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________________ ( १७ ) किस्या कहुं अपवाद ॥ जिम जिम संजारुं दिये जी रे, तिम वाधे विखवाद रे ॥ जि० ॥ मु० ॥ १२ ॥ गिरुवा ते नवि लेखवे जी रे, निगुण सेवकनी वात ॥ नीच तणे पण मंदिरें जी रे, चंद्र न टाले ज्योत रे ॥ जि० ॥ मु०|||| १३|| निगुणो तो पण तादेरो जी रे, नाम धरावुं रे दास ॥ कृपा करी संजालजो जी रे, पूरजो मुऊ मन आश रे || जि० ॥ मु० ॥ १४ ॥ पापी जाणी मुऊजणी जी रे, मत मूको रे विसार ॥ विष हलाहल यदस्यो जी, ईश्वर न तजे तास रे ॥ जि० ॥ मु० ॥ १५ ॥ उत्तम गुणकारी हुवे जी रे, स्वार्थ विना सुजाण ॥ कर्षण सींचे सर नरे जी रे, मेह न मागे दा रे ॥ जि० ॥ मु० ॥ १६ ॥ तुं उ पगारी गुण निलो जी रे, तुं सेवक प्रतिपाल ॥ तुं समरथ सुख पूरवा जी रे, कर मारी संजाल रे ॥ ॥ जि० ॥ मु० ॥ १७॥ तुमने शुं कढ़ियें घणुं जी रे, तुं स वातें रे जाण ॥ मुकने थाजो साहिबा जी रे, जव जव ताहरी आप रे ॥ जि० ॥ मु० ॥ १८ ॥ नाभिराय कुलचंदलो जी रे, मारु देवीनो रे नंद ॥ कड़े जिनदर्ष निवाजजो जी रे, देजो परमानंद रे ॥ जि० ॥ मु० ॥ १७ ॥ संपूर्ण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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