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(१७)
॥ अथ ॥ ॥ श्री श्रादीश्वरजीनी विनति प्रारज्यते ॥
॥ बे कर जोडी विनवू जी, सुण स्वामी सुवि दीत ॥ कूड कपट मूकी करी जी, वात करूं अप वित्त ॥ १॥ कृपानाथ, मुऊ विनति अवधार ॥ ए
आंकणी ॥ तुं समस्त त्रिजुवन धणी जी, मुझने छ स्तर तार ॥ कृ०॥२॥ नवसायर जमतां थकांजी, दीगं पुःख अनंत ॥ नाग्य संयोगें नेटिया जी, जयनंजन नगवंत ॥ कृ०॥३॥ जे फुःख नांजे
आपणां जी, तेहने कहियें फुःख ॥ परःखगंजन तुं सुण्यो जी, सेवकने यो सुख ॥ कृ०॥४॥श्रा सोयण लीधा पखी जी, जीव रुले संसार ॥ रूपी लखमणा महासती जी, एह सुणो अधिकार ॥कृत ॥ ५ ॥ तिण तुऊ आगल आपणुं जी, पाप आ लोखं आज ॥ मा बाप आगल बोलतां जी, बालक केही लाज ॥ कृ०॥६॥ जिनधर्म जिनधर्म सहु कहे जी, स्थापे श्रापणी वात ॥ समाचारी जूजूर जी, संशय पडे मिथ्यात ॥ कृ०॥७॥ जाण अ जाण पणे करी जी, बोल्या उत्सूत्र बोल ॥ रत्ने काग उमावतां जी, हास्यो जन्म निटोल ॥ कृ०॥
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