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(१४०) अधिक नहिं, माहात्म्य केनुं ॥ मा ॥३॥ प्रणव श्रादें धरी, मायाबीजव करी, खमुखें गौतमनाम ध्यायें ॥ कोडि मन कामना, सफल वेगें फलें, विघन वैरी सवे, दूर जाये ॥ मा० ॥४॥ ज्ञानबल तेज स, सकल सुखसंपदा, गौतमनामथी, सिकि पामे ॥ अखंग प्रचंम, प्रताप होय अवनिमां, सुर नर जेह ने, शीश नामे ॥ मा० ॥ ५॥ पुष्ट दूरे टले, वजन मेलो मले, आधि उपाधि ने, व्याधि नासे ॥ नूतनां प्रेतना, जोर जांजे वली, गौतमनाम, जपतां उबासें॥ मा॥६॥ तीर्थअष्टापदें,आप लब्धं जई, पन्नरसेंत्रण ने, दिक दीधी॥अष्टम पारणे, तापस कारणे, दीरल ब्धे करी, अखट कीधी ॥मा॥७॥ वरस पच्चा स लगें, गृहवासें वस्या, वरस वली त्रीश करी, वीर सेवा ॥ बार वरसां लगें, केवल लोगव्युं, नक्ति जे हनी करे, नित्य देवा ॥ मा० ॥ ॥ महियल गौ तम, गोत्र महिमानिधि, गुणनिधि शछि ने, सिद्धि दायी ॥ उदय जस नामथी, अधिक लीला लहे,सु जस सौजाग्य दो, लत सवाई ॥माण ॥ ए ॥ इति ॥
॥अथ श्रीगौतमगुरुनी चोपाई॥ ॥जयो जयो गौतम गणधार, महोटी लब्धि त
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