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(२५) ॥ अथ श्रावकस्य राश्पडिक्कण विधिः ॥ ॥ प्रथम त्रण खमासमण यापी श्छाकारक हीने रियावही॥पडिकमी पड़ी तस्स उत्तरी॥क ही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी प्रगट लोगस्स कही गमणागमण बालोवq एटले मार्गने विषेजा तां श्रावतां॥ ए कही पनी सामायिक गवा त्रण्य नवकार गुणीये. पनी जीवराशि खमावी अढार पा पस्थानक अालोची पठी गुरुस्थापना निमित्त पंचें दिय कही अव्य, क्षेत्र, काल, नाव धारवा. पड़ीसा मायिक उच्चार करवा, एक नवकार गुणी सामायि क व्रत उच्चार करीये. पड़ी फरी बीजा आवश्यक जणी शरियावही ॥ तस्स उत्तरी० ॥ कही पनी ए कलोगस्सनो काउस्सग्ग करी लोगस्स प्रगट कही पड़ी त्रीजा आवश्यक जणी श्छ अनिन्नव अशेष 3 करकय कम्मरकय निमित्त लोगस्स पांचनो काउस्स ग्ग करवो. पड़ी लोगस्स एक प्रगट कही,पळी कुसु मिण उसुमिण उद्दामि निमित्तं करेमि काउस्सग्गं. एम कही लोगस्स चारनो कास्सग्ग करवो. पड़ी एक लोगस्स प्रगट कही पनी उत्तरासंगनो बेहडो पडिलेही पड़ी चोथा श्रावश्यक नणी बे वार श्राव
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