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(६७) जसवंसो अधनाग हबीणं ॥ वागरण करण नं गिध, कम्मपयडीप्पहाणाणं ॥ १० ॥ जचं जण धाउ सम, पहाण मदिय कुवलय निहाणं ॥ वक्र उ वायग वंसो, रेवश्नकत्त नामाणं ॥ ११ ॥ अयलपुरा णिकंते, कालियसुय अणुगिए धीरे ॥ बंज द्दीवगसीहे, वायग पयमुत्तमं पत्ते ॥ १२ ॥ जेसिं श्मो अणुउँगो, पयरर अजावि अलरहं मि ॥ बहुनयर निग्गय जसे, तं वंदे खंदिलायरि ए॥ १३॥ तत्तो हिमवंत मह, त विकमे धी पर कम मणंते ॥ सद्यायमणंत धरे, हिमबंते वंदिमो सिरसा ॥१४॥ कालिय सुय अणुयोग,स्स धारए धारए अपुवाणं ॥ हिमवंत खमासमणे, वंदे ना गझुणायरिए ॥ १५ ॥ मिउ मदव संपन्ने, अणु पुर्वि वायगत्तणं पत्ते ॥ उह सुय समायारे, नाग अणवायए वंदे ॥ १६ ॥ गोविंदाणं पि नमो, श्र गुडगो विउल धारिणिंदाणं ॥ निच्चं खंति दयाणं, प रूवणे मुल्हनिंदाणं ॥ १७ ॥ तत्तोय नूय दिन्नं, निचं तव संजमे श्र निविमं ॥ पंमिश्रजण साम, वंदामिय संयम वीहिन्नू ॥ १७ ॥ वर कणग तवि य चंपग, विमल वर कमलगत सिरिवले ॥ जवि
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