमोनमः घृतकबोलपार्श्वनाथाय नमो नमः सकल तीर्थेभ्यो नमोनमः एम कही, पनी जे पञ्चकाण खेद् होय, ते ले. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( एश् ) ॥ अथ दश पच्चरकाण प्रारंभः ॥ ॥ तत्र ॥ ॥ प्रथम नवकारसीनुं पच्चरकाण ॥ ॥ सूरे उग्गए नमुक्कारसहिां पच्चरका मि च विदं पि श्राहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्न क्षणानोगेणं सहसागारेणं वो सिरइ ॥ इति ॥ ॥ द्वितीय पोरिसी साडुपोरिसीनुं पञ्चरकाण ॥ ॥ सूरे जग्गए पोरसियं साडूपोर सियं पञ्चरका मि पिहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्न बानोगेणं सहसागारे पछन्नकालेणं दिसामोहे साहुवयणेणं सवसमा हिवत्तिआगारेण वोसिर‍ । ॥ अथ तृतीय पुरिमनुं पञ्चरका ॥ ॥ सूरे जग्गए पुरिम पच्चरका मि च विपि आहारं असणं पाणं खाश्मं साइमं अन्नणानो गेणं सहसागारेणं पछन्नकालेणं दिसामोहेणं साढु वयणेणं महत्तरागारेणं सबसमा हिव त्तियागारे‍ वो सिरइ ॥ इति ॥ ॥ अथ चतुर्थ एकासनुं पच्चरकाण ॥ ॥ सूरे उग्गए नमुक्कारसहियं पोरसहियं सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए३) डपोरसहियं पुरिमडूं पञ्चकामि चउविपि श्रा हारं असणं पाणं खाश्मं साश्मं अन्नबणानोगेणं सहसागारेणं पछन्नकालेणं दिसामोदेणं साहुवय णेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं ए कासणं पच्चरकाश तिविहंपि थाहारं अन्नवणानो गेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं आजहणप सारेणं गुरुअनुहाणेणं पारिछावणियागारेणं मह तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं पाणस्स लेवेण वा अलेवेण वा अन्डेण वा बहुलेवेण वा ससिण वा असिलेण वा वोसिर ॥ इति ॥ ____॥ अथ पंचम एकलगणानुं पञ्चकाण ॥ ॥ सूरे जग्गए नमुक्कारसहियं पोरसहियं साडू पोरसहियं पुरिमडूं पञ्चकामि. चनविहंपि श्राहा र असणं पाणं खाश्म साश्मं अन्नबणानोगेणं सहसागारेणं पबन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणे णं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं एकल गणं पञ्चकामि तिविहंपि आहारं अन्नकणाजोगे शं सहसागारेणं सागारिश्रागारेणं गुरु अनुहाणेणं पारिहावणियागारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिव त्तियागारेणं पाणस्स लेवेण वा अलेवेण वा अछेण वा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए४) बहुलेवेण वा ससिडेण वा श्रसिबेण वा वोसिर ॥ ॥अथ षष्ठ श्रायं बिलनुं पच्चरकाण ॥ ॥सूरे जग्गए नमुक्कार सहिथं पोरसियं सा ड्रपोरसियं पुरिमर्थ्य पञ्चकामि चनविहंपि श्राहारं असणं पाणं खाश्मं साश्म अन्नद्रणालोगेणं स इसागारेणं पठन्नकालेणं दिसामोदेणं साहुवयणे णं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं श्रा यंबिलं पञ्चरकामि तिविहंपि आहारं अन्नवणानो गेणं सहसागारेणं सेवालेवेणं गिहलसंसहेणं उ स्कित्तविवेगेणं पारिछावणियागारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं पाणस्स लेवेण वा अलेवे ण वा अछेण वा बहुलेवेण वा ससिबेण वा असिमेण वा वोसिर ॥ इति ॥ ॥अथ सप्तम तिविहारर्नु पच्चरकाण ॥ सरे जग्गए अप्रत्त पञ्चरकामि तिविपि श्रा हारं असणं खाश्मं साश्मं अन्नछणालोगेणं सहसा गारेणं पारिछावणियागारेणं महत्तरागारेणं सबसमा हिवत्तियागारेणं पाणहारनमुकारसहियं पोरसियं साडपोरसियं पञ्चकामि चनविहंपि आहारं असणं पाणं खाश्म सामं अन्नबणानोगेणं सहसागा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) रेणं पठन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणण सवसमा हिवत्तियागारेणं पाणस्सलेवेण वा अलेवेण वा अच्छे पवा बहुलेवेण वा ससिबेण वा वोसिर ॥ इति ॥ ॥ अथाष्ठम चनविहार उपवास- पच्चरकाण ॥ ॥ सूरे जग्गए अनत्तकं पञ्चकामि चनविहंपि थाहारं असणं पाणं खाश्मं साश्मं अन्नबणानो गेणं सहसागारेणं पारिछावणियागारेणं महत्तरा गारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिर ॥ ॥अथ नवम निविगश्न पञ्चकाण ॥ ॥ सूरे उग्गए नमुक्कार सहियं पोरसियं साइपोर सियं पुरिमडूं पच्चकामि चनविहंपि श्राहारं अस एं पा णं खाश्मं साश्म अन्नबणानोगेणं सहसा गारेणं पठन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं म हत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं निविगइ ए कासणं पञ्चकामि तिविहंपि श्राहारं अन्नबणाजो गेणं सहसागारेणं सेवालेवेणं गिहन्छसंसहेणं पडु चमरकणं पारिहावाणयागारेणं महत्तरागारेणं स वसमाहिवत्तियागारेणं उरिकत्तविवेगेणं पाणस्स ले वेण वा अलेवेण वा अछेण वा बहुलेवेण वा ससि छेण वा असिणवा वोसिर ॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए६) ॥ अथ गंठसहिय मुसहियर्नु पच्चरकाण ॥ ॥ सूरे जग्गए गंठसहियं मुझसहियं पञ्चकामि चउविहं श्राहारं असणं पाणं खाश्मं सामं अन्नल णाजोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहि वत्तिया गारेणं वोसिर ॥ इति ॥ ॥अथ दशम सायंकालें चनविहारर्नु पञ्चकाण ॥ ॥ दिवसचरिमं पच्चकामि चविहंपि आहारं असणं पाणं खाश्मं साश्मं अन्नबणानोगेणं स हसागारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरश् ॥ इति दश पञ्चरकाण संपूर्ण ॥ ॥अथ ॥ ॥ पोसह उच्चार करवानो विधि प्रारंजः ॥ ॥प्रथम प्रजातनुं सामायिक करी रह्या पली फरी प्रथम त्रण खमासमण आपी श्छकार सुद राश् ॥ कही पनी लाकरेण संदिसह नगवन्! शरियाव हियं पडिक्कमुंजी. एम कही, इरियावहि यंग ॥ कहीने तस्सुत्तरी० ॥ कहेवी, पड़ी एक लो गस्सनो काउस्सग्ग करवो. पनी प्रगट लोगस्स क हेवो. पनी गमणागमण एटले मारगने विषे॥ कहे .पनी श्लाकारेण संदिसह नगवन ! पोसह सामा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) यिक गवा त्रण नवकार गणुं. एम कही त्रण न वकार गणवा. पडी जीवराशि खमावी, अढारपा पस्थानक आलोववां. पठी गुरुस्थापना कहेवी. प बी अव्य, देत्र, काल, नाव धारवा. पडी पोसह उच्चा र करवा एक नवकारनो काउस्सग्ग करवो. प बी श्छाकारेण संदिसह नगवन् ! पोसह उच्चार करावो जी. एम कही गुरु मुखें पोसह उच्चार क रवो. गुरुनो योग न होय तो देवगुरुनी साखें पोताने मुखें पोसह उच्चार करवो, तेनो पाठ ल खीयें बैयें. ॥अथ पोसह उच्चार करवानो ॥ ॥ करेमि नं ते पोसहं सब श्राहारपोसहं स वर्ड सरीरसक्कारपोसहं सवर्ड बंजचेर पोसहं सवर्ड श्रवावारपोसहं सब चउविद पोसहं गएमि जा व दिवसं जाव अहोरत्तं जाव रत्तं पडवासामि मुवि हं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न का रवेमि तस्स नंते पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ इति ॥ ____ए रीतें पोसह उच्चार करवो, पढी सामायिक उ चार करवा एक नवकारनो काउस्सग्ग करवो. पड़ी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) जे सामायिक उच्चार करवो, तेनो पाठ लखी यें बैयें. ॥ अथ सामायिक उच्चार करवानो ॥ ॥ करेमि जं ते सामाश्यं सावऊं जोगं पच्चरका मि जाव पोसहं पकुवासामि डुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स जं ते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वो सिरइ ॥ इति ॥ पठी वांदणां वे वार श्रापीयें. ॥ || पी श्वामि खमासमणपूर्वक इछाकारेण सं सिह जगवन्! देववदवा निमित्त चैत्यवंदन करूंजी. एम कही चैत्यवंदन कहेतुं पढी चार स्तवन क वां पढी उवसग्गहर० ॥ कहीने नमुनुषं० ॥ कहे बुं. पी जे छाईया तिबयरा० ॥ कही ते उपरांत एक काव्य कहेवुं. ए रीतें देव वांदवा पी संवर धारण करी जावं, गणवुं, स्तवन, सकार्ड प्रमुख कदेवां. नवकारवाली गणवी इत्यादिक संव रनां कार्य करवां वली मध्यान्ह समयें प्रथमनी पे ठें देव वांदवा. फरी वली संध्या समये पण एज रीतें देव वांदवा. एम त्रण वार देव वंदन कर. यहां एटलुं विशेष बे जे प्रजातें सामायिक करी रह्या पढी पोसह ठाववो, ते वखतें तथा वली Jain Educationa International • For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( যU ) सांजे पण सामायिक करवाथी आगल तिहां प्रथ म पोसह ठगववो, ते वखतें तथा फरी रात्रियें पोसह क होय तो ते रात्र वीत्या केडे प्रजातें पोसढ पारवानी वखतें ए त्रण वखत काजो परवववा नि मितें वस्त्र पडिलेहण करवुं जोइयें. ते पडिलेह करवानो विधि लखियें बैयें. ॥ अथ पडिलेह विधि प्रारंभः ॥ ॥ प्रथम इरियावहियं० ॥ कही तस्सुत्तरी० ॥ कवी. पी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी लो गस्स प्रगट कहेवो. पढी गमणागमण थालोववुंपी सर्व वस्त्रनुं पडिलेहण करवुं. एटले वस्त्र सर्व नजरमांथी काढवां, तेमां कां‍ जीव जंतु ते कोरां खा परवववा पढी पोताने स्थानके जइ श्रासन पुं जवं. ए रीतें काजो परठववो ए काजो परवतां प डिलेहण करतां जे दूषण लाग्युं होय, ते निमित्तें इरियावहियं पडिकमि, तस्सुत्तरी कही एक लो गस्सनो कास्सग्ग करी प्रगट लोगस्स कही ग मणागमण थालोवj. पढी इछाकारेण संदिस जगवन् ! काजो सद्याय कहुं जी. हीयां एक सजाय कहेवी. पढी प्रतिमा यागलें प्रजातकाल For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) निमित्तें चैत्यवंदन कही चार स्तवन कहेवां. पनी उवस्सग्गहरं ॥ नमुलुणं ॥ कही पली श्रुतवांद णां श्रापीयें, बेग वखाण सांजलीये. ए रीतें पान से पहोरे पण पडिलेहण करवं. पडी देव वांदवा. पड़ी सांजे पाखी पडिकमणुं करवू. त्यार पड़ी फ री रात्रिय पण पोसह कस्यो होय तो राश्संथारा पोरसि जणाववी, तेनो विधि लखियें बैयें. ॥अथ पोरिसि नणाववानो विधि ॥ ॥प्रथम इरियावहियं ॥ पड़ी तस्सुत्तरी० ॥ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पनी प्रगट लोगस्स० ॥ कही गमणागमण आलोववं. पली छामि खमासमणपूर्वक श्वाकारेण संदिसह जग वन् ! राश्संथारो गवा नमो अरिहंताणं ॥ नो पाठ पूर्ण तथा करेमि नं ते सामाश्यं ॥ ए बेनो पाठ त्रण्य वार कही पड़ी श्छाकारेण संदिसह न गवन्! राश्संथारो कहुंजी. एम कही राश्संथारो कहेवो. ते लखे . ॥अथ राईसंथारानो पाठ ॥ ॥ चउकसाय पडिमबुलूरणु, दुऊयमयण बाणमु सुमूरणु॥सरस पियंगुवन्नु गय गामिन, जयउ पास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०१) जुवण त्तय सामिल ॥१॥ जस तणुकंति कडप्पसिणि को.सोहर फणिमणि किरणालिइन॥ नंनव जलहर तडिसयल छिउ ॥ सोजिण पास पश्च वंद्रिय ॥२॥ वासिङ थासिक श्रासिऊ. निसिही निसिही नि सिही. नमो खमासमणाणं गोयमाईणं महामुणीणं अणुजाणह जिहिजा ॥३॥श्रणुजाणह परमगुरु, गुरुगुणरयणेहिं मंमियसरीरा॥बहु पडिपुन्ना पोरिसी, राश्व संथारए गमि ॥४॥ अणुजाणह संथारं, बाहुवहाणेण वामपासेणं ॥ कुक्कुडि पायपसारण, अंतरंतु पमधए नूमी ॥५॥ संकोश्य संमासा, उव दंतेत्र कायपडिलेहा ॥ दवा उवांगं, ऊसास निरंज णा लोए ॥ ६ ॥ जश् मे हुङ पमाठ, श्मस्स देह स्स श्माश् रयणीए ॥ आहार मुवहि देहं, सवं तिविहेण वोसिरियं ॥७॥ पाणाश्वाय मलियं, चोरिक मेहुणं दविणमुद्धं ॥ कोहं माणं मायं, लो हं पिजांतहा दोसं ॥॥ कलहंअप्परकाणं, पेसुन्नं र इअर समाउत्तं ॥ पर परिवायं माया, मोसं मिल त्त सवं च ॥णा वोसिरि सुश्मा मु,रकमग्गसंसग्ग विग्घनूआई॥पुग्ग निबंधणाई, अहारसपावगणा राएगोहं नहि मे कोश, नाह मनस्स कस्सई॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) एवं अदीमणसो, अप्पाणमणुसासए ॥१॥ एगो मे सास अप्पा, नाण दंसण संजुङ ॥ सेसा मे बाहिरा नावा, सवं संजोगलरकणा ॥ १२ ॥ सं जोगमूला जीवेण, पत्ता कुःख परंपरा ॥ तम्हा सं जोग संबंध, सवं तिविहेण वोसिरिअं ॥१३॥ अरि हंतो मह देवो, जावजीवं सुसाहुणो गुरुणो॥ जिण पन्नत्तं तत्तं, श्यसम्मत्तं मए गहिरं ॥१४॥ चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं,सिका मंगलं, साहु मंगलं, केवली पन्नत्तो धम्मो मंगलं ॥ चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्त मा, साहु लोगुत्तमा, केपली पन्नतो धम्मो लोगुत्त मो, चत्तारि सरणं पवजामि, अरिहंते सरणं प वजामि, सिके सरणं पवजामि, केवली पन्नत्तं धम्म सरणं पवजामि ॥ पली उवसग्गहरं ॥ नमोबुणं ॥ कही, श्वामि खमासमणपूर्वक श्छाकारेण संदिसह नगवन् ! थ र्थपोरसी करुंजी, इहां एक काव्य कही पड़ी श्वामि खमासमण पूर्वक श्लकार सुहराई कही श्छाकारेण संदिसह जगवन् ! किं कायवं सिप्लाय पाठ नणियत्वं गणियत्वं नोपमाएयवं ॥ सर्वमंगलमांगल्यं, सर्वक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) व्याणकारणम् ॥ प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनंजयति शा सनम् ॥१॥ इति श्रीपोरसि विधिः समाप्तः॥ पड़ी चार पहोरना चारे दिशियें एटले प्रत्येक पहोर आश्रयि अनुक्रमें पूर्व दि शिथी मामीने बार बार लोगस्सना कानस्सग्ग करवा. प्रमाद न कर वो, रात्रि श्राखी धर्म ध्यानमां काढवी. पळी प्र जातनुं पडिकमणुं करी सामायिक पालवाने ठे काणे पोसह पालवा त्रण नवकार गणुं जी. एम कही, त्रण नवकार गणी श्छाकारेण संदिसह जगवन् ! पोसह पारवा गाथा जणुंजी ? एम कही नीचें लख्या प्रमाणे गाथा कहियें, ते लखे . ॥अथ पोसह पारवानी गाथा ॥ ॥सागरचंदो कामो, चंदवमिंसो सुदंसणो ध नो ॥ जेसिं पोसह पडिमा, अखंमिश्र जीवियं ते वि ॥१॥ धन्ना सलाहणिया, सुलसा आणंद कामदेवा य ॥ जेसिं पसंसई नयवं, दसवयं त महा वीरो ॥२॥ पोसह सामाश्य सं,ठिययस्स जीव स्स जाइ जो कालो ॥ सो सफलो बोधवो, सेसो संसारफलहेऊ ॥३॥ पठी, जं जं मणेण बर्फ, जं जं वायाए नासियं पावं ॥ इत्यादिक सामायिक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०४ ) पालवानी पण सर्व गाथा कहीयें. पण एटलुं विशे ष जे सामायिक व्रत विधिं विधुं इत्यादिकने ठेकार्णे पोसह व्रत विधिं लिधुं इत्यादिक सर्वपाठ कहेवो. पोसहमांहे सचित्तनो संघट्टो तथा उजेइ सं घट्टो थाय तो इरियावहियं तस्सुत्तरी कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पछी लोगस्स प्रगट कही गमणागमण श्रालोव ने संघट्ट न थाय तो न कहेवो ॥ इति श्री पोसह विधिः संपूर्णः ॥ इतिश्री अचलगना श्रवकनो सामा यिकादिक समाचारीनो विधि संपूर्ण ॥ ॥ अथ परकीखामणां प्रारंजः ॥ ॥ श्ररिहंतजीने खमावीयें रे, जेहना गुण बे बार ॥ खमो जवि खामणां रे ॥ सिद्ध जीवने ख मावियें रे, गुण आठोयें मनोहार ॥ खमो जवि० ॥ १ ॥ श्राचारजने खमावीयें रे, जेहना गुण बत्री श ॥ खमो जवि० ॥ उपाध्यायने खमावीयें रे, जे दना गुण पच्चीश ॥ खमो जवि० ॥ २ ॥ साधु स वेंने खमावियेंरे, शोने गुण सत्तावीश ॥ खमो न वि० ॥ श्रावक श्राविकाने खमावीयें रे, जेहना गु For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) ण एकवीश ॥ खमो जवि० ॥३॥ श्रापम पांखी खमावियें रे, चोमासुं त्रण वार ॥ खमो नविण ॥ संवत्सरी शुद्ध खमावीयें रे, खमावीयें वारं वार ॥ खमो नविण ॥४॥ रूपडो संघ मनावियें रे, मना वियें वारं वार ॥ खमो नवि०॥ मुक्तिसागर सूरि खमावीये रे, अचलगढ सिणगार ॥ खमो नविन ॥५॥ चोमासी गुरुने खमावियें रे, वांचे सूत्र सिद्धांत ॥ खमो नवि० ॥६॥ इति ॥ ॥ अथ प्रतिक्रमणमां कदेवा योग्य ॥ ॥ स्वाध्याय प्रारंनः॥ ___॥ तत्र प्रथमखाध्यायः॥ ॥धणमिहुण सुर महब्बल, ललियं गोवयर जं घमिडणेय ॥ सोहम्म विद्यु श्रञ्चुश्र, चक्की सवड उसनेय ॥१॥ धण सबवाह घोसण, जर गमणं थडविवास गणं च ॥ बहवोलीणे वासे, चिंताघ यदाणमासितया ॥२॥ उत्तरकुरु सोहम्मे, महावि देहे महब्बलो राया ॥ ईसाणे ललियंगो, महावि देहे वयरजंघोय ॥३॥ उत्तर कुरु सोहम्मे,महा विदे हितिगिछियस्स तब सुठ॥ रायसुयसिकिमुच्चा, स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) बाहसुयावयंसासे ॥ ४ ॥ विद्य सुयस्तय गेहे, कि मिठो वा, यं जयं दिहुं॥ बिंतिय तेविडसुहं, करेहि एयस्स तेगिळं ॥५॥ तिचं तितिबिसुद्ध, के बलगं चंदणं च वाणिय ॥ दाजं अनिनिकेतो, तेणेव नवेण अंतगडो॥६॥ साडं तिगिछिऊणं, सामन्नं देवलोग गमणं च ॥ मरिगिणीए चूया, त: सूयावयरसेणस्स ॥ ॥ पढ मित्र वयरनाहो, बाहु सुबाहू अ पीढ महापीढे ॥ तेसिं पिया तिल यरो, निकंता तेवि तमेव ॥ ॥ पढमो चउदस पु वी, सेसा इक्कारसंगवी चउरो ॥ बी यावच्चं, कि कम्मंतश्यकासी ॥ ए॥ जोगफलं बाहुबलं, प संसणा जिह श्अर श्रचियत्तं ॥ पढमो तिव्यरत्तं, वीस गणेहिं कासीय ॥ १० ॥ अरिहंत सिकप वयण, गुरुथेर बहुसुए तवस्सेसु ॥ वबम्बयाय एसिं, अनिकनाणोवउँगेथ ॥१९॥ दंसण विणए श्रावस्स ए, सीलवए नरवश्यारो॥खण लव तवञ्चिाए, वे श्रावच्चे समाहीय ॥ १२ ॥ अपुव नाणग्गहणे, सु यनत्ति प्पवयणे पत्नावणया॥एएहिं कारणेहिं, तिब यरत्तं लहश् जीवो ॥१३॥ इति स्वाध्यायः संपूर्णः॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७) ॥अथ॥ ॥ अथ नरहेसरनी सजाय ।। ॥ नरहेसर बाहुबली, अजयकुमारो अ ढंढणकु मारो ॥ सिरि अणियाउत्तो, अश्मुत्तो नागदत्तो थ॥१॥ मेअऊ थूलिजद्दो, वयररिसी नंदिसेण सीदगिरि ॥ कयवन्नो अ सुकोसल, घुमरि केसि करकंम्॥२॥ हद विहब सुदंसण, साल महासाल साविनदोष ॥ नदो पसन्नजद्दो, पसन्नचंदो अज सजद्दो ॥ ३ ॥ जंबुपडु वंकचूलो, गयसुकुमालो अवंतिसुकुमालो ॥ धन्नो इलाश्पुत्तो, चिलाश्पुत्तो अ बाहुमुणी ॥ ॥ अजागिरि अजर रिकत्र, अ जासुहबी उदायगो मणगो ॥ कालयसूरी संबो, प अन्नो मूलदेवो अ॥ ५ ॥ पत्नवो विह्रकुमारो, थ दकुमारो दढप्पहारी अ॥ सिांस कूरगडुश्र, सि जांचव मेहकुमारोथ ॥६॥ एमाश् महासत्ता, दि तु सुहं गुणगणेहिं संजुत्ता ॥ जेसिं नामग्गहणे, पावपबंधा विलय जंति ॥ ७ ॥ सुलसा चंदनबाला, मणोरमा मायणरेह दमयंती ॥ नमया सुंदरि सीया, नंदा जद्दा सुनद्दाय ॥ ॥ राश्म रिसि दत्ता, पजमावर अंजणा सिरीदेवी ॥ जित सुजित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०८ ) मिगावs, पजावई चिह्नणा देवी ॥ ए ॥ बंजी सुं दरि रूपिण, रेव कुंती सिवा जयंतीय ॥ देव दोवर धारणी, कलावई पुप्फचूलाय ॥ १० ॥ प माय गौरी, गंधारी लखमणा सुसीमाय ॥ जंबू वई सच्चजामा, रूपिणि कन्हछ महिसी ॥ ११ ॥ जरका य जरक दिन्ना, नूय तहचेव नूादिन्ना य सेणा वेणा रेणा, जयणी यूलिनस्स ॥१२॥ इच्चा इ महासङ्घ, जयंति कलंक सील कलिया ॥ श्रवि वजा जा सिं, जस पडहो तिदुखणे सयले ॥ १३ ॥ इति सतासतियोनी सझाय संपूर्ण ॥ २ ॥ ॥ अथ श्रीदेवचंदजी कृत प्रष्ट प्रवचन मातानी सद्याय प्रारंजः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ सुकृत कल्पतरु श्रेणिनी, वर उत्तर कुरु जोमि ॥ ध्यातम रस शशिकला, श्री जिनवाणी नौमि ॥ १ ॥ दीपचंद पाठक सुगुरु, पय वंदो अ वदात ॥ सार श्रमणगुणजावना, गाशुं प्रवचन मात ॥ २ ॥ जननी पुत्र जिम शुजकरी, तिम ए पवयण माय ॥ चारित्र गुणगणवर्द्धिनी, निर्मल शिवसुखदाय ॥ ३ ॥ जाव अयोगी करण रुचि, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) मुनिवर गुप्ति धरंत ॥ यदि गुप्ति जो न रही श के, तो समिति विचरंत ॥४॥ गुप्ति एक संवरम यी, श्रौढरंगिक परिणाम ॥संवर निर्जर समितिथी, अपवादें गुणधाम ॥ ५॥ अव्ये अव्यत चरणता, जावें नाव चरित्त ॥ जावदृष्टि अव्यत क्रिया, कर तां शिव संपत्त ॥६॥ आतमगुण प्राग्नावथी, जे साधक परिणाम ॥ समिति गुप्ति ते जिन कहे, साध्य सिकि शिवगम ॥७॥ निश्चय करण रु चि थर, समिति गुप्ति धर साधि ॥ परम अहिं सक नावथी, आराधे निरुपाधि ॥ ७ ॥ परम म होदय साधवा, जेह थया उजमाल ॥ श्रमण नि तु माहण यति, गाऊं तस गुणमाल ॥ ए॥ ॥अथ प्रथम र्यासमिति सद्याय प्रारंजः॥ ॥प्रथम गोवाला तणे नवें जी ॥ ए देशी ॥ प्रथम अहिंसक व्रत तणी जी, उत्तम नावना एह ॥ संवर कारण उपदिशी जी, समतारसगुण गेह ॥ मुनीश्वर, र्यासमिति संजार ॥ श्राश्रव कर तनुयोगथी जी, पुष्टचपलता वार ॥ मु०॥ ६० ॥ ए श्रांकणी ॥ १॥ कायगुप्ति उत्सर्गनो जी, प्रथ म समिति अपवाद ॥ O ते जे चालवू जी, धरि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११० ) आगम विधि वाद ॥ मु० ॥ ई० ॥ २ ॥ ज्ञान ध्या न सद्यायमें जी, स्थिर बेठा मुनिराज ॥ शाने चपलपणुं करे जी, अनुभव रस सुखराज ॥ मु० ॥ ई० ॥ ३ ॥ मुनि उठे वसहीथकी जी, पामी कारण चार | जिनवंदन ग्रामांतरे जी, के आहार निहार ॥ मु० ॥ ई० ॥ परम चरण संवर धरु जी, सर्व जाण जिन दिह ॥ शुचिसमता रुचि उपजे जी, तेणें मुनिने ए इ ॥ मु० ॥ ई० ॥ ५ ॥ राग वधे स्थिरजावथी जी, ज्ञान विना परमाद ॥ वीतरागता ईहता जी, विचरे मुनि साल्हाद ॥ मु० ॥ ई० ॥ ॥ ६ ॥ ए शरीर जवमूल बे जी, तसु पोषक आहार ॥ जाव योगी नवि दुवे जी, तां अनादि याचार ॥ मु० ॥ ई०||७|| कवलादा रें निहार बे जी, एह अंग व्यवहार ॥ धन्य यतनुं परमातमा जी, जिहां निश्चलता सार ॥ मु० ॥ ई० ॥ ८ ॥ परपरिणति कृत चपलता जी, केम मूकशे एह ॥ एम विचारी कारणें जी, करे गोचरी तेह || मु० ॥ ई० || || मावंत दयालुआ जी, निःस्पृह तनु नीराग ॥ नीरविषे गजगति परें जी, विचरें मुनि महानाग ॥ मु० ॥ ई० ॥ १० ॥ परमानंदर स अनुजव्या जी, निजगुणरमता धीर ॥ देवचंद्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१११) मुनि वंदतां जी, लहियें जवजल तीर ॥ मु०॥ ई० ॥ ११ ॥ इति ॥ ॥अथ द्वितीय भाषासमिति सद्याय प्रारंजः॥ ॥ नावनामालती चूशीयें ॥ ए देशी ॥ साधुजी समिति बीजी आदरो, वचन निर्दोष परकाश रे ॥ गुप्ति उत्सर्गनो समिति ते, मार्ग अपवाद सुवि लास रे ॥ सा ॥ ए आंकणी ॥१॥ नावना बीजी महाव्रत तणी, जिनमणी सत्यता मूल रे॥जेदथीय हिंसकता वधे, सर्वसंवर अनुकूल रे ॥ सा ॥२॥ मौनधारी मुनि नवि वहे, वचन जे आश्रवगेह रे ॥ आचरण ज्ञानने ध्याननो, साधक उपदिसे तेह रे ॥ सा ॥३॥ उदित पर्याप्ति जे वचननी, ते करी श्रुत अनुसार रे ॥ बोध प्रागनाव स द्यायथी, वलि करे जगत उपकार रे ॥ सा ॥ ४॥ साधु निजवीर्यथी परतणो, नवि करे ग्रहण ने त्याग रे ॥ ते नणी वचनगुप्ति रहे, एक उत्स र्ग मुनिमार्ग रे ॥ सा ॥ ५॥ योग जे आश्र व पद हतो, ते कस्यो निर्जरारूप रे ॥ लोहथी के चन मुनि करे, साधता साध्य चिप रे ॥ सा ॥ ६॥ यात्महित पर हित कारणे, आदरे पांच स For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२ ) द्याय रे ॥ ते जणी अशन वसनादिका, आश्रय स र्व वाय रे ॥ सा० ॥ ७ ॥ जिन गुणस्तवन नि ज तत्त्वनें, जोश्वा करे विरोध रे ॥ देशना ज व्य प्रतिबोधवा, वायणा करण निजबोध रे ॥ सा० ॥ ८ ॥ नय गम जंग निदेपथी, स्वहित स्याद्वाद युत वाणी रे ॥ शोल दश चार गुणशुं मली, कढ़े अनुयोग सुपहा रे ॥ सा० ॥ ए ॥ सूत्र ने अर्थ अनुयोग ए, बीय निर्युक्ति संजुत्त रे ॥ तीय जा ष्ये नयें जावियो, मुनि वदे वचन एम तंत रे ॥ सा० ॥ १० ॥ ज्ञानसमूह समता नया, संवरी द याकार रे ॥ तत्त्व आनंद श्रखादता, वंदियें च रणगुण धार रे ॥ सा० ॥ ११ ॥ मोह उदयें मो ही जेहवा, शुद्ध निज साध्य लय लीन रे ॥ देवचंद्र तेह मुनि वं दियें, ज्ञान अमृतरस पीन रे ॥ सा० ॥ १२ ॥ ॥ अथ तृतीय एषणासमितिस्वाध्याय प्रारंजः ॥ ॥ कांकरीया मुनिवर ॥ धन्य० ॥ ए देशी ॥ समि ति तीसरी एषणा जी, पांच माहाव्रत मूल ॥ श्र नाहारी उत्सर्गनो जी, ए अपवादी अमूल ॥ १ ॥ मनमोहन मुनिवर, समिति सदा चित्त धार ॥ ए यांकणी ॥ चेतनता चेतन तथा जी, नवि परसंगी For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९३) तेह ॥ तिण परसन मुख नवि करे जी, श्रातमरति वती जेह ॥ म ॥ स ॥२॥ काययोग पुजल महे जी, एह न आतम धर्म ॥ जाणंग करता जो गता जी, हुं महारो ए मर्म ॥ म०॥ स० ॥३॥ अननिसंधि चलवीर्यनो जी, रोधकशक्ति अनाव ॥ पण अनिसंधि जे वीर्यथी जी, केम ग्रहे परजाव ॥ म ॥ स० ॥४॥श्म परत्यागी संवरी जी, न ग्रहे पुजल खंध ॥ साधक कारण राखवा जी, अश नादिक संबंध ॥ म ॥ स ॥५॥ श्रातमत त्व अनंतता जी, ज्ञान विना न जणाय ॥ तेह प्र गट करवा नणी जी, श्रुत सद्याय उपाय ॥ म॥ स० ॥ ६ ॥ तेह देहथी देहराह जी, श्राहारें बल वान ॥ साध्य अधूरे हेतुनें जी, केम तजे गुणवान ॥ म ॥ स ॥७॥ तनुअनुयायी वीर्यनो जी, व तन अशन संजोग ॥ वृष्यष्टि सम जाणिने जी, अशनादिक उपजोग ॥ म० ॥ स ॥ ॥ ज्यां साधकता नवि अडे जी, तो न ग्रहे थाहार ॥ बाधक परिणति वारवा जी, अशनादिक उपचार ॥ म॥ स० ॥ ए ॥ सुडतालीशे अव्यना जी, दोष तजीनी राग ॥ असंज्रांत मूळ विना जी, ब्रम परें वड ना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९४) ग॥ म ॥ स० ॥ १० ॥ तत्त्वरुचि तत्त्वाश्रयी जी, तत्त्वरसी व नीग्रंथ ॥ कर्म उदय आहारता जी, मु नि माने पलीमंथ ॥ मग ॥ स ॥ ११॥ लाजथ की पण घन लहे जी, अति निर्जरा करंत ॥ पा म्ये अणव्यापकपणे जी, निर्मल संत महंत ॥ म ॥ स० ॥ १५ ॥ अणाहारता साधता जी, स मता अमृतकंद ॥ नितु श्रमण वाचंयमी जी, ते वंदे देवचंद ॥ म ॥ स ॥ १३ ॥ इति ॥३॥ ॥ अथ चतुर्थश्रादाननिषेवणासमिति ॥ ॥सद्याय प्रारंजः॥ ॥जोखिडा हंसा रे विषयन राचीयें ॥ए देशी॥ ॥ समिति चोथी रे चउगतिवारणी, नांखी श्री जिनराज ॥ राखी परम अहिंसक मुनिवरें, चा खी ज्ञानसमान ॥ १॥ सहज संवेगी रे समिति परिणमे ॥ ए आंकणी ॥ साधन आतमकाज॥श्रा राधन ए संवर नावनो, जवजलतारण जहाज ॥ स ॥२॥अनिलाषी निज श्रातमतत्त्वना, साखी करि सिद्धांत ॥ नाखी सर्व परिग्रहसंगने, ध्याना काशी रे संत ॥स॥३॥ संवर पंच तणी ए जावना, निरुपाधिक अप्रमाद ॥ सर्व परिग्रह त्याग असंग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५) ता, तेहनो ए अपवाद ॥ स ॥४॥ शाने मुनिवर उपकरण संग्रहे, जे परजाव विरत्त ॥ देह अमोही नवि लोही कदा, रत्नत्रयी संपत्त ॥ स ॥५॥ जाव अहिंसकता कारण जणी, अव्य अहिंसक साधि ॥ रजोहरण मुखवस्त्रादिक धरे, वरवा योग समाधि ॥स॥६॥ शिव साधन- रे मूल ते झान बे, तेहनो हेतु सद्याय॥ते आहारे ते वलि पात्रथी, जयणायें प्रदेवाय ॥स०॥७॥ बाल तरुण नर नारी जंतुने, नग्न उगंडा हेतु ॥ तिण चोलपट ग्रही मुनि उप दिसे, शुभधर्मसंकेत ॥ स ॥ ॥ मंश मशक शीतादि परिषद सहे, न रहे ध्यानसमाधि ॥ कल्पकथादिक निर्मोहिपणे,धारे मुनि निर्बाध ॥स ॥ ए॥ लेप अलेप नदीना ज्ञाननो, कारण दंम ग्र हंत ॥ दशवैकालिक नगवईसाखथी, तनुस्थिरता ने तंत ॥ स० ॥ १०॥ लघु सजीव सचित्त रजा दिनो, वारण पुःख संघट्ट ॥ देखी पुंजे रे मुनिव र तेहथी, ए पूरव मुनिवट्ट ॥ सम् ॥ ११॥ पुन लखंध ग्रहण निषेवणा, अव्ये जयणा तास ॥ नावें श्रात्मपरिणति नव नवी, ग्रहता समिति प्रकाश ॥ स० ॥ १२ ॥ बाधकलाव अद्वेषपणे तजे, साध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) कले गत राग ॥ पूरव गुणरक्षक पोषकपणे, निपजते शिवमार्ग ॥ स० ॥ १३ ॥ संयमश्रेणे रे सं चरता मुनि, हरे कर्मकलंक ॥ धरता समता रस एकत्वता, तत्त्वरमणी निःशंक ॥ स ॥ १४ ॥जगन पकारी रे तारक नव्यना,लायक पूर्णानंद ॥ देवचंद एहवा ते मुनिराजना, वंदे पय अरविंद॥स॥१५॥ ॥अथपंचम पारिठावणिया समिति ॥ ॥ सद्याय प्रारंजः ॥ ॥ चेतन चेतजो रे ॥ ए देशी ॥ पंचमी समिति कहि अतिसुंदरु रे, पारिछावणिया नाम ॥ परमश्र हिंसक धर्म वधारणी जी, मृडकरुणा परिणाम ॥ मु निवर सेवजो रे ॥ समिति सदा सुखदाय, स्थि रता जावें संयम सोहाय, धरे निर्मल संवर था य॥ मु॥१॥ए आंकणी ॥ देहनेहथी चंचलता व घे रे, विकसे पुष्ट कषाय ॥ तिणे तनुराग ध्याने रमे जी, ज्ञान चरण सुपसाय ॥ मु॥२॥ जि हां शरीर तिहां मल उपजे रे, तेह तणो परिहार॥ करे जंतु चरस्थिर अणदूहव्या रे, सकल उगंठा वा र ॥ मु० ॥३॥ संयम बाधक आत्मविराधना रे, थापाघातक जाणी ॥ उपाधि अशन शिष्यादि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) क परग्वे रे, थायति लान पिळगण ॥ मु॥४॥ वध्या आहारें तपिया परग्वे रे, निजकोठे अप्र माद ॥ देह अरागी जात अव्यापता रे, धीरनो एह अपवाद ॥ मु० ॥५॥ संलोकादिक दूषण प रहरी रे, वर्जी राग ने वेष ॥ आगमरीतें परग्व णी करे, लाघवहेतु विशेष ॥ मु० ॥६॥ कल्पाती त थाहाबंदी कमी रे, जिन कल्पादि मुनीश ॥ ते हने परग्वणा एक मलतणी रे, तेह अल्प वली दीस ॥ मु॥७॥ रात्रे प्रश्रवणादिक परठवे रे, विधिकृत मंगल गम ॥ थिविरकल्पनो प्रति श्र पवाद ने रे, ग्लानादिक नहिं काम ॥ मु० ॥७॥ वलि एह अव्यथी नावें रे, बाधक जे परिणाम ॥ द्वेष निवारी मादकता विना रे, सर्व विनाव विरा म ॥ मु०॥ ए ॥ अंतःपरिणति तत्त्वमयी करे रे, परिहरिता परजाव ॥ अव्यसमिति परंग ना व जणी धरे रे, मुनिनो एह खनाव ॥ मु०॥ ॥ १० ॥ पंच समिति समता परिणामथी रे, दमा कोष गतरोष ॥ नावन पावन संयम साधता रे, करता गुणगणपोष ॥ मु० ॥ ११॥ साध्य रसी निजतत्त्वं तन्मया रे, उबरंगी निर्माय ॥ योग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) क्रिया फल नाव अवंचता रे, शुचि अनुनव सु खदाय ॥ मु० ॥ १५ ॥आणाजित यु श्रान्नाणी रसी रे, निश्चय निग्रह युत्त ॥ देवचंड एहवा निग्रंथ जे रे, ते महारं गुरुतत्त्व ॥ मु० ॥ १३ ॥ इति ॥५॥ ॥अथ षष्ठ मनोगुप्ति सद्याय प्रारज्यते ॥ ॥ वैरागी थयो रे ॥ ए देशी ॥ मुनिमन वश करो रे॥ मन ए आश्रवगेहो ॥ ममताने तो ऋषि म न्नथी रे, टालो यतिवर तेहो रे॥ मु० ॥१॥ पुष्ट तुरगचित्त ते कडं रे, सो मोहनृपति प्रधान ॥ श्रा तिरुप्तुं क्षेत्र ए रे, रोकतुं ज्ञान निधानो रे ॥ मुण् ॥२॥ गुप्ति प्रथम ए साधुने रे, धर्म शुक्लनो कंद ॥ वस्तु धर्मचिंतन रम्या रे, साध्ये पूर्णानंदो रे॥ मु०॥३॥ योग ते पुजल जोग ले रे, पांचे अ जिनव कर्म ॥ योगवरणा ने कंपना रे, नवि ए श्रा तम धर्म ॥ मु०॥४॥ वीर्य चपल परसंगमी रे, ए ह न साधक पद ॥ ज्ञान चरण सहकारना रे, व रतावे मनदद रे ॥ मु०॥५॥ स विकल्पक गुणसा धुना रे, ध्यानीने न सुहाय॥ निर्विकल्प अनुभव र सी रे, आत्मानंदी थायो रे ॥ मु॥६॥ रत्नत्र यनी नेदता रे, एह समल व्यवहार ॥ त्रिगुण वीर्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११७ ) एकत्वता रे, निर्मल श्रात्माचारो रे ॥ मु० ॥ ७ ॥ श्रुक्लध्यान श्रुतलंबनी रे, ए पण साधन दाव ॥ व स्तुधर्मबरंगमें, गुण गुणी एक खजावो रे ॥ मु० ॥८॥ पर सहाय गुणवर्त्तना रे, वस्तुधर्म न कहाय ॥ साध्यरसी तो किम ग्रहे रे, साधु चित्त सहायो रे ॥ मु० ॥ ए ॥ श्रात्मरुचि श्रात्मालयी रे, ध्याता तत्त्व अनंत ॥ स्याद्वाद ज्ञानी मुनिरे, तत्त्वरमण उपशांतो रे ॥ मु० ॥ १०॥ नवि छापवादरुचि कदा रे, शिवरसिया अणगार ॥ शक्ति यथागम सेवतां रे, निंदे कर्मप्रचारो रे ॥ मु० ॥ ११ ॥ शुद्ध सिद्ध निज तत्त्वता रे, पूर्णानंदसमाज ॥ देवचंद्र परसाधता रे, नमियें ते मुनिराजो रे ॥ मु० ॥ १२ ॥ इति ॥ ६ ॥ ॥ अथ सप्तम वचनगुप्ति सद्याय ॥ ॥ प्रारंभः ॥ ॥ समिति सदा ए दिलमें धरो ॥ ए देशी ॥ श्र थवा हमिरियानी देशी ॥ वचनगुप्ति सूधी धरो, वचन ते कर्मसहाय ॥ सलूऐ ॥ उदयाश्रित जे चे तना, निश्चें तेह अपाय ॥ सलू ॥ वचन गुप्ति सूधी धरो ॥ १ ॥ एांकणी ॥ वचन अगोचर यात मा, सिद्ध ते वचनातीत ॥ स० ॥ सत्ता अस्तिस्व For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) जावमें, जाषकजाव अनित ॥ स० ॥ व० ॥ २ ॥ अनुजव रस यखादता, करता श्रातमध्यान ॥ स० ॥ वचन ते बाधकजाव बे, न वदे मुनि श्र ज्ञान ॥ स० ॥ व० ॥ ३ ॥ वचनाभ्रव पलटायवा, मु नि साधे स्वाध्याय ॥ ० ॥ तेह सर्वथा गोपवो, परम महारस थाय ॥ स० ॥ व० ॥ ४ ॥ जाषा पुजल वर्गणा, ग्रहणा निसर्ग उपाधि ॥ स० ॥ करवा श्रातमवीर्यने, शाने प्रेरे साधि ॥ स० ॥ व० ॥ ५ ॥ यावत् वीरज चेतना, श्रातमगुण संपत्त ॥ स० ॥ तावत् सर्वे निर्जरो, आश्रवपर श्रायात ॥ स० ॥ व० ॥ ५ ॥ इम जाणी स्थिर संयमी, न करे च पलिमंथ ॥ स० ॥ आत्मानंद श्राराधतां या झाथी निर्यय ॥ स० ॥ ० ॥ ७ ॥ साध्य शुद्ध परमातमा, तसु साधन उत्सर्ग ॥ स० ॥ बार दें तप द्विविधें, सकलश्रेष्ठ व्युत्सर्ग ॥ स० ॥ व० ॥८॥ समकित गुणठाणे कस्यो, साध्य अयोगी जाव ॥ ॥ स० ॥ उपादानता तेहनी, गुप्तिरूप स्थिर नाव ॥ स० ॥ ० ॥ एए ॥ गुप्तिरुचि गुप्तें रम्या, कारण समिति प्रपंच ॥ स० ॥ करता स्थिरता ईहता, प्रदे तत्त्व गुणसंच ॥ स० ॥ ० ॥ १० ॥ अपवादें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) उत्सर्गनी, दृष्टि न चूके जेह ॥ स० ॥ प्रणमे नित्य प्रत्ये जावद्यु, देवचंद मुनि तेह ॥साव॥११॥७॥ ॥ अथाष्टम कायगुप्ति सद्याय ॥ ॥प्रारंजः॥ ॥ फुलना चोसर प्रजुजीने शिर चढे ॥ ए देशी॥ गुप्ति संचारो रेत्रीजी मुनिवरु, जेहथी परम आनंदो जी ॥ मोह टले घनघाती परगले, प्रगटे ज्ञान अमं दो जी ॥गु०॥१॥ करिय शुज अशुन नव जे जे , तिण तजी तन व्यापारो जी॥ चंचलनाव ते आ श्रवमूल , जीव अचल अविकारो जी ॥ गु० ॥२॥ इंघिय विषय सकलनुं द्वार ए, बंध हेतु दृढ ए हो जी ॥ अनिनव कर्म ग्रहे तनुयोगथी, तिण थिर करिये देहो जी ॥ गु० ॥ ३ ॥ श्रातमवीर्य फुरे परसंग जे, ते कहियें तनुयोगो जी ॥ चेतन सत्ता रे परम अयोगी बे, निर्मल स्थिर उपयोगोजी ॥ गु० ॥ ४ ॥ जावत् कंपन तावत् बंध , नां ख्युं जगवर अंगें जी ॥ ते माटें ध्रुव तत्त्वरसें रमे, मादण ध्यानप्रसंगें जी ॥ गु० ॥५॥ वीर्यसहायी रे बातम धर्मनो, अचल सहज अप्रयासो जी ॥ ते परनाव सहाया किम करे, मुनिवर गुणश्रावासो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) जी ॥ गु०॥६॥ खंति मुक्ति युक्ति अकिंचनी, शौच ब्रह्मधर धीरो जी ॥ विषय परिसह सैन्य वि दारवा, वीर परम शौंमीरो जी ॥ गु०॥ ७॥ कर्म पल दलदाय करवा रसी, आतमझकि समृको जी ॥ देवचंद जिन आणा पालतां, वंदूं गुरुगुण वृद्धो जी ॥ गु० ॥ ॥ इति ॥ ॥ ॥ अथ नवम साधुखरूप वर्णन सद्याय प्रारंजः ॥ __॥ रसियानी देशी ॥ धर्म धुरंधर मुनिवर सुल ही, नाण चरण संपन्न ॥ सुगुणनर ॥ इंडिय लोग तजी निज सुख नजी, जवचारक उदविन्न ॥ सु० ॥ध०॥॥ अव्य नाव साची सरधा धरी, परिहरी शंकादि दोष ॥ सु० ॥ कारण कारज साधन श्रा दरी, धरी ध्यान संतोष ॥ सु ॥ ध० ॥२॥ गुण पर्यायें वस्तु पारीखतां, शीख उनय नंमार ॥ सु० ॥ परिणति शक्ति स्वरूपमें परिणमी, करता तसु व्यवहार ॥ सु० ॥ ध० ॥३॥ लोक सन्नवि तिगिठा वारता, करता संयमवृषि॥ सु० ॥ मूल उत्तरगुण सर्व संजारता, धरता श्रातम शुद्धि ॥ सु० ॥ ध० ॥४॥ श्रुतधारी श्रुतधर निश्रारसी, वश कस्या त्रिक जोग ॥ सु ॥ अन्यासी अभिनव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३) श्रुतसारना, अविनाशी उपयोग ॥ सु॥ध० ॥ ५॥ अव्य नाव आश्रव मल टालता, पालता संय म सार ॥ सु० ॥ साची जैन क्रिया संजालता, गाल ता कर्म विकार ॥ सु० ॥ धम् ॥६॥ सामायिक श्रादिक गुणश्रेणिमें, रमता चढते रे जाव ॥सु॥ तीन लोकथी जिन्न त्रिलोकमें, पूजनीय जसुपाव ॥ सु० ॥ धम् ॥ ७ ॥ अधिकगुणी निजतुल्य गुणी थकी, मलता ते मुनिराज ॥ सु० ॥ परम समाधि निधि जवजलधिना, तारण तरण जहाज ॥ सु० ॥ ध० ॥॥ समकितवंत संयमगुण ईहता, ते धर वा समरन ॥ सु० ॥ संवेगपदीनावें शोजता, कहे ता साचो रे अर्थ ॥ सु ॥ ध० ॥ ए ॥ आप प्रशं सायें नवि माचता, राचतामुनिगुणरंग ॥ सु० ॥श्र प्रमत्त मुनि श्रुततत्त्व पूढवा, सेवे जासु अनंग ॥ सु०॥ ध० ॥१०॥ सदहणा आगम अनुमोदता, गुण कर संयम चाल ॥सु॥ व्यवहारे साची ते साचवे, श्रायति लान संजाल ॥ सु० ॥ ध० ॥ ११ ॥ मुक्कर कारीश्री अधिका कहे, बृहत्कल्प व्यवहार ॥सु॥ उपदेशमाला जगवई अंगने, गीतारथ अधिकार ॥ सु० ॥ ध० ॥ १२ ॥ नावचरण स्थानक फरस्या वि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) ना, न दुवे संयमधर्म ॥सु॥ ते शाने जूते उच्चरे, जे जाणे प्रवचनमर्म ॥ सु० ॥ ध० ॥ १३ ॥ जस साने निजसंस्मृत थायवा, परजन रंजन काज ॥ सु० ॥ ज्ञान क्रिया अव्यत विधि साचवे, तेह नहिं मुनिराज ॥ सु० ॥ ध० ॥ १४ ॥ बाह्यदया एकांतें उपदिसे, श्रुतधाम्नाय विहीन ॥ सु० ॥ बगपरें उग ता मूरख लोकने, बहु जमशे तेह दीन ॥ सु०॥ ध० ॥ १५ ॥ अध्यातम परिणति साधन ग्रही, उ चित वहे आचार ॥ सु० ॥ जिनआणा अविरा धक पुरुष जे, धन्य तेहनो अवतार ॥ सु० ॥ध ॥ १६ ॥ अव्य क्रियामां नैमित्तिक हेतु बे, नावधर्म लय लीन॥सुनैरुपाधिक तोजे निज अंशनी, माने लाज नवीन ॥ सु० ॥ ध ॥ १७ ॥ परिणति दोष जणी जे निंदता, कहेता परिणतिधर्म ॥सु॥ योग ग्रंथना नावप्रकाशता, तेह विदारे हो कर्म ॥ सु ॥ धन ॥ १० ॥ अल्पक्रिया पण उपकारीपणे, ज्ञानी साधे हो सिफ॥ सु० ॥ देवचंड सुविहित मुनिवृंदने, प्रणम्यां सयल समृद्धि ॥ सु॥ध॥१ए॥ ॥कलश ॥ ॥ राग धन्याश्री॥ते तरिया रे जाते तरिया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२५) जे, जिनशासन अनुसरिया जी ॥ जेह करे सुवि हित मुनि किरिया, ज्ञानामृत रस दरिया जी ॥ ते ॥ १॥ ए श्रांकणी ॥ विषय कषाय सहु परि हरिया, उत्तम समता वरिया जी॥शील सन्नाथकी पाखरिया, जव समुज्जल तरिया जी ॥ ते ॥ ॥२॥ समिति गुप्तिशुं जे परवरिया, श्रात्मानंदें तरिया जी॥थाश्रव हार सकल श्रावरियां, वर संव र संवरिया जी ॥ ते ॥३॥ खरतर मुनि श्राचर णा चरिया, राजसार गुण दरिया जी॥ज्ञानधर्म तप ध्याने वसिया, श्रुतरहस्यना रसिया जी॥ ते ॥४॥ दीपचंद पाठक पद धरिया, विनय रयण साग रिया जी ॥ देवचंड मुनिगण उच्चरिया, कर्मथ रि निर्जरिया जी ॥ ते ॥५॥ सुरगिरि सुंदर जिणवर मंदिर, शोजित नगर सवाई जी ॥ नवा नगर चोमासुं करीने, मुनिवर गुणथुति गाई जी ॥ ते ॥६॥हरिगीत छंद ॥अरिहंतनो यश, जगमें विचस्यो, विस्तरी जस, संपदा ॥ निर्यथ वंदन, स्त वन करतां, परममंगल, सुख सदा ॥ १॥ इत्य टप्रवचनमाता सद्याय संपूर्णः ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२६ ) ॥ अथ ॥ ॥ श्री गौतमस्वामीनो रास प्रारंभः ॥ ॥ प्रथम जाषा ॥ ॥ वीर जिणेसर चरणकमल, कमला कयवासो ॥ पणमवि पणिसुं सामि साल, गोयम गुरु रासो ॥ मण तणु वयण एकंत करवि, निसुणो जो जवि यां ! ॥ जिम निवसे मुम्ह देह गेह, गुण गए गह गहिया ॥ १ ॥ जंबूदीव सिरि नरह खित्त, खोणी तल मंगण ॥ मगधदेस से लिय नरीस, रिजदलबल खंगण ॥ धणवर गुवर गाम नाम, जिहां जणगुण सजा || विप्प वसे वसुनू तब, जसु पुहवी ना ॥ २ ॥ ताण पुत सिरिइंदनू, नूवलय पसिद्धो ॥ चदह विद्याविविद रूप, नारीरस विद्धो ॥ वि नय विवेक विचार सार, गुण गणह मनोहर || सात हाथ सुप्रमाण देह, रूपें रंजावर ॥ ३ ॥ नयण व या कर चरण जिए, वि पंकज जल पाडिय ॥ ते जें तारा चंद्र सूर, आकास जमाडिय ॥ रूवें मयण अनंग करवि, मेहि निरधाडीय ॥ धीरमें मेरु गंजीर सिंधु, चंगम चयचाडिय ॥ ४ ॥ पेख विनि रुवम रूव जास, जिए जंपे किंचिय ॥ एकाकी कि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 229 ) ल जीत छ, गुण मेल्हा संचिय ॥ श्रहवा नि पुव जम्म, जिवर इस चित्र ॥ रंजा पउमा गौ रीगंगा, रतिहा विधि वंचिय ॥ ५ ॥ नहिं बुध नहिं गुरु कवि न कोइ, जसु श्रगल रहि ॥ पंचसया गु पात्र छात्र, हिं परवरि ॥ करे निरंतर यज्ञक र्म, मिथ्यामति मोहिय ॥ इण बल होशे चरम नाण, दंसह वि सोहिय ॥ ६ ॥ ॥ वस्तुछंद ॥ ॥ जंबूदी वह जंबूदी वह जरह वासम्मि, खोणीतल मंगणो ॥ मगध देस सेणिय नरेसर, वरगुवर गाम तिहां ॥ विप्प वसे वसुनू सुंदर तसु नका पुद वी सयल, गुण गण रूव निहाण ॥ ताण पुत्त वि द्यानिलर्ज, गोयम अतिहि सुजाण ॥ ७ ॥ ॥ द्वितीय भाषा ॥ ॥ चरम जिणेसर केवलनाणी, चढविह संघ प जाणी ॥ पावापुर सामी संपत्तो, चडविह दे वनिकायें जुत्तो ॥ ८ ॥ देवें समवसरण तिहां की जें ॥ जिए दीठे मिथ्यामति खीजें ॥ त्रिभुवनगु रु सिंहास बगे, ततखिण मोह दिगंतें पो ॥ ए ॥ क्रोध मान माया मद पूरा, जाये नाग For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) जिम दिनचोरा ॥ देवउंहि श्राकाशे वाजी, 4 में नरेसर श्राविउँ गाजी ॥ १० ॥ कुसुमवृष्टि वि रचे तिहां देवा, चोशठ इंच जसु मागे सेवा ॥चा मर बत्र सिरोवरि सोहे, रूपें जिणवर जग सह मोहे ॥ ११॥ उवसम रसजर नरी वरसंता, जोज न वाणि वखाण करंता ॥जाणवि वर्धमान जिण पाया ॥ सुर नर किन्नर आवे राया ॥ १२ ॥ कंतिस मूहें फलफलकंता, गयण विमाणे रण रणकंता ॥ पेखवि इंदनू मन चिंते, सुर श्रावे श्रम्ह जगन होवंते ॥ १३ ॥ तीर तरंक जिम ते वहता, सम वसरण पहोता गहगहता ॥ तो अजिमाने गोय म जपे, श्ण अवसरे कोपें तणु कंपे ॥ १४ ॥ मूढ लोक अजाणिलं बोले, सुर जाणंता श्म कांश मोले ॥ मूआगल को जाण जणीजें, मेरु अवर केम उ पमा दीजें ॥ १५ ॥ ॥वस्तुलंद ॥ ॥ वीर जिणवर वीर जिणवर नाण संपन्न ॥ पा वापुरि सुरमहिय पत्तनाह संसार तारण ॥ तिहिं देवेहिं निम्मविय समवसरण बहु सुरककारण॥ जिणवर जग उजोय करे तेजें करि दिनकार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ए) सिंहासण सामिय उविर्ज, हुढं सुजयजयकार ॥१६॥ ॥ तृतीयनाषा ॥ __॥ तो चढि घणमाण गजें, इंदनूई नूयदेव तो ॥ हुंकारो करी संचरि, कवण सुजिणवर दे व तो ॥ १७ ॥ जोजन नूमि समोसरण, पेखवी प्र थमारंन तो ॥ दह दिसि देखे विबुधवह, श्रावं ती सुररंज तो ॥ १७ ॥ मणिमय तोरण दंग धज, कोसिसे नव घाट तो ॥ वयरविवर्जित जंतुगण, प्रातीहारज आठ तो ॥ १५ ॥ सुर नर किन्नर अ सुरवर, इंड इंशाणी राय तो ॥ चित्त चमकिय चिंत वे ए, सेवंता प्रजुपाय तो ॥ २० ॥ सहसकिरण सम वीर जिण, पेखवी रूप विसाल तो ॥ एह असंचव संजव ए, साचो ए इंजाल तो ॥२१॥ तो बोलावे त्रिजगगुरु, इंजनूई नामेण तो ॥ श्री मुख संसय सामि सवे, फेडे वेदपएण तो ॥श्शा मान मेदिह मद ठेलि करे, नक्तं नामें सीस तो॥ पंचसयागुं व्रत लिउँ ए, गोयम पहिलो सीस तो ॥ २३ ॥ बंधव संजम सुणवि करे, अगिनिनूई श्रावेश तो ॥ नाम लेइ थानाष करे, तं पुण प्र तिबोधेश् तो ॥ २४ ॥ इणि अनुक्रमें गणहररय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) ण, थाप्या वीर ग्यार तो ॥ तो उपदेशे जुवन गुरु, संजमशुं व्रत बार तो ॥ २५॥ बिहु उपवासे पार' ए, आपण विवरंत तो ॥ गोयम संज म जग सयल, जयजयकार करंत तो ॥ ६ ॥ ॥ वस्तुबंद ॥ ॥ इंदनूई इंदनूई चढिय बहु मान ॥ ढुंकारो कर कंपतो समवसरण पुहतो तुरंतो ॥ श्ह संसा सामि सवे, चरमनाद फेडे फुरंतो ॥ बोधबीज स द्यायमने, गोयम जवह विरत्त ॥ दिक लेश सिरका सहिय, गणहर पय संपत्त ॥२७॥ ॥ चतुर्थनाषा ॥ ॥आज हर्ड सुविहाण, अाज पचेलिमां पुस जरो ॥ दीग गोयम सामि, जो निय नयणे अ मिय करो ॥२०॥ सिरि गोयम गणहार, पंच सया मुनि परवरिय ॥ नूमिय करय विहार, जवियां ज न पडिबोह करे ॥ श्ए॥ समवसरण मकार, जे जे संसा उपजे ए॥ते ते पर उपगार, कारण पूजे मुनि पवरो ॥ ३० ॥ जिहां जिहां दीजें दिक, तिहां तिहां केवल उपजे ए ॥ आप कन्हे अणडंत, गोयम दीजें दान श्म ॥ ३१ ॥ गुरु उपर गुरुन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३१) त्ति, सामी गोयम उपनिय ॥ण बल केवल ना ण, रागज राखे रंगनरें ॥ ३२ ॥ जो अष्टापद शैल, वंदे चढि चवीस जिण ॥ श्रातम लब्धि वसेण, चरमसरीरी सोश मुनि ॥ ३३ ॥ श्श दे सण निसुणेश, गोयम गणहर संचलिः ॥ तापस पन्नरसएण, तो मुनि दीगे श्रावतो ए॥३४॥ तवसोसिय निय अंग, अम्ह सक्ति नवि उपजे ए ॥ किम चढशे दृढकाय, गज जिम दीसे गाज तो ए॥ ३५॥ गिरु ए अनिमान, तापस जो म न चितवे ए॥ तो मुनि चढि वेग, आलंब वि दिनकर किरण ॥३६॥ कंचन मणि निप्प न्न, दंग कलस धज वड सहिय ॥ पेख वि परमा णंद, जिणहर नरदेसर महिथ ॥ ३७॥ निय निय काय प्रमाण, चउदिसि संग्थि जिणहबिं ब ॥ पणमवि मन उदास, गोयम गणदर तिहां वसिय ॥ ३० ॥ वयरसामीनो जीव, तीर्यग्रजूंजक देव तिहां ॥ प्रतिबोधे घुमरीक, कंमरीक अध्ययन जणी ॥ ३५ ॥ वलता गोयमसामि, सवि तापस प्रतिबोध करे। लेई आपणे साथ, चाले जिम जू थाधिपति ॥ ४० ॥ खीर खंम घृत आणि, अमि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) अ वूठ अंगुठ ग्वे ॥ गोयम एकण पात्र, करावे पारणुं सवे ॥४१॥ पंचसया शुज नाव, उजाल नरि खीरमीसें ॥ साचा गुरुसंजोग, कवल ते केवल रूप दुआ ॥ ४२ ॥ पंचसया जिणनाह, स मवसरण प्राकार त्रय ॥ पेखवि केवल नाण, उप्प नो उजोय करे ॥ ४३ ॥ जाणे जिणह पीयूष, गाजंती घण मेघ जिम ॥ जिनवाणी निसुणे, नाणी हूआ पंचसया ॥ ४ ॥ ॥ वस्तुचंद ॥ ॥णे अनुक्रमें श्णे अनुक्रमें नाण संपन्न ॥ प नरह सय परवरिय हरिय फुरिय जिणनाह वंदे ॥ जाणवि जग गुरुवयण तिह नाण अप्पाण निंदे॥ चरम जिणेसर श्म जणे, गोयम म करिस खेल ॥ बेद जई आपण सही, होसुं तुझा बेउ ॥ ४५ ॥ ॥ पंचम नाषा ॥ ॥सामि ए वीर जिणंद, पूनिम चंद जिम उल्ल सिथ ॥ विहरि ए नरहवासम्मि, वरिस बहुत्तर संवसिय॥ठवतो ए कणय पउमेव, पायकमल संचे सहिथ॥श्राविउ ए नयणाणंद,नयर पावापुरि सुरम हिय ॥ ४६ ॥ पेखि ए गोयम सामी, देवसमा प्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३३) तिबोध करे ॥ आपण ए त्रिशला देवि, नंदन पहो तो परम पए ॥ वलतो ए देव आकास, पेखवि जा णिय जिण समे ए ॥ तो मुनि ए मन विखवाद, नादन्नेद जिम ऊपनो ए ॥४॥ कुण समोए सामिय देखि, आप कन्हे हुं टालि ए॥ जाणतो ए ति हुअणनाह, लोक विवहार न पालि ए ॥ अति जलु ए कीध सामि, जाणिलं केवल मागसे ए॥ चिंतविलं ए बालक जेम, अहवा के. लागसे ए ॥ ४० ॥ हुँ किम ए वीर जिणंद, नगतें नोलो नो लवि ए॥आपणो ए अविहल नेह, नाह न संपे साचव्यो ए ॥ साचो ए श्ह वीतराग, नेह न जे णे लालि ए ॥ इण समे ए गोयमचित्त, राग वैरा गें वालि ए ॥ ४ए ॥ आवतो ए जो ऊलट, रहे तो रागें साहिए ॥ केवल ए नाण उप्पन्न, गोय म सहेजें उमाहिउँ ए ॥ तिहुश्रण ए जय जय कार, केवल महिमा सुर करे ए ॥ गणहरू ए करय वखाण,नवियण जव श्म निस्तरे ए ॥ ५० ॥ ॥वस्तुबंद ॥ ॥ पढम गणहर पढम गणहर वरस पंचास ॥ गि हिवासें संवसिय तीस वरिस संजम विजूसिय ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४) सिरिकेवल नाण पुण बार वरिस तिहुश्रण नमंसि य ॥ रायगिहि नयरी पवित्र बाणवश वरिसाउँ ॥ सामी गोयम गुण निलो, होसे सिवपुर गठ॥५१॥ ॥ षष्ठनाषा ॥ ___॥ जिम सहकारें कोयल टहुके, जिम कुसुमव में परिमल बहेके, जिम चंदन सुगंधनिधि ॥ जिम गंगाजल लहेरें लहके, जिम कणयाचल तेजें ऊलके, तिम गोयम सौनाग्य निधि ॥ ५५ ॥ जिम मान सरोवर निवसे हंसा, जिम सुरवर सिरि कणयवतं सा, जिम महुयर राजीववनी ॥ जिम रयणायर र यणे विलसे, जिम अंबर तारागण विकसे, तिम गोयम गुणकेलि वनी ॥ ५३ ॥ पूनिम निसि जिम ससिहर सोहे, सुरतरु महिमा जिम जग मोहे, पू रव दिसि जिम सहसकरो ॥ पंचानन जिम गि रिवर राजे, नरवर घर जिम मयगल गाजे, तिम जिनशासन मुनि पवरो ॥५४॥ जिम सुरतरुवर सोहे शाखा, जिम उत्तममुख मधुरी जाखा, जि म बनकेतकी महमहे ए ॥ जिम नूमिपति जुयबल चमके, जिम जिनमंदिर घंटा रणके, तिम गोय म लब्धिहि गहगहे ए ॥ ५५ ॥ चिंतामणि कर च Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३५) ढि थाज, सुरतरु सारे वंडित काज, कामकुंन स वि वस दुश्रा ए ॥ कामगवी पूरे मनकामिय, अष्ट महासिजि श्रावे धामिय, सामी गोयम अणुसरो ए ॥५६॥ पणवकर पहेलो पजणीजें, मायाबीज श्र वण निसुणीजें, श्रीमती शोना संजवे ए॥ देवहधु रि अरिहंत नमीजें, विनयपह उवप्नाय थुणीजें, ण मंत्र गोयम नमो ए ॥ ५७ ॥ पुर पुर वसतां कां करीजें, देश देशांतर कांश नमीजें, कवण काज श्रायास करो ॥ प्रह ऊठी गोयम समरीजें, काज समग्रह (सुमंगल ) ततखण सीके, नवनिधि विलसे तास घरे ॥५॥ चउदह सय बारोत्तर वरसें, गोयम गणहर केवल दिवसें, “ खंन नयर सिरि पास पसा यें” कियुं कवित उपगार करो ॥ आदें मंगल ए ह पजणीजें, पर्वमहोत्सव पहिलो कीजें, कि वृद्धि कहाण करो॥॥धन्य माता जिणे उयरें धरिया, धन्य पिता जिण कुल अवतरिया, धन्य सहगुरु जिणे दिकिया ए॥विनयवंत विद्यानंमार, जस गुण पुहवी न लाने पार, वड जिम शाखा विस्तरो ए॥६॥गौतम स्वामीनो रास नणीजें, चजबिह संघ रसियायत की जे, सकल संघ आणंद करो ॥ कुंकुम चंदन बडो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३६ ) दवरावा, माणक मोतीना चोक पूरावो, रयण सिं दास बेसो ए ॥ ६१ ॥ तिहां बेसी गुरु देशना देशे, जविक जीवनां काज सरीशे, उदयवंत मुनि इम ज ए ॥ गौतमखामी तणो ए रास, जणतां सुतां लील विलास, सासय सुखनिधि संपजे ए ॥ ६२ ॥ एह रास जे जणे जगावे, वर मंगललबी घर यावे, मन वांबित आशा फले ए ॥ ६३ ॥ इति श्री गौतमस्वामीनो रास संपूर्ण ॥ ॥ श्री प्रजातसमयें मंगलाचार ॥ ॥ श्लोक ॥ मंगलं जगवान् वीरो, मंगलं गौत मप्रभुः ॥ मंगलं स्थूलिनाया, जैनोधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ १ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ एक जंबु जग जाणियें, बीजा नेम कुमार ॥ त्री जा वयर वखाणियें, चोथा गौतम स्वामि ॥२॥ अंगू अमृत वसे, लब्धि तणो जंगार ॥ ते गोयम गुरु सम रियें, वांबित फल दातार ॥३॥ श्लोक ॥ श्री एम हानसी लब्धि, केवल श्रीः करांबुजे ॥ नामलक्ष्मी मुर्मु खे वाणी, तं च श्री गौतमं स्तवे ॥४॥ सर्वारिष्टप्रणा शाय, सर्वाभीष्टार्थदायिने ॥ सर्वलब्धिनिधानाय, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३७) गौतमस्वामिने नमः ॥५॥दोहा॥ पुंमरिक गोयम प मुह, गणहर गुणसंपन्न ॥प्रह ऊठी नित्य प्रण मियें, चउदहसें बावन्न ॥६॥ बोरस किमरस किन्नरस, चो था जसोनप्रसूरि ॥त्रणे कालें समरतां,उरिय पणा से दूर ॥॥ जे चारित्रे निर्मला, ते पंचायण सिंह ॥ विषयकषायने गंजिया, ते समरो निशि दीह॥॥ गाम तणे पेसारणे, नगर तणे सुविशेष ॥ अव सर पहेलो संनारियें, गौतम नाम गणेश ॥ ए॥ शार्दूलविक्रीडितं वृत्तं ॥ ब्राह्मी चंदनबालिका नग वती राजीमती जौपदी, कौशल्या च मृगावती च सुलसा सीता सुनना शिवा ॥ कुंती शीलवती न लस्य दयिता चूला प्रजावत्यपि, पद्मावत्यपि सुंदरी दिनमुखे कुर्वतु वोमंगलम् ॥ १० ॥ सर्वमंगलमां गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् ॥ प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ११॥ ॥ अथश्री गौतमाष्टकछंद प्रारंजः ॥ ॥ चोपाई ॥ वीर जिणेश्वर केरो शिष्य, गौतम नाम जपो निश दीस ॥ जो कीजें गौतमनुं ध्यान, तो घर विलसे नवे निधान ॥ १॥ गौतम नामें गिरिवर चढे, मनवांडित हेला संपजे ॥ गौतम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३७) नामें नावे रोग, गौतम नामें सर्व संजोग ॥५॥ जे वैरीविरुया वंकडा, जस नामें नावे ढकडा ॥ चूत प्रेत नवि मंके प्राण, ते गौतमनां करूं वखा ण ॥३॥ गौतम नामें निर्मल काय, गौतम नामें वाधे श्राय ॥ गौतम जिनशासन शिणगार, गौत म नामें जय जयकार ॥ ४ ॥ शाल दाल सुरहां घृत गोल, मनवांवित कापड तंबोल ॥ घरे सुघरणी निर्मल चित्त, गौतम नामें पुत्र विनीत ॥ ५ ॥ गौतम उदयो अविचल नाण, गौतम नाम जपो जग जाण ॥ महोटां मंदिर मेरु समान, गौतम नामें सफल विहाण ॥६॥ घर मयगल घोडानी जोड, पहोंचे वारू वांबित कोड ॥ महियल माने महोटा राय, जो तू गौतमना पाय ॥ ७॥ गौत म प्रणम्यां पातक टले, उत्तम नरनी संगति मले। गौतम नामें निर्मल शान, गौतमनामें वाधे वान ॥ ७ ॥ पुण्यवंत अवधारो सहु, गुरु गौतमना गुण बे बहु ॥ कहे लावण्यसमय कर जोडि, गौतम तूठे संपत्ति कोडि ए॥इति गौतमाष्टकबंदःसंपूर्णः॥ ॥अथ गणधरस्तवन प्रारंजः॥ ॥ एकादश गणधरनां नाम, प्रह ऊठीने करूं For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३ए) प्रणाम ॥ अनूति पहेलो ते जाण, अग्निनूति बी जो गुणखाण ॥१॥ वायुनूति त्रीजो जग सार, ग णधर चोथो व्यक्त उदार ॥ शासनपति सुधर्मा सा र, मंमितनामें बहो धार ॥२॥ मौर्यपुत्र ते सात मो जेह ॥ अकंपित अष्टम गुणगेह ॥ मुनिवरमांहे जे परधान, अचलत्रात नवमो ए नाम ॥३॥ ना मथकी होय कोडि कल्याण, दशमो मेतारज अवि रलवाण ॥ एकादशमो प्रनास कहेवाय, सुखसंपत्ति जस नामें थाय ॥४॥ गाया वीर तणा गणधार, गुणमणिरयण तणा नंमार ॥ उत्तम विजय गुरुनो शिष्य, रत्न विजय वंदे निशदिस ॥ ५॥ इति ॥ ॥अथ गौतमाष्टक प्रारंजः ॥ ॥ राग प्रजाती ॥ मात पृथ्वीसुत, प्रात ऊठी नमो, गणधर गौतम, नाम गेलें ॥ प्रह समय प्रेमद्रु, जेह ध्यातां सदा, चढती कला होय, वंशवेले ॥ मा ॥ १॥ वसुजूतिनंदन, विश्वजनवंदन, उरितनिकं दन, नाम जेनुं ॥ अन्नेदबुझें करी, नविजन जे जजे, पूर्ण पोतें सही, जाग्य तेहy ॥ मा ॥ ॥ सुरम णि जेह, चिंतामणि सुरतरु, कामित पूरण, काम धेनु ॥ तेह गौतमनु, ध्यान हृदयें धरो, जेहथकी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४०) अधिक नहिं, माहात्म्य केनुं ॥ मा ॥३॥ प्रणव श्रादें धरी, मायाबीजव करी, खमुखें गौतमनाम ध्यायें ॥ कोडि मन कामना, सफल वेगें फलें, विघन वैरी सवे, दूर जाये ॥ मा० ॥४॥ ज्ञानबल तेज स, सकल सुखसंपदा, गौतमनामथी, सिकि पामे ॥ अखंग प्रचंम, प्रताप होय अवनिमां, सुर नर जेह ने, शीश नामे ॥ मा० ॥ ५॥ पुष्ट दूरे टले, वजन मेलो मले, आधि उपाधि ने, व्याधि नासे ॥ नूतनां प्रेतना, जोर जांजे वली, गौतमनाम, जपतां उबासें॥ मा॥६॥ तीर्थअष्टापदें,आप लब्धं जई, पन्नरसेंत्रण ने, दिक दीधी॥अष्टम पारणे, तापस कारणे, दीरल ब्धे करी, अखट कीधी ॥मा॥७॥ वरस पच्चा स लगें, गृहवासें वस्या, वरस वली त्रीश करी, वीर सेवा ॥ बार वरसां लगें, केवल लोगव्युं, नक्ति जे हनी करे, नित्य देवा ॥ मा० ॥ ॥ महियल गौ तम, गोत्र महिमानिधि, गुणनिधि शछि ने, सिद्धि दायी ॥ उदय जस नामथी, अधिक लीला लहे,सु जस सौजाग्य दो, लत सवाई ॥माण ॥ ए ॥ इति ॥ ॥अथ श्रीगौतमगुरुनी चोपाई॥ ॥जयो जयो गौतम गणधार, महोटी लब्धि त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४१ ) यो नंगार ॥ समरे वांछित सुखदातार, जयो जयो गौतम गणधार ॥१॥ वीर वजीर वडो अणगार, चौद हजार मुनि शिरदार ॥ जपतां नाम होय जयकार, जयो जयो गौतम गणधार ॥ २ ॥ गयगमणी रमणी जगि सार, पुत्र कलत्र सजन परिवार ॥ श्रवे कन क कोडी विस्तार, जयो जयो गौतम गणधार ॥३॥ घरे घोडा पायक नहिं पार, सुखासन पालखी उ दार | वैरी विकट थाय विसराल, जयो जयो गौ तम गणधार ॥४॥ प्रह ऊठी जपियें गणधार, रु द्धि सिद्धि कमला दातार ॥ रूप रेख मयण अवता र, जयो जयो गौतम गणधार ॥ ५ ॥ कवि रू पचंद गणि केरो शिष्य, गौतम गुरु प्रणमे निशि दीस ॥ कहे चंद ए सुमतागार, जयो जयो गौतम गणधार ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ अथ ॥ ॥ श्रीवृद्धचैत्यवंदन प्रारंभः ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ॥ केवलनाणी श्री निरवाणी, सागर महाजस वि मल ते जाणी ॥ सर्वानुभूति श्रीधर गुणखाणी ॥ द त दामोदर वंदूं प्राणी ॥ १ ॥ सुतेजस्वामी मुनिसु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४५) व्रत जाणी, सुमतिने शिवगति पंचम नाणी ॥ श्र स्तांग नेमीसर अनिल ते जाणी, जशोधर सेवो म नमांहि आणी ॥२॥ कृतारथ जपतां नवि होये हाणी, धर्मीसर पाम्या शिवपुरराणी ॥ शुझमति शिवकर स्यंदनगणी, संप्रतिना गुण गाये इंशाणी ॥३॥ वाचकमूला कहे उगते नाणी, तवन नणो जिम था नाणी ॥ ए चोवीशी नित्य नित्य गाणी, मुक्ति तणां सुख जिम यो ताणी ॥४॥ ॥ढाल बीजी॥ ॥श्रादें अजितज रे, संजव अभिनंदन जणुं ॥ श्रीसुमतिज रे, पद्मप्रनजीना गुण थुगुं ॥ श्रीसुपा रस रे, चंप्रन जग जाणीयें ॥ सुविधि शीतल रे, श्रेयांस हरखें वखाणीयें ॥१॥ त्रूटक ॥ वखाणीयें श्रीवासुपूज्य, विमल अनंत धर्म शांति ए॥ कुंथु अर मसि मुनि सुव्रत, नमि नेम ध्याचं चित्त ए ॥ शूर धीर पार्श्ववीर, वर्तमाने जिनवरा ॥ कर जोडी वाच क जणे मूला, स्वामी सेवक सुखकरा ॥२॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ पद्मनान सुरदेव, सुपार्श्व स्वयंप्रन होई ॥ स र्वानुजूति देवसुत, उदय पेढालज जोई ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४३ ) पोटिल सत्कीर्त्ति, मुनिसुव्रत मम निःकषाय ॥ निपुलायक निर्मम, चित्रगुप्ति वंदूं पाय ॥ २ ॥ स माधि सुसंवर, जशोधर विजय मल्ली देव ॥ अनंत वीरज जयकृत, तेड़नी कीजें सेव ॥ ३ ॥ अनागत जिनवर, दोशे तेनां नाम ॥ जणे वाचकमूला, तेने करूं प्रणाम ॥ ५ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ ॥ महा विदेहें पंच मकार, प्रत्येकें जिन चार ॥ सीमंधर जुगमंधर, बाहु सुबाहु ा सुखकार ॥१॥ सुजात स्वयंप्रन स्वामी, उसजानन बेहुं नामी ॥ अनंतवीरज देव, सुरप्रभु करूं सेव ॥२॥ विशाल वज्रधर साहु, चंद्रानन चंद्रबाहु ॥ भुजंग ईश्वर गा जं, नेमी प्रभु चित्त ए लाई ॥ ३ ॥ वीरसेन म हाज वंदूं, देवजसा दीठे आनंदूं || अजितवी रिय वंदन, शाश्वता कृषना चंद्रानन ॥ ४ ॥ वई मान वारिषेण ईश, ए हुआ जिन चोवीश ॥ एवा बन्नु ए जिनवर, वाचकमूला कहे सुखकर ॥ ५ ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ ॥ दवे पायायें लोक मद्य, जिहां मार ॥ लाख चोसह जिनजुवन अबे, For Personal and Private Use Only Jain Educationa International असुर कुं तिहां क Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४) रुं जूहार ॥ १॥ नागकुमारमाहे कह्या, तिहां ला ख चोराशी ॥ एता जिनहर तिहां नर्मु, थालं,सम कित वासी ॥२॥ सोवन कुमार मद्य लाख, ब हुँतेर प्रासाद ॥ बन्नु लाख वायु मद्य, सुणिये सुर नाद ॥३॥ दीपकुमार दिशाकुमार, वली उदधि कुमार ॥ विद्युत स्तनित कुमार अने, वली अग्नि कुमार ॥४॥ए गए स्थानक जाणिये, प्रत्येकें जिनहर ॥ बहुंतेर उहुँतेर लाख तिहां, नवित्रण जिन सुखकर ॥५॥ एवंकारें सवि मली, बलुतेर ति हां लाख ॥ सात कोडी जिनहर नमुं, श्रीजि नवर लांख ॥ ६॥ लाख सात निव्यासी कोडी, अने तेरशें कोडी ॥ जिनपडिमा श्रीजिन तणी, वंदू बे कर जोडी ॥७॥ असंख्या व्यंतर जो सी, असंख्या जिनहर ॥ असंख्य पडिमा जिन तणी, नमिय नहिं उर्गति मर ॥ ॥ वाचकमू ला कहे देव, देउ सुमति सदा मुक ॥ जिनव चनें हुं लीन थर, गाउं जिनजी तुज ॥ ए॥ ॥ ढाल बही॥ ॥ सोहम ईशान सनत कुमार ए, माहिद बं नरे लांतक सार ए ॥Jटक ॥ सार सुक्र अने नवर नांखलात कोडी लव मली, बहुत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४५) सहसारह, थानत प्राणत श्रारण ॥ अच्चुत नवौवे यक त्रिक तिहां, पंच अनु त्तर तारणा अनुक्रमेंप्रा साद कहीयें, लाख सहस सत संखया ॥ बत्तीस अ छावीस बारह,अह चज लख अकया ॥१॥ पन्नास चालीस बसहस जिनहरा ॥ दोदो दोढज दोढज सतवरा ॥ त्रूटक ॥ वरा सत्तवर ग्यारोत्तर, सत्तो तरसो जाणीएं। एकशो उपर पंच अनुत्तर, अनुक्रमें वरवाणी ॥ सवे मली जिनहर सवे जिनहर लाख चोरासी साख ए॥ सहस सत्ता' आगला, तिहां वीशने त्रण दाख ए॥२॥ चाल ॥ एकसो कोमी रे, बावन कोडी ए ॥ लाख चोराणुं रे, संख्या जो डी ए ॥ त्रूटक ॥ जोडिएं चोशह सहस एकशो, चालीशै तिहां आगली ॥ जिनप्रासाद एकशो असि अ लेखें, वंदू प्रतिमा ऊजली ॥ चैत्यसंख्या ऊर्ध्व लोकें, वीरवचन विख्यात ए ॥ वाचक मूला कदे नणजो, स्तवन ए रप नात ए ॥३॥ ॥ढाल सातमी ॥ ॥ वेयढ गिरि सिंतरसो जिनहर, वृषधरना तिहां त्रीश जी ॥ कुरुषुमना दश जिनहर बोल्या, गजदंतें तिहां वीश जी ॥१॥असिथ ते जिनहर १० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४६ ) कुरुशुम परिघे, असिथ वखारे जाणुं जी ॥ मेरुत णा पंचासी जिनहर, इकुकारें चार वखाएं जी॥ ॥ मानुषोत्तर पर्वत तिहां चारज, नंदीसरना वी सजी ॥ कुंमल रुचक तिहां चार चार जिनहर, क षनादिक तिहां ईश जी ॥३॥ पंचसया ग्यारें अ धिका, जिनहर ती लोकें जी ॥ पडिमा एकशन सहस चारसें, बोली सघले थोकें जी ॥४॥ अधो ऊर्ध्व ने तीर्ने लोकें, सवे मली कोडी आहे जी ॥ला ख उप्पन्न ने सहस सत्ताएं, पणसय चोत्रीश पाठे जी ॥ ५॥ जिनपडिमा पन्नरसे कोडी, बहेतालीश वली कोडी जी ॥ लाख पंचावन सहस पणवीस, प सय चालीश जोडी जी ॥६॥ एता तवन नणे जे नावें, प्रहर उगमते सूरें जी ॥ वाचकमूला क हे गुण गातां, पुर्गति नासे दूरे जी ॥७॥ ॥ ढाल श्रामी॥ ॥ अहावय समेत शिखर गिरि ॥ साजिन जिय ॥ रेवतगिरि सेतुंज ॥ गजपद धम्मचक्क कहुँ । सा ॥ वैजारगिरि उत्तंग ॥१॥रावते कुंजरावते ॥ सा ॥ तिहुअणगिरि ग्वालेर ॥ काशी अवंती जाणीयें ॥ सा ॥ नागोर जेसलमेर ॥२॥ सोरि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७) पुर हलिणाजरे ॥ सा ॥ अवल ईरावण पास ॥ पीरोज पुरें नूअड नलो ॥ सा ॥ फल विधि पूरे श्राश ॥ ३ ॥ विकानेर ने मेडते ॥ सा ॥ सीरोही आबू शृंग ॥राणाग पुरने सादडी ॥ सा ॥ वर काणे मनरंग ॥४॥ निन्नमाल ने कोटडे ॥ सा बाहडमेर मकार ॥ रायधणपुर रलियामणुं ॥सा॥ शांतिनाथ दयोज जूदार ॥५॥सा॥ साचोरजालो रराडबेंगोडी पुरवर पास॥पाटण अमदावाद वली॥ सा॥सं खेश्वर दीजें नास ॥६॥अमीफरे नव पद्धवे ॥सा॥ नवखम थला गम ॥ तारंगे बुरहानपुरें सा० ॥ वंदूं माणक शाम ॥ ७॥ खंजायत ने तारा पुरें ॥सा॥ मातर ने गंधार ॥ लोमण चिंतामणि वरं ॥ सा ॥ सूरत मनोश् जूहार ॥ ७॥ देवक पा टण देवगिरि ॥सा ॥ नवेनगर वंदी जोय ॥ दी वादिक सवि बंदरे ॥ सा ॥ अंतरिक सिरिपुर होय ॥ ए ॥ वडनगर ने कुंगरपुरें ॥ सा० ॥ श्मर मालव देश ॥ कल्याणक जिहां जिन तणुं ॥ साल ॥ मन सूधे प्रणमेश ॥ १० ॥ गाम नगर पुर पाट णे ॥ सा ॥ जिनमूरति जिहां होय ॥ वाचकमूला कहे मुळ ॥ सा ॥ वंदतां शिवसुख होय ॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७) ॥ अथ कलश ॥ ॥न्नु ए जिनवर बन्नु ए जिनवर अधो ऊर्ध्व ने लोक ती. जाणुं ए ॥ सासय असासय जैनप डिमा ते सवे वखाणुं ए ॥ गठविधिपद पूज्य परग ट श्रीधर्ममूर्ति सूरी ए॥ वाचकमूला कहे जणतां, शभिवृद्धि आणंदुए ॥१॥ इति वृहाचैत्यवंदनम् ॥ ॥ अथ चैत्यवंदन प्रारंजः ॥ ॥स्रग्धरावृत्तम् ॥ ॥ सङ्गत्या देवलोके रविश शिनवने, व्यंतरा णां निकाये, नदत्राणां निवासे ग्रहगणपटले तार काणां विमाने ॥ पाताले पन्नगें स्फुटमणि किरणे ध्वस्तसांबांधकारे, श्रीमतीर्थकराणां प्रतिदिवसम हं तत्र चैत्यानि वंदे ॥१॥ वैताढये मेरुशंगेरु चकगिरिवरे कुमले हस्तिदंते, वकारे कूटनंदीश्वर कनकगिरौ नैषधे नीलवंते ॥ चित्रे शैलेविचित्रे य मकगिरिवरे चक्रवाले हिमाली ॥ श्रीम० ॥२॥ श्रीशैले विंध्यशृंगे विमल गिरिवरे ह्यर्बुदे पावके वा, सम्मेते तारके वा कुल गिरिशिखरेऽष्टापदे व र्णशैले ॥ सह्याौ वोजयंते विपुलगिरिवरे गुर्जरे रोहणासौ ॥ श्रीम ॥३॥ श्राघाटे मेदपाटे कि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४ए) तितटमुकुटे चित्रकूटे त्रिकूटे, लाटे नाटे च धाटे विटपिघनतटे देवकूटे विराटे ॥ कर्णाटे हेमकूटे वि कटतरकटे चक्रकूटे च नोटे ॥ श्रीम ॥४॥ श्री माले मालवे वा मलयजनिखले मेखले पिछले वा, ने पाले नाहले वा कुवलयतिलके सिंहले मेखले वा ॥ माहाले कोशले वा विगलितसदिले जंगले वा तमाले ॥ श्रीम० ॥ ५॥ अंगे वंगे कलिंगे सुगत जनपदे सत्प्रयागे तिलंगे, गोडे चौडे मुरंझे व रतरत्रविडे उजियाणे च पौंजे ॥ श्राजे माझे पु लिंझे अविडकुवलये कान्यकुब्जेसुराष्ट्रे ॥ श्री० ॥ ६ ॥ चंपायां चंडमुख्यां गजपुरमथुरापत्तने चो जायिन्यां, कौशांब्यां कोशलायां कनकपुरवरे दे वगिर्यां च काश्यां ॥ नाशिक्ये राजगेहे दश पु रनगरे नदिले तामलियां ॥ श्रीम० ॥ ७॥ खर्गे मत्]तरिदे गिरिशिखरआहे वर्णदीनीरतीरे, शै लाग्रे नागलोके जलनिधिपुलिने नूरुहाणां नि कुंजे ॥ ग्रामेऽरण्ये वने वा स्थलजल विषमे पुर्ग मध्ये त्रिसंध्यं ॥ श्रीम ॥ ॥ “श्रीमन्मेरौ कुला सौ रुचकनगवरे शाल्मलौ जंबुवृदे, चौजान्ये चैत्यनंदे रतिकररुचके कौंमले मानुषांके ॥ तू का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५० ) रे जिनाौ दधिमुखच गिरौ व्यंतरे स्वर्गलोके, ज्योतिलोंके जवंति जुवनमहतले यानि चैत्याल यानि" ॥ श्रीम० ॥ ए ॥ इयं श्रीजैनचैत्यस्तवन मनुदिनंये पठति प्रवीणाः, प्रोद्यत्कल्याणहेतुं कलि मलहरणं जक्तिनाज स्त्रिसंध्यम् ॥ तेषां श्रीतीर्थया चाफलमतुलमलं जायते मानवानां, कार्याणां सिद्धि रुच्चैः प्रमुदितमनसां चित्तमानंदकारि ॥१०॥ इति ॥ ॥ अथ अर्हतां स्तुतिप्रारंभः ॥ ॥ श्री अरिहंत नमीजें ॥ चतुरनर ! श्री अ रिहंत नमीजें ॥ ए कणी ॥ बारस गुण शोजित जगमोहित, सुर नर नमित कहीजें ॥ श्रतिशय चार प्रथम वली आठे, प्रातिहार जस लहीजें ॥ च० ॥ श्री० ॥ १ ॥ चार सहज एकादश खायिक, उ गणीश दैव्य ग्रहीजें ॥ उत्तर अतिशय चोत्रीश पांत्रीश, वाणी समीप रहीजें ॥ च० ॥ श्री० ॥२ ॥ तीर्थंकर पद जोगी सयोगी, गुणठाणे प्रणमी जें ॥ जावस्वरूप रमण अजिलाष्यो, तेहनी था आप वहीजें ॥ च० ॥ श्री० ॥३॥ इत्यर्हतांस्तुतिः ॥ ॥ श्रथ तीं प्रियस्वरूप सिद्धस्तुति प्रारंभः ॥ ॥ परमेष्ठी आराधि, सुगुणिजन ! परमेष्ठी धारा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५१ ) धी ॥ शिव अविचल अरु जानत पदवी, अक्षय व्याबाध ॥ पुनर्जव सिद्धिगति सुख पूरण, are संपत्ति अबाधी । सुगु० ॥ पर० ॥ १ ॥ दर्श नज्ञान वीरिय सुखसंपद, अनंत चतुष्ट निरुपाधि ॥ तस जावादि निक्षेप जजनथी, थाये स्वरूपसमा धि || सुगु० ॥ पर० ॥२॥ इत्यतींद्रिय स्वरूप स्तुतिः ॥ ॥ अथ आचार्योपाध्यायाऽनगाराणां ॥ ॥ युगपत्स्तुतिप्रारंजः ॥ ॥ श्राचारिज पदसेवा, चहत मन श्राचारिज पदसेवा ॥ सुरपति सेवित त्रिपदी अन्यासें, शीश धरेवा सखेवा ॥ तीर्थंकर देवबंद विराजित, गण धर देशना देवा ॥ च० ॥ श्र० ॥ १ ॥ अंग डु वादस चउदस पूरव, मुहूर्त्तमांदे करेवा ॥ उप गारी उवसाय मुनिने, अंग उपांग धरेवा ॥ च० ॥ श्र० ॥ २ ॥ निजगुण अधिक उपासक चारो, सिद्धि अनीह कहेवा | जावस्वरूपचंद्र जिम उ से, सिद्धरमण सुखमेवा ॥ च० ॥० ॥३॥ इत्यां चार्योपाध्यायाऽनगाराणां युगपत्स्तुतयः संपूर्णाः ॥ ॥ अथात्मगुणस्तवनप्रारंभः ॥ ॥ श्रातमगुण अनिलाख्यो | अनुभवी श्रातम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५५) गुण अनिलाख्यो दर्शन झान चारित्र तपोगुण, वी. रिज उपयोग दाख्यो॥ पुजल खंधादिकथी अलगो, श्रीजिनराजें लांख्यो ॥ अनुन्नवी०॥ श्रा० ॥१॥ तेह नुं लक्षण मूलचेतना, पुजल जड गुण श्राख्यो। जि नमत शुद्धस्वरूपउसासें, खगुणरमण रस चाख्यो॥ अनुनवी० ॥श्रा ॥२॥ इत्यात्मगुणस्तवनं समाप्तं ॥ ॥ अथ सिकाचलजीन चैत्यवंदनप्रारंजः॥ ॥विमल केवलज्ञानकमला, कलितत्रिजुवन, हित करं ॥ सुरराजसंस्तुत चरणपंकज ॥ नमो आदि जिनेश्वरम् ॥१॥ विमल गिरिवर, शृंगमंगण, प्रवरगुण गणनूधरं ॥ सुर असुर किन्नर, कोडिसेवित॥ नमो ॥२॥ करति नाटिक किन्नरीगण. गाय जिनगुण मनहरं ॥ निर्जरा वली नमे अहोनिश ॥नमो॥३ ॥ पुंमरीक गणपति सिद्धि साधि, कोडि पण मुनि मनहरं ॥ श्रीविमल गिरिवर शुंग सिझा ॥ नमो ॥४॥ निज साध्यसाधन सुर मुनिवर, कोडीनंत ए गिरिवरम् ॥ मुक्तिरमणी वस्या रंगें ॥ नमो ॥५॥ पाताल नर सुर लोकमांही, विमल गिरिवरतो परं॥ नहिं अधिक तीरथ तीर्थपति कहे ॥ नमो ॥६॥ एम विमल गिरिवर शिखरमंगण, फुःखविहंमण ध्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५३) इयें || निज शुद्ध सत्ता साधनारथ, परम ज्योतिने पाइयें ॥ ७ ॥ जितमोह कोह विछोह निद्रा, परम पद स्थित जयकरम् ॥ गिरिराज सेवा करण तत्पर, प द्मविजय सुहितकरं ॥ ८ ॥ इति चैत्यवंदनं समाप्तं ॥ ॥ अथचैत्यवंदन प्रारंभः ॥ ॥ आदि देवारिहंत नमुं, समरुं तारुं नाम ॥ ज्यां ज्यां प्रतिमा जिन तणी, त्यां त्यां करूं प्रणाम ॥ १ ॥ शत्रुंजे श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरनार ॥ तारंगे श्रीजितनाथ, श्राबू रुषग जूहार ॥ २ ॥ अष्टापद गिरिपरें, जिन चोवीशे जोय ॥ मणिम य मूरति मानशुं, जरतें जरावी सोय ॥ ३॥ समेत शिखर तीरथ वहूं, जिहां वीशे जिन पाय ॥ वैजा रक गिरि ऊपरें, श्री वीर जिनैश्वरराय ॥ ४ ॥ मांगव गढनो राजियो, नामें देवसुपास ॥ षन कहे जि न समरतां, पहोंचे मननी यश ॥ ५ ॥ ॥ r चैत्यवंदन प्रारंभः ॥ ॥ सुर किन्नरनागनरिंदनतं, प्रणमामि युगादिम जिनमजितं ॥ संजवम जिनंदनमथ सुमतिं, पद्मप्र नमुज्ज्वलधीरमतिं ॥ १ ॥ वंदे च सुपार्श्व जिनेंद्र महं, चंद्रप्रनमष्टकुकर्मदहं ॥ सुविधिप्रभुशीतल जि For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५४) नयुगलं, श्रेयांसमसंशयमतुलबलम् ॥२॥ प्रजुमर्चय नृपवसुपूज्यसुतं, जिनविमलमनंतमनिझनतम् ॥ न म धर्ममधर्मनिवारिगुणं, श्रीशांतिमनुत्तरकांतिगुण म् ॥ ३ ॥ कुंथू श्रीअर महीशजिनान्, मुनिसुव्र तनमिनेमिस्तमसि दिनान् ॥ श्रीपार्श्वजिनेमिनें सम, वंदे जिनवीरमनीरुतमं ॥४॥ ॥ कलश ॥ ॥ इति नागकिन्नर, नरपुरंदर, वंदितक्रम, पं कजा॥ निर्जितमहारिपु, मोहमत्सर, मानमदमकर, ध्वजाः ॥ विलसंति सततं, सकलमंगल, केलिका नन, सन्निलाः, सर्वे जिनामे, हृदयकमले, राज हंस, समप्रजाः ॥५॥ इति चैत्यवंदनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्रीशांतिजिनस्तवन ॥ ॥ श्रीशांति जिणेसर समरियें, जेहनी अचि रा माय ॥ विश्वसेनकुल ऊपना, मृगलंबन पा य ॥ गजपुर नयरीनो धणी, सोवनवर्णी काय॥ धनुष चालिश जस देहडी, वरस लाखनुं आय ॥१॥ शांति जिनेश्वर शोलमा, चक्रीपंचम जा j॥ कुंथुनाथ चक्री बहा, अरनाथ वखाएं ॥ ए त्रणे चक्री सही, देखी आणंदूं॥ संयम ले For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५५) ई मुक्तं गया, नित्य ऊठी वंदूं ॥२॥ शांति जिनेसर केवली, बेग धर्म प्रकाशे ॥ दान शीय ल तप जावना, नर सोहे अन्न्यासें ॥ एह वचन जिनजी तणां, जिणे हियडे धरियां ॥ सुणतां समकित निर्मल, निश्चे केवल वरिया ॥३॥ समेतशिखर गिरि उपरें, जश्ने अणसण कीधुं ॥ काउस्सग्गमुजायें रह्या, तिणे मुक्तिज लीधं ॥ गरुड यकसमरं सदा, देवी निर्वाणी ॥ ज ॥ विक जीव तुमे सांजलो, षनदासनी वाणी ॥४॥ ॥ अथ श्रीसिक्ष्स्तुति प्रारंनः ॥ हरिगीत वंदनी चाल ॥ ॥ जगतनूषण विगत दूषण, प्रणव प्राणि नि रूपक ॥ ध्यानरूप अनुपउपमं, नमो सिझ निरंज नम् ॥१॥ गगन मंगल मुक्तिपनं, सर्व ऊर्ध्व निवासिनं ॥ ज्ञान ज्योति अनंत राजे, नमो सि क निरंजनम् ॥२॥ अज्ञान निडा विगत वेदन, दलित मोह निरायुकम् ॥ नाम गोत्र न अंतरायं. नमो सिफानिरंजनम् ॥३॥ विकटक्रोधा मानयो धा, माया लोन विसर्जनम् ॥ राग द्वेष विमुनि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) तांकुर, नमो सिक निरंजनम् ॥ ४ ॥ विमल केव ल ज्ञान लोचन, ध्यान सकल समीरितम् ॥ योगि नामतिगम्य रूपं नमो सिक निरंजनम् ॥ ५॥ सुस मय समकित दृष्टि जिनकी, सोहि योग अयो गिकम् ॥ योगिनामतिगम्यरूपं, नमो सिक निरं जनम्॥६॥योगमुडा सम समुजा, पूरि पत्यं कासन म्॥योगिनामति गम्य,रूपं नमो सिफनिरंजनम् ॥ चंद सूरज छीप मनकी, ज्योतियें नउबंधितं ॥ ते ज्योतिथी कोइ अपर ज्योति, नमो सिद्ध निरंजन म्॥॥ सिद्धतीर्थ अतीर्थ सिद्धा, नेद पंच दशादिकं ॥ सर्व कर्म विमुक्त चेतन, नमो सिक निरंजनम्॥॥ एकमांही अनेक राजे, एकमांहे एकिकं ॥ एक श्र नेककी नांहिं संख्या, नमो सिक निरंजनम् ॥१॥ अतुल सुखकी लहेरमें प्रजु, लीन रहे निरंतरं ॥ परब्रह्मज्ञान अनंत दर्शन, नमो सिक निरंज नम् ॥ ११॥ अजर अमर अलख अनंत, निराकार निरंजनम् ॥ धर्मध्यानथी सिकदर्शन, नमो नाथ निरंजनम् ॥ १५ ॥ इतिसिद्धस्तुतिः समाप्ता॥ ॥अथ नवकारनो छंद ॥ ॥ दोहा ॥ वांनित पूरे विविध परें, श्री जिन शास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९५७ ) न सार ॥ निश्वें श्री नवकार नित, जपतां जय ज यकार ॥ १ ॥ अडसर अक्षर अधिक फल, नव पद नवे निधान ॥ वीतराग स्वयंमुख वदे, पंच परमेष्टि प्रधान ॥ २ ॥ एकज र एक चित्त, समस्यां संपत्ति थाय ॥ संचित सागर सातनां, पातक दूर पलाय ॥ ३ ॥ सकल मंत्र शिर मुकुटमणि, सकुरु जाषित सार ॥ सो जविया मन शुद्धशुं नित्यजपी नवकार ॥ ४ ॥ बंद हाटकी || नवकारथकी श्री पार्लरेशर, पाम्यो राज्य प्रसिद्ध ॥ समशान वि षे शिव नाम कुमरनें, सोवन पुरिसो सिद्ध ॥ नव लाख जपंतां नरक निवारे, पामे जवनो पार ॥ सो नवियां तें चोखे चित्तें, नित्य जपियें नवकार ॥५॥ बांधि वड शाखा शीके बेसी, देवल कुंरु हुताश ॥ तस्करनें मंत्र समय, श्रावके ऊरुयो ते आकाश ॥ विधिरीत जप्यो विषधर विष टाले, ढाले मृत धार ॥ सो० ॥ ६ ॥ बीजोरां कारण राय महाबल, व्यंतर पुष्ट विरोध || जेणें नवकारें इत्या टाली, पा म्यो यक्ष प्रतिबोध ॥ नव लाख जपंतां थाय जिन वर, इस्यो बे अधिकार || सो० ॥७ ॥ पतिपति शि ख्यो मुनिवर पासें, महामंत्र मन शुद्ध ॥ परजव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५८ ) ते राजसिंह पृथिवीपति, पाम्यो परिगल रुद्ध ॥ ए मंत्रथकी अमरापुर पहोतो, चारुदत्त सुवि चार ॥ सो० ॥ ८ ॥ संन्यासी काशी तप साधंतो, पंचामि परजाल || दीगे श्रीपास कुमारें पन्नग, धबलतो ते टाल ॥ संजलाव्यो श्रीनवकार स्वयंमु ख, इंद्रभुवन अवतार ॥ सो० ॥ ए ॥ मनशुझें ज पतां मयणासुंदरी, पामी प्रियसंयोग ॥ इण ध्या नें कष्ट टब्युं जंबरनुं, रक्त पित्तनो रोग ॥ निर्श्वशुं जपतां नवनिधि थाये, धर्म तो आधार ॥ सो० ॥ १० ॥ घटमांहि कृष्ण भुजंगम घाट्यो, घरणी क रवा घात ॥ परमेष्टी प्रजावें दार फूलना, वसुधामां हि विख्यात ॥ कमलावतीयें पिंगल कीधो, पाप त यो परिहार || सो० ॥ ११ ॥ गणांगणजाती रा खी महीने, पाडी बाण प्रहार || पद पंच सुपंतां पांकुपति घर, ते थइ कुंता नार ॥ ए मंत्र अमूल क महिमामंदिर, जव दुःख जंजण दार ॥ सो० ॥ १२ ॥ कंबलने संबल कादव काढ्यां, शकट पां चशें मान ॥ दीधे नवकारें गया देव लोकें, विलसे अमर विमान ॥ ए मंत्रथकी संपति वसुधातलें, वि लसे जैन विहार ॥ सो० ॥ १३ ॥ श्रागेंचोवीशी दुश् For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५ए) अनंती, होशे वार अनंत ॥ नवकार तणी कोश श्रादि न जाणे, श्म जांखे अरिहंत ॥ पूरव दिशि चारे श्रादि प्रपंचे, समस्यां संपत्ति सार ॥ सोग ॥ १४ ॥ परमेष्ठि सुरपद ते पण पामे, जे कृतकर्म कोर ॥ पुंगरगिरि ऊपर प्रत्यद पेख्यो, मणिधरने एक मोर ॥ सहगुरुने सन्मुख विधि समरंतां,सफल जनम संसार ॥१५॥ शूविकारोपण तस्कर कीधो, लोहखरोपर सिक ॥ तिहां शेनें नवकार सुणाव्यो, पाम्यो अमरनी शचि ॥ शेग्नें घर श्रावी विघ्न नि वास्यां, सुरें करी मनोहार ॥ सो॥ १६ ॥ पंच प रमेष्ठी ज्ञानज पंचह, पंच दान चारित्र ॥ पंच सद्या य महाव्रत पंचह, पंच समति समकित ॥ पंच प्रमा दह विषय तजो पंच, पालो पंचाचार ॥सो॥१७॥ कलश उप्पय ॥ नित जपीयें नवकार, सारसंपत्ति सु खदायक ॥ शुद्ध मंत्र ए शाश्वतो, श्म जंपे श्रीज गनायक ॥ श्री अरिहंत सुसिक, शुद्ध आचार्य न णीजें ॥ श्री उवद्याय सुसाधु, पंच परमेष्टी थुणीजें ॥ नवकार सार संसार , कुशल लाज वाचक कहे॥ एकचित्तें श्राराधता, विविध शछि वांडित लहे ॥ सो० ॥ १० ॥ इति नवकारनो बंद ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६०) ॥अथ चार मंगल ॥ ॥ सिद्धार्थ नूपति शोहे क्षत्रियकुंमें, तस घेर त्रिशला कामिनी ए ॥ गजवर गामिनी पोढीय जामिनी, चनद सुपन लहे जामिनी ए॥१॥ त्रु टक ॥ जामिनी मध्ये शोजतां रे, सुपन देखे बाल ॥ मयगल वृषन ने केसरी, कमला कुसुमनी मा ल ॥२॥ इंछ दिन कर ध्वजा सुंदर, कलश में गल रूप ॥ पद्मसर जलनिधि उत्तम, अमरवि मान अनूप ॥३॥ रत्ननो अंबार उज्ज्वल, वह्नि निर्धूम ज्योत ॥ कल्याण मंगलकारी माहा, क रत जग उद्योत ॥ ४ ॥ चउद सुपन सूचित वि श्वपूजित, सकल सुख दातार ॥ मंगल पहेलु बो लीयें, श्री वीर जगदाधार ॥५॥ मगधदेशमा नयरी राजगृही, श्रेणिक नामें नरेसरू ए॥धणवर गोवर गाम वसे तिहां, वसुनूति विप्र मनोहरु ए ॥६॥ त्रूटक ॥ मनोहरु तस मानिनी रे, पृथिवी नामें नार ॥ अनूति आदेय बे, त्रण पुत्र तेदने सार ॥ ७ ॥ यज्ञकर्म तेणें श्रादह्यु, बहु विप्रने स मुदाय ॥ तिणे समे तिहां समोसस्या, चोवीश मा जिनराय ॥७॥ उपदेश तेहनो सांजली, लीधो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६१) संजम जार ॥ अगीयार गणधर थापीया, श्री वी रें तेणी वार ॥ ए ॥ अनूति गुरुनक्तं थयो, म हाल ब्धिनो नंमार ॥ मंगल बीजुं बोलीये, श्री गौतम प्रथम गणधार ॥ १० ॥ नंद नरिंदनो पामली पुरवरें, सकमाल नामें मंत्रीसरू ए॥ लाडलदे तस नारी अनुपम, शीलवती बहुँसुख करू ए॥ ११ ॥ त्रुटक ॥ सुखकरू संतान नव दोय, पुत्र पुत्री सात ॥ शिल वंतमां शिरोमणि, थूविना जग विख्यात ॥ १२ ॥ कर्मवशें वेश्या मंदिर, वस्या वर्षज बार ॥ जोग नली पेरें जोग व्या, ते जाणे सहु संसार ॥ १३ ॥ शुद्ध संयम पामी विषय वामी, पामी गुरु आदेश ॥ कोश्या श्रावासेंरह्या निश्चल, डग्यानहिंलवलेश ॥ १४ ॥ शुद्ध शियल पाले विषय टाले,जगमा जे नर नार ॥ मंगलत्रीजु बोलिये, श्री श्रूविजन अणगार ॥१५॥ ढाल ॥ हे मणिरूपमय घडित अनु पम, जडित कोशी सां ते जें जगे एसुरपति निर्मितत्रण गढ शो जित, मध्ये सिंहाने जगमगे ए ॥ १६ ॥ नूग ॥ जगमगे जिनसिंहासनेए, वाजिन कोडा कोड॥ चार निकायनादेवता, ते सेवे बिहुंकरजोड ॥१७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६२ ) प्रातिहारज श्राहरे, चोत्रीश अतिशयवंत ॥ समवसरणे विश्वनायक, शोने श्री जगवंत ॥ १८ ॥ सुनर किन्नर मानवी, बेठी ते पर्षदा बार ॥ उ पदेश दे अरिहंतजी, धर्मना चार प्रकार ॥ १९॥ दान शील तप जावना रे, टाले सघलां कर्म ॥ मंगल चोथं बोलियें, जगमांहे श्री जिन धर्म ॥ ॥ २० ॥ ए चारमंगलगावशे जे, प्रजातें धरिप्रेम ॥ ते कोड मंगल पामशे, उदय रत्नजांखेएम ॥ २१ ॥ ॥ अथ सीमंधर जिनस्तवनं ॥ धन धन क्षेत्र महाविदेह जी, धन्य पुंमरिक गिणिगाम ॥ धन्य तिहानां मानवी जी, नित्य उ ही करे रे प्रणाम ॥ सीमंधर स्वामी कश्यें रे महाविदेह आवीश ॥ जयवंता जिणवर कश्यें रे हुं तुमने वांदीश ॥ १ ॥ चांदलीया संदेश डो जी, कहे जो सीमंधर स्वाम ॥ जरत क्षेत्रनां मानवी जी, नित्य उही करे रे प्रणाम || सी० ॥ २ ॥ स मवसरण देवें रच्युं तिहां, चोसह इंद्र नरेश ॥ सोना तणे सिंहासन बेठा, चामर बत्र धरेंश ॥ सी० ॥ ३ ॥ इंद्राणी काढे गहूंलीजि, मोतीना चो क पूरेश ॥ रली रली लीये लूटणां जी, जिनव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६३ ) र दीये उपदेश ॥ सी० ॥ ४ ॥ एहवे समे में सां जल्युं जी, हवे करवा पच्चरका | पोथी वणी तिहां कणे जी, अमृत वाणी वखाण ॥ सी० ॥ ५ ॥ रायने वहालां धोडलां जी, वेपारीने वहा ला बे दाम ॥ श्रमने वहाला सीमंधर स्वामी, जेम सीताने श्रीराम ॥ सी० ॥ ६ ॥ नहि मागुं प्रभु राज कृद्धि जी, नहिं मागं गरय भंडार ॥ हुं मागुं प्रभु एटलुं जी, तुम पासे अवतार ॥ सी० ॥ ७ ॥ दैव न दीधी पांखडी जी, केम करी श्रावुं रे हजुर ॥ मुजरो महारो मानजो जी, प्रहउगमतेसूर ॥ सी० ॥ ८ ॥ समय सुंदरनी विनतिजी, मानजो वारंवार ॥ बे कर जोडी विनवुं जी, विनतडी व धार ॥ सी० ॥ ॥ संपूर्ण ॥ ॥ अथ वीरजिन चउद सुपननुं स्तवनं ॥ ॥ रायरे सीधारथ घर पटराणी, नामें त्रिशला सुल क्षणी ए ॥ राज वनमांहे पंलगें पोढंतां, चउद सु पन राणीयें लह्या ए ॥ १ ॥ पहेले रे सुपनमें ग यवर दीठो, बीजे, वृषन सोहामणो ए त्रीजे सिंह सुलक्षणो दीठो, चोथे लखमी देवता ए ॥ २ ॥ पाचमे पांच वरणनी माला, बठे चंद्र अमिय करे ए ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६४) सातमे सूरज श्राग्मे ध्वजा, नवमे कलश अमिय जस्यो ए ॥३॥ पद्मसरोवर दशमे दीठो, दीर समु 5 दोगे अग्यारमे ए ॥ देव विमान ते बारमे दी, रणकण घंटा वाजतां ए॥४॥ रतननि राशि ते तेरमे दीगे, अग्निशिखा दीठी चउदमे ए ॥ चउद सुपन लश् राणीजी जाग्यां, राय समोवड पोहोतला, ए॥५॥ सुणो रे खामी मेंतो सुहणला लाधा, पा बली रात रलियामणी ए ॥ रायरे सिझारथ पंडित तेड्यांकहोरे पंडित फल एहनुं ए॥६॥ अम कुल मंग ण तुम कुलदिवो, धन रे महावीर स्वामी अवतस्या ए ॥ जे नर गावे ते सुख पावे, आनंद रंग वधाम णां ए ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥अथ सिकाचलस्तवनं ॥ ॥राग वेलावल ॥ श्रीसिकाचल नेटवा,मुज मन अधिक उमाह्यो ॥षनदेव पूजा करी, लीजें नव तणो लाहो ॥ श्री० ॥॥१॥ मणिमय मूरति रुष जनी, निपार अनिराम ॥ जुवन कराव्युं कनकमें राख्यु नरतें नाम ॥ श्री० ॥२॥ नेम विना त्रेवि श जिन, आव्या सिझदेत्र जाणी ॥ शेर्बुजासम तीर्थनहिं बोल्या सीमंधर वाणी श्री० ॥३॥ पूर्व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६५ ) नवाणुं समोसख्या, स्वामी कृषन जिणंदा ॥ पांच पांव मुगतें गया, पाम्या परमाणंदा ॥ श्री० ॥४॥ पूरव पुण्य पसाउलें, पुंमरिक गिरि पायो ॥ कांति विजय हरखें करी, विमलाचल गायो ॥ श्री० ॥ ५ ॥ इति श्री सिद्धा चलस्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ पांच परमेश्वरस्तवन प्रारंजः ॥ ॥ राग प्रजाती ॥ पंच परमेश्वरा परम अलवेश्व रा, विश्ववालेश्वरा विश्वव्यापी ॥ नक्तवत्सल प्रभु जक्तजन उद्धरी, मुक्तिपद जे दिये कर्म कापी ॥ पं च० ॥ १ ॥ वृषन अंकित प्रभु वृषन जिन वंदियें, नानि मरुदेवीनो नंद नीको ॥ जरतने ब्राह्मीनो तात जुवनंतरे, मोह मद गंजणो मुक्ति टीको ॥ पंच० ॥ २ ॥ शांतिपद श्रपवा शांति पदथापवा, अद्भुतकांति प्रभु शांति साचो ॥ मृगांकपारापति सैन्यथी उद्धरी, जगपति जे थयो जगत जाचो ॥ पंच० ॥ ३ ॥ नेमि बावीशमो शंखलांबन नमो, समुद्र विजयांगजो नंग जीती ॥ राजकन्या तजी साधु मारग जजी, जीत जेणें करी जग वदिती ॥ ४ ॥ पार्श्वजिनराज श्रश्वसेनकुल उपना, जननी वा मा तो जेह जायो ॥ श्राजे खेटकपुरें काज सा For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६६) ध्यां सवे, जीडनंजन प्रजु जेह कहायो ॥ पंच॥ ५॥ वीर महावीर सर्व वीर शिरोमणि, रणवटा मो ह जट मान मोडी ॥ मुक्तिगढ वासियो जगत उ पासीयो, नाथ नित्य वंदियें हाथ जोडी ॥ पंच०॥ ६॥ मातने तात अवदात जिन देवनां, गामने गो त्र प्रजुनाम सुणतां ॥ उदय वाचक वदे उदयपद पामिये, नावे नगवंतनां स्तवन जणतां ॥ पंच० ॥ ७॥ इति पांच परमेश्वरस्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥अथ प्रजाती॥ ॥ राग रामकली ॥ तेरो दरस नवें पायो रुष नजी, में तेरो दरस जलें पायो ॥ काल अनंतें मे लायो ॥ २० ॥ १॥ जिनपति नरपति मुनिपति प हेलो, एसो बिरुद धरायो ॥ मानुतुं णे मसिया अवतारें, जगत उझारण आयो ॥ २० ॥२॥ तें प्रजु जुगकी याद निवारी; सब व्यवहार शिखायो॥ लिखन शील्प शतगनित पढायो, ताथें जगत चला यो ॥ २० ॥३॥या जगमें तुम सम नहिं रें, अवस रपनियें कहायो॥अढार कोडाकोडी सागर अंतें, ते प्रजु धर्म दिखायो॥॥॥ लाख पंचाशत कोडि सा गरलों, सुखकर शासन गयो ॥ तुज रत्ना कर वं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६७ ) शविभूषण, एसो कोन सुणायो ॥ ० ॥ ५ ॥ क रुणाकर ठाकोर तुं मेरो, हुं तुझ चरणे आयो ॥ द्योप द सेवा अमृतमेवा, इतनेमें नवनिध पायो ॥३०॥६॥ ॥ अथ शंखेश्वर पार्श्वजिनस्तवनं ॥ ॥ प्रजाती ॥ कडखो ॥ पास शंखेश्वरा सार कर सेवका, देव! कां एवडी वार लागे ॥ कोडी कर जो डी दरबार आगे खडा, ठाकुरा ! चाकरा मान मा गे ॥ पा० ॥ १ ॥ जगतमां तुं जगदीशज ॥ जागतो एम शुं आज जिनराज उंधे ॥ महोटा दानेश्वरी तेहनें दाखियें, दान दिये जग काल मूधे ॥ पा० ॥ २ ॥ जीड पडि जादवा जोर लागी जरा, ति समे त्रिकमे तुंज संभारयो ॥ प्रगटी पातालयी पलकमां तें प्रभु, जक्तजनतणोजय निवारयो ॥ पा० ॥ ३ ॥ प्रगट था पासजी मेल पडदो परो मोड सुराने आप बेडो ॥ मुऊ महिराण मंजूसमां पेसीने, खलकना नाथजी ! बंध खोलो ॥ पा० ॥ ४ ॥ आदि अनादि अरिहंत तुं एक बो, दीनदया ल बो, कोण दूजो; ॥ उदयरत्न कहे असुरनुं शुंग जुं, मान जो रेख महाराज पूजो ||पा॥५॥ इति ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६७) ॥ अथ प्रजाती ॥ ॥ राग नेरव ॥ प्रात जयो प्रात जयो, प्रात जयो प्राणी रे ॥ अज्ञान मोहरूप, रजनी बिहानी रे ॥ प्रा॥१॥ उदयो सुबोध सूर, प्रजा पूज्यखानी रे ॥त बहिं जो कर्मचोर, गुमहि गुमानी रे ॥ प्रा० ॥ ॥ उबसी विवेक नृप, धर्मराज ध्यानी रे ॥ जाको प्रधानरूप, सुगुरु सुझानी रे ॥ प्रा० ॥३॥ हृदय कमल कोंश, बबि बिकसानी रे ॥ मुदितन नये च क्रवाक, चतुर सियानी रे ॥ प्रा० ॥ ४ ॥ देव गुरु चरण वंदि, सुनो जैनबानी रे ॥ हंस कहे सुप्र नात, करो सुप्रमानी रे ॥प्राण ॥५॥ इति ॥ ॥अथ शोल सतीनी ससाय प्रारंजः ॥ ॥ चोपा ॥ सरसती माता प्रणमुं मुदा ॥ तुंतू ठी आपे संपदा ॥ शोल सतीनां लीजें नाम, जेम मनवांडित सिके काम ॥१॥ ब्राह्मी सुंदरी सुलसा सती,जपतां पातक न रहे रतीकौशख्या कुंतीसती सार, प्रत्नावती नामें जयकार ॥२॥ जगवती शी लवती जय हरे, सुखसंपत्ति पद्मावती करे ॥ ौप दि पांव घरणी जेह, शियल अखंम वखाण्यु तेह ॥३॥ चूला दमयंती फुःखहरे, शिवा देवी नित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६ए) सान्निध्य करे ॥ चंदनबाला चढती कला, वीरपात्र दीधा बाकुला ॥४॥ राजिमती नवि परण्या नेम, तोहे राख्यो अविहड प्रेम ॥ सीतातणुं शील जग जयो, अग्नि टलीने पाणी थयो ॥ ५॥ धनधन स ती सुनना धीर, काचे तांतणे चालणी नीर ॥ चंपा पोल उघाडी चंग, मृगावती प्रणमुं मनरंग ॥६॥ प्रह उठी सती जपियें शोल, जिम लहिये कि बृद्धि घृत गोल ॥ श्रीविनयविजय वाचकसुपसाय ॥ रूपविजय जावेंगुण गाय ॥७॥ इति शोल स तीनी सफाय ॥ समाप्त ॥ ॥ अथ जीवदयानी सजाय ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥श्रादि जिणेसर पाय पणमेव, सरसती खा मिनी मन धरेव ॥ जीवदया पालो नर नार, जेम तरो निश्चें संसार ॥१॥ पाणी गलतां जयणा क रो, खारां मीगं जूदांधरो ॥ जेहने मने दया पर धान, ते घर दीसे बहु संतान ॥२॥ मारे जूनें फोडे लीख, नर नारीने एहज शीख ॥ तेहनें धरे नहिं संतान, उःख देखे ते मेरु समान ॥३॥ पदी जंदर माणसनां बाल, जे पापी मारे चिरकाल ॥ तेहने परनवे एहज कुःख, बोरु तणां नवि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७० ) होये सुख ॥ ४ ॥ माखण मधु बीली अथाण, श्रडुं सूरण वरजे जाए ॥ गाजर मूला रतालु जेह, शुद्ध श्रावक ते ढंकें एह ॥ ५ ॥ फोगट फू ले माया करे, कहो केम ? ते नवसागर तरे ॥ जे दने देव गुरुशुं द्वेष, रूप न पामे ते लव लेश ॥ ६ ॥ बहु दाहाडानुं मेली करी, माखण तावे नियें धरी ॥ ते मरीने नरकें जाय, मानव हो य तो दाब्धज्वर थाय ॥ ७ ॥ दूध तणे वली लोनें जेह, पामा मूखें मारे तेह ॥ फरता ढोर मां गया वल्ली, तेह भूखें तरशें मरे टलवली ॥ ८ ॥ श्रख्य फूटी दीये जे गाल, परजव अधो थाये बाल ॥ मरो फीटो दीये जे गाल, परजव सुख न पामे बाल ॥ ए ॥ पाट पाटलानें वस्त्रदा न, सवशेकुं वली राध्युं धान ॥ मुनिवरनें दे मन उल्लास, तस घर लक्ष्मी रहे थिरवास ॥१० ॥ दे तां दान विमासमण करे, देइ दान मन चिंता धरे ॥ सुखसंपत्ति पामे अजिराम, बेहडे न हो य वसवा ठाम ॥ ११ ॥ धन थोडुंने दिये दान, महिल तेहने वाधे वान || ऋषिने देश करे रं गरोल, तस घर लखमी करे कल्लोल ॥ १२ ॥ सु For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७१) खसंपत्ति जो आवी मली, मोसाने देवा मति ट ली ॥ धन उपर राखे जे नेह. परनव सापपणे थाय तेह ॥ १३ ॥ अधिको उठो बांधे तोल, दे वाचा नवि पाले बोल ॥ तेहनी लोकमां न होय लाज, परजव तेहना न सरे काज ॥१४॥ पोथी बा से बोले जेह, परजव मूरख थाये तेह ॥ नणे गु णे दे पोथीदान, परजव नर ते विद्यावान ॥१५॥ नाना महोटा कुवला हरी, खाते चूटे लीला क री॥ कीधां कर्म नवि वेलाय, मरीने नर ते को ढीयो थाय ॥१६॥ पांख पंखीनी काढे जेह, परजव ढूंटो थाये तेह ॥ पग कापे ने करे गल गलो, मरी नर ते थाये पांगलो ॥ १७ ॥ पाडोशीशु वढे दिन रात, परनवें तेसो न पामे संघात ॥ मात पिता सुत बश्शर धणी, परनव तेहने वढावढ घणी ॥ १७ ॥ अणदीतुं अण सांजदयुं कहे जेह, परनव बहेरो थाये तेह ॥ पारकी निंदा करे नर नार, जश नवि पामे तेह लगार ॥ १५ ॥ परना अवगुण ढांके जेह, नर नारी जस पामे तेह ॥ निंदा करे ने दीये ते गाल, परनव नर ते पामे बाल ॥ २० ॥रात्रिनोजन करे नर नार, ते पामे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७२ ) अड अवतार ॥ रातें पंखी न खाये धान, मान स हैये नदीसे शान ॥ २१ ॥ सूर्य सरखो श्र थमे देव, मानवने खावानी देव ॥ धर्मी लोकज होये जेह, रात्री जोजन टाले तेह ॥ २२ ॥ गौत मीछाने अनुसार, ए सकाय करी श्रीकार ॥ पं मित हर्ष सार शिष्य सागर, शिवसागर कहे धर्मविचार ॥ २३ ॥ इति सजाय संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रावकना एववीश गुणनी सझाय ॥ ॥ चोपाई ॥ ॥ सरु कहे निसुणो जवि लोक, धर्म विना जव होये फोक ॥ गुण विए धर्म कि पण त था, याक विना मींडा होय यथा ॥ १ ॥ धर्मरयण ने तेहज योग, जेहने अंगें गुण आजोग ॥ श्रा वकना गुण ते एकवीश, सूत्रे जांख्या श्रीजगदी श ॥ २ ॥ पहेले गुणें बल बलियो न होय, बीजे इंद्रिय पटुता जोय ॥ त्रीजे सौम्यखनावी जाण, चोथे लोकप्रिय शुनवाण ॥ ३ ॥ चित्त संक्लेश तजे पांचमे, बहे अपजसथी वीरमे ॥ परने व चक नहिं सातमे, दाक्षिणवंत होये आठमे ॥ ४ ॥ लावंत नर नवमे कह्यो, करुणाकारि दशमें For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७३ ) लो ॥ एकादशमे होय मध्यस्थ, द्वादशमे, गुण रागी प्रशस्त ॥५॥ धर्मकथावल्लज़ तेरमे, शुजपरिवा र सहित चउदमे | उत्तर कालें निज हितकार, करे काज पन्नरमे विचार ॥ ६ ॥ षोडशमे गुण दोष विशेष, जाणे निज पर समवडलेख ॥ सदा चार ज्ञानादीक वृद्ध, सत्तरमे सेवे ते सिद्ध ॥ ७ ॥ " दशमे गुणवंत महंत, तेहनो विनय करे मन खंत ॥ न विसारे कीधो उपगार श्रावकगुणगणी शमो सार ॥८॥ मननी सुह साधे परा ॥ वीश मा नो धारो ॥ धर्मकार्य करवे होय दक्ष, एकवीशमो गुण ए प्रत्यक्ष ॥ ए ॥ ए मांडेला जंग णीश विरति, श्रावक धर्मनी नहिं प्रतिपत्ति ॥ चो था च दशमा गुण विना, अंगीकस्यो पण हारे जना ॥ १० ॥ ते माटें गुण धरो, जिम श्रावक पणुं सूधुं वरो ॥ पंक्तिशांति विजयनो शिष्य, मान विजय कहे धरी जगीश ॥ ११ ॥ इति श्रावकना एकवीश गुणनी सझाय संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रावकने शीखामणनी सजाय ॥ ॥ जविका ! सिद्ध चक्रपद वंदो ॥ शुद्ध देवगुरु धर्मपरीक्षा, जाणे नहिंय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ए देशी ॥ गमार ॥ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७४) खोल ने गोल दोय खरखा जाणे, नहिं श्रावक आचार रे ॥ प्राणी श्रावक ते नहिं कहियें ॥१॥ कल्पवृदसम जिनवर बंमी, अन्य देव धरे श्राश ॥ पंचमे अंगें जोतां तेहनो, समकीत चाल्यो ना श रे ॥ प्राणी ॥२॥ पासबा अरु निन्दव मुख थी, वाणी सुणी धरी प्यार ॥ महानिशीथें जिन वर नांख्युं, रोले अनंत संसार रे ॥ प्राण ॥३॥ जिनवर पूजा करवा आवे, विकथा मांगे चार ॥ अल्प पाप बहु निर्जरा जाणी, पाणी ढोले अपार रे ॥ प्राणी ॥ ४ ॥ जयणायें जिनपूजा करतां, ला न तणो नहिं पार ॥ अण उपयोगें अव्य क्रिया कही, जूवो अनुयोग द्वार रे ॥प्रा० ॥ ५॥ शरी रविनूषा करवा बेसे, काजल घाले आंखे ॥ पटि यां पाडेने मूब मरोडे, आरसी आगल राखे रे ॥ प्राणी ॥ ६ ॥ जिनआशातना करतां न करपे, श्रा वकनाम धराय ॥ प्रवचनसार उववाई जोतां, क र्मबंध तस थाय रे ॥ प्राणी ॥७॥ देव अव्य ल ई खाइ बेसे, जमवा नवोदधि नावे ॥ प्रश्नव्याक रण निवृत्तियें जांख्युं, बोधबीज तस जावे रे ॥ प्राणी० ॥ ७ ॥ रयणीयें जिनदर्शन वर्को. संघपट्ट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करतां, समकि पडिक्कमणुं कि ॥ फोगट कि ( १७५ ) नी साख ॥ विधियें जिनदरसण त थाये राख रे ॥ प्राणी० ॥ ए ॥ रिया करे बेठा, मुख उघाडे बोले रिया तेहनी कहियें, बृहदावश्यक बोले रे ॥ प्रा ० ॥ १० ॥ साहमीवत्सल नाम करीने. घर घ र मागे नाएं ॥ दाननो संग्रह जिनवरें जाख्यो, ठाणंग दशभुं ठाणं रे ॥ प्राणी० ॥ ११ ॥ ज्ञाति जमण जेम नेला होये, सहामीवत्सलमांय ॥ ए तुं नाखे संयति पोखे, वत्सल धामी कहियें रें ॥ प्राणी० ॥ १२ ॥ बयें चूक्यो बारे मूल्यो, पं चनुं नाम न जाणे ॥ मांहो मांहे विरोध ते रा खे, नहिं श्रावक हिना रे ॥ प्राणी० ॥१३॥ कुगुरु वे दरख पावे, देपालाना साथी ॥ जे म जेम नाच नचावे कुगुरु, तिम तिम उनसे बाती रे ॥ प्राणी० ॥ १४ ॥ समुगुरु देखीने बु पी जावे, अथवा मांगें द्वेष ॥ अल्प श्रजखं बां धे ते मूरख, पंचम अंगें देख रे || प्राणी० ॥ १५ ॥ श्रावकनी ए सरधा देखी, श्राविका ते पण चूकी ॥ देवी देव मनावण चाली, पुत्रतणी थइ मूखी रे ॥ प्रा० ॥ १६ ॥ पडिक्कमणुं करवाने यावे, वा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६) ते वातो सांधे ॥ कांहीक पाप मिटावण श्रावे, बा र गणुं वली बांधे रे॥ प्राणी० ॥ १७ ॥ चंदनवा ला आप बनीने, कुगुरु गणे महावीर ॥ रूपासूप डि सोवन बाकुला, पडिलाने धरी धीर रे ॥ प्रा णी० ॥ १७ ॥ पासबादिकने सुगुरु जाणी, व्रत धा रे तस पास ॥ दिनकृतवृत्तियें एम जांख्यु, फोक ट तप होय तास रे ॥प्राणी ॥ १५॥ देव गुरु पर श्रझा राखे, शंका कंखा वारी ॥ सूत्रमा नां ख्युं ते तेम चाले, ते श्रावक श्राचारी रे ॥ प्राणी ॥२०॥ शडशठ नेद तणे अनुसारें, शुरुचि जे धरशे ॥ धन्यविजयसुख अनुजवलीला, सहेजे शिव वधुवरशे रे ॥ प्राणी ॥ १ ॥ इति ॥. ॥अथ पार्श्वनाथस्तवए प्रारंजः ॥ ॥ गरबानी देशी ॥ प्रजुजी पास जनेश्वर स्वा मी के, नयणे दीवडा रे लोल ॥ प्रजुजी गंगाजल गंजीर के, लागे मुने मीठडा रे लोल ॥१॥ प्र जुजी खिजमतगार गरीब के, चरणे टुं नम्यो रे लोल ॥ प्रजुजी दूजो नहिं को देव के, दिलमें तुं रम्यो रे लोल ॥॥ प्रजुजी वणारसी नयर म कार के, वामा राणी उर धस्या रे लोल ॥प्रनु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७७) जी बप्पन्न कुमारी देवी के, जिनजीने दू लख्या रे लोल ॥३॥ प्रजुजी अर्धरयणी मजार के, चो शह सुरपति रे लोल ॥ प्रजुजी नवराव्या जिनरा ज के, सहु मली नरपति रे लोल ॥४॥ प्रजुजी श्रवतस्या पोसह मास के, दशमी दिन वली रे लोल ॥ प्रजुजी सेवा करे दिन रात के, सहु नर सली ललीरे लोल ॥५॥ प्रजुजी गुलाल विजयनो शि ष्य के, कर जोडी कहे रे लोल ॥प्रनुजी अविच ल देजो राज के, गौतम सुख लहरेलोल ॥६॥ ॥ श्रथ कुंथुजिनस्तवनं ॥ ॥ मुखने मरकडले ॥ ए देशी ॥ __कुंथुनाथतणी बलिहारी जी ॥ जाउ जिन ना मणे ॥ एम बोले अमरनी नारी जी ॥ जा ॥ जि न पूजवा चालो जय जी ॥ जाण ॥ जेम थापणे पावन थश्ये जी ॥ जा० ॥१॥प्रमूर्ति मोहन गारी जी॥ जा ॥ नवियणने बहु हितकारी जी ॥ जाण ॥ रूपें मोह्या सुर नर नूप जी ॥ जाण ॥ प्रजुनी ज्योति अनूप जी ॥ जाण ॥५॥प्रनु सम वसरण मन मोहे ॥जी॥ जा ॥ बार गुणो श्र शोक वृक्ष सोहे जी ॥ जाण ॥ फुलवृष्टि ढीचण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७७) समी जे जी ॥ जाण ॥ वाणी मधुर ध्वनि गाजे जी ॥ जाण ॥३॥ सुर चामर वीजे जो जी ॥ जाण ॥ मणिमय सिंहासन उपें जी ॥ जा ॥ नामं मल तेजें राजे जी ॥ जाण ॥ देवउंउनि गगनें गा जे जी ॥ जा० ॥४॥ शिरत्र अनोपम जाणुं जी ॥ जा ॥ गुण अनंत प्रज्जुना वखाएं जी ॥जा॥ नित्यलाल एणी परें बोले जी ॥ जा॥ नहिं को इजिनवरने तोलें जी ॥५॥ ॥अथ पार्श्वजिनस्तवनं ॥ ॥रायजी श्रमे ती हिंज्याणी के, राज गराशी॥ या रे लो के ॥ ए देशी ॥ ॥जिनजी गोडीमंमण पास के, वीनति सांज लो रे लो ॥ जिनजी अरज करुं सुविलास के, मू की आमलो रे लो॥ जिनजी तुम दर्शनने काज के, जीवडो टलवले रे लो ॥ जिनजी मरेर करो माहाराज के, श्राशा सवि फले रे लो॥१॥ जि नजी मनजमरो ललचाय के, प्रजुनी उलगे रे लो॥ जिनजी जेम तेम मेलो थाय के, ते करजो वेगें रे लो ॥ जिनजी दूरथकां पण नेह के, साचा मान जो रे लो ॥ जिनजी तुमथी लहुं गुणगेह के, अमृ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ए) त पानजो रे लो ॥२॥ जिनजी प्रजुशुं बाध्यो प्रेम के, ते केम वीसरे रे सो ॥ जिनजी बीजे जावा नियम के, प्रजुथी दिल ठरे रे लो। जिन जी जोतां ताहरुं रूप के, अनुनव सांजरे रे लो॥ जिनजी तादरी ज्योति अनूप के, चिंताउःख हरे रेलो ॥३॥ जिनजी एवें नोजन खाय, मिगनी लालचे रे लो ॥ जिनजी आतमने हित थाय के, प्रजुना गुण रुचे रे लो ॥ जिनजी कर्म तणां बल जोर के, तेहथी तारिये रे लो। जिनजी समकेत ना जे चोर के, तेहने वारिये रे लो ॥४॥ जिन जी निज सेवक जाणीने, मुक्ति बतावीये रे लो॥ जिनजी करुणारस श्राणीने मनमा लावीयें रे लो। जिनजी वाचक सहेज सुंदरनो, सेवक श्म कहे रे स्रो ॥ जिनजी पंमित श्रीनित्यलाल के, प्रनुथी सुख सहे रे लो ॥५॥ ॥अथ ॥ ॥ स्वरूपचंदजी कृत रुषनजिनस्तव ॥ ॥नंप्राज्यते ॥ ॥ वेमलेजार पणाणो ने राज, वातां केमकरो बोए देशी॥ रुपनजिणेसर दरिसणदीजे, मुजपर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७०) करुणा कीजें सेवकने मनवांछित हेजे, अजर अमर पद दीजे,वांबित पूरो रे साहेबजी सेवकनां ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ तुजमुख दरिसण मुझमन हरख्यो, मु जने प्रजुजी मलियो ॥ शिवसुखवांडा पूरण मार्नु, अंगण सुरतरूफलीयो ॥ वां ॥॥ श्रादिपुरुष श्री श्रादिजिनेश्वर, युगला धर्म निवारी ॥ त्रिजुवन माहे जिनजी सरिखो, नहिं कोई उपगारी ॥ वांग ॥३॥ विनीता नगरी शोने रूडी, कुल गुरु नानि बिराजे ॥राणी मरुदेवी कूखेंथी, जन्म प्रजुजीनो जे ॥ वां ॥४॥ यौवन वय समरथ गुणसंपद, प्रथम राय कहाया ॥ दानसंवबरी दे जनने, सं यम लिये सुखदाया ॥ वां ॥५॥ लाख चोरासी पूर व श्रायु,पाली सधाव्या मुगतें ॥ केवल कमलालील विलासी वरूपचं सुख युगतें ॥ वांग ॥६॥इति ॥ ॥अथ द्वितीय श्री अजित जिनस्तवनं ॥ ॥ श्री पंचासरो पासजी रे लाल ॥ ए देशी ॥ सुजनावें करि सेवियें रे लाल, बीजा अजित जि पंद ॥ नवि पूजो रे ॥ मंगल माला जेहथी रे लाल होवे अति आणंद ॥नवि॥ वंदना महारी जाणजो रे लाल ॥१॥ ए श्रांकणी अयोध्या नगरी जली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७१) रे लाल, जितशत्रु नृप तात ॥ जण ॥ अजित जिने सर जनमिया रे लाल, विजयाराणी मात ॥ न॥ वंद० ॥॥श्वागवंशेउपना रे लाल, देव सकल शिरदार ॥ ज० ॥ पूरव दिशि जेम उगीयो रे लाल, दिनकर तेज अपार ॥ ज० ॥ वंद० ॥३॥ देव दुजो नहिं एहवो रे लाल, समो वड श्णे संसार ॥ ज०॥ तसपद नक्ति नलीपरे रे लाल, नाव सहित चित्तधार ॥ न ॥ देव ॥४॥ लटनवथी जमरी हुवें रे लाल, जमरी जय संजार ॥ न ॥ मन सम रण महाराजनुं रे लाल, करतां लहे नवपार ॥ न० ॥ देव ॥५॥ जिनजीयें जेम जीतिया रे साल राग रोष रिपु सेन ॥ ज० ॥ जीतियें तास सहायथी रे लाल, लहिये शिवसुख चेन ॥ ज० ॥ देव० ॥६॥ एम जाणी जिनराजनी रे लाल,अव्य जाव नरपूर ॥ ज०॥ पूजा परमातम तणी रे लाल आपेसुखससनुर ॥ ज० ॥ देव०॥७॥ निजपद दा यक जिनतणी रे लाल, धारो अखंडित आण ॥ ज॥ वरूपचंग जावें करी रे लाल, एम पयं वाण ॥ ज० ॥ वंद० ॥ ॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७२) ॥ अथ तृतीय श्रीसंजव जिनस्तवनं ॥ ॥राजा जो मले ॥ ए देशी ॥ संजव सुख क र त्रीजा देव, जेनीसुर नर सारे सेव, जिन वं दियें ॥ अंतरगती जिन दरसी देव जाणे जीवतणा अभिप्राय ॥ जिन ॥१॥ शिवगति स्मरण की जे नित्य, सेनासुत ध्यावो निज चित्त ॥ जि ॥ अतिशय अरजित वरजित पाप, समता गुण टाले नव ताप ॥ जि० ॥॥ नवजल तारण जुवन प्र दीप, नेहरुं रहिये नित्य समीप ॥ जि ॥ क्षमा विनय रुजुता संतोष, घारीने कीजें गुणपोष ॥ जि ॥३॥ तपसंयम सत्य शौच विशेष, अकिंच न ब्रह्मचर्य अशेष ॥ जि० ॥ पाली दश विध धर्मनो साथ, टाली कर्म तस्यो जव पाथ ॥ जि ॥४॥ पुत्र जितारि पुत्र नवांत पाम्या शिवरमणी सुख कांत ॥ जि० ॥ पुण्य पुराकृत नरजव लह, खामी जजन करी करो शुष्क ॥ जि० ॥५॥ धर्म अर्थ काम ए त्रण वर्ग,साधनथी सही अपवर्ग ॥जिना सौजाग्यचंद्र मुनीश सुशीष्य, खरूपचंड नमे जगदीश ॥ जि० ॥६॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) ॥ श्रथ चतुर्थ श्रीअजिनंदन जिन स्तवनं ॥ सिद्धचक्र पद वंदोए देशी ॥ हिमवंत गिरि शिर पद्मअहथी सुरतटनी प्रगटी ॥ पूरव एक दिशि पावन करती, पूरण जल उमटी ले रे नविका जिन मुखवाणी सुणजो ॥ तमे त्रिपदीनो विस्तार गणजो रे ॥ ॥ जि० ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ सुर नदीयें दिशि त्रण उवेखी, अजिनंदन जिन देखी ॥ त्रिगडे मध्य सिंहासन, पेखी चिहुं दिशिसरखोलेखी रे ॥ न० ॥ जि ॥२॥ कंचन तनुं हिमगिरि मन था यो, मुख पद्मग्रह जाणो ॥ चिहुँ मुखें तेह अह तट थीवाणी, गंगाप्रवाह वखाणो रे ॥०॥ जि० ॥३॥ पूर्वादिदिशि कीध पवित्र, करवा वचन विलास ॥ नयगम नंगप्रमाण सकारण हेतु थाहरण उदा स रे ॥ न ॥ जि० ॥४॥ चउगति वारण शिवसुख कारण, जाणी सुरनर तरीया ॥ जाव क होलमां स्नान रमणता, करतां नवजल तरिया, रे ॥॥ जि ॥५॥ ते जिनवाणी अमिय समाणी, परमानंद निसाणी ॥ सौजाग्य चं वचनथी जाणी, खरूपचंझें मन आणी रे ॥॥ जि० ॥६॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७४) ॥अथ श्री नेमनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ बोल बोल रे प्रीतम बोल मुझशुं महेलि श्रा टो रे ॥ पगले पगले पीडे मुझने, प्रेमनो कांटो रे ॥ बो० ॥१॥ राजिमती कहे गोड बबीला, म ननो गांगे रे ॥ जिहां गांगे तिहां रस नहीं जि म शेलडी शांगे रे ॥ बो० ॥२॥ नब नवनो मु ने आपने ने मजी, नेहनो वांटो रे ॥ धोयो किम धोवाय जादवजी, प्रेमनो बांटो रे ॥ बो॥३॥ नेम राजुल बे मुक्ति मल्यां विरह नागे रे ॥ उद यरत्न कहे आपने खामी, नवनो कांगे रे ॥बो॥४॥ ॥अथ श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥सुणो सुणो साहेब शामला रे लो, ढुंतोम हेली मनना आमला रे लो ॥ नाग्ये तुफ श्राज नेटियो रे लो, मारो पुर्गतिनो कुःख मेटियो रे लो ॥१॥ आज लगण अजाणतां रे लो वहा ला मोहन पासुं ताणतां रे लो ॥ तुळजु राख्यो श्रांतरो रे लो ॥ प्रजु पाडियो तेंमुने पांतरो रेलो ॥२॥ मिथ्यात्व महाविमासमां रे लो ॥ कांश श्र झानना श्रावासमां रे लो ॥ पंचेंजियना पासमां रे लो, ढुंतो वशियो तेहना वासमां रे लो ॥३॥ न पासुं तापाडियो तमुनी। कांश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) तेणे तुमने विसारियो रे लो, तो हाथथकी न व हारियो रे लो ॥ विषयनी कीधी वासना रे खो, मेंतो चरण नेटयां पासनां रे लो॥४॥ह वे तुळशुं मनडु मेलव्युं रे लो, मेंतो जली पेरें चित्त नेलव्युं रे लो ॥ मूलगी टेव गइ विसरीरे लो, कर्मनि काचित निसरी रे लो ॥५॥ मारे तुं पीयर तुं सासरो रे लो, महारे तहारो ने ए क श्राशरो रे लो ॥ मारी आंखडलीमां तुं वस्यो रे लो, हवे बीजाशुं न बने तिस्यो रे लो॥६॥ तुं त्रिजुवननो राजियो रे लो, तहारो जगमाहे जश गाजियो रे लो ॥ तारी मूरति मोहन वेलडी रे लो, ते तो सुखसागरनी लहेरडी रे लो॥७॥ तुं बांहेकाले जेहनें रे लो, वेश् पार उतारे तेहनें रे लो॥ तुऊ अगें नहीं कहेनुं गजुं रे लो, हवे बीजाने हुं नहिं जनुं रे लो॥ ॥ तारक सेवक तारणा रेलो, वहाला गुण अवगुण ने विसारणा रे लो॥ थिरता समकित स्थापियें रे लो, ऊदय सदा सुख श्रापियें रे लो ॥ ए ॥ इति ॥ ॥अथ श्रीअनंत जिनस्तवनं ॥ ॥ सांबर मती श्रावी जे जर पूरजो ॥ ए देशी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६) ॥ सुजसा नंदन जगदानंदन नाथजो ॥ नेहें रे नव रंगें नित नितनेटीये रे लो॥ नेव्याथी झुं थाये मोरी सही जो ॥ नव नवनां पातकडांब खगां मेटीय रे लो ॥१॥ सुंदर साडी पहेरी च रणा चीर रे ॥ श्रावोने चोवटडे जिन गुण गार ये रे लो ॥ जिन गुण गाय शुं थाय मोरी बहे नी रे ॥ परजव रे सुर पदवी सुंदर पामीये रे लो ॥२॥ सहीयर टोली जोली परीगल नावरे ॥ गावे रे गुणवंती हश्डे गह गही रे लो ॥जय जग नायक शिव सुख दायक देव रे ॥ लायक रे तुज सरिखो जगमां को नहीं रे लो ॥३॥प रम निरंजन निर्जित जय जगवंत रे ॥पावन रे परमातम श्रवणे सांजल्यो रे लो ॥ पामी हवे में तुक शासन परतीत जो ॥ ध्यानेंरे एकताने प्रनु श्रावि मल्यो रे लो ॥४॥ उंचपणे पंचाश धनुष, मान रे ॥ पाल्युं रे वली आयुष लाख बत्रीशनुं रे लो ॥ श्री गुरु सुमति विजय क विराय पसायें रे ॥ अहोनिश रे दिल ध्यान वसे जगदीशनुं रेलो ॥ ५॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ॥ अथ श्रीनेमीनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ श्रमे तुमरा बोरुडां गुण जाणो डोके ना ॥ ॥ए देशी॥ ॥राजुल कहे प्रिया नेमजी, गुण जाणो जो के ना ॥ केम बोडी चाख्या निरधार ॥ हे गुण मानो बो के ना ॥ पुरुष अनंते जोगवी ॥ गुण ॥ पी यु शुं मोही रह्या तेणे नार ॥ हे गुण ॥१॥ कोडी गमे जेहने चाहे ॥ गुण ॥ शो ते नारी थी रंग ॥ हे गुण ॥ पण जग उखाणो कह्यो । गुण ॥ होवे सरिसा सरिसो संग हे ॥ गुण ॥ ॥२॥ हुँ गुणवंती गोरडी ॥ गुण ॥ ते निर्गुण निजी नार ॥ हे गुण ॥ हुँ सेवक ९ राउली ॥ गुण ॥ ते सामुं न जुवे लगार ॥ हे गुण ॥३॥ जगमां ते गुण आगली ॥ गुण ॥ जेणे वश की धो जरतार ॥ हे गुण ॥ मन वैरागें वालीयु ॥ गु ण ॥ ले राजुल संयम ना र ॥ हे गुण ॥४॥ बहेनीने मलवा जणी ॥ गुण ॥ पीयु पहेला ते इ उजाय ॥ हे गुण ॥ संग लश ते नारने ॥ गु ण ॥ रही अनुलवशुं लयलाय ॥ हे गुण ॥५॥ समुख विजय कुल चंदलो ॥ गुण ॥ शिवादेवी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) मात मलार ॥ हे गुण ॥ वसर सहस एक श्रा उखु ॥ गुण ॥ सोरीपुर शणगार ॥ हे गुण ॥ ॥६॥ देह धनुष दश दीपती ॥ गुण ॥ प्रनु ब्र ह्मचारी नगवंतके ॥ गुण ॥ राजुल वर मुनेवालहो ॥गुण॥ रामविजयजयवंत ॥ हे गु० ॥७॥ इति ॥ ॥ श्री अरिहंतस्तुति प्रारज्यते ॥ ॥ बंद मोती दाम तुंही अरिहंत तुंही जगवंत, तुंही जिनराज तुंही जगसंत तुंही जगनाथ,तुंही प्र तिपाल ॥तुंही मनमोहन गांजि दयाल ॥तुंही नव जंजन जावखरूप, तुंही अरिगंजन रंजननूप ॥ तुं ही अविनाश, तुंही वीतराग, तुंही महाराज तुंही वड नाग ॥ तुंही गुणघाम, तुंही विशराम, तुंही नव निध,तुंही वडनाम तुंही अघनाश, तुंही अविनाश, तुही मतिवंत, तुंही मनवास ॥ तुंही गुणकेवलरूप अनंत, तुंही जग तरण तारण संत ॥ तुंही जग ध्याय, तुंही जगध्यान, तुंही चिदरुप, तुंही ज गजाण ॥ तुही शरणागत राखणहार, तुंही दुःख दोहग टालण दार ॥५॥ ॥ बंद बीजो ॥ तुंही नवनिधि, तुंही अष्टसिद्धि, तुंही मन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) बित रिझ, तुंही सिरदार ॥ तुंही किरतार, तुंही शरणागत दीन दयाल ॥१॥तुंही घट कुंन, तुंदी गय धेनु तुंही, सुरवंडित, तुंही मम सेन तुंही श्व णावत दायक देव, तुंही विशराम तुंही वडसेव ॥ २॥ तुंही मम प्राण श्राधार जरूर,तुंही मम इलित दायक नूर ॥ तुंही मम जुप ,तुंही बातसाह, तुंही मम रिक नंडारी अगाह ॥३॥ तुंही मम मंत्र, तुंही मम यंत्र, तुंही मम सत्य, तुंही मम मंत्र, ॥ तुंही गड नायक तुंही श्री पूज्य तुंही मम पूज्य, तुंही जगपूज्य ॥४॥ ॥ अथ चोवीश तीर्थकरोना मात पितानां ॥ ॥नामर्नु स्तोत्र प्रारज्यते ॥ ॥ देशी चोपाई ॥ सयल जिणेसर प्रणमी पा य, समरी सरसती सामणी माय ॥ हरडे समरुश्री गुरुनाम, जिम मन वांबित सिके काम ॥१॥ चोवीशे जिनवर मात पिता, गाम गम लांबन जे हतां ॥पांचे बोले करुं प्रणाम, करुं स्तवन मकी थनिमान ॥२॥ पहेला प्रणमुं रिषन जिणंद, नाजिराय मरुदेवीनंद ॥ उंचीकाया धनुष पांच शें, वृषज खांउन विनीता वसे ॥३॥ बीजा श्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ) निरा . जित अयोध्या ठाम, गज लांबन प्रणमुं म जितशत्रु विजया राणीनो पुत्र, जेणें जीत्यां स घलां सूत्र ॥ ४ ॥ त्रीजा संजव सुखदाता र, साव यी नगरी अवतार ॥ पिता जितारथ सुसेना मा य, हयलांबन सोवनमय काय ॥ ५ ॥ चोथो चउगति गंजण स्वाम, विनीता नगरी जेनुं हाम ॥ समर पिना सिद्धारथ माय, कपिलांबन अजिनंदन राय ॥ ६ ॥ समरुं सुमति जिणेसर देव, लांबन क्रौंच करेजस सेव ॥ नगरी जास नली कोशला, मेघ पितामाता मंगल ॥ ७ ॥ कोसंबी नगर धर राय, राणी सुसीमा जेहनी माय ॥ पद्मप्रभु बघा जिनराय, पद्म लांबन राता पलकाय ॥ ८ ॥ स्वस्तिक लांबन स्वामी सुपा स, तूहा टाले गर्जावास ॥ पद्मनरेसर पुहवी माय, वणारसी नगरी वरवाय ॥ एए ॥ शशी लांबन चंद्रप्रनदेव, चोसह इंद्र करे जसु सेव महसेन पिता माता लखमणा, नगरी जेनी चंद्राना ॥ १० ॥ काकंदी नगरी निराम, लांबन मकर सु विधि जिननाम ॥ सुग्रीव पिता माता जसा नाम, पुफ्पदंत जिए बीजोनाम ॥ ११ शीतल सहेजें सु ख दातार जदलपुरस्वामी अवतार ॥ दृढरथ राजा For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) नंदा माय, श्रीवत्स लांउन प्रणमुं पाय ॥१२॥ श्रीश्रेयांस सुणी ग्यारमो, षडगी लांबन नावेंनमो॥ श्रीपुर राजा श्रीविष्णु,माताजेनी सुणजे विदर्नु ॥१३॥ चंपा नगरी वासु पूज्य राय, जयादेवी राणी तस माय, ॥ वासुपूज्य जिन बारमो, महिषलांडन करु णा करी नमो ॥ १४ ॥ कंपिल पुरीराजा कृतन्त्रम, श्यामा राणी अडे सुधर्म ॥ सुअरलांजन स्वामी विमल, तूझो पदवी श्रापे निर्मल ॥ १५ ॥ उवकाय नगरी उत्तम छाम, अनंत नाथ स्वामीनुं नाम ॥ मह सैन पिता सुजसा माय, सीचाणो लंबन जीन पाय ॥१६॥ रतन पुरीराजा श्रीनाण, सुवृताराणी मायनुं नाम ॥ मुक्तिपुरिनो सूधो साथ, वज्र लांउन प्रणमुं धर्मनाथ ॥ १७ शांति नाथ शोलमा जिणंद, जास प्रशंसा करे सुरिंद ॥ मृगलांबन गजपुर छाम, विश्वसेन थचिरा मायनुं नाम ॥ १७ ॥ कुंथु नाथ पृथिवी प्रसिझ, तुझा पदवी आपे रिक ॥ श्वर राजा माता जस सीरी, लांबन डाग नयरी गजपु री॥ १५ ॥ गजपुर नयरी सुदर्शन राय, देवी रा णी अरजिन माय ॥ लंडन नंदावत्तं प्रधान, त्री श धनुष्य खामी, मान ॥२०॥ मिथिला नगरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) महिमा घो, राजा कुंज पिता जिन तणो ॥ प्रजा वती राणी तस्स माय, कलश लांबन प्रणमुं म सी पाय ॥ २१ ॥ श्री राजग्रही, राजश्री मित्र, पद मावती मातानो पुत्र ॥ मुनि सुव्रत लांबन काच बो प्रणमुं जावें जिन वीशमो ॥ २२ ॥ विप्रा रा णी राजा विजे, मथुरा नगरी रिपुजन श्रजे ॥ नी सोत्त पल लांबन श्रीचंग, नमि जिन प्रणमुं मनने रंग ||२३|| सूरिपुर स्वामी श्रीनेम, मुक्ति वधू जेणें परणी खेम ॥ समुद्र विजय शिवा देवी नंद, शं ख लांबन प्रणमुं श्रानंद ॥ २४ ॥ अश्वसेन वामा जस माय, वाण्यारसि नगरी लांबन नागराय ॥ वीशमो जिणेसर पास, प्रगट प्रजावें पूरे आश ॥ २५ ॥ श्री सिधारथ त्रिशला माय, कुंडल पुर लांबन मृगराय ॥ वर्द्धमान जिण चोवीश, मो, कर जोडीने जावें नमो ॥ २६ ॥ ए चोवीश जिनवर नां नाम, बोल्या सदा समरणने काम ॥ जवो जव देजो इहज देव, बोधबीज साची जिनसेव ॥ २७ ॥ झंडु बाण रसनेण प्रमाण, ए संवबर संख्या जाण ॥ तपग गयण विजासण जाण, श्री हेम विमल सूरि जुग प्रधान ॥ २८ ॥ पूज्य शिरो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०३ ) मणि पंकित राय, साधविजय गिरुवा गुण गाय ॥ कमल साधु जयवंत मुणींद, तास शिष्य पणे श्र ₫ 11 20 11 zfa 11 ॥ अथ डुमपुष्पिकाध्ययन स्वाध्यायप्रारंभः ॥ ॥ धम्मो मंगलमुक्किहं, अहिंसा संजमो तवो ॥ देवावि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥ १ ॥ जहा मस्स पुप्फेसु, नमरो श्राविाइ रसं ॥ नय पुष्पं किलामेश, सोउ पीइ अप्पयं ॥ २ ॥ ए मे ए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो ॥ विहंग मा व पुप्फेसु, दानत्तेसणे रया ॥ ३ ॥ वयं च वि तिं लग्नामो, न कोइ उवहम्मर || अहागडेसु री यंते, पुप्फेसु नमरो जहा ॥ ४ ॥ महुकार समा बु झा, जे जवंति णि स्सिया || नाणापिंकरया दंता, ते वुच्चंति साहु | तिबेमि ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ उत्तराध्ययनस्वाध्याय प्रारंभः ॥ ॥ श्रसंखयं जी वियमापमायए, जरोविणीयस्स हि न िताणं ॥ एवं वियाणा हि जणे पमत्ते, कल्हं विहंसा अजया गर्हति ॥ १ ॥ जे पावकम्मे हिं ध ं मस्सा, समाययंति श्रमयं गहाय ॥ पहाय ते णं पासपयडीए नरे, वेराणुबद्धा नरयं उविंति ॥ २ ॥ १३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) तेणे जहा संधिमुहे गहीए, सकम्मुणा किच्च पाव कारी ॥ एवं पिया पिञ्च इहं च लोए, कमाणकम्मा ण न मुरक अधि॥३॥ संसार मावन्नपरस्स अहा, साहारणं जं च करे। कम्मं ॥ कम्मरस ते तस्स उवे काले, न बंधवा बंधवयं उर्विति ॥४॥ वित्तण ताणं न लन्ने पमत्ते,श्ममि लोए अमुवा परहा॥ दी वप्पणव अणंतमोहे, नेयाज अंदामदछुमेव ॥५॥ सुत्तेसु श्रावी पडिबुझ जीवी, नवीससे पिमियासु पन्ने ॥ घोरा मुहुत्ता अबलं सरीरं, नारंमपरकी वि चरे पमत्तो ॥६॥ चरे पयाई परिसंकमाणो, जं किंचि फासं इहमन्नमाणो ॥ लानंतरे जीविय बो हिश्रा, पन्नापरिन्नायमलावधंसि ॥ ७ ॥ बंद निरो हेण उवेश्मुकं, आसे जहा सिकिय वम्मधारी ॥ पुत्वा वासाई चरे पमत्तो, तम्हा मुणी खिप्प मुवेश मुकं ॥ ७॥ सपुत्वमेवं न लनिङ पछा, एसोवमा सासय वाश्याणं ॥ विसीयई सीढिलियाउअम्मी, कालोविणीए सरीरस्स नेए ॥ ए ॥ खिप्पं न सके ३ विवेगमेऊ, तम्हा समुहाय पहाय कामे ॥ समि च लोगं समया महेसि, अप्पाणरकी विचरे पम त्तो ॥ १० ॥ मुहं मुहं मोहगुणे जयंतं, अणेगरूवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) समणं चरंतं ॥ फासा फुसंति असमंजसं च, न ते सु निकु मणसा पजस्से ॥१९॥ मंदाय फासा बहु लोहणिया, तहप्पगारे सुमणं न कुद्या ॥ रकिय कोहं विणश्यमाणं, मायं न सेविद्य च श्य लोहं ॥१२॥ जे संखया तुझपरप्पराई, तेपिद्य दोसाणुगया परला ॥ एए अहं मुत्ति उगंठमाणो, कंखे गुणे जा व सरीर मेज ॥ तिबेमि ॥ १३ ॥ इति उत्तराध्य॥ ॥अथ ॥ ॥श्रीआदीश्वरविनति लिख्यते ॥ ॥ सुण जिनवर सेजुंजा धणी जी रे, दास तणी अरदास ॥ तुज आगल बालक परें जी रे, हुं तो करुं वेखास रे ॥ जिनजी रे, मुफ पापीने तार ॥१॥ तुं तो करुणा रस नस्यो जी रे, तुं सहुने हितकार रे ॥ जिनजी रे ॥ मु०॥ ए आंकणी ॥ हुं अवगुण नो उरडो जी रे, गुण तो नहिं लवलेश ॥ परगुण पेखी नवि शकुंजी रे,किम संसार तरेश रे ॥ जिप ॥ मु०॥॥ जीव तणा वध में करया जी रे, बोल्या मृषावाद ॥ कपट करी परधन हस्यां जी रे, सेव्या विषय सवाद रे ॥ जि० ॥ मु॥३॥ हुं लं पट हुँ लालची जी रे, कर्म कियां केश कोडि ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९६) त्रण जुवनमां को नहिं जी रे, जे आवे मुफ जोड रे ॥ जि ॥ मु॥४॥ बिड परायां अहोनिशें जी रे, जोतो रहुं जगनाथ ॥ कुगति संगति करी जी रे, जोड्यो तेहशुं साथ रे ॥ जि० ॥ मु॥ ५ ॥ कुमति कुटिल कदाग्रही जी रे, वांकी गति मति मुफ ॥ वांकी करणी माहरी जी रे, शी संजलाएं तुऊ रे ॥ जि ॥ मु० ॥६॥ पुण्य विना मुज प्रा णियो जी रे, जाणे मेढुं रे बाथ ॥ उंचा तरुवर मो रिया जी रे, त्यांहि पसारे हाथ रे ॥ जि ॥ मुण ॥ ७॥ विण खाधा विण जोगव्या जी रे, फोगट कर्म बंधाय ॥ आर्न ध्यान मिटे नहिं जी रे, कीजें कवण उपाय रे ॥ जि ॥ मु०॥ ॥ काजलथी पण श्यामला जी रे, मारा मन परिणाम ॥ सुपना मांहे ताहरूं जी रे, संजालं नहिं नाम रे ॥ जि ॥ मु॥ ए ॥ मुग्धलोक उगवा जणी जी रे, करुं श्र नेक प्रपंच ॥ कूड कपट हं केलवी जी रे, पापतणो करुं संच रे ॥ जि ॥ मु० ॥ १० ॥ मन चंचल न रहे किमे जी रे, राचे रमणीने रूप ॥ काय विडंब ना शी कहुं जी रे, पडिश हुं कुर्गतिकूप रे ॥ जि० ॥ मु ॥ ११॥ किस्या कहुं गुण माहरा जी रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) किस्या कहुं अपवाद ॥ जिम जिम संजारुं दिये जी रे, तिम वाधे विखवाद रे ॥ जि० ॥ मु० ॥ १२ ॥ गिरुवा ते नवि लेखवे जी रे, निगुण सेवकनी वात ॥ नीच तणे पण मंदिरें जी रे, चंद्र न टाले ज्योत रे ॥ जि० ॥ मु०|||| १३|| निगुणो तो पण तादेरो जी रे, नाम धरावुं रे दास ॥ कृपा करी संजालजो जी रे, पूरजो मुऊ मन आश रे || जि० ॥ मु० ॥ १४ ॥ पापी जाणी मुऊजणी जी रे, मत मूको रे विसार ॥ विष हलाहल यदस्यो जी, ईश्वर न तजे तास रे ॥ जि० ॥ मु० ॥ १५ ॥ उत्तम गुणकारी हुवे जी रे, स्वार्थ विना सुजाण ॥ कर्षण सींचे सर नरे जी रे, मेह न मागे दा रे ॥ जि० ॥ मु० ॥ १६ ॥ तुं उ पगारी गुण निलो जी रे, तुं सेवक प्रतिपाल ॥ तुं समरथ सुख पूरवा जी रे, कर मारी संजाल रे ॥ ॥ जि० ॥ मु० ॥ १७॥ तुमने शुं कढ़ियें घणुं जी रे, तुं स वातें रे जाण ॥ मुकने थाजो साहिबा जी रे, जव जव ताहरी आप रे ॥ जि० ॥ मु० ॥ १८ ॥ नाभिराय कुलचंदलो जी रे, मारु देवीनो रे नंद ॥ कड़े जिनदर्ष निवाजजो जी रे, देजो परमानंद रे ॥ जि० ॥ मु० ॥ १७ ॥ संपूर्ण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ॥ अथ ॥ ॥ श्री श्रादीश्वरजीनी विनति प्रारज्यते ॥ ॥ बे कर जोडी विनवू जी, सुण स्वामी सुवि दीत ॥ कूड कपट मूकी करी जी, वात करूं अप वित्त ॥ १॥ कृपानाथ, मुऊ विनति अवधार ॥ ए आंकणी ॥ तुं समस्त त्रिजुवन धणी जी, मुझने छ स्तर तार ॥ कृ०॥२॥ नवसायर जमतां थकांजी, दीगं पुःख अनंत ॥ नाग्य संयोगें नेटिया जी, जयनंजन नगवंत ॥ कृ०॥३॥ जे फुःख नांजे आपणां जी, तेहने कहियें फुःख ॥ परःखगंजन तुं सुण्यो जी, सेवकने यो सुख ॥ कृ०॥४॥श्रा सोयण लीधा पखी जी, जीव रुले संसार ॥ रूपी लखमणा महासती जी, एह सुणो अधिकार ॥कृत ॥ ५ ॥ तिण तुऊ आगल आपणुं जी, पाप आ लोखं आज ॥ मा बाप आगल बोलतां जी, बालक केही लाज ॥ कृ०॥६॥ जिनधर्म जिनधर्म सहु कहे जी, स्थापे श्रापणी वात ॥ समाचारी जूजूर जी, संशय पडे मिथ्यात ॥ कृ०॥७॥ जाण अ जाण पणे करी जी, बोल्या उत्सूत्र बोल ॥ रत्ने काग उमावतां जी, हास्यो जन्म निटोल ॥ कृ०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१एए) ॥ ॥ जगवंत नांख्यो ते किहां जी, किहां मुक करणी एह ॥ गज पाखर खर किम सहे जी, सब ल विमासण एह ॥ कृ०॥ ए ॥ आप परू' आक रो जी, जाणे लोक महंत ॥ पण न करूं परमादी यो जी, मास शेष दृष्टांत ॥ कृ० ॥ १० ॥ काल अ नंतें में लह्यां जी, तीन रतन श्रीकार ॥ पण प्रमादें पाडियां जी, किहां जश् करुं हुं पूकार ॥ कृ० ॥११॥ जाणुं उत्कृष्टी करूं जी, उद्यत करुं विहार ॥ धीर ज जीव धरे नहिं जी, पोतें बहुलसंसार ॥ कृ०॥ ॥ १२ ॥ सहज पड्यो मुझ आकरो जी, न गमे नूं मी वात ॥ परनिंदा करता थका जी, जाये दिन ने रात ॥ कृ०॥ १३ ॥ क्रिया करतां दोहीलो जी, बालसाणे जीव ॥ धर्मपखे धंधे पड्यो जी, नरकें करशे रीव ॥ कृ ॥ १४ ॥ अणहता गुण को कहे जी, तो हर निशि दीस ॥ को हित शीख जली दिये जी, तो मन थाणुं रीश ॥ कृ०॥ १५ ॥ वाद जणी विद्या नण्यो जी, पररंजण उपदेश ॥ मन सं वेग धस्यो नहिं जी, किम संसार तरेश ॥ कृ॥ ॥ १६ ॥ सूत्र सिद्धांत वखाणतां जी, सुणतां कर्म विपाक ॥ दण एम मनमें उपजे जी,मुऊ मर्कट वैरा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२००) ग ॥ कृ० ॥ १७ ॥ त्रिविध त्रिविध करी उच्चरं जी, जगवंत तुमार। हजूर ॥वार वार नाजु वतीजी, बटक बारो दूर ॥ कृ० ॥१॥ श्राप काज सुख राचतां जी, कीधा आरंज खोड ॥ जयणा न कीधी जीवनी जी, दीधी दया परि जोड ॥ कृ० ॥ १ए ॥ वचन दोष व्यापक कह्या जी, दाख्या जे अनर्थ दंग ॥ कूड कपट बहु केलवी जी, व्रत कीधां शत खंग ॥ कृ० ॥२॥ अणदी, लीधुं जेह तणुंजी, तेह अदत्तादान ॥ ते दूषण लाग्यां घणां जी, गणतां न आवे ज्ञान ॥ कृ०॥१॥ चंचल जीव रहे नहिं जी, राचे रमणीरूप ॥ काम विटंबणा शी कहुं जी, तुं जाणे एह खरूप ॥ कृ०॥ २२ ॥ माया ममता मांहि पड्यो जी, कीधो अधिको लोन ॥ परिग्रह मेट्यो कारिमो जी, न चढी संयम शोज ॥ कृ०॥ २३॥ लाग्या मुझने लालचें जी, रात्रिभोजन दोष। में मन मूक्यु मोकलुं जी, न धस्यो मन संतोष ॥ कृ०॥ २४ ॥ ए लव परजव दूहव्या जी, जीव चोराशी लाख ॥ ते मुफ मिबाउकडं जी, जगवंत तोरी साख ॥ कृ ॥ २५ ॥ कर्मादान पनरे कह्यां जी, प्रगट अढारे पाप ॥ जे में सेव्यां ते हवे जी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०१) बगस बगस मा बाप ॥ कृ० ॥ २६ ॥ मुफ आधार बे एटलो जी, सर्दहणा ने शुरू ॥ जिनधर्म मीगे मन गमे जी, जिम साकरशुं दूध ॥ कृ० ॥२७॥ षन देव तुं राजियो जी, शत्रुजय गिरि शणगार ॥ पाप अलोयां में आपणां जी, कर प्रनु मोरी सार ॥ कृ० ॥ २ ॥ मर्म एह जिनधर्मनो जी, पा पालोयां जाय ॥ मनशुद्ध मिठा मि मुक्कडं जी, देतां पुरित पलाय ॥ कृ० ॥ श्ए ॥ तुं गति तुं म ति तुम धणी जी, तुं साहिब तुं देव ॥ श्राणा धरूं शिर ताहरी जी, जव नव मामु तोरी सेव॥कृ॥३० ॥ कलश ॥ ॥ एम चढिय शत्रुजय,चरण नेट्यां, नाजिनंदन, जिनतणां ॥ कर जोडी आदि, जिने आगे, पाप आलोयां, आपणां ॥ श्रीपूज्य जिनचंद, सूरि सा रु, प्रथम शिष्य, सुजस घणे॥गणि सकल चंद सु, शिष्य वाचक, समय सुंदर, गुण थुणे ॥३१॥ इति॥ ॥अथ ॥ ॥ श्री शांतिजिन स्तवन प्रारंजः ॥ ॥ जिनेंड शांतीश्वर पाय लागुं, तुम्हो कने शु कज तत्त्व मागुं । नेव्यो घणे कालेहि कल्प साल, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०२) किश्युं करुं पंचम पुष्ट काल ॥१॥प्रसाद पामी हवे वीनवीजें, कृपा करी का तेहने न दीजें ॥ सं सारथी सेवक उझरीजें, धणी जणी एवडुं शुं कही जें ॥२॥ वैरी सहमांहे महा वदीतो, जे तुम्म हेलें बलवंत जीतो ॥ ए मोहराजा मुफ पूठ धावे, किस्युं करुं कर्मज ते करावे ॥३॥ संग्राम नूमि वढतो न जांजु, क्रिया करंतो जनमांहि लाजु ॥ कौतूहलें रातज आखि जारं, कणेक वाणी प्रजुनी न लागु ॥४॥ नारी पियारी रस रंग रातो, जा एयो नहिं नाहक जन्म जातो ॥ कोपानलें दारुण दाद दाधो, दमा नहिं तीर किमे न लाधो ॥५॥ चढी मनें मानगजेंज रंग्यो, विनंति वजी वन वे ल नंज्यो ॥ माया नुजंगी विष दोष धास्यो, चैत न्यनो जे गुण तेह हास्यो ॥६॥ वलि तेहने लोक प्रवाहें वाह्यो, कदाग्रहें वाहि रह्यो न साह्यो ॥प ड्यो तदा लोजसमुख तीरें, निर्लोजता तीर रह्यो ति दूरे ॥७॥ अनेक चिंता विषयादि पाणी, जीवे हिं लीधो बदु दूर ताणी ॥ तोये तिहां पामियो ह र्ष प्राणी, ए माहेरो मूढ इस्यो अन्नाणी ॥ ॥ तुं देव ध्यायो श्ह लोक काजें, पूज्यो थुण्यो लोकतणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०३) समाजें ॥ असाधु जाणी गुरु राग बंद्या, दो करी साध सधा विनिंद्या ॥ ए॥ सराग नीराग तणीज वाणी, समान निःशंकित में वखाणी ॥ श्रावी जिवा रें सुख लाल वेला, थया तदा पुर्गति दुःखवेला ॥ १०॥रे जीवडा शो परतावो कीजें, जे बीज वाव्यु फल ते खुणीजें ॥ जम्यो घणो कर्मवशें अपार, सं सार सामी करुणा नंमार ॥ ११॥ तारो हवे तार क तार कांति, टालो वली मुफ जयजीडन्त्रांति ॥ प्रमाद पंचे न शक्यो निवारी, जे काठिया तेरह शत्रु जारी ॥ १५ ॥ हुँ एणे गाढ्यो प्रनु बुं सता व्यो॥ तो एहशुं रोष न लेश आव्यो ॥ एलें गयो आज लगी जमारो, ए मानुषो जन्म लही समा रो॥ १३ ॥ पगे तुमारे जिन शिश नाम्यो, तो ते वली वांडित सर्व पाम्यो ॥ तुमो विना तारक को न जाएं, को देव बीजो हियडे न आएं ॥ १४ ॥ सा वद्य टाली जिन धर्म नांखे, ते साधु सूधा चि त्तने उल्हासे ॥ जाणुं दया धर्मज एक साचो, तु मो विना देव न अन्य जाचो ॥ १५ ॥ ए तत्त्व त्रणे मन शुद्ध पाएं, मिथ्यात्वनी संगति दूर टा झुं ॥ जे जे जगें दीसत मिश्र पद, ते सदहे मान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०४ ) व ते सुद ॥ १६ ॥ रहेतो इहां साधु गुणे उदास, रवि प्रजा तुल्य करे प्रकाश ॥ गृही जति दंसणाणं एक, क्रियाविशेष किरिया विवेक ॥ १७ ॥ त्रणे म ली एक थया जिवारें, धम्मछकामें ही जती तिवा रें ॥ श्री विश्वसेन. क्षितिपाल पुत्र, चरित्र बे तुम्ह घणां पवित्र ॥ १८ ॥ पारेवडुं राख्युंज प्राण आपी, सखीतचंदें स्थिर कीर्त्ति थापी ॥ गर्भस्थ हूई जग मांदे संती, तिणे करयुं सार्थक नाम शांति ॥ १९ ॥ यया केवली संयम शुद्ध पाली, त्रैलोक्यनी मारी तिवार टाली ॥ सुखी थया कर्म खपी जिनेंद्र, से वे सदा सिद्धपयस्थ इंद्र ॥ २० ॥ श्री शांतिनाथ प्रभु बो हमारा, में तो ग्रह्मां बे चरणो तमारां ॥ त्रैलोक्यनो पीहर विनवीजें, शांतिजी तुं सेवक सार कीजें ॥ २१ ॥ इति श्री शांतिजिन स्तवनं ॥ ॥ अथ ॥ ॥ खमत खामणानुं स्तवन ॥ || देशी बखडांनी ॥ अरिहंत पद पहेलुं नमुं जी, गुण बे बार प्रमाण ॥ करो जवि खामणां जी ॥ उज्ज्वल ध्यानें ध्यायवा जी, पाम्यो केवल नाए ॥ ॥ करो० ॥ १ ॥ सिद्ध राता प्रणमुं सदा जी, कर्म For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०५) तषो कीधो नाश ॥ कम् ॥ श्रष्ट गुणें करी दीपता जी, जेहनो मुक्तिमा वास ॥ कण ॥२॥ उत्तीसय गुण राजिया जी, श्राचारज पीले रंग ॥ कम्॥नी लवर्ण पाठक नावियें जी, पंचविश गुण सुरंग ॥ ॥क० ॥३॥ मरकतवर्णे मुनिवरा जी, सत्त्या विश गुणगेह ॥ क० ॥ एकसो श्राप गुण मणि नूषिता जी, थारुं पंच पद एह ॥ क० ॥ ४॥ शिष्य साहु परिवारने जी, संयमवंत महंत ॥क ॥ श्रीसंघ सहुने खामणां जी, गिरुया जे गुणवंत ॥ करो ॥ ॥५॥ लाख चोराशी योनिना जी, जीव राशि जे होय ॥ क० ॥ जवोजव फरश्या प्रेमशुं जी, ते खामुं हुं त्रिलोय ॥ क० ॥६॥ पग लागी तुम प्र तिखमुंजी, तुमें पण खमजो मोय ॥ क० ॥ सर लपणुं जग दोहिलु जी, जेहथी पातक धोय ॥ का ॥७॥ क्रोध कियां दूषण पामी जी, क्रोधे नरक खहंत ॥का सूक्ष्म निगोदजमां रहे जी, रीषे काल अनंत ॥ क० ॥ ॥क्रोध कदाग्रह परिहरो जी, फल जे जेहनां पुष्ट ॥ क० ॥ चारित्र नासे क्रोधथी जी, समकित आपे पूंठ ॥ कण ॥ ए ॥ वैर विरोध सवि बांमिने जी, मनमें धरो वैराग ॥ कण॥ शांति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०६ ) सदा सुख कारिणी जी, शिव तणो एहिज माग ॥ क० ॥ १० ॥ दमा जावें विनय उपजे जी, विनय धर्मनुं मूल ॥ क० ॥ धर्मस्नेहमां जे रहे जी, तेह ने जिन अनुकूल ॥ क० ॥ ११ ॥ चंमरुद्र नवा सा धुने जी, क्षमावतां निज वंक || क० || केवल नाण दोय पामिया जी, क्षमाफल ए निःशंक ॥ क० ॥ ॥ १२ ॥ कूरगडुना साथिया जी, चोमासी तपकार ॥ क० ॥ चंदनबाला मृगावती जी, उदाइ अजय कुमार ॥ क० ॥ १३ ॥ इत्यादिक गुणवंत दुवा जी, क्रोध शमाव्यो निःशेष ॥ क० ॥ मोह मिढ्यो मम ता घटी जी, पाम्या नाण विशेष ॥ क० ॥ १४ ॥ बार मास चोवीस पखे जी, तीनसें साठ दिनमान ॥ क० ॥ त्रिविध त्रिविध करि जावशुं जी, खमजो तजि बहु मान ॥ क० ॥ १५ ॥ श्री विजयन सूरि राजिया जी, क्षमा गुण जंकार ॥ क० ॥ श्री तेज हर्षगुरु नामश्री जी, कल्याणहर्ष जयकार ॥०॥१६॥ ॥ अथ ॥ ॥ श्री क्षमासद्याय लिख्यते ॥ ॥ चोपाई ॥ जयनंजण रंजण जग देव, चरि दंत सेव करो नित्यमेव ॥ नहिं उपशम पोतें जेह For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) , फुःख केडो न मूके तेहने ॥१॥ उपशम सन्ना इ पहेरी शरीर,उर्जन वचन न लागे तीर ॥ धरियें एक दमा मनमांहे, धर्म नहिं गामरियो प्रवाह ॥२॥ तप जप संयम पाले सार, उपशम वि णु ते सहुए नगर ॥ कोडी नवें जे तप तपे, ते कर्म जपशम घर्ड। माहे खपे ॥३॥जे आपणन गाल ज दिये, तेहशुं पराणे जश् बोलियें ॥ टाकर साकर सम करिजाण,बूरे बोलें तुं रोष म आण॥॥ पूरव पुण्य न कीधां बहु, न्याय लोक मुफ बोले सहु ॥ मारे बांधे मेले गाय, सघले थापे आपणो न्याय ॥ ॥को किवारें कहे को बोल, विसारी मूकिये नेटोल ॥ ते वलतो न संजारो एक, उपशम संव धरो विवेक ॥६॥ श्रागलो दीसे जलती आग, तो तुं पाणी थइ पगे लाग॥मननी गांठ बोडी खा मियें, मुक्ति तणां तो सुख पामियें ॥ ॥ मुहडे मिलाऽक्कड दिये, मरो फिटो श्म चिंते हिये ॥ मर्म ने मूसा बोले मूल, खम्यो खमाव्यो होय मासु धूल ॥ ॥ पृथ्वीनी परें परिसह खमे, रात दिवस जिणवचने रमे ॥ सघला धर्म मांहे उपशम मार, ते जवियण धरजो वारंवार ॥ ए ॥ रोष रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (207) खे जेटलो मनमांहे, तेटलो धर्म तेहनो जाय अणखाम्योजू श्रागो रहे, कर्म योगें ते अलि फुःख सहे॥१०॥ मक्ति तणो जो ने अजिलाष पारका बोल खमो तुमें लाख // कुगति थको जो ने उनगो, अंतरंग उपशम करो सगो // 11 // दमा एक जो जीवज धरे, तो वहेलो मुक्ति श्रद तरे // विजयन कवियण उच्चरे, गर्जावास ते न हिं अवतरे // 12 // इति दमासद्याय संपूर्ण // Jain Educationa International For Personal and Private Use Only