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________________ (१९४) ग॥ म ॥ स० ॥ १० ॥ तत्त्वरुचि तत्त्वाश्रयी जी, तत्त्वरसी व नीग्रंथ ॥ कर्म उदय आहारता जी, मु नि माने पलीमंथ ॥ मग ॥ स ॥ ११॥ लाजथ की पण घन लहे जी, अति निर्जरा करंत ॥ पा म्ये अणव्यापकपणे जी, निर्मल संत महंत ॥ म ॥ स० ॥ १५ ॥ अणाहारता साधता जी, स मता अमृतकंद ॥ नितु श्रमण वाचंयमी जी, ते वंदे देवचंद ॥ म ॥ स ॥ १३ ॥ इति ॥३॥ ॥ अथ चतुर्थश्रादाननिषेवणासमिति ॥ ॥सद्याय प्रारंजः॥ ॥जोखिडा हंसा रे विषयन राचीयें ॥ए देशी॥ ॥ समिति चोथी रे चउगतिवारणी, नांखी श्री जिनराज ॥ राखी परम अहिंसक मुनिवरें, चा खी ज्ञानसमान ॥ १॥ सहज संवेगी रे समिति परिणमे ॥ ए आंकणी ॥ साधन आतमकाज॥श्रा राधन ए संवर नावनो, जवजलतारण जहाज ॥ स ॥२॥अनिलाषी निज श्रातमतत्त्वना, साखी करि सिद्धांत ॥ नाखी सर्व परिग्रहसंगने, ध्याना काशी रे संत ॥स॥३॥ संवर पंच तणी ए जावना, निरुपाधिक अप्रमाद ॥ सर्व परिग्रह त्याग असंग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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