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________________ ( १६२ ) प्रातिहारज श्राहरे, चोत्रीश अतिशयवंत ॥ समवसरणे विश्वनायक, शोने श्री जगवंत ॥ १८ ॥ सुनर किन्नर मानवी, बेठी ते पर्षदा बार ॥ उ पदेश दे अरिहंतजी, धर्मना चार प्रकार ॥ १९॥ दान शील तप जावना रे, टाले सघलां कर्म ॥ मंगल चोथं बोलियें, जगमांहे श्री जिन धर्म ॥ ॥ २० ॥ ए चारमंगलगावशे जे, प्रजातें धरिप्रेम ॥ ते कोड मंगल पामशे, उदय रत्नजांखेएम ॥ २१ ॥ ॥ अथ सीमंधर जिनस्तवनं ॥ धन धन क्षेत्र महाविदेह जी, धन्य पुंमरिक गिणिगाम ॥ धन्य तिहानां मानवी जी, नित्य उ ही करे रे प्रणाम ॥ सीमंधर स्वामी कश्यें रे महाविदेह आवीश ॥ जयवंता जिणवर कश्यें रे हुं तुमने वांदीश ॥ १ ॥ चांदलीया संदेश डो जी, कहे जो सीमंधर स्वाम ॥ जरत क्षेत्रनां मानवी जी, नित्य उही करे रे प्रणाम || सी० ॥ २ ॥ स मवसरण देवें रच्युं तिहां, चोसह इंद्र नरेश ॥ सोना तणे सिंहासन बेठा, चामर बत्र धरेंश ॥ सी० ॥ ३ ॥ इंद्राणी काढे गहूंलीजि, मोतीना चो क पूरेश ॥ रली रली लीये लूटणां जी, जिनव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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