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(१३५) अ वूठ अंगुठ ग्वे ॥ गोयम एकण पात्र, करावे पारणुं सवे ॥४१॥ पंचसया शुज नाव, उजाल नरि खीरमीसें ॥ साचा गुरुसंजोग, कवल ते केवल रूप दुआ ॥ ४२ ॥ पंचसया जिणनाह, स मवसरण प्राकार त्रय ॥ पेखवि केवल नाण, उप्प नो उजोय करे ॥ ४३ ॥ जाणे जिणह पीयूष, गाजंती घण मेघ जिम ॥ जिनवाणी निसुणे, नाणी हूआ पंचसया ॥ ४ ॥
॥ वस्तुचंद ॥ ॥णे अनुक्रमें श्णे अनुक्रमें नाण संपन्न ॥ प नरह सय परवरिय हरिय फुरिय जिणनाह वंदे ॥ जाणवि जग गुरुवयण तिह नाण अप्पाण निंदे॥ चरम जिणेसर श्म जणे, गोयम म करिस खेल ॥ बेद जई आपण सही, होसुं तुझा बेउ ॥ ४५ ॥
॥ पंचम नाषा ॥ ॥सामि ए वीर जिणंद, पूनिम चंद जिम उल्ल सिथ ॥ विहरि ए नरहवासम्मि, वरिस बहुत्तर संवसिय॥ठवतो ए कणय पउमेव, पायकमल संचे सहिथ॥श्राविउ ए नयणाणंद,नयर पावापुरि सुरम हिय ॥ ४६ ॥ पेखि ए गोयम सामी, देवसमा प्र
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