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जावमें, जाषकजाव अनित ॥ स० ॥ व० ॥ २ ॥ अनुजव रस यखादता, करता श्रातमध्यान ॥ स० ॥ वचन ते बाधकजाव बे, न वदे मुनि श्र ज्ञान ॥ स० ॥ व० ॥ ३ ॥ वचनाभ्रव पलटायवा, मु नि साधे स्वाध्याय ॥ ० ॥ तेह सर्वथा गोपवो, परम महारस थाय ॥ स० ॥ व० ॥ ४ ॥ जाषा पुजल वर्गणा, ग्रहणा निसर्ग उपाधि ॥ स० ॥ करवा श्रातमवीर्यने, शाने प्रेरे साधि ॥ स० ॥ व० ॥ ५ ॥ यावत् वीरज चेतना, श्रातमगुण संपत्त ॥ स० ॥ तावत् सर्वे निर्जरो, आश्रवपर श्रायात ॥ स० ॥ व० ॥ ५ ॥ इम जाणी स्थिर संयमी, न करे च पलिमंथ ॥ स० ॥ आत्मानंद श्राराधतां या झाथी निर्यय ॥ स० ॥ ० ॥ ७ ॥ साध्य शुद्ध परमातमा, तसु साधन उत्सर्ग ॥ स० ॥ बार दें तप द्विविधें, सकलश्रेष्ठ व्युत्सर्ग ॥ स० ॥ व० ॥८॥ समकित गुणठाणे कस्यो, साध्य अयोगी जाव ॥ ॥ स० ॥ उपादानता तेहनी, गुप्तिरूप स्थिर नाव ॥ स० ॥ ० ॥ एए ॥ गुप्तिरुचि गुप्तें रम्या, कारण समिति प्रपंच ॥ स० ॥ करता स्थिरता ईहता, प्रदे तत्त्व गुणसंच ॥ स० ॥ ० ॥ १० ॥ अपवादें
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