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(५७) ॥ सिधिगया जब तहिं, नमिमो समय गिरि सिह रं॥॥ जं संमेए संघा, अजियजिणंदा परंपि श्रा इंसु ॥ तेणय सोमह तिबं, तिलोय जण तारण समबं ॥१॥ जय पढमं सिको,पुंगरीउणेग मु णिसहस्स जुर्व ॥ तकाला जा जंबू, असंख कोडि उता सिका ॥ १२ ॥ जय सिहा पंव, पन्न संबार जायवा बहवे ॥ तं विमलं विमल गिरिं,थु णिमो अक्ष विमल पयलं ॥ ३ ॥ जय नेमि मुत्तुं, नूणं उसनाश्णो जिणा रुहिया ॥ कहमन्न ह तेवीसं, जिण पय जुयलाण पडिबिंबा ॥ ४ ॥ तहियं सिरिसित्तुंजे, सुर नर पुजे अणेग वर चु
॥ पणमह जिणवर वसनं, वसनंकं वसनसुमि णं च ॥ ३५ ॥ तच्चं नियाणवाए, सेयपडागा नि साइ जहि जाया ॥ खवगपन्नावा तं शुणि, महु राश् सुपास जिणथूनं ॥ ७६ ॥ जरुथडे कोरंट ग, सुव्वय जियसत्तु तुरग जाइसरो ॥ अणसण सु रथागंतु, जिणमहिममकासितो तहियं ॥ ७ ॥ अस्सावबोह तिबं, जायं तं नाम पुणवि बीयमिणं ॥ सिरि समलिया विहारो, सिंहल धूयकारि उ कारो ॥ ७ ॥ जियसत्तु बाससमली, पाससुपा
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