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________________ (११६) कले गत राग ॥ पूरव गुणरक्षक पोषकपणे, निपजते शिवमार्ग ॥ स० ॥ १३ ॥ संयमश्रेणे रे सं चरता मुनि, हरे कर्मकलंक ॥ धरता समता रस एकत्वता, तत्त्वरमणी निःशंक ॥ स ॥ १४ ॥जगन पकारी रे तारक नव्यना,लायक पूर्णानंद ॥ देवचंद एहवा ते मुनिराजना, वंदे पय अरविंद॥स॥१५॥ ॥अथपंचम पारिठावणिया समिति ॥ ॥ सद्याय प्रारंजः ॥ ॥ चेतन चेतजो रे ॥ ए देशी ॥ पंचमी समिति कहि अतिसुंदरु रे, पारिछावणिया नाम ॥ परमश्र हिंसक धर्म वधारणी जी, मृडकरुणा परिणाम ॥ मु निवर सेवजो रे ॥ समिति सदा सुखदाय, स्थि रता जावें संयम सोहाय, धरे निर्मल संवर था य॥ मु॥१॥ए आंकणी ॥ देहनेहथी चंचलता व घे रे, विकसे पुष्ट कषाय ॥ तिणे तनुराग ध्याने रमे जी, ज्ञान चरण सुपसाय ॥ मु॥२॥ जि हां शरीर तिहां मल उपजे रे, तेह तणो परिहार॥ करे जंतु चरस्थिर अणदूहव्या रे, सकल उगंठा वा र ॥ मु० ॥३॥ संयम बाधक आत्मविराधना रे, थापाघातक जाणी ॥ उपाधि अशन शिष्यादि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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