SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३१) त्ति, सामी गोयम उपनिय ॥ण बल केवल ना ण, रागज राखे रंगनरें ॥ ३२ ॥ जो अष्टापद शैल, वंदे चढि चवीस जिण ॥ श्रातम लब्धि वसेण, चरमसरीरी सोश मुनि ॥ ३३ ॥ श्श दे सण निसुणेश, गोयम गणहर संचलिः ॥ तापस पन्नरसएण, तो मुनि दीगे श्रावतो ए॥३४॥ तवसोसिय निय अंग, अम्ह सक्ति नवि उपजे ए ॥ किम चढशे दृढकाय, गज जिम दीसे गाज तो ए॥ ३५॥ गिरु ए अनिमान, तापस जो म न चितवे ए॥ तो मुनि चढि वेग, आलंब वि दिनकर किरण ॥३६॥ कंचन मणि निप्प न्न, दंग कलस धज वड सहिय ॥ पेख वि परमा णंद, जिणहर नरदेसर महिथ ॥ ३७॥ निय निय काय प्रमाण, चउदिसि संग्थि जिणहबिं ब ॥ पणमवि मन उदास, गोयम गणदर तिहां वसिय ॥ ३० ॥ वयरसामीनो जीव, तीर्यग्रजूंजक देव तिहां ॥ प्रतिबोधे घुमरीक, कंमरीक अध्ययन जणी ॥ ३५ ॥ वलता गोयमसामि, सवि तापस प्रतिबोध करे। लेई आपणे साथ, चाले जिम जू थाधिपति ॥ ४० ॥ खीर खंम घृत आणि, अमि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy