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(५४) पुरकर, दीवेविजयाण सत्तरि सयंमि ॥ नविए जुवि बोहंते, विदरंते जुगवमरिहंते ॥ ३४ ॥ नमिमो उकोसपए, सतरिसयं तह जहन्न वीसं ॥ कण गकलहोय विदुम, मरगय वर रिहरयणनिने ॥ ३५ ॥ जंबूदीवे धायश, संमे तह चेव पुरस्करकेय ॥ सी मंधर जुगमंधर, बाहु सुबाह सुजाउँथ ॥३६ ॥ बहो सयंपह पहु, उसनाणण तह अणंत विरि अ॥ सूरप्पहो विसालो, वजधरो तह गारस मो ॥ ३७॥ चंदाणणो सिरिचंद बाहु, देवो नु जंग ईसर॥ नेमिपह वीरसेणो, महनदो देव जस सामी ॥ ३७॥ सिरिश्रजिय वीरियजिणो, श्यएए संपयं विहरमाणे ॥ वंदे वीस जिणंदे,ति हुयण वंदे सुकय कंदे ॥ ३॥ श्यतीय मणागय व,हमाणया सासया य विहरंता ॥ थुणिया जिणं दचंदा, पय पंकय पणय माहिदा ॥४०॥ अहा वय मुजंते, गयअग्गपएस धम्मचकेय ॥ पास र हावत्तणयं, चमरुप्पायं च वंदामि ॥४१॥ श्रहा वय गिरिराए, पणमेमि थुणेमि तहय जाएमि॥ धम्मधुर धरण वसनं,उसनं पणमंत सुरवसनं ॥४॥ अजियाश्णो विसेसे, वरअश्सेसे जिणेल तेवीसं ॥
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