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(१४) थे साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, जे कोश्प्रनु श्री वीतसग देवनी आज्ञा पाले, पलावे, जणे, नणावे, अनुमोदे, तेहने महारी त्रिकाल वंदना होजो. सी मंधर प्रमुख वीश विहरमान जिनने महारी त्रिका ल वंदना होजो, अतीत चोवीशी, अनागत चोवीशी, वर्तमान शोवीशीने महारी त्रिकाल वंदना होजो. रुषजानन, चंडानन, मान, वारीषेण, ए चार शा श्वता जिनने महार। त्रिकाल वंदना होजो. दश म नना, दश वचनना, बार कायाना, ए बत्रीश दोषमा हेलो सामायिकवतमाहे जेको कोश् दोष लागो होय, ते सविडं, मनें, वचनें, कायायें करी मिछामि पुक्कडं, साचानी सदहणा,जूगना मिछामि उक्कडं. पडी त्रण नवकार मनमा गण। त्रण दमासमण दे जयणापू वंक उठQ. ए बारमुं खमासमण ॥
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बाई ॥ इति श्री विधिपदगबना श्रावकोने
देवसिकप्रतिक्रमणविधि समाप्त थयो॥
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