________________
(११५) ता, तेहनो ए अपवाद ॥ स ॥४॥ शाने मुनिवर उपकरण संग्रहे, जे परजाव विरत्त ॥ देह अमोही नवि लोही कदा, रत्नत्रयी संपत्त ॥ स ॥५॥ जाव अहिंसकता कारण जणी, अव्य अहिंसक साधि ॥ रजोहरण मुखवस्त्रादिक धरे, वरवा योग समाधि ॥स॥६॥ शिव साधन- रे मूल ते झान बे, तेहनो हेतु सद्याय॥ते आहारे ते वलि पात्रथी, जयणायें प्रदेवाय ॥स०॥७॥ बाल तरुण नर नारी जंतुने, नग्न उगंडा हेतु ॥ तिण चोलपट ग्रही मुनि उप दिसे, शुभधर्मसंकेत ॥ स ॥ ॥ मंश मशक शीतादि परिषद सहे, न रहे ध्यानसमाधि ॥ कल्पकथादिक निर्मोहिपणे,धारे मुनि निर्बाध ॥स ॥ ए॥ लेप अलेप नदीना ज्ञाननो, कारण दंम ग्र हंत ॥ दशवैकालिक नगवईसाखथी, तनुस्थिरता ने तंत ॥ स० ॥ १०॥ लघु सजीव सचित्त रजा दिनो, वारण पुःख संघट्ट ॥ देखी पुंजे रे मुनिव र तेहथी, ए पूरव मुनिवट्ट ॥ सम् ॥ ११॥ पुन लखंध ग्रहण निषेवणा, अव्ये जयणा तास ॥ नावें श्रात्मपरिणति नव नवी, ग्रहता समिति प्रकाश ॥ स० ॥ १२ ॥ बाधकलाव अद्वेषपणे तजे, साध
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org