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( १७१) रे लाल, जितशत्रु नृप तात ॥ जण ॥ अजित जिने सर जनमिया रे लाल, विजयाराणी मात ॥ न॥ वंद० ॥॥श्वागवंशेउपना रे लाल, देव सकल शिरदार ॥ ज० ॥ पूरव दिशि जेम उगीयो रे लाल, दिनकर तेज अपार ॥ ज० ॥ वंद० ॥३॥ देव दुजो नहिं एहवो रे लाल, समो वड श्णे संसार ॥ ज०॥ तसपद नक्ति नलीपरे रे लाल, नाव सहित चित्तधार ॥ न ॥ देव ॥४॥ लटनवथी जमरी हुवें रे लाल, जमरी जय संजार ॥ न ॥ मन सम रण महाराजनुं रे लाल, करतां लहे नवपार ॥ न० ॥ देव ॥५॥ जिनजीयें जेम जीतिया रे साल राग रोष रिपु सेन ॥ ज० ॥ जीतियें तास सहायथी रे लाल, लहिये शिवसुख चेन ॥ ज० ॥ देव० ॥६॥ एम जाणी जिनराजनी रे लाल,अव्य जाव नरपूर ॥ ज०॥ पूजा परमातम तणी रे लाल आपेसुखससनुर ॥ ज० ॥ देव०॥७॥ निजपद दा यक जिनतणी रे लाल, धारो अखंडित आण ॥ ज॥ वरूपचंग जावें करी रे लाल, एम पयं वाण ॥ ज० ॥ वंद० ॥ ॥ इति ॥
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