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(२७) णीरियावही तस्स उत्तरी कही एक लोगस्सनो का उस्सग्ग करी पड़ी प्रगट लोगस्स कही बेहडो पडिलेही पड़ी त्रीजा आवश्यक जणी आवश्यक वांदणां बे वार देवां. पली एक जण उन्नो रही चोथा श्रावश्यक नणी महोटा अतिचार कहे, ते थावी रीतें:
॥ श्वामि खमासमणो वंदिलं जावणिजाए नि सीहियाए मबएण वंदामि. श्वाकारेण संदिसह जगवन् ! गुरु पर्वजणी पाखी सविशेष अतिचार थालोडं जी. गुरु कहे बालोएह. पड़ी श्छं नमो अ रिहंताणं ॥ ए नवे पद पूर्ण कहीने अतिचार क हेवा. ते कहे .
___॥अथ बृहदतिचारप्रारंनः ॥ - ॥ श्रावकतणे धर्मे श्री सम्यक्त्वमूल बार व्रस नणीयें ॥
॥ श्वं अरिहंत देव, सुसाहु गुरु, जिनप्रणीतधर्म. जावतः समकित प्रतिपावू, अव्यतो लौकिक लोको त्तर देवगत, गुरुगत, पर्वगत, मिथ्यात्व, चतुर्विध न पीयें. हरि, हर,ब्रह्मा,सूर्य, इंड, चंड, ग्रह, गोत्रज, गणेश, दिपाल, क्षेत्रपाल, स्कंद, कपिल,बुझ, हनु
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