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( १२ए) सिंहासण सामिय उविर्ज, हुढं सुजयजयकार ॥१६॥
॥ तृतीयनाषा ॥ __॥ तो चढि घणमाण गजें, इंदनूई नूयदेव तो ॥ हुंकारो करी संचरि, कवण सुजिणवर दे व तो ॥ १७ ॥ जोजन नूमि समोसरण, पेखवी प्र थमारंन तो ॥ दह दिसि देखे विबुधवह, श्रावं ती सुररंज तो ॥ १७ ॥ मणिमय तोरण दंग धज, कोसिसे नव घाट तो ॥ वयरविवर्जित जंतुगण, प्रातीहारज आठ तो ॥ १५ ॥ सुर नर किन्नर अ सुरवर, इंड इंशाणी राय तो ॥ चित्त चमकिय चिंत वे ए, सेवंता प्रजुपाय तो ॥ २० ॥ सहसकिरण सम वीर जिण, पेखवी रूप विसाल तो ॥ एह असंचव संजव ए, साचो ए इंजाल तो ॥२१॥ तो बोलावे त्रिजगगुरु, इंजनूई नामेण तो ॥ श्री मुख संसय सामि सवे, फेडे वेदपएण तो ॥श्शा मान मेदिह मद ठेलि करे, नक्तं नामें सीस तो॥ पंचसयागुं व्रत लिउँ ए, गोयम पहिलो सीस तो ॥ २३ ॥ बंधव संजम सुणवि करे, अगिनिनूई श्रावेश तो ॥ नाम लेइ थानाष करे, तं पुण प्र तिबोधेश् तो ॥ २४ ॥ इणि अनुक्रमें गणहररय
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