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________________ ( २८ ) मंत, यक्ष, राक्षस, जक्तिमुक्तिदायक जणी श्राराधी यें, ते लौकिक देवगत मिथ्यात्व. चरक पारिव्राज क, कौल, कापालिक, द्विज, तापस, संसारतारक ज णी मानियें, ते लौकिक गुरुगतमिथ्यात्व छापरप रिग्रहीत जिनबिंब वैरोट्या ब्रह्मशांति प्रमुख जैनदे व देवी तणुं जे देवबुद्धे पूजन, ते लोकोत्तर देवगत मिथ्यात्व. पासना, उसन्ना, कुशील, संसक्त, अहाबं द, निन्हव, बोटिक, द्रव्य लिंगीत विषे जे गुरु बु पूजन, ते लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व. ए चतुर्वि ध मिथ्यात्व यथाशक्तें परिहरु ए श्रीसम किततणा पांच प्रतिचार शोधुं. शंका, कंखा, वितिगिठा, परपासंमिपरसंसा, पर पासंगी संथ शंका :- जीवाजीवादिक नवतत्त्वमांदे एके तत्त्वतो मन संदेह धरयो होय, अथवा देव गुरुधर्म सिद्धांत तणो मन संदेह धरयो होय. कांदा :- अपर धर्म तो अभिलाष धरयो होय, अ थवा सर्वधर्म सरखा लेखव्या होय, वितिगिष्ठाः - ध र्मता फलप्रत्यें मन संदेह धरयो होय. अथवा मलमलीनगात्र तपोधन, तपोधना देखी डुगंबा की धी होय. परपासंगी पर संसाः - परदर्शनी तणी अतिश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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