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________________ (१३३) तिबोध करे ॥ आपण ए त्रिशला देवि, नंदन पहो तो परम पए ॥ वलतो ए देव आकास, पेखवि जा णिय जिण समे ए ॥ तो मुनि ए मन विखवाद, नादन्नेद जिम ऊपनो ए ॥४॥ कुण समोए सामिय देखि, आप कन्हे हुं टालि ए॥ जाणतो ए ति हुअणनाह, लोक विवहार न पालि ए ॥ अति जलु ए कीध सामि, जाणिलं केवल मागसे ए॥ चिंतविलं ए बालक जेम, अहवा के. लागसे ए ॥ ४० ॥ हुँ किम ए वीर जिणंद, नगतें नोलो नो लवि ए॥आपणो ए अविहल नेह, नाह न संपे साचव्यो ए ॥ साचो ए श्ह वीतराग, नेह न जे णे लालि ए ॥ इण समे ए गोयमचित्त, राग वैरा गें वालि ए ॥ ४ए ॥ आवतो ए जो ऊलट, रहे तो रागें साहिए ॥ केवल ए नाण उप्पन्न, गोय म सहेजें उमाहिउँ ए ॥ तिहुश्रण ए जय जय कार, केवल महिमा सुर करे ए ॥ गणहरू ए करय वखाण,नवियण जव श्म निस्तरे ए ॥ ५० ॥ ॥वस्तुबंद ॥ ॥ पढम गणहर पढम गणहर वरस पंचास ॥ गि हिवासें संवसिय तीस वरिस संजम विजूसिय ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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