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________________ ( १७०) करुणा कीजें सेवकने मनवांछित हेजे, अजर अमर पद दीजे,वांबित पूरो रे साहेबजी सेवकनां ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ तुजमुख दरिसण मुझमन हरख्यो, मु जने प्रजुजी मलियो ॥ शिवसुखवांडा पूरण मार्नु, अंगण सुरतरूफलीयो ॥ वां ॥॥ श्रादिपुरुष श्री श्रादिजिनेश्वर, युगला धर्म निवारी ॥ त्रिजुवन माहे जिनजी सरिखो, नहिं कोई उपगारी ॥ वांग ॥३॥ विनीता नगरी शोने रूडी, कुल गुरु नानि बिराजे ॥राणी मरुदेवी कूखेंथी, जन्म प्रजुजीनो जे ॥ वां ॥४॥ यौवन वय समरथ गुणसंपद, प्रथम राय कहाया ॥ दानसंवबरी दे जनने, सं यम लिये सुखदाया ॥ वां ॥५॥ लाख चोरासी पूर व श्रायु,पाली सधाव्या मुगतें ॥ केवल कमलालील विलासी वरूपचं सुख युगतें ॥ वांग ॥६॥इति ॥ ॥अथ द्वितीय श्री अजित जिनस्तवनं ॥ ॥ श्री पंचासरो पासजी रे लाल ॥ ए देशी ॥ सुजनावें करि सेवियें रे लाल, बीजा अजित जि पंद ॥ नवि पूजो रे ॥ मंगल माला जेहथी रे लाल होवे अति आणंद ॥नवि॥ वंदना महारी जाणजो रे लाल ॥१॥ ए श्रांकणी अयोध्या नगरी जली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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