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(६३) गस्सनो काउस्सग्ग पूर्ण करी बेवु नमो अरिहंता णं ए एक पद कही, काउस्सग्ग पारी एक लोग स्स प्रगट कहीने पढ़ी गुरुवंदना कहेवी. ते क ही रह्या पठी एक नवकारनो पाठ पूर्ण कहीने सद्याय बे महोटी कहीये. ते लखीयें यें.
॥अथ प्रथम सद्याय प्रारंजः॥ ॥ जय जगजीव जोणी, विश्राण जगगुरु ज गाणंदो ॥ जगनाहो जगबंधू, जयश् जगप्पिया महो जयवं ॥१॥ जयश् सुत्राणंप्पनवो, तिव्य राणं अपठिमो जय ॥ जयश् गुरुलोगाणं, जयश् महप्पा महावीरो ॥२॥ जदं सबजगुजो, यगस्स जदं जिणस्स वीरस्स ॥ जदं सुरासुरनमं, सियस्स नदं धूयरयस्स ॥३॥ गुणनवण गहण सुयरयण, जरिय दंसण विसुङ रबागा ॥ संघ नयर नइंते, अखंग चरित्तपागारा ॥४॥ संजमतव तुंबारग स्स, नमो सम्मत्त पारियबस्स ॥ अप्पडिचक्क सं जर्ज, होउ सया संघचक्कस्स ॥ ५ ॥ जदं सीलप डागुसियस्स, तव नियमतुरय जुत्तस्स ॥ संघरह स्स जगवर्ज, सिसाय सुनंदिघोसस्स ॥ ६॥ क म्मरयजलोह विणिग्गयस्स, सुयरयण दीद नाल
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