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(१३०) ण, थाप्या वीर ग्यार तो ॥ तो उपदेशे जुवन गुरु, संजमशुं व्रत बार तो ॥ २५॥ बिहु उपवासे पार' ए, आपण विवरंत तो ॥ गोयम संज म जग सयल, जयजयकार करंत तो ॥ ६ ॥
॥ वस्तुबंद ॥ ॥ इंदनूई इंदनूई चढिय बहु मान ॥ ढुंकारो कर कंपतो समवसरण पुहतो तुरंतो ॥ श्ह संसा सामि सवे, चरमनाद फेडे फुरंतो ॥ बोधबीज स द्यायमने, गोयम जवह विरत्त ॥ दिक लेश सिरका सहिय, गणहर पय संपत्त ॥२७॥
॥ चतुर्थनाषा ॥ ॥आज हर्ड सुविहाण, अाज पचेलिमां पुस जरो ॥ दीग गोयम सामि, जो निय नयणे अ मिय करो ॥२०॥ सिरि गोयम गणहार, पंच सया मुनि परवरिय ॥ नूमिय करय विहार, जवियां ज न पडिबोह करे ॥ श्ए॥ समवसरण मकार, जे जे संसा उपजे ए॥ते ते पर उपगार, कारण पूजे मुनि पवरो ॥ ३० ॥ जिहां जिहां दीजें दिक, तिहां तिहां केवल उपजे ए ॥ आप कन्हे अणडंत, गोयम दीजें दान श्म ॥ ३१ ॥ गुरु उपर गुरुन
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