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(२३) ॥ अथ सामायिक पारवानी गाथा॥ ॥ जं जं मणेण बकं,जं जं वायाय नासियंपावं॥ काएण वि उच्कयं, मिठा मि उक्कडं तस्स ॥१॥स वे जीवा कम्मवस,चउदह रऊ जमंत ॥ते में सब ख माविया, मुसवि तेह खमंत ॥२॥ खमी खमावी में खमी, बविह जीव निकाय॥सुङ मने बालोवतां, मुफ मन वेर न थाय ॥३॥ दिवसें दिवसें लकं, देश सुबन्नस्स खं मियं एगो॥ एगो पुण सामाश्य, क रेश न पहुप्पए तस्स ॥४॥कुणे पमाए बोली, हु
विरु बुकि॥ जिण सासण में बोलीचं, मिला 3 कड सुकि॥५॥
॥सामायिक व्रत फासिश्र, पालिश्र, पूरिश्र, ती रिश्र, कित्तिरं, श्राराहिशं, विधे, लीg, विधे, की धुं, विधे पाट्युं, विधे करतां, कीसी अविधि,श्राशा तना हुश् होय, ते सवि हुँ, मनें, वचनें, कायायें क रीमिछा मि मुक्कडं ॥१॥ पाटी, पोथी, कवली,ठ वणी, नोकरवाली कागलें पग लगाड्यो होय, गुरुने श्रासने, बेसणे, उपकरणे पग लगाड्यो होय, झान अव्यतणी आशातना थक्ष होय. ते सवि हुँ, मनें, व चनें, कायायें करी मिठामि उकडं. अढी छीपने वि
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