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(२६) श्यक वांदणां देश्ने पड़ी एक जण उनो रही पांच मा आवश्यक नणी लघु अतिचार कहे. पली चैत्य वंदन कही चार स्तवन कहेवां. पठी उवसग्गहरं, न मोढणं कही गुरु वंदन करी सजाय कहीयें, पड़ी
हा श्रावश्यक नणी पच्चरकाण वांदणां बेवार देश्ने गुरुमुखें पच्चरकाण करीये. पठी सामायिक पालवा त्रण नवकार गणीये. पनी 'जंजमणेण बळं' इत्यादिक गाथा कही प्रतिक्रमण समाप्त करीयें ॥ इति श्राव कने राश् पडिक्कमणविधिः समाप्तः॥ ॥ अथ श्रावकस्य पादिक प्रतिक्रमण विधिमाह ॥
॥प्रथम त्रण खमासमण देश् श्छाकारण॥ कही गमनागमन निमित्तें शरियावही तस्स उत्तरी कही ए क लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पनी प्रगट लोगस्स कही, गमनागमन आलोची पठी सामायिक गवा त्रण नवकार गणी जीवराशि खमावी अढार पाप स्थानक आलोववां. पडी गुरुस्थापना निमित्त पंचिं दिय कही अव्य, देोत्र, काल, नाव धारवा. पनी सा मायिक व्रत उच्चार करवा, एक नवकार गुणी सामा यिक व्रत उच्चार करी पनी फरी बीजा आवश्यक न
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