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________________ (१९६) त्रण जुवनमां को नहिं जी रे, जे आवे मुफ जोड रे ॥ जि ॥ मु॥४॥ बिड परायां अहोनिशें जी रे, जोतो रहुं जगनाथ ॥ कुगति संगति करी जी रे, जोड्यो तेहशुं साथ रे ॥ जि० ॥ मु॥ ५ ॥ कुमति कुटिल कदाग्रही जी रे, वांकी गति मति मुफ ॥ वांकी करणी माहरी जी रे, शी संजलाएं तुऊ रे ॥ जि ॥ मु० ॥६॥ पुण्य विना मुज प्रा णियो जी रे, जाणे मेढुं रे बाथ ॥ उंचा तरुवर मो रिया जी रे, त्यांहि पसारे हाथ रे ॥ जि ॥ मुण ॥ ७॥ विण खाधा विण जोगव्या जी रे, फोगट कर्म बंधाय ॥ आर्न ध्यान मिटे नहिं जी रे, कीजें कवण उपाय रे ॥ जि ॥ मु०॥ ॥ काजलथी पण श्यामला जी रे, मारा मन परिणाम ॥ सुपना मांहे ताहरूं जी रे, संजालं नहिं नाम रे ॥ जि ॥ मु॥ ए ॥ मुग्धलोक उगवा जणी जी रे, करुं श्र नेक प्रपंच ॥ कूड कपट हं केलवी जी रे, पापतणो करुं संच रे ॥ जि ॥ मु० ॥ १० ॥ मन चंचल न रहे किमे जी रे, राचे रमणीने रूप ॥ काय विडंब ना शी कहुं जी रे, पडिश हुं कुर्गतिकूप रे ॥ जि० ॥ मु ॥ ११॥ किस्या कहुं गुण माहरा जी रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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