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(६५) राश्य तहियंतु ॥ १५ ॥ जाणि गिह चेश्याणिय, जाणि य जिण लवण तेसु जा पडिमा ॥ गुरुया जा पण धणु सय, लढा अंगुष्ठ पव समा ॥१६॥ सुर नर कय मणिकंचण, रीरीरुप्पा जाव लिप्पम या ॥ उउमहिं अमुणिय, संखाउ नमामि ता स वा ॥१०॥ जे या तिबयरा, जेथ नविस्स अणाग ए काले ॥ जे आवि वट्टमाणा, ते सवे नाव नमि मो ॥ १० ॥ सुरकय मणुयकयं वा, जुवण तिगे सासयं च जं तिबं ॥ तं सयल मिह हि विहु,म ण वयण तणूहि पणमामि ॥ १० ॥ जब जिणा एं जम्मो, दिका नाणं निसीहिया जब ॥ जायं च समोसरणा, ता नूमीठ वंदामि ॥ ११० ॥ एवम सासय सासय,पडिमा थुणिया जिणंदचंदाणं ॥ सि रिमं महिंद नुवणिंद, चंदमुणिवंद श्रुअमहिया ॥१९॥ इति श्री अचलगन्छेश्वरश्रीमन्महींप्रनसूरि विरचिता श्री अष्टोत्तरीतीर्थमाला समाप्ता ॥ ___एम तीर्थ माला कही रह्या पली उना थकांज उवसग्गहरस्तव कहेवू. ते कही रह्या पनी हेग बेशीने नमुन्नुणं कहे. पठी बार लोगस्सनो काउ स्सग्ग करवा निमित्तें तस्सउत्तरी कहीने बार लो
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