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( १६३ )
र दीये उपदेश ॥ सी० ॥ ४ ॥ एहवे समे में सां जल्युं जी, हवे करवा पच्चरका | पोथी वणी तिहां कणे जी, अमृत वाणी वखाण ॥ सी० ॥ ५ ॥ रायने वहालां धोडलां जी, वेपारीने वहा ला बे दाम ॥ श्रमने वहाला सीमंधर स्वामी, जेम सीताने श्रीराम ॥ सी० ॥ ६ ॥ नहि मागुं प्रभु राज कृद्धि जी, नहिं मागं गरय भंडार ॥ हुं मागुं प्रभु एटलुं जी, तुम पासे अवतार ॥ सी० ॥ ७ ॥ दैव न दीधी पांखडी जी, केम करी श्रावुं रे हजुर ॥ मुजरो महारो मानजो जी, प्रहउगमतेसूर ॥ सी० ॥ ८ ॥ समय सुंदरनी विनतिजी, मानजो वारंवार ॥ बे कर जोडी विनवुं जी, विनतडी व धार ॥ सी० ॥ ॥ संपूर्ण ॥
॥ अथ वीरजिन चउद सुपननुं स्तवनं ॥ ॥ रायरे सीधारथ घर पटराणी, नामें त्रिशला सुल क्षणी ए ॥ राज वनमांहे पंलगें पोढंतां, चउद सु पन राणीयें लह्या ए ॥ १ ॥ पहेले रे सुपनमें ग यवर दीठो, बीजे, वृषन सोहामणो ए त्रीजे सिंह सुलक्षणो दीठो, चोथे लखमी देवता ए ॥ २ ॥ पाचमे पांच वरणनी माला, बठे चंद्र अमिय करे ए ॥
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