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(१५६) तांकुर, नमो सिक निरंजनम् ॥ ४ ॥ विमल केव ल ज्ञान लोचन, ध्यान सकल समीरितम् ॥ योगि नामतिगम्य रूपं नमो सिक निरंजनम् ॥ ५॥ सुस मय समकित दृष्टि जिनकी, सोहि योग अयो गिकम् ॥ योगिनामतिगम्यरूपं, नमो सिक निरं जनम्॥६॥योगमुडा सम समुजा, पूरि पत्यं कासन म्॥योगिनामति गम्य,रूपं नमो सिफनिरंजनम् ॥ चंद सूरज छीप मनकी, ज्योतियें नउबंधितं ॥ ते ज्योतिथी कोइ अपर ज्योति, नमो सिद्ध निरंजन म्॥॥ सिद्धतीर्थ अतीर्थ सिद्धा, नेद पंच दशादिकं ॥ सर्व कर्म विमुक्त चेतन, नमो सिक निरंजनम्॥॥ एकमांही अनेक राजे, एकमांहे एकिकं ॥ एक श्र नेककी नांहिं संख्या, नमो सिक निरंजनम् ॥१॥ अतुल सुखकी लहेरमें प्रजु, लीन रहे निरंतरं ॥ परब्रह्मज्ञान अनंत दर्शन, नमो सिक निरंज नम् ॥ ११॥ अजर अमर अलख अनंत, निराकार निरंजनम् ॥ धर्मध्यानथी सिकदर्शन, नमो नाथ निरंजनम् ॥ १५ ॥ इतिसिद्धस्तुतिः समाप्ता॥
॥अथ नवकारनो छंद ॥ ॥ दोहा ॥ वांनित पूरे विविध परें, श्री जिन शास
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