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( १९५७ ) न सार ॥ निश्वें श्री नवकार नित, जपतां जय ज यकार ॥ १ ॥ अडसर अक्षर अधिक फल, नव पद नवे निधान ॥ वीतराग स्वयंमुख वदे, पंच परमेष्टि प्रधान ॥ २ ॥ एकज र एक चित्त, समस्यां संपत्ति थाय ॥ संचित सागर सातनां, पातक दूर पलाय ॥ ३ ॥ सकल मंत्र शिर मुकुटमणि, सकुरु जाषित सार ॥ सो जविया मन शुद्धशुं नित्यजपी नवकार ॥ ४ ॥ बंद हाटकी || नवकारथकी श्री पार्लरेशर, पाम्यो राज्य प्रसिद्ध ॥ समशान वि षे शिव नाम कुमरनें, सोवन पुरिसो सिद्ध ॥ नव लाख जपंतां नरक निवारे, पामे जवनो पार ॥ सो नवियां तें चोखे चित्तें, नित्य जपियें नवकार ॥५॥ बांधि वड शाखा शीके बेसी, देवल कुंरु हुताश ॥ तस्करनें मंत्र समय, श्रावके ऊरुयो ते आकाश ॥ विधिरीत जप्यो विषधर विष टाले, ढाले मृत धार ॥ सो० ॥ ६ ॥ बीजोरां कारण राय महाबल, व्यंतर पुष्ट विरोध || जेणें नवकारें इत्या टाली, पा म्यो यक्ष प्रतिबोध ॥ नव लाख जपंतां थाय जिन वर, इस्यो बे अधिकार || सो० ॥७ ॥ पतिपति शि ख्यो मुनिवर पासें, महामंत्र मन शुद्ध ॥ परजव
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